अफसानानिगार ‘मंटो’ को छू भी नहीं पाई नंदिता दास की ‘मंटो’: फ़िल्म समीक्षा (तेजस पूनिया)

सिनेमा फिल्म-समीक्षा

तेजस पूनिया 2544 11/15/2018 12:00:00 AM

निर्देशक नंदिता दास ने मंटो के जीवन पर मंटो नाम से फिल्म बनाकर मंटो पर ही नहीं बल्कि मंटो को पसंद करने वाले लोगों के साथ, सिनेमा प्रेमियों की मंटो के लिए उठने वाली भावनाओं के साथ भद्दा मजाक किया है । मंटो प्रेमी और सिने प्रेमियों की जेब पर भी तगड़ा हाथ मारा है ।-

अफसानानिगार ‘मंटो’ को छू भी नहीं पाई नंदिता दास की ‘मंटो’


मंटो नाम सुनते ही एक अजीब सी हलचल दिल में होने लगती है । हो भी क्यों ना एक बेहतरीन अफसानानिगार और अपने दौर में जितना कद्दावर उतना ही आज भी । और ऐसी शख्सियत पर जब फिल्म बने तो 70 एम एम स्क्रीन पर उसे देखने की कुलबुलाहट साहित्य प्रेमियों के मन में ख़ास कर ज्यादा होती है ।  लेकिन निर्देशक नंदिता दास ने मंटो के जीवन पर मंटो नाम से फिल्म बनाकर मंटो पर ही नहीं बल्कि मंटो को पसंद करने वाले लोगों के साथ सिनेमा प्रेमियों की मंटो के लिए उठने वाली भावनाओं के साथ भद्दा मजाक किया है । मंटो प्रेमी और  सिने प्रेमियों की जेब पर भी तगड़ा हाथ मारा है |


नंदिता दास एक बेहतरीन अभिनेत्री होने के साथ निर्देशक के रूप में भी अच्छा नाम कमा रही हैं किन्तु मंटो के नाम को वे भुनाने में बुरी तरह नाकाम रही है । इधर मैं मंटो पर बहुत कुछ देख सुन और पढ़ चुका हूँ । उसके बावजूद भी यह फिल्म सिर्फ इसलिए देखी की शायद कुछ नया निकल कर आ सके । परन्तु यकीन मानिए फिल्म के पहले हाफ के कुछ एक संवाद को छोड़ दें तो फिल्म में एक भी सीन ऐसा नहीं है जिसे देखकर मंटो के नाम पर बनी इस फिल्म को बरसों याद किया जा सके । इसके अलावा फिल्म का दूसरा हाफ शुरू होते ही फिल्म निर्देशक के हाथों से इस तरह फिसलती है जैसे मुठ्ठी से रेत । उर्दू अल्फाजों और  फैज की नज्म ‘सुब्हे आज़ादी’ के अलावा फिल्म में ना मंटो के जीवन पर बहुत गहराई से काम किया हुआ लगता है और न ही बाकी  दूसरी जगहों पर । मसालों की बात करें तो फिल्म में एक ही मसाला है ‘मंटो’ और मंटो के नाम का यह मसाला भी नवाजुद्दीन सिद्दकी अच्छे से नहीं भुना पाए । उनके बनिस्पत उनकी बेगम के रूप में राशिका दुग्गल बेहतरीन प्रभाव छोड़ती है । मंटो के रूप में नवाज न तो ड्रेस और मेकअप के मामले में मंटो बन पाए और न ही संवाद अदायगी और अभिनय से उतना प्रभावित कर पाए । एक बेहतरीन अभिनेता से ऐसे निम्न स्तर की एक्टिंग वाकई निराश करती है । इसके अलावा उनके सहयोगी कलाकारों में इस्मत चुगताई बनी ‘राजश्री देशपांडे’ जंचती है । कुलवंत कौर बनी दिव्या दत्ता को बेहद कम रोल मिला लेकिन उस कम समय में भी वे प्रभावी बन पड़ी है । श्याम बने मंटो के दोस्त ताहिर भसीन मंटो से कहीं ज्यादा बेहतर लगे । वहीं टोबा टेकसिंह भी आपको बेहद निराश करने वाला है तो जद्दनबाई आपको कुछ समय के लिए उस निराशा के भाव पर मरहम लगाने आएगी । ऋषि कपूर , गुरदास मान, शशांक अरोड़ा, परेश रावल, रणवीर शौरी, सभी बीच-बीच में आकर फिल्म को बेहतर गति प्रदान करने का काम तो  करते हैं।

