इन्स्पेक्टर मातादीन चाँद पर: व्यंग्य (हरिशंकर परसाई)

व्यंग्य व्यंग्य

हरिशंकर परसाई 1975 11/17/2018 12:00:00 AM

पूछा जाएगा, इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर क्यों गए थे? टूरिस्ट की हैसियत से या किसी फरार अपराधी को पकड़ने? नहीं, वे भारत की तरफ़ से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत गए थे. चाँद सरकार ने भारत सरकार को लिखा था- यों हमारी सभ्यता बहुत आगे बढ़ी है. पर हमारी पुलिस में पर्याप्त सक्षमता नहीं है. वह अपराधी का पता लगाने और उसे सजा दिलाने में अक्सर सफल नहीं होती. सुना है, आपके यहाँ रामराज है. मेहरबानी करके किसी पुलिस अफसर को भेजें जो हमारी पुलिस को शिक्षित कर दे.

इन्स्पेक्टर मातादीन चाँद पर

वैज्ञानिक कहते हैं ,चाँद पर जीवन नहीं है. harishankar-parsai1

सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (डिपार्टमेंट में एम. डी. साब) कहते हैं- वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहाँ हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है.

 विज्ञान ने हमेशा इन्स्पेक्टर मातादीन से मात खाई है. फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ कहता रहता है- छुरे पर पाए गए निशान मुलजिम की अँगुलियों के नहीं हैं. पर मातादीन उसे सजा दिला ही देते हैं.

 मातादीन कहते हैं, ये वैज्ञानिक केस का पूरा इन्वेस्टीगेशन नहीं करते. उन्होंने चाँद का उजला हिस्सा देखा और कह दिया, वहाँ जीवन नहीं है. मैं चाँद का अँधेरा हिस्सा देख कर आया हूँ. वहाँ मनुष्य जाति है.

यह बात सही है क्योंकि अँधेरे पक्ष के मातादीन माहिर माने जाते हैं.

      पूछा जाएगा, इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर क्यों गए थे? टूरिस्ट की हैसियत से या किसी फरार अपराधी को पकड़ने? नहीं, वे भारत की तरफ़ से सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अंतर्गत गए थे. चाँद सरकार ने भारत सरकार को लिखा था- यों हमारी सभ्यता बहुत आगे बढ़ी है. पर हमारी पुलिस में पर्याप्त सक्षमता नहीं है. वह अपराधी का पता लगाने और उसे सजा दिलाने में अक्सर सफल नहीं होती. सुना है, आपके यहाँ रामराज है. मेहरबानी करके किसी पुलिस अफसर को भेजें जो हमारी पुलिस को शिक्षित कर दे.

        गृहमंत्री ने सचिव से कहा- किसी आई. जी. को भेज दो.

       सचिव ने कहा- नहीं सर, आई. जी. नहीं भेजा जा सकता. प्रोटोकॉल का सवाल है. चाँद हमारा एक क्षुद्र उपग्रह है. आई. जी. के रैंक के आदमी को नहीं भेजेंगे. किसी सीनियर इंस्पेक्टर को भेज देता हूँ.

      तय किया गया कि हजारों मामलों के इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर सीनियर इंस्पेक्टर मातादीन को भेज दिया जाय.

      चाँद की सरकार को लिख दिया गया कि आप मातादीन को लेने के लिए पृथ्वी-यान भेज दीजिये.

      पुलिस मंत्री ने मातादीन को बुलाकर कहा- तुम भारतीय पुलिस की उज्ज्वल परंपरा के दूत की हैसियत से जा रहे हो. ऐसा काम करना कि सारे अंतरिक्ष में डिपार्टमेंट की ऐसी जय-जयकार हो कि पी.एम. (प्रधानमन्त्री) को भी सुनाई पड़ जाए.

       मातादीन की यात्रा का दिन आ गया. एक यान अंतरिक्ष अड्डे पर उतरा. मातादीन सबसे विदा लेकर यान की तरफ़ बढ़े. वे धीरे-धीरे कहते जा रहे थे, ‘प्रविसि नगर कीजै सब काजा, ह्रदय राखि कौसलपुर राजा.’

