चुप्पी और वेवशी के रहस्यमय बाने में लिपटे जाते हुए २०१५ को अलविदा कहते हुए २०१६ के आगमन पर बेहतर सामाजिक और मानवीय परिकल्पना में कुछ गहरे इंसानी सवालों से जूझती ‘अश्विनी आश्विन’ की कलम …… | – संपादक
15 अलविदा
google से साभार
भाई के सीने में, भाई का ही खंज़र देख रहा हूँ !
आह ! समय की लाचारी के, क्या-क्या मंज़र देख रहा हूँ !!
महक रहा मेरा घर, जिस के खून-पसीने की खुशबू से,
उस मुफ़लिस के फूटे घर पर, टूटा छप्पर देख रहा हूँ !!
बच्चों के ख़्वाबों की खातिर, भूल गए जो, खुद को जीना,
नंगे-उघड़े उन लाचारों को सड़कों पर देख रहा हूँ !!
जिन हाथों में, इस दुनिया का, हंसता-गाता मुस्तकविल है,
उन हाथों में बम, बन्दूकें, भाले, नश्तर, देख रहा हूँ !!
नन्हे बच्चों के हाथों में, दे दो कलमें और किताबें,
उनकी आँखों में ख़्वाबों का, एक बबंडर देख रहा हूँ !!
ऐ बुत! कितने लोग, उजड़ कर ख़ाक हो गए तेरी खातिर,
शिकन नहीं है तेरे रुख पर, कैसा ईश्वर देख रहा हूँ !?
दिन-दिन बद से बदतर होते हालातों पर फिक्रमन्द हूँ!
बोझिल मन से, बेवस-सा मैं, वर्ष गुज़रते देख रहा हूँ !!
16 के स्वागत में
अपना कौन? कौन बेगाना ?
दुश्मन कौन ? हमजुवां कौन ?
सब इन्सां हैं, केवल इन्सां,
हिन्दू कौन, मुसलमां कौन ??
आदमियत के मुस्तकविल की
साभार google से
फिक्र मुझे है सदियों से,
कौमपरस्तों की बस्ती में
खोज रहा हूँ! इंसा कौन ??
अब बच्चों को फुर्सत कब है
टी.वी. गेम, फेसबुक से,
गली मुहल्लों में पकड़े अब,
जुगनू और तितलियाँ कौन ??
कहाँ गए वे स्वांग, तमाशे,
आल्हा, ढोला, नौटंकी,
अब जलते अलाव पर कहता
किस्से-औ कहानियाँ कौन ??
एक लहू से सींचे हम हैं,
एक कोख के जाये हम,
फिर भी आपस में दुश्मन हैं,
तुझ-सा, मुझ-सा नादाँ कौन ??
जिसे देखिये, ढूंढ रहा है,
गैरों में गलतियाँ, मगर
इक हमाम है, नंगे सब हैं,
अपनी चुने गलतियाँ कौन ??
कितने ही घर तरस रहे हैं
वर्षों से वासिंदों को,
कितने बे-घर पूछ रहे हैं,
देगा हमें आशियां कौन ??
कोखों में ही कन्याओं का
भ्रूण-हनन करने वालो!
सोचो जरा ! तुम्हारे कुल को,
देगा भला बेटियां कौन ??
तुम हौसला करो! पर तोलो!
उड़ने का आगाज़ करो!
कहाँ समंदर ? कैसा तूफ़ाँ ?
क्या बिजलियाँ ? आसमाँ कौन ??
मेरा भी गुलज़ार आशियां,
तेरा घर भी रौशन है,
तू भी खुश है, मैं भी खुश हूँ!
ढूढ़ें चलो! परेशां कौन है ??