फिल्म की कहानी की बात करें तो वह सभी के लिए एक खुली किताब है जिसमें मंटो के कुछ अफ़साने हैं और उन अफसानों में से ‘ठंडा गोश्त’ एक ऐसा अफ़साना है जिस पर उन्हें फांसी तक के लिए आदेश दे दिए गए थे किन्तु बाद में कोर्ट केस और अन्य कई मामलों के चलते 300 रुपए का जुर्माना देकर छोड़ दिया गया । मंटो की आज के समय में सबसे ज्यादा जरूरत है और उससे भी ज्यादा जरूरत उनके अफसानों को पढ़ने और समझने की । मंटो पर बनी इस फिल्म से बेहतर होगा कि आप मंटो पर पाकिस्तान की और से बनाए गए धारावाहिक को देखें और उनकी अलग अलग-कहानियों पर अलग से बनी फ़िल्में देखें । इसके अलावा फिल्म का एक-आध संवाद जो ज्यादा प्रभावी बन पड़ा है या जो दृश्य प्रभावी बन पड़ा है वह ये कि – मंटो जैसी शख्सियत को भी धर्म की अफ़ीम से कहीं न कहीं डरे हुए दिखाना या संवाद के मामले में – मंटो के मुंह से कहलवाना – ‘ जब मजहब दिलों से चलकर सडकों पर निकल आए तो पहननी पड़ती है टोपियाँ । या फिर ओछे जख्म और भद्दे घाव पसंद नहीं । या एक साथी कलाकार का महफ़िल में कहना ‘जब भी मैं अपने भद्दे पैर देखती हूँ  तो मोर की तरह मातम करने का मन होता है । बस यही मातम यह फिल्म आपको देने वाली है । बाकि हाल फिलहाल में ‘टोबा टेक सिंह’ पर इसी नाम से बनी फिल्म देखें । मात्र 42 वर्ष जीने वाले मंटो ने अनेक कहनियाँ लिखी जिन्हें लगभग बाईस से अधिक कहानी संग्रह में संकलित किया गया है । इसके अलावा एक उपन्यास, रेडियो नाटक और फिल्म के लिए पटकथाएं । निर्देशक नंदिता दास ने इससे पहले फ़िराक और इन डिफेन्स ऑफ़ फ्रीडम  (in defence of freedom) नाम से दो बेहतरीन फिल्मों का निर्देशन किया है । और कई फिल्मों में शानदार अभिनय भी वे कर चुकी है ।

मंटो पर फिल्म बनाकर उन्होंने जो घाव बेवजह कुरेदने की नाकाम कोशिश की है उसके लिए शायद जनता उन्हें माफ़ कर दे किन्तु मंटो की मरहूम रुह उन्हें शायद ही माफ़ करे । फिल्म के निर्देशन में कसावट नहीं है किन्तु वीएफएक्स और पुराने दौर को एक बार पुन: से जीने के लिए आप जरुर सिनेमा घर का रूख कर सकते हैं । जो कोई आजाद भारत की नई नई आजादी को महसूसना चाहे या गांधी जी मौत पर दो टुक आँसू बहाना चाहे या फिर उस दौर की गलियों में भटकना चाहे तो भी आप इस फिल्म को देखने जा सकते हैं किन्तु वहीं आप दूसरी ओर मंटो को जानते हैं उनके बारे में बहुत कुछ पढ़ सुन और देख चुके हैं तो आपसे गुजारिश है कुछ दिन का इन्तजार करके आप इसे घर बैठे देखिए नहीं तो जाइए मेरी तरह बेसब्र होकर और फिर तुर फिटे मुंह होकर वापस घर लौट आइए । इसके अलावा फिल्म में गाने भी बेहद कम हैं और मंटोनियत के नाम से रफ़्तार के बनाए रैप को अगर फिल्म में कहीं रखा जाता या फिल्म के अंत में ही रख लिया जाता तो यह फिल्म थोड़ा और बेहतर हो सकती थी । शायद यही कारण है कि फिल्म दूसरे हाफ के शुरू होते ही खींची खींची सी लगती है जिस पर थोड़ी कैफियत बरत कर इसे एक यादगार फिल्म का रूप दिया जा सकता था । इतना सब कुछ देखने के बाद मंटो फिल्म को मिले पुरुस्कारों पर एक सवाल जरुर उठाया जाना चाहिए कि क्या खाली पीली मंटो के नाम या मंटो पर फिल्म बन रही है इसलिए पुरस्कार दे दिया जाना चाहिए ?  

तेजस पूनिया द्वारा लिखित

तेजस पूनिया बायोग्राफी !

नाम : तेजस पूनिया
निक नाम : तेजस
ईमेल आईडी : tejaspoonia@gmail.com
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में : Tejas Poonia S/o Raghunath Poonia 
Master's Of Arts 
Department Of Hindi
Center Of Humanities & Language 
Central University Of Rajasthan
Bandarsindri, Kishangarh
Ajmer - 305817
Ph. No. +919166373652
             

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.