पति भी मांग सकता है भरण-पोषण: आलेख (कुश कुमार)

विमर्श-और-आलेख कोर्ट- कचहरी

कुश कुमार 646 11/17/2018 12:00:00 AM

आम तौर पर यह धारणा है कि पत्नी ही अपने भरण-पोषण की मांग कर सकती है | दरअसल यह धारणाएं सम्बन्धित और संदर्भित विषय के प्रति जानकारियों के अभाव की परिचायक ही होती हैं क्योंकि हमारे यहां की सामाजिक बुनावट और बनावट सदियों से पितृसत्तात्मक है। अनादि काल से आय के अधिकतर स्रोतों पर पुरुषों का आधिपत्य रहा है। तमाम कोशिशों और कानूनों के बावजूद कमोबेश अब भी पुरूष वर्चस्व कायम है। जाहिर है ऐसे में अधिकतर मामलों में महिलाएं ही आश्रित होती हैं, इसलिए देखा जाता है कि ज्यादातर मामलों में भरण-पोषण की हकदार व प्रार्थी भी महिलाएं ही होती हैं। यह स्थिति हमारे सामाजिक बनावट की देन है, न कि कानून व्यवस्था की। संविधान में इस बात का विशेष ख्याल रखा गया है कि लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव न हो। यह नियम जितना महिलाओं पर लागू होता है, उतना ही पुरुषों पर भी। अतः क़ानूनन, महज़ पत्नी ही नहीं पति भी मांग सकता है भरण-पोषण | …… भले ही हम इन्टरनेट पर सवार होकर डिज़िटल होने की कल्पनाओं की उड़ान पर हैं लेकिन अभी भी हमारी कानूनी समझ और जानकारी, खुद के या विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनैतिक मुद्दों पर समृद्ध नहीं मिलती | क़ानून के प्रति कमज़ोर समझ के कारण ही, पक्ष बेहद मज़बूत होने के बाद भी हम कितनी ही बार अपना ‘वाद’ न्यायालय में दाखिल नहीं कराते और अपने हक़ और अधिकारों से वंचित रह जाते हैं | इस दिशा में हमरंग की एक छोटी कोशिश है “शोध आलेख” के अंतर्गत ‘क़ानूनन’ स्तम्भ की शुरूआत | जहाँ हम अपने पाठकों के लिए हर महीने, व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक आदि जैसे मुद्दों के अनेक पहलुओं और विवादों पर कानूनी दृष्टि से समझ भरे आलेख प्रकाशित करेंगे | हमरंग पर इस कॉलम की शुरुआत ‘बेंगलोर स्कूल ऑफ़ लीगल स्टडीज’ से छात्र ‘कुश कुमार’ के आलेख से ……..| – संपादक

पति भी मांग सकता है भरण-पोषण 

बेटी नहीं है बोझ :आलेख (कुश कुमार)