       यान के पास पहुँचकर मातादीन ने मुंशी अब्दुल गफूर को पुकारा- ‘मुंशी!’

     गफूर ने एड़ी मिलाकर सेल्यूट फटकारा. बोला- जी, पेक्टसा !

      एफ. आई. आर. रख दी है?

      जी , पेक्टसा.

      और रोजनामचे का नमूना?

     जी, पेक्टसा !

      वे यान में बैठने लगे. हवलदार बलभद्दर को बुलाकर कहा- हमारे घर में जचकी के बखत अपने खटला (पत्नी) को मदद के लिए भेज देना.

      बलभद्दर ने कहा- जी, पेक्टसा.

     गफूर ने कहा – आप बेफिक्र रहे पेक्टसा ! मैं अपने मकान (पत्नी) को भी भेज दूंगा खिदमत के लिए.

    मातादीन ने यान के चालक से पूछा – ड्राइविंग लाइसेंस है?

      जी, है साहब !

    और गाड़ी में बत्ती ठीक है?

       जी, ठीक है.

       मातादीन ने कहा, सब ठीकठाक होना चाहिए, वरना हरामजादे का बीच अंतरिक्ष में चालान कर दूँगा.

      चन्द्रमा से आये चालक ने कहा- हमारे यहाँ आदमी से इस तरह नहीं बोलते.

      मातादीन ने कहा- जानता हूँ बे ! तुम्हारी पुलिस कमज़ोर है. अभी मैं उसे ठीक करता हूँ.

      मातादीन यान में कदम रख ही रहे थे कि हवलदार रामसजीवन भागता हुआ आया. बोला- पेक्टसा, एस.पी. साहब के घर में से कहे हैं कि चाँद से एड़ी चमकाने का पत्थर लेते आना.

      मातादीन खुश हुए. बोले- कह देना बाई साब से, ज़रूर लेता आऊंगा.

      वे यान में बैठे और यान उड़ चला. पृथ्वी के वायुमंडल से यान बाहर निकला ही था कि मातादीन ने चालक से कहा- अबे, हॉर्न क्यों नहीं बजाता?

      चालक ने जवाब दिया- आसपास लाखों मील में कुछ नहीं है.

      मातादीन ने डांटा- मगर रूल इज रूल. हॉर्न बजाता चल.

        चालक अंतरिक्ष में हॉर्न बजाता हुआ यान को चाँद पर उतार लाया. अंतरिक्ष अड्डे पर पुलिस अधिकारी मातादीन के स्वागत के लिए खड़े थे. मातादीन रोब से उतरे और उन अफसरों के कन्धों पर नजर डाली. वहाँ किसी के स्टार नहीं थे. फीते भी किसी के नहीं लगे थे. लिहाज़ा मातादीन ने एड़ी मिलाना और हाथ उठाना ज़रूरी नहीं समझा. फिर उन्होंने सोचा, मैं यहाँ इंस्पेक्टर की हैसियत से नहीं, सलाहकार की हैसियत से आया हूँ.

        मातादीन को वे लोग लाइन में ले गए और एक अच्छे बंगले में उन्हें टिका दिया.

        एक दिन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शुरू कर दिया. पहले उन्होंने पुलिस लाइन का मुलाहज़ा किया.

         शाम को उन्होंने आई.जी. से कहा- आपके यहाँ पुलिस लाइन में हनुमानजी का मंदिर नहीं है. हमारे रामराज में पुलिस लाइन में हनुमानजी हैं.

       आई.जी. ने कहा- हनुमान कौन थे- हम नहीं जानते.

