अश्विनी आश्विन: की ग़ज़लें

कविता ग़ज़ल

अश्विनी आश्विन 144 11/17/2018 12:00:00 AM

शांत पानी में फैंका गया पत्थर, जो पानी के ऊपर मजबूती से जम रही काई को तोड़ कर पानी की सतह तक जाकर उसमें हलचल पैदा कर देता है …… अश्विनी आश्विन की ग़ज़लें मस्तिष्क से होकर ह्रदय तक पहुंचकर उसी पानी की तरह विचलन पैदा कर सोचने को विवश करती हैं | -संपादक

1.

लुट चुका सब, क्या यहाँ बाकी रहा?
बस, दहकता आसमां, बाकी रहा।।

ढ़ह गए अब, मंजिलों के ख्वाब सब,
अब न कोई कारवां, बाकी रहा।।

पूछती है, बद-नसीवी मुल्क की,
क्या न कोई महरवाँ, बाकी रहा?

पूछतीं हैं पर-नुची ये तितलियाँ,
देखना क्या, बागवां! बाकी रहा??

जो भगत के ख्वाब की तामीर था,
अब न वो हिन्दोस्तां बाकी रहा।।

आंगनों में उत्सवी माहौल का,
अब कहाँ नामो-निशाँ बाकी रहा।।

छोड़ मुझको तू गई, जिस रोज़ से,
कौन तेरा कद्रदां बाक़ी रहा।।

खूब था इकवाल का ये गुलसितां,
पर कहाँ वो गुलसितां बाकी रहा।।

मर रही इस आदमीयत का, यहाँ,
क्या न कोई रहनुमां, बाकी रहा??

सींचकर खूं से, बनाया था जिसे,
अब कहाँ वो आशियाँ बाकी रहा।।

ज़िन्दगी दे दी, बनाने में जिसे,
ढह गया घर, अब मकाँ बाक़ी रहा।।

छोड़ कर जब से गए हो तुम, मुझे,
कौन मेरा राजदां, बाकी रहा।।

सांस अब भी चल रही है, या ख़ुदा !
कौन सा अब इम्तिहां बाक़ी रहा।।

थी न फितरत में कभी अइयारियाँ,
इसलिए मैं भी कहाँ बाकी रहा।।

2.

उनकी जलती रहीं बस्तियाँ, देर तक ।
पर सुनी कब गयीं अर्जियां ? देर तक ।।

एक बच्चा सरे-राह तकता रहा,
मेरे आगे रखीं रोटियाँ, देर तक ।।

गुल से लिपटे हुए एक भंवरे को कल,
तंग करती रहीं आंधियाँ, देर तक ।।

एक बन्दर खड़ा मुस्कराता रहा,
खूब लड़ती रहीं बिल्लियाँ, देर तक ।।

मैंने तेरी ज़रा-सी झलक के लिए,
रात, खोले रखीं खिड़कियाँ, देर तक ।।

दो सगे भाईयों में ज़रा बात पर,
आज चलती रहीं लाठियां, देर तक ।।

साभार google से

साभार google से

मेरी आँखों की नींदें, उड़ी देख कर,
माँ, सुनाती रही लोरियां, देर तक ।।

कामयाबी ज़रा भी मुझे जो मिली,
माँ, बजाती रही तालियाँ, देर तक ।।

मुझ से बेटा जवां कल लड़ाने लगा,
खीझतीं रह गयीं बेटियाँ, देर तक ।।

आज, बेटा महज चोर बदमाश है,
माँ छुपाती रही गलतियां, देर तक ।।

याद तुम ने किया है मुझे, शुक्रिया !
आज आती रहीं हिचकियाँ, देर तक ।।

बेटा, फिर देर से आज लौटा है घर,
बाप, देता रहा गालियाँ, देर तक ।।

छू के उसका बदन, लौट आई हवा,
गुनगुनाती रहीं घाटियाँ, देर तक ।।

आज उसने ज़रा-सा मुझे छू दिया,
दिल में बजती रही ढ़पलियां, देर तक ।।

बात मत छेड़ना तुम ! मेरे यार की,
मुझसे रूकती नहीं सिसकियाँ, देर तक ।।

हाँ! खुली ज़ुल्फ़ है ये मेरे यार की,
जो बरसती रहीं बदलियाँ, देर तक ।।

चाँद से भी हसीं पा मेरे यार को,
मुझसे जलता रहा आसमाँ, देर तक ।।

अश्विनी आश्विन द्वारा लिखित

अश्विनी आश्विन बायोग्राफी !

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