अभिषेक के सभी लेख

'द माइग्रेंट' ( The Migrant ) : अभिषेक प्रकाश http://humrang.com/

यह फिल्क एक महानगरी जीवनशैली में पलने वाली लड़की और उसकी उन मजदूरों पर निर्भरता की कहानी कहती है

बाइसिकल थीव्स बनाम दो बीघा ज़मीन : अभिषेक प्रकाश http://humrang.com/

आज़ादी कई सपने को पूरा करने का एक माध्यम बनती है और सिनेमा सपनों और आशाओं को सतह पर लाने का |

'चमन बहार' : (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

दिलजले दीवारों पर दिल बनाकर अपने नाम के साथ प्रेमिका का नाम ऐसे लिखते थे जैसे कि वह दीवार ही शादी का मण्डप हो।

पंचायत : वेब सीरीज (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

इतनी जटिल हो चुकी ज़िन्दगी में सहजता को बटोरकर अपनी बात कह देना ही विशेषता है |

गुलाबो सिताबो : (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

दुनिया ऐसे तमाम गुलाबो - सिताबो से भरी पड़ी हैं और ना जाने ऐसे कितने ही सिकन्दर भरे पड़े हैं। फ़िल्म के एक गीत का बोल है "बनके मदारी का बन्दर,डुगडुगी पर नाचे सिकन्दर"

‘चोक्ड’ पैसा बोलता है : (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित और निहित भावे द्वारा लिखी गई इस फ़िल्म में देश के एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम के प्रभाव को परिवार और रिश्तों के तने-बाने में बुनकर ऐसे परोसा गया है जो यह बताती है कि राजनीति से कोई भी और कुछ भी अछूता नही और पैसा कहीं भी हो वह बोलेगा जरूर!

किसका लोक ? ‘पाताल लोक’: (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

सब अपने प्रसिद्धि की कब्र मरने की सीमा तक चाहते हैं लेकिन धरतीलोक व पाताललोक का वासी ज्यादातर जीने की सीमा तक अंतिम रूप से जीना चाहता है। हां महिला चाहे किसी लोक की हो वह अभी भी कम षड्यन्त्रकारी दिखती है अभी भी मातृत्व का भाव उसकी सुकोमलता व उसकी दया उसके जीवन का सबसे बड़ा स्पेस घेरती है।

‘द वीमेन ऑफ़ क्वेश्चनेबल कैरेक्टर’ “पिंक”: लेख संवाद (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

“हमारे यहां तो लडकियों को जोर से हंसने व छींकने पर भी सोचना पड़ता है। शालीनता का अपना एक सामाजिक पैमाना है। लेकिन अच्छी बात है कि स्त्री विमर्श हमारे घरों के दरवाजों पर दस्तक देने लगा है। पहले सुना करता था जब बजुर्ग अपने अगल-बगल की स्त्रियों को ‘सती-सावित्री’ होने का तमगा बांटा करते थे, लेकिन अब ऐसी कम ही स्त्रियां होंगी जो सती-सावित्री होना चाहेंगी। शायद स्त्रियों को यह बात समझ में आने लगी कि ‘स्त्री पैदा नहीं होती बनाई जाती है। ‘अभिषेक प्रकाश’ की कलम से “पिंक” के बहाने एक लेख संवाद ……..|

क्या कला को सीमाओं में बाँधना आदर्श स्थिति होगी ?: आलेख (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

“सभी माध्यमों के इतर दिलों को जोड़ने वाला माध्यम गिने-चुने हैं। कला ,उसमें सबसे सशक्त माध्यम है जो दिलों को छू जाती है। अभी जनमाष्टमी पर अबू मोहम्मद औऱ फरीद अय्याज की आवाज मे ‘कन्हैया, याद है कुछ भी हमारी’ कव्वाली सुना। कृष्ण के प्रति इतना अनुराग देखकर कैसे ये मन नही चाहेगा कि कला को सीमाओं मे न बाधा जाए! नफरत का आकाश भी इतना घना है कि लोग इसे सैनिकों के बलिदान से जोड़ेगे औऱ अमन की बात करने वालों से उनकी राष्ट्रभक्ति का प्रमाण मांगा जाएगा। पर बिना डरे निर्भीकता से उनको चलना होगा, क्योंकि युद्ध कोई हल नही है बल्कि स्वयं मे ही एक समस्या है।” ‘अभिषेक प्रकाश’ का आलेख ……