        मातादीन ने कहा- हनुमान का दर्शन हर कर्तव्यपरायण पुलिसवाले के लिए ज़रूरी है. हनुमान सुग्रीव के यहाँ स्पेशल ब्रांच में थे. उन्होंने सीता माता का पता लगाया था.’एबडक्शन’का मामला था- दफा 362. हनुमानजी ने रावण को सजा वहीँ दे दी. उसकी प्रॉपर्टी में आग लगा दी. पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि अपराधी को पकड़ा और वहीँ सज़ा दे दी. अदालत में जाने का झंझट नहीं. मगर यह सिस्टम अभी हमारे रामराज में भी चालू नहीं हुआ है. हनुमानजी के काम से भगवान राम बहुत खुश हुए. वे उन्हें अयोध्या ले आए और ‘टौन ड्यूटी’ में तैनात कर दिया. वही हनुमान हमारे अराध्य देव हैं. मैं उनकी फोटो लेता आया हूँ. उसपर से मूर्तियाँ बनवाइए और हर पुलिस लाइन में स्थापित करवाइए.

        थोड़े ही दिनों में चाँद की हर पुलिस लाइन में हनुमानजी स्थापित हो गए.

         मातादीनजी उन कारणों का अध्ययन कर रहे थे, जिनसे पुलिस लापरवाह और अलाल हो गयी है. वह अपराधों पर ध्यान नहीं देती. कोई कारण नहीं मिल रहा था. एकाएक उनकी बुद्धि में एक चमक आई.उन्होंने मुंशी से कहा- ज़रा तनखा का रजिस्टर बताओ.

        तनखा का रजिस्टर देखा, तो सब समझ गए. कारण पकड़ में आ गया.

       शाम को उन्होंने पुलिस मंत्री से कहा, मैं समझ गया कि आपकी पुलिस मुस्तैद क्यों नहीं है. आप इतनी बड़ी तनख्वाहें देते हैं इसीलिए. सिपाही को पांच सौ, थानेदार को हज़ार- ये क्या मज़ाक है. आखिर पुलिस अपराधी को क्यों पकड़े? हमारे यहाँ सिपाही को सौ और इंस्पेक्टर को दो सौ देते हैं तो वे चौबीस घंटे जुर्म की तलाश करते हैं. आप तनख्वाहें फ़ौरन घटाइए.

         पुलिस मंत्री ने कहा- मगर यह तो अन्याय होगा. अच्छा वेतन नहीं मिलेगा तो वे काम ही क्यों करेंगे?

      मातादीन ने कहा- इसमें कोई अन्याय नहीं है. आप देखेंगे कि पहली घटी हुई तनखा मिलते ही आपकी पुलिस की मनोवृति में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाएगा.

       पुलिस मंत्री ने तनख्वाहें घटा दीं और 2-3 महीनों में सचमुच बहुत फर्क आ गया. पुलिस एकदम मुस्तैद हो गई. सोते से एकदम जाग गई. चारों तरफ़ नज़र रखने लगी. अपराधियों की दुनिया में घबड़ाहट छा गई. पुलिस मंत्री ने तमाम थानों के रिकॉर्ड बुला कर देखे. पहले से कई गुने अधिक केस रजिस्टर हुए थे. उन्होंने मातादीन से कहा- मैं आपकी सूझ की तारीफ़ करता हूँ. आपने क्रांति कर दी. पर यह हुआ किस तरह?

       मातादीन ने समझाया-बात बहुत मामूली है.कम तनखा दोगे, तो मुलाज़िम की गुजर नहीं होगी. सौ रुपयों में सिपाही बच्चों को नहीं पाल सकता. दो सौ में इंस्पेक्टर ठाठ-बाट नहीं मेनटेन कर सकता. उसे ऊपरी आमदनी करनी ही पड़ेगी. और ऊपरी आमदनी तभी होगी जब वह अपराधी को पकड़ेगा. गरज़ कि वह अपराधों पर नज़र रखेगा. सचेत, कर्तव्यपरायण और मुस्तैद हो जाएगा. हमारे रामराज के स्वच्छ और सक्षम प्रशासन का यही रहस्य है.

              चंद्रलोक में इस चमत्कार की खबर फ़ैल गयी. लोग मातादीन को देखने आने लगे कि वह आदमी कैसा है जो तनखा कम करके सक्षमता ला देता है. पुलिस के लोग भी खुश थे. वे कहते- गुरु, आप इधर न पधारते तो हम सभी कोरी तनखा से ही गुजर करते रहते. सरकार भी खुश थी कि मुनाफे का बजट बनने वाला था.