कुश कुमार
 छात्र, बेंगलोर स्कूल ऑफ़ लीगल स्टडीज
ई-मेल- kushkumar156@gmail.com

सामान्य रूप से लोगों में यह धारणा है कि भरण पोषण मांगने का अधिकार सिर्फ पत्नी को है, लेकिन यह एक भ्रांति से जयादा कुछ नहीं है। कानून की नजर में पति और पत्नी दोनों के अधिकार एक बराबर हैं यानी कानून ने जो भी अधिकार या कर्तव्य निर्धारित किये हैं, वे दोनों के लिए एक बराबर हैं। हां सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक स्थितियों के आधार पर किसी एक के जीवन व अधिकारों के संरक्षण के लिए जब जो आवश्यक जान पड़ता है, कानून तब वह निर्देश जारी करता है।
हमारे यहां की सामाजिक बुनावट और बनावट सदियों से पितृसत्तात्मक है। अनादि काल से आय के अधिकतर स्रोतों पर पुरुषों का आधिपत्य रहा है। तमाम कोशिशों और कानूनों के बावजूद कमोबेश अब भी पुरूष वर्चस्व कायम है। जाहिर है ऐसे में अधिकतर मामलों में महिलाएं ही आश्रित होती हैं, इसलिए देखा जाता है कि ज्यादातर मामलों में भरण-पोषण की हकदार व प्रार्थी भी महिलाएं ही होती हैं। यह स्थिति हमारे सामाजिक बनावट की देन है, न कि कानून व्यवस्था की। संविधान में इस बात का विशेष ख्याल रखा गया है कि लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव न हो। यह निषेध जितना महिलाओं पर लागू होता है, उतना ही पुरुषों पर भी।
इसलिए यदि कोई पुरूष अपना भरण पोषण करने में सक्षम नहीं है और उसकी पत्नी के पास आय के पर्याप्त स्रोत हैं तो वह अपनी पत्नी से अपने लिए भरण-पोषण मांग सकता है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 और 25 पति और पत्नी दोनों को भरण-पोषण से संबंधित अधिकार प्रदान करती है। धारा 24 वादकालीन भरण-पोषण पाने का अधिकार देती है तो इसी अधिनियम की धारा 25 स्थायी भरण-पोषण पाने का अधिकार।
धारा 24 के अंतर्गत वादकालीन भरण-पोषण और वाद से संबंधित वादकालीन खर्चे मांगे जा सकते हैं। इस धारा के तहत भरण-पोषण प्रदान करने के लिए न्यायालय सिर्फ यह विचार करेगी कि प्रार्थी (यहां प्रार्थी का अर्थ पति से होगा, क्योंकि इस आर्टिकल में हम पति के भरण-पोषण के अधिकार की बात कर रहे हैं, लेकिन गौरतलब है कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 और 25 पति-पत्नी दोनों को भरण-पोषण पाने का अधिकार प्रदान करती हैं जो विभिन्न परिस्थितियों द्वारा निर्धारित होगा कि किस मामले में कौन भरण-पोषण पाने का अधिकारी है) के पास उसके भरण-पोषण के लिए तथा कार्यवाहियों का आवश्यक व्यय दिये जाने के लिए कोई पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है और पत्नी के पास पर्याप्त आय के स्रोत हैं।
इस अधिनियम की धारा 25 के अंतर्गत स्थाई भरण-पोषण पाने का अधिकार प्रार्थी को या तो जीवन भर के लिए मिलता है या फिर तब तक तक के लिए जब तक कि प्रार्थी का पुनर्विववाह नहीं हो जाता।
अर्थात यदि कोई पति अपना भरण-पोषण करने में अक्षम है तो वह इस धारा के तहत अपनी पत्नी से स्थायी भरण-पोषण की मांग कर सकता है। यदि पत्नी के पास उसके भरण-पोषण के लिए पर्याप्त स्वतंत्र आय है तो प्रार्थी को भरण-पोषण मिलेगा। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि कोर्ट के लिए यह विचारणीय होगा कि पति के पास उसके स्वयं के भरण-पोषण के लिए कोई पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है, न ही उसके पास ऐसी चल या अचल संपदा, जिससे वह खुद का भरण-पोषण कर सके। यहां आय के अंतर्गत चल-अचल दोनों तरह की संपत्ति से होने वाली आय के साथ-साथ उसके शारीरिक व मानसिक श्रम से होने वाली आय भी पूर्ण विचारणीय होगी। पति की ज्वाइंट हिंदू फैमिली प्रोपर्टी के शेयर, गिफ्ट या दान में मिली संपत्ति आदि से होने वाली आय का भी आकलन किया जाएगा। बैंक में रखे रुपये, सावधि जमा, इक्विटी फंड, शेयर या अन्य प्रकार का निवेश आदि सबकुछ पर विचार करने के बाद यदि कोर्ट को लगता है कि पति अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है तो कोर्ट भरण-पोषण देने का आदेश दे सकती है। भरण पोषण से संबंधित आदेश देने के दौरान पत्नी की आय का आंकलन भी ठीक इसी तरह से किया जाएगा। भरण-पोषण की मात्रा का आंकलन भी न्यायालय इसी आंकलन के आधार पर करता है ।
इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बिंदू है कि भरण-पोषण की मात्रा के निर्धारण का आधार क्या होगा। मीनू चोपड़ा बनाम दीपक चोपड़ा के केस में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण का अर्थ यह कत्तई नहीं कि किसी तरह गुजारा हो जाए। भरण-पोषण का तात्पर्य है कि पति-पत्नी यदि सुखी दांपत्य जीवन जी रहे होते और दोनों एक साथ रह रहे होते तो उन दोनों का जीवन स्तर कैसा होता। तय है कि उस परिस्थिति में दोनों का जीवन स्तर एक समान होता। यानी अगर वे कार अफोर्ड कर पाते, चाहे दोनों में से जिस किसी की भी आय से यह संभव होता, तो उस कार का सुख दोनों को मिलता। अगर वे घर में ए सी लगाने की हैसियत रखते तो उस ए सी का फायदा दोनों को मिलता। यानी यदि पति धनाढ्य है और संपन्नता का जीवन जी रहा है तो साथ रहते हुए पत्नी भी उसकी समृद्धता में भागीदार होगी और वह उसी हैसियत में रहने की हकदार होगी, जिसमें कि उसका पति रह रहा है। इसी प्रकार साथ रहते हुए वह जिस हैसियत में रहने की हकदार होती भरण-पोषण पाने के दौरान भी वह उसी हैसियत में रहने की हकदार होगी। न्यायालय के अनुसार परित्यक्त पत्नियों के भरण-पोषण के मामले में न्यायालयों को साम्या का सिद्धांत लागू करना चाहिए। चूंकि इस धारा के तहत पति और पत्नी दोनों को समान अधिकार प्राप्त है इसलिए साम्या का यह सिद्धांत पति पर भी उतना ही लागू होगा जितना कि पत्नी पर।
इस संदर्भ में यह अहम बात है कि भरण-पोषण की मात्रा निर्धारित करते समय न्यायालय किसी भी व्यक्ति के जीवन-स्तर को तय करने के दौरान जीवन के लिए अति आवश्यक आधारभूत जरूरतों जैसे घर, पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य, चिकित्सा, परिवहन आदि तथा किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के स्वस्थ एवं संपूर्ण विकास के लिए अतिआवश्यक जरूरतों जैसे शिक्षा, हुनर विकास, स्वस्थ वैचारिक विकास, स्वस्थ मनोरंजन आदि से संबंधी आवश्यकताओं को प्रमुखता देगी और इन जरूरतों के आधार पर ही भरण-पोषण की रकम निर्धारित करेगी न कि पति की अय्याशी या गलत आदतों जैसे शराब, जुआ आदि की पूर्ति के लिए जरूरी रकम, चाहे पत्नी कितनी भी धनाढय क्यों न हो।
यहां यह भी गौरतलब है कि यदि पति का आचरण ठीक नहीं है या अपनी पत्नी के अलावा उसके किसी भी अन्य स्त्री से एक बार भी अंतरंग संबंध बने हों तो वह भरण-पोषण पाने का अधिकारी नहीं रह जाता है।
यदि पति ने स्वेच्छा से, समझौते से, आपसी सहमति द्वारा या किसी अन्य तरीके से अपना यह अधिकार त्याग दिया है या अपना दावा उसने खो दिया है, तब भी वह भरण-पोषण पाने का अधिकारी नहीं रह जाता है।
इसके अलावा अगर पति धर्मांतरण कर ले यानी वह हिंदू न रह जाए तो वह अपनी पत्नी से भरण-पोषण पाने का अधिकारी भी नहीं रह जाता है।
यदि पति दूसरी शादी कर ले तो वह अपनी पत्नी से भरण-पोषण पाने का अधिकारी नहीं रह जाता है।
यदि न्यायालय द्वारा भरण-पोषण का आदेश देने के बाद कोई पति अपना भरण-पोषण करने में सक्षम हो जाता है या ऊपर वर्णित किसी अयोग्यता का शिकार हो जाता है तो न्यायालय अपने आदेश को संसोधित या निरस्त कर सकती है। न्यायालय को ऐसा करने का पूर्ण अधिकार है। यहां संसोधन से अर्थ यह है कि यदि पति कुछ आय अर्जित करने लगता है या उसे किसी आय स्रोत से या किसी अन्य तरीके से जैसे दान, गिफ्ट आदि से कुछ आय प्राप्त होने लगती है लेकिन वह आय इतनी नहीं हो कि वह उस जीवन स्तर को पा सके जिसको वह पत्नी के साथ रहने पर प्राप्त करता तो ऐसी स्थिति में न्यायालय अपने आदेश को संसोधित कर भरण-पोषण की रकम में से पति की आय के अलावा आवश्यक राशि तय कर सकती है।

कुश कुमार द्वारा लिखित

कुश कुमार बायोग्राफी !

नाम : कुश कुमार
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.