किस्‍से “सूरज प्रकाश” के…

बहुरंग किस्से ‘सूरज प्रकाश’ के

सूरज प्रकाश 519 11/17/2018 12:00:00 AM

हमरंग पर सूरज प्रकाश द्वारा लिखित विशेष व्यन्ग्यालेख ‘किस्से किताबों के’ की तीसरी क़िस्त –

किस्‍से किताबों के – किस्‍सा पाँच

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सूरज प्रकाश

बिना किताबों वाला घर-

ये किस्‍सा एक प्रसिद्ध बांग्‍ला उपन्‍यासकार का है। उनकी बेटी बड़ी हुई तो कई अच्‍छे अच्‍छे रिश्‍ते आने लगे। ऐसा ही एक रिश्‍ता दूर कस्‍बे में बसे एक बहुत बड़े जमींदार के घर से आया। हमारे उपन्‍यासकार महोदय अपनी पत्‍नी के साथ घर-बार देखने ट्रेन से गये। स्‍टेशन पर शानदार बग्‍घी लेने आयी थी। आगे-पीछे चार घुड़सवार। जमींदार के महल में दोनों की बहुत खातिरदारी हुई। किसी किस्‍म की कोई कमी नहीं। शानौ-शौकत सब आला दरजे की। सैकड़ों बीघा खेत, नौकर चाकर, हाथी घोड़े और दुनिया भर के ऐशो-आराम का इंतज़ाम।
वापसी में दोनों को कीमती उपहारों से लाद दिया गया। ट्रेन चली तो उपन्‍यासकार की पत्‍नी बेहद खुश हो कर बोली – घर बैठे हमें कितना अच्‍छा वर और घर-बार मिल रहा है। हमारी बेटी के तो भाग खुल गये। बेटी राज करेगी हमारी।
उपन्‍यासकार महोदय तुनक कर बोले – राज तो तब करेगी जब हम इस घर में उसकी शादी करेंगे।
बीवी चौंकी – क्‍या मतलब? क्‍या कमी नज़र आयी आपको इस घर में। सब कुछ तो आला दरजे का था।
तब उपन्‍यासकार महोदय ने आराम से बताया – तुम दिन भर महल जैसे घर में रही। सब कुछ देखा-भाला। माना, वहां किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी लेकिन भागवान, तुम्‍हीं बताओ, पूरे महल में तुम्‍हें एक भी किताब नज़र आयी?
तब उन्‍होंने ठंडी सांस भरते हुए कहा – हमारी बेटी सारी उम्र हज़ारों किताबों के बीच बड़ी हुई है। बिना किताबों वाले घर में तो एक दिन में पागल हो जायेगी।

ये किस्‍सा बलाई चंद मुखोपाध्‍याय ,(1899-1979) का है जो बनफूल के नाम से लिखते थे। वे उपन्‍यासकार , नाटककार कवि थे। उनके उपन्‍यासों पर कई फिल्‍में बनी हैं। भुवनसोम उनके उपन्‍यास पर ही बनी थी।

किस्‍से किताबों के – किस्‍सा 6 ”

ये किस्‍सा भी बांग्‍ला से – धारावाहिक उपन्‍यास – पाठक की चिंता

बांग्‍ला उपन्‍यासकार विमल मित्र (1912–1991) जितने प्रसिद्ध बांग्‍ला में थे, उतने ही चाव से हिंदी में भी पढ़े जाते थे। उन्‍होंने सौ भी अधिक उपन्‍यास और सैकड़ों कहानियां लिखी। उनके उपन्‍यास पर 1953 में साहिब बीवी और गुलाम पर फिल्‍म भी बनी थी और उन्‍हें सर्वश्रेष्‍ठ फिल्‍म लेखन के लिए फिल्‍म फेयर एवार्ड मिला था। वे कई बार अठारह अठारह घंटे तक लिखते रहते थे।