        आधी समस्या हल हो गई. पुलिस अपराधी पकड़ने लगी थी. अब मामले की जाँच-विधि में सुधार करना रह गया था. अपराधी को पकड़ने के बाद उसे सजा दिलाना. मातादीन इंतज़ार कर रहे थे कि कोई बड़ा केस हो जाए तो नमूने के तौर पर उसका इन्वेस्टिगेशन कर बताएँ.

      एक दिन आपसी मारपीट में एक आदमी मारा गया. मातादीन कोतवाली में आकर बैठ गए और बोले- नमूने के लिए इस केस का ‘इन्वेस्टिगेशन’ मैं करता हूँ. आप लोग सीखिए. यह क़त्ल का केस है. क़त्ल के केस में ‘एविडेंस’ बहुत पक्का होना चाहिए

       कोतवाल ने कहा- पहले कातिल का पता लगाया जाएगा, तभी तो एविडेंस इकठ्ठा किया जायगा.

       मातादीन ने कहा- नहीं, उलटे मत चलो. पहले एविडेंस देखो. क्या कहीं ख़ून मिला? किसी के कपड़ों पर या और कहीं?

      एक इंस्पेक्टर ने कहा- हाँ, मारनेवाले तो भाग गए थे. मृतक सड़क पर बेहोश पड़ा था. एक भला आदमी वहाँ रहता है. उसने उठाकर अस्पताल भेजा. उस भले आदमी के कपड़ों पर खून के दाग लग गए हैं.

      मातादीन ने कहा- उसे फ़ौरन गिरफ्तार करो.

     कोतवाल ने कहा- मगर उसने तो मरते हुए आदमी की मदद की थी.

     मातादीन ने कहा- वह सब ठीक है. पर तुम खून के दाग ढूँढने और कहाँ जाओगे? जो एविडेंस मिल रहा है, उसे तो कब्ज़े में करो.

      वह भला आदमी पकड़कर बुलवा लिया गया. उसने कहा- मैंने तो मरते आदमी को अस्पताल भिजवाया था. मेरा क्या कसूर है?

      चाँद की पुलिस उसकी बात से एकदम प्रभावित हुई. मातादीन प्रभावित नहीं हुए. सारा पुलिस महकमा उत्सुक था कि अब मातादीन क्या तर्क निकालते हैं.

       मातादीन ने उससे कहा- पर तुम झगडे की जगह गए क्यों?

       उसने जवाब दिया- मैं झगड़े की जगह नहीं गया. मेरा वहाँ मकान है. झगड़ा मेरे मकान के सामने हुआ.

       अब फिर मातादीन की प्रतिभा की परीक्षा थी. सारा महकमा उत्सुक देख रहा था.

       मातादीन ने कहा- मकान तो ठीक है. पर मैं पूछता हूँ, झगड़े की जगह जाना ही क्यों?

       इस तर्क का कोई ज़वाब नहीं था. वह बार-बार कहता- मैं झगड़े की जगह नहीं गया. मेरा वहीँ मकान है.

       मातादीन उसे जवाब देते- सो ठीक है, पर झगड़े की जगह जाना ही क्यों? इस तर्क-प्रणाली से पुलिस के लोग बहुत प्रभावित हुए.

       अब मातादीनजी ने इन्वेस्टिगेशन का सिद्धांत समझाया-

       देखो, आदमी मारा गया है, तो यह पक्का है किसी ने उसे ज़रूर मारा. कोई कातिल है.किसी को सज़ा होनी है. सवाल है- किसको सज़ा होनी है? पुलिस के लिए यह सवाल इतना महत्त्व नहीं रखता जितना यह सवाल कि जुर्म किस पर साबित हो सकता है या किस पर साबित होना चाहिए. क़त्ल हुआ है, तो किसी मनुष्य को सज़ा होगी ही. मारनेवाले को होती है, या बेकसूर को – यह अपने सोचने की बात नहीं है. मनुष्य-मनुष्य सब बराबर हैं. सबमें उसी परमात्मा का अंश है. हम भेदभाव नहीं करते. यह पुलिस का मानवतावाद है.

