डॉ. मोहसिन ख़ान ‘तनहा’ की गज़लें:
1-
ज़्यादा उड़िये मत वर्ना धर लिए जाएंगे।
अब हौसलों के पंख कतर लिए जाएंगे।
आजकल मौसम है तेज़ाबी बारिश का,
तो ख़ुद को बाहर किधर लिए जाएंगे।
बेबाक बात करने वालों बचकर रहना,
यहाँ तुमसे बदले छुपकर लिए जाएंगे।
एक हुजूम चल रहा है भेड़ों की तरह,
न जाने कहाँ इसे रहबर लिए जाएंगे।
फिर होगा क़त्ल करेंगे नंगा सड़कों पे,
कैमरे में मंज़र क़ैद कर लिए जाएंगे।
मुल्क की बेरोक तरक़्क़ी के नाम पर,
हमको पता था घर भर लिए जाएंगे।
‘तनहा’ भटक रहा हूँ, जाने किस सिम्त,
मुझे मंज़िल तक ये सफ़र लिए जाएंगे।
2-
ज़िन्दगी मुझे ज़रा आराम की सूरत नहीं देती।
मैं बीमार हो जाऊँ इतनी सी फुर्सत नहीं देती।
रोज़ ही सुबह रहती है फ़िक्र रोटी कमाने की,
ये भूख मुझे एक दिन की मोहलत नहीं देती।
निचोड़ लेती है दुनिया मेरे बदन का पसीना,
और बदले में थोड़ी भी सहूलियत नहीं देती।
एक मुझे छोड़कर हैं चीजें सभी बड़ी महँगी,
मैं बिक जाऊँ पर दुनिया क़ीमत नहीं देती।
करता हूँ फ़ख़्र और भरोसा शुरू से जिसपे,
बेटी माँ-बाप को कभी मुसीबत नहीं देती।
लिबासों में हैं सजे-धजे, सब बनावटी लोग,
यार अमीरी आदमी को शराफ़त नहीं देती।
‘तनहा’ यूँ न जिए कोई घर में होकर परया,
माँ सौतेली सब देती है, मोहब्बत नहीं देती।