एक बार एक युवक उनसे मिलने आया और उनके पैर छू कर उनके पास बैठ गया और रोने लगा। ‘
वे हैरान हुए। पूछा- भाई तुम कौन हो और क्‍यों रो रहे हो। मैं तुम्‍हारी क्‍या मदद कर सकता हूं।
युवक ने कहा कि फलां पत्रिका में आपका एक धारावाहिक उपन्‍यास चल रहा है।
विमल जी ने कहा – हां चल तो रहा है।
युवक ने आगे कहा – उसकी नायिका एक बीमार युवती है।
विमल बाबू – हां है तो, फिर
युवक – उपन्‍यास की कथा जिस तरह से आगे बढ़ रही है, तय है कि अगले एकाध अंक के बाद आप नायिका को मार देंगे।
विमल बाबू – लेकिन पात्रों को जीवित रखना या मार देना लेखक के हाथ में थोड़े ही होता है। अब जैसी कहानी आगे बढ़े .. लेकिन तुम ये सब क्‍यों पूछ रहे हो और रो क्‍यों रहे हो।
युवक फिर रोने लगा – दरअसल मेरी बहन को भी वही बीमारी है जो आपके उपन्‍यास की नायिका को है। वह लगातार उपन्‍यास पढ़ रही है। अगर आपने नायिका को मार दिया तो मेरी बहन भी नहीं बच पायेगी। वह फिर से उनके पैरों पर गिर पड़ा – मेरी बहन को बचा लीजिये साहब। ‘

पुष्‍प कुमार शर्मा के सौजन्‍य से

सूरज प्रकाश द्वारा लिखित

सूरज प्रकाश बायोग्राफी !

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सूरज प्रकाश का जन्म उत्‍तराखंड (तब के उत्तर प्रदेश) के देहरादून में हुआ था। सूरज प्रकाश ने मेरठ विश्‍व विद्यालय से बी॰ए॰ की डिग्री प्राप्त की और बाद में उस्‍मानिया विश्‍वविद्यालय से एम ए किया। तुकबंदी बेशक तेरह बरस की उम्र से ही शुरू कर दी थी लेकिन पहली कहानी लिखने के लिए उन्‍हें पैंतीस बरस की उम्र तक इंतजार करना पड़ा। उन्होंने शुरू में कई छोटी-मोटी नौकरियां कीं और फिर 1981 में भारतीय रिज़र्व बैंक की सेवा में बंबई आ गए और वहीं से 2012 में महाप्रबंधक के पद से रिटायर हुए। सूरज प्रकाश कहानीकार, उपन्यासकार और सजग अनुवादक के रूप में जाने जाते हैं। 1989 में वे नौकरी में सज़ा के रूप में अहमदाबाद भेजे गये थे लेकिन उन्‍होंने इस सज़ा को भी अपने पक्ष में मोड़ लिया। तब उन्‍होंने लिखना शुरू ही किया था और उनकी कुल जमा तीन ही कहानियाँ प्रकाशित हुई थीं। अहमदाबाद में बिताए 75 महीनों में उन्‍होंने अपने व्‍यक्‍तित्‍व और लेखन को संवारा और कहानी लेखन में अपनी जगह बनानी शुरू की। खूब पढ़ा और खूब यात्राएं कीं। एक चुनौती के रूप में गुजराती सीखी और पंजाबी भाषी होते हुए भी गुजराती से कई किताबों के अनुवाद किए। इनमें व्‍यंग्य लेखक विनोद भट्ट की कुछ पुस्‍तकों, हसमुख बराड़ी के नाटक ’राई नो दर्पण’ राय और दिनकर जोशी के बेहद प्रसिद्ध उपन्‍यास ’प्रकाशनो पडछायो’ के अनुवाद शामिल हैं। वहीं रहते हुए जॉर्ज आर्वेल के उपन्‍यास ’एनिमल फॉर्म’ का अनुवाद किया। गुजरात हिंदी साहित्‍य अकादमी का पहला सम्‍मान 1993 में सूरज प्रकाश को मिला था। वे इन दिनों मुंबई में रहते हैं। सूरज प्रकाश जी हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी भाषाएं जानते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्‍नी मधु अरोड़ा और दो बेटे अभिजित और अभिज्ञान हैं। मधु जी समर्थ लेखिका हैं।


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