        दूसरा सवाल है, किस पर जुर्म साबित होना चाहिए. इसका निर्णय इन बातों से होगा- (1) क्या वह आदमी पुलिस के रास्ते में आता है? (2) क्या उसे सज़ा दिलाने से ऊपर के लोग खुश होंगे?

        मातादीन को बताया गया कि वह आदमी भला है, पर पुलिस अन्याय करे तो विरोध करता है. जहाँ तक ऊपर के लोगों का सवाल है- वह वर्तमान सरकार की विरोधी राजनीति वाला है.

        मातादीन ने टेबिल ठोंककर कहा- फर्स्ट क्लास केस. पक्का एविडेंस. और ऊपर का सपोर्ट.

        एक इंस्पेक्टर ने कहा- पर हमारे गले यह बात नहीं उतरती है कि एक निरपराध-भले आदमी को सजा दिलाई जाए.

        मातादीन ने समझाया- देखो, मैं समझा चुका हूँ कि सबमें उसी ईश्वर का अंश है. सज़ा इसे हो या कातिल को, फांसी पर तो ईश्वर ही चढ़ेगा न ! फिर तुम्हे कपड़ों पर खून मिल रहा है. इसे छोड़कर तुम कहाँ खून ढूंढते फिरोगे? तुम तो भरो एफ. आई. आर. .

        मातादीन जी ने एफ.आई.आर. भरवा दी. ‘बखत ज़रुरत के लिए’ जगह खाली छुड़वा दी.

        दूसरे दिन पुलिस कोतवाल ने कहा- गुरुदेव, हमारी तो बड़ी आफत है. तमाम भले आदमी आते हैं और कहते है, उस बेचारे बेक़सूर को क्यों फंसा रहे हो? ऐसा तो चंद्रलोक में कभी नहीं हुआ ! बताइये हम क्या जवाब दें? हम तो बहुत शर्मिंदा हैं.

        मातादीन ने कोतवाल से कहा- घबड़ाओ मत. शुरू-शुरू में इस काम में आदमी को शर्म आती है. आगे तुम्हें बेक़सूर को छोड़ने में शर्म आएगी. हर चीज़ का जवाब है. अब आपके पास जो आए उससे कह दो, हम जानते हैं वह निर्दोष है, पर हम क्या करें? यह सब ऊपर से हो रहा है.

         कोतवाल ने कहा- तब वे एस.पी. के पास जाएँगे.

         मातादीन बोले- एस.पी. भी कह दें कि ऊपर से हो रहा है.

         तब वे आई.जी. के पास शिकायत करेंगे.

         आई.जी. भी कहें कि सब ऊपर से हो रहा है.

         तब वे लोग पुलिस मंत्री के पास पहुंचेंगे.

         पुलिस मंत्री भी कहेंगे- भैया, मैं क्या करूं? यह ऊपर से हो रहा है.

          तो वे प्रधानमंत्री के पास जाएंगे.

          प्रधानमंत्री भी कहें कि मैं जानता हूँ, वह निर्दोष है, पर यह ऊपर से हो रहा है.

          कोतवाल ने कहा- तब वे…

          मातादीन ने कहा- तब क्या? तब वे किसके पास जाएँगे? भगवान के पास न ? मगर भगवान से पूछकर कौन लौट सका है?

          कोतवाल चुप रह गया. वह इस महान प्रतिभा से चमत्कृत था.

          मातादीन ने कहा- एक मुहावरा ‘ऊपर से हो रहा है’ हमारे देश में पच्चीस सालों से सरकारों को बचा रहा है. तुम इसे सीख लो.

          केस की तैयारी होने लगी. मातादीन ने कहा- अब 4-6 चश्मदीद गवाह लाओ.

          कोतवाल- चश्मदीद गवाह कैसे मिलेंगे? जब किसी ने उसे मारते देखा ही नहीं, तो चश्मदीद गवाह कोई कैसे होगा?