‘विभीषण’ केवल ‘घर का भेदिया’…? आलेख (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

आज हम देख सकते हैं कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभ किस तरह चाटुकारिता, स्वार्थलोलुपता व परिवारवाद के शिकार है।बहुत कम लोग ऐसे हैं जो सच बोलने का साहस रखते है।हर युग मे ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने अपने हितों से ऊपर उठकर सत्य का साथ दिया। सुकरात को जहर दिया गया, ब्रूनो को जिन्दा जलाया गया ।न जाने ऐसे ही कितने इंसान हुए है जिन्होंने सत्य के लिए अपनी आहुति दी।और जिस परंपरा को पीढी दर पीढी इंसानों ने आगे बढ़ाया।परन्तु इतिहास मे सभी के साथ न्याय हुआ हो जरूरी नही! विभीषण के साथ भी हमारे समाज ने कुछ ऐसा ही किया। ….. ‘अभिषेक प्रकाश’ का आलेख

रीयल राष्ट्रवादी पॉलिटिक्स, सवालों में ! आलेख (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवियों के खोखलेपन से उत्पन्न रिक्तता में पाँव पसारते वर्तमान में शेक्सपीयर का वह वाक्य याद आता है जिसमे वह कहतें है कि– ‘अगर आप उसे पराजित करना चाहते हैं तो आपको उसकी यादाश्त को मिटा देना होगा, उसके भूत को नष्ट कर देना होगा, उसकी कहानियों को समाप्त कर देना होगा”। ऐसे में नेल्सन मंडेला की अभिव्यक्ति “स्वशासन की नींव में महत्वपूर्ण है कि सभी लोग अपने मतों को रख सके और नागरिक के रूप में उनकी वैल्यू समान हो।” को समझना ही होगा और एक बेहतर समाज, राष्ट्र और लोकतंत्र के लिए सवालों और तर्कों की इंसानी परम्परा को बचाए रखना ही होगा इसके लिए जरूरत है तो बस चुप्पी तोड़ने की …..| वर्तमान में सवाल और सवालों की लोकतांत्रिक महत्ता पर प्रकाश डालता “अभिषेक प्रकाश’ का आलेख ….

मेरे समय में नेहरू: आलेख (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

नेहरू को हमने किताबों के माध्यम से जाना जरूर पर सबसे शिद्दत से मोदी युग में ही महसूस किया। एक घटना याद आ रही है मुझे जब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैं आपका प्रधानसेवक हूं। तभी मुझे त्रिमूर्ति की याद आई जिसके पास ही एक स्मारक में मैंने नेहरू द्वारा कहे गए इसी शब्द ‘प्रधानसेवक’ को लिखा पाया था। खैर सेवक तो सभी है कॉपीराइट केवल नेहरू का ही थोड़ी ही है। ….. अपने समय में नेहरु को समझने का प्रयास कर रहे हैं ‘अभिषेक प्रकाश’

महापंचायत…: कहानी (अभिषेक प्रकाश) http://humrang.com/

अभिषेक की कलम खासकर साहित्यिक विधा के तौर पर पूर्व नियोजित होकर लिखने की आदी नहीं है | हाँ बस वे मानव जीवन की घटना परिघटनाओं पर वौद्धिक क्रिया-या प्रतिक्रिया पर अपनी कलम न घसीटकर, अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति को उन्मुक्त छोड़ते हैं…. बस कहानी लेख आलेख के दायरे से आज़ाद….. ‘महापंचायत’ उसी लेखकीय उन्मुक्तता से निकली रचना है जो मुझे कहानी लगी…. बाकी आप भी पढ़ें और तय करें …..

हाल ही में प्रकाशित

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