          मातादीन ने सिर ठोंक लिया, किन बेवकूफों के बीच फंसा दिया गवर्नमेंट ने. इन्हें तो ए-बी-सी-डी भी नहीं आती.

          झल्लाकर कहा- चश्मदीद गवाह किसे कहते हैं, जानते हो? चश्मदीद गवाह वह नहीं है जो देखे- बल्कि वह है जो कहे कि मैंने देखा.

          कोतवाल ने कहा- ऐसा कोई क्यों कहेगा?

          मातादीन ने कहा- कहेगा. समझ में नहीं आता, कैसे डिपार्टमेंट चलाते हो ! अरे चश्मदीद गवाहों की लिस्ट पुलिस के पास पहले से रहती है. जहाँ ज़रुरत हुई, उन्हें चश्मदीद बना दिया. हमारे यहाँ ऐसे आदमी हैं, जो साल में 3-4 सौ वारदातों के चश्मदीद गवाह होते हैं. हमारी अदालतें भी मान लेती हैं कि इस आदमी में कोई दैवी शक्ति है जिससे जान लेता है कि अमुक जगह वारदात होने वाली है और वहाँ पहले से पहुँच जाता है. मैं तुम्हें चश्मदीद गवाह बनाकर देता हूँ. 8-10 उठाईगीरों को बुलाओ, जो चोरी, मारपीट, गुंडागर्दी करते हों. जुआ खिलाते हों या शराब उतारते हों.

          दूसरे दिन शहर के 8-10 नवरत्न कोतवाली में हाजिर थे. उन्हें देखकर मातादीन गद्गद हो गए. बहुत दिन हो गए थे ऐसे लोगों को देखे. बड़ा सूना-सूना लग रहा था.

          मातादीन का प्रेम उमड़ पड़ा. उनसे कहा- तुम लोगों ने उस आदमी को लाठी से मारते देखा था न?

          वे बोले- नहीं देखा साब ! हम वहाँ थे ही नहीं.

          मातादीन जानते थे, यह पहला मौका है. फिर उन्होंने कहा- वहाँ नहीं थे, यह मैंने माना. पर लाठी मारते देखा तो था?

           उन लोगों को लगा कि यह पागल आदमी है. तभी ऐसी उटपटांग बात कहता है. वे हँसने लगे.

           मातादीन ने कहा- हँसो मत, जवाब दो.

           वे बोले- जब थे ही नहीं, तो कैसे देखा?

           मातादीन ने गुर्राकर देखा. कहा- कैसे देखा, सो बताता हूँ. तुम लोग जो काम करते हो- सब इधर दर्ज़ है. हर एक को कम से कम दस साल जेल में डाला जा सकता है. तुम ये काम आगे भी करना चाहते हो या जेल जाना चाहते हो?

           वे घबड़ाकर बोले – साब, हम जेल नहीं जाना चाहते .

           मातादीन ने कहा- ठीक. तो तुमने उस आदमी को लाठी मारते देखा. देखा न ?

           वे बोले- देखा साब. वह आदमी घर से निकला और जो लाठी मारना शुरू किया, तो वह बेचारा बेहोश होकर सड़क पर गिर पड़ा.

           मातादीन ने कहा- ठीक है. आगे भी ऐसी वारदातें देखोगे?

           वे बोले- साब , जो आप कहेंगे, सो देखेंगे.

           कोतवाल इस चमत्कार से थोड़ी देर को बेहोश हो गया. होश आया तो मातादीन के चरणों पर गिर पड़ा.

          मातादीन ने कहा- हटो. काम करने दो.

          कोतवाल पाँवों से लिपट गया. कहने लगा- मैं जीवन भर इन श्रीचरणों में पड़ा रहना चाहता हूँ.

          मातादीन ने आगे की सारी कार्यप्रणाली तय कर दी. एफ.आई.आर. बदलना, बीच में पन्ने डालना, रोजनामचा बदलना, गवाहों को तोड़ना – सब सिखा दिया.

          उस आदमी को बीस साल की सज़ा हो गई.

         चाँद की पुलिस शिक्षित हो चुकी थी. धड़ाधड़ केस बनने लगे और सज़ा होने लगी. चाँद की सरकार बहुत खुश थी. पुलिस की ऐसी मुस्तैदी भारत सरकार के सहयोग का नतीजा था. चाँद की संसद ने एक धन्यवाद का प्रस्ताव पास किया.

         एक दिन मातादीनजी का सार्वजनिक अभिनंदन किया गया. वे फूलों से लदे खुली जीप पर बैठे थे. आसपास जय-जयकार करते हजारों लोग. वे हाथ जोड़कर अपने गृहमंत्री की स्टाइल में जवाब दे रहे थ

          ज़िंदगी में पहली बार ऐसा कर रहे थे, इसलिए थोड़ा अटपटा लग रहा था. छब्बीस साल पहले पुलिस में भरती होते वक्त किसने सोचा था कि एक दिन दूसरे लोक में उनका ऐसा अभिनंदन होगा. वे पछताए- अच्छा होता कि इस मौके के लिए कुरता, टोपी और धोती ले आते.

         भारत के पुलिस मंत्री टेलीविजन पर बैठे यह दृश्य देख रहे थे और सोच रहे थे, मेरी सद्भावना यात्रा के लिए वातावरण बन गया.

         कुछ महीने निकल गए.

         एक दिन चाँद की संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया गया. बहुत तूफ़ान खड़ा हुआ. गुप्त अधिवेशन था, इसलिए रिपोर्ट प्रकाशित नहीं हुई पर संसद की दीवारों से टकराकर कुछ शब्द बाहर आए.

           सदस्य गुस्से से चिल्ला रहे थे-

           कोई बीमार बाप का इलाज नहीं कराता.

           डूबते बच्चों को कोई नहीं बचाता.

           जलते मकान की आग कोई नहीं बुझाता.

         आदमी जानवर से बदतर हो गया . सरकार फ़ौरन इस्तीफ़ा दे.

           दूसरे दिन चाँद के प्रधानमंत्री ने मातादीन को बुलाया. मातादीन ने देखा – वे एकदम बूढ़े हो गए थे. लगा, ये कई रात सोए नहीं हैं.

           रुँआसे होकर प्रधानमंत्री ने कहा- मातादीनजी , हम आपके और भारत सरकार के बहुत आभारी हैं. अब आप कल देश वापस लौट जाइये.

           मातादीन ने कहा- मैं तो ‘टर्म’ ख़त्म करके ही जाऊँगा.

           प्रधानमंत्री ने कहा- आप बाकी ‘टर्म’ का वेतन ले जाइये- डबल ले जाइए, तिबल ले जाइये.

            मातादीन ने कहा- हमारा सिद्धांत है: हमें पैसा नहीं काम प्यारा है.

            आखिर चाँद के प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री को एक गुप्त पत्र लिखा.

            चौथे दिन मातादीनजी को वापस लौटने के लिए अपने आई.जी. का आर्डर मिल गया.

            उन्होंने एस.पी. साहब के घर के लिए एड़ी चमकाने का पत्थर यान में रखा और चाँद से विदा हो गए.

            उन्हें जाते देख पुलिसवाले रो पड़े.

            बहुत अरसे तक यह रहस्य बना रहा कि आखिर चाँद में ऐसा क्या हो गया कि मातादीनजी को इस तरह एकदम लौटना पड़ा. चाँद के प्रधान मंत्री ने भारत के प्रधान मंत्री को क्या लिखा था?

             एक दिन वह पत्र खुल ही गया. उसमें लिखा था-

             इंस्पेक्टर मातादीन की सेवाएँ हमें प्रदान करने के लिए अनेक धन्यवाद. पर अब आप उन्हें फ़ौरन बुला लें. हम भारत को मित्रदेश समझते थे, पर आपने हमारे साथ शत्रुवत व्यवहार किया है. हम भोले लोगों से आपने विश्वासघात किया है.

             आपके मातादीनजी ने हमारी पुलिस को जैसा कर दिया है, उसके नतीज़े ये हुए हैं:

              कोई आदमी किसी मरते हुए आदमी के पास नहीं जाता, इस डर से कि वह क़त्ल के मामले में फंसा दिया जाएगा. बेटा बीमार बाप की सेवा नहीं करता. वह डरता है, बाप मर गया तो उस पर कहीं हत्या का आरोप नहीं लगा दिया जाए. घर जलते रहते हैं और कोई बुझाने नहीं जाता- डरता है कि कहीं उसपर आग लगाने का जुर्म कायम न कर दिया जाए. बच्चे नदी में डूबते रहते हैं और कोई उन्हें नहीं बचाता, इस डर से कि उस पर बच्चों को डुबाने का आरोप न लग जाए. सारे मानवीय संबंध समाप्त हो रहे हैं. मातादीनजी ने हमारी आधी संस्कृति नष्ट कर दी है. अगर वे यहाँ रहे तो पूरी संस्कृति नष्ट कर देंगे. उन्हें फ़ौरन रामराज में बुला लिया जाए.

हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित

हरिशंकर परसाई बायोग्राफी !

नाम : हरिशंकर परसाई
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हरिशंकर परसाई का जन्‍म मध्‍य प्रदेश के होशंगाबाद जनपद में इटारसी के निकट स्थित जमानी नामक ग्राम में 22 अगसत 1924 ई. को हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिखा से स्‍नातक तक की शिक्षा मध्‍य प्रदेश में हुई। तदुपरान्‍त इन्‍होंने नागजुर विश्‍वविद्यालय से एम.ए. हिन्‍दी की परीखा उत्तीर्ण की। इनके पश्‍चात् कुछ वर्षों तक इन्‍होंने अध्‍यापन-कार्य किया। इन्‍होंने बाल्‍यावस्‍था से ही कला एवं साहित्‍य में रुचि लेना प्रारम्‍भ कर दिया था। वे अध्‍यापन के साथ-साथ साहित्‍य-सृजन भी करते रहे। दोनो कार्य साथ-साथ न चलने के कारण अध्‍यापन-कार्य छोड़कर साहित्‍य-साधना को ही इन्‍होंने अपने जीवन का लक्ष्‍य बना लिया । इन्‍होंने जबलपुर में 'वसुधा' नामक पत्रिका के सम्‍पादन एवं प्रकाशन का काय्र प्रारम्‍भ किया, लेकिन अर्थ के अभाव के कारण यह बन्‍द करना पड़ा। इनके निबन्‍ध और व्‍यंग्‍य समसामयिक पत्र-पत्रिकाओं में प्र‍कशित होते रहते थे, लेकिन इन्‍होंने नियमित रूप से धर्मयुग और साप्‍ताहिक हिन्‍दुस्‍तान के लिए अपनी रचनाऍं लिखीं। 10 अगस्‍त 1995 ई. को इनका स्‍वर्गवास हो गया। हिन्‍दी गद्य-साहित्‍य के व्‍यंग्‍यकारों में हरिशंकर परसाई अग्रगण्‍य थे। इनके व्‍यंग्‍य-विषय सामािजक एवं राजनीतिक रहे। व्‍यंग्‍य के अतिरिक्‍त इन्‍होंने साळितय की अन्‍य विधाओं पर भी अपनी लेखनी चलाई थी, परन्‍तु इनकी प्रसिद्धि व्‍यंग्‍याकार के रूप में ही हुई।

कृतियॉं
परसाई जी की प्रमुख कृतियाँ है।
  • कहानी-संग्रह- हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे
  • उपन्‍यास- रानी नागफनी की कहानी तट की खोज
  • निबन्‍घ-संग्रह- तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेर्इमान की परत, पगडण्‍ि‍डयों का जमाना, सदाचार ताबीज, शिकायत मुझे भी हे, और अन्‍त में, तिरछी रेखाऍं, ठिठुरता गणतन्‍त्र, विकलांग श्रद्धा का दौर, मेरी श्रेष्‍ठ वंयग्‍य रचनाऍं। 
  • सम्‍पादन- वसुधा (पत्रिका)

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