‘आल्हा’ शैली में लिखी गईं कुछ कवितायें: (शिव प्रकाश त्रिपाठी)

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शिव प्रकश तिरपाठी 910 11/18/2018 12:00:00 AM

विभिन्न भारतीय कला संस्कृतियों में, पूर्वोत्तर भारतीय कला “आल्हा” लोक गायन में अपने छन्द विधान एवं गायन शैली की दृष्टि से विशिष्ट दिखाई पड़ती है । माना जाता रहा है कि इसे सुन कर निर्जीवों की नसों में भी रक्त संचरण बड़ जाता है | किन्तु अन्य लोक कलाओं की भाँति ‘वीर रस की अभिव्यक्ति में गाथा गायन की लोक-कला “आल्हा” भी तकनीकी प्रभाव और सरकारी उपेक्षा के चलते हासिये पर है | ऐसे में वर्तमान आधुनिक कविता को आल्हा के छंद विधान में लिखने का ‘शिव प्रकाश त्रिपाठी‘ का प्रयास निश्चित ही सराहनीय और अनूठा है | आज हमरंग पर ‘आल्हा‘ शैली में लिखी गईं उनकी कुछ कवितायें ….| – संपादक

सुशासन की है नौटंकी, घोटालों का राज बनाय 

शिवप्रकाश त्रिपाठी

एकहि वार कियो व्यापम ने, धर्मराज को दियो बुलाय।
छीयालिस तो स्वाहा होई गये, बाकी गये सनाका खाय।

फरफर फरफर फरकत बाजू, कितने कटतमरत अब जाय।
वीर शिवा के राज मा भैय्या, राम राज अब उतरा हाय।।

संतोषा है नाम ज्वान का, मचा दियो है तहलका य़ार।
नेतन मा खलबली मच गयी, मची सबन मा हाहाकार।

जाँच के ऊपर जाँच बईठ गइ, कमेटियन की बही बयार।
घन घन घनघन बादर गरजै, औ गरजै अब यहाँ सियार।।

सुशासन की है नौटंकी, घोटालों का राज बनाय।
भ्रष्टाचार खून मा इनके, अऊ ईमान गयो हेराय।
शव पे राज करे कितनन के, तब जाकै शवराज कहाय।
खून के आँसू रोई राजा, गरिबन की जब लागी हाय।।

कोरट से आ गया फैसला, अब आगै का सुनो हवाल।।
सरकारी तोता का देखो, जाँच मिल गयी अबकी बार।

मामा की तो चाँदी होई गयी, केंद्र मा बईठी है सरकार।
राजनाथ का चरण चुम्बनं मोदी की अब जय जय कार।

राजपाल के नाम मा धब्बा, बड़े कोरट की पड़ गयी मार।
सैतालिस अब लाशै गिर गयी, चारो तरफ मची चित्कार।

खून से माटी लाल होई गयी, देखो जिधर खून की धार।
राज मा मौत का तांडव मचगा, जनता मा दोहरी है मार।।
अल्लाह अल्लाह राटै मुसल्ला, गवाही कहै खुदाय खुदाय।
घोटलवा से जान बचा दे, आगे गवाही हम करिबे नाय।।

ई तो हाल है मुसलमान का तनि हिन्दुअन की सुनो दस्तान।
श्याम राम बजरंग बली शिव, कितने नरियर फूटत जाय।
कितने मान मनौती मन गए , अबकी जान बचायो पाय।

धड़धड़ धड़धड़ लाशै गिर गई, ऊँचनीच व्यापम मा नाय।
एक समान सबै का मारे, मामा का यहु राज कहाय।।
सूनी होइगे मांग कितनन के, जीवन की है कठिन डगर।
सुबह से लइके शाम होई गयी, चुनुवा ढूढए इधर-उधर।
रोवै बापू बापू कइके, रस्ता देखै भरी नज़र।

सूखी रोटी खा रही लेब, न करिबे हम अगर – मगर।
बस एक बार तू वापस आ जा, गले लगा ले जीभर कर।।

बेई माननीय        

साभार google से

छप्पन इंची छाती लादे, अढ़ाई हाथ की लिए जुबान।
जहिकै ऊपर धरै निशाना, निकरै तुरंत चट्ट से प्रान।

व्यापारिन के शान है साहेब, खोल के बईठा है दुकान।
अम्बानी अड्डानी टाटा , के चेहरन मा है मुस्कान।

जुमलेबाजी मा माहिर वा , नारा है अब वहिके शान।
देश विदेश फिरै वा हरदम, बईठ के सरकारी विमान।।

आपन देख भाल खुद कर ले, जनता सुन के है हैरान।
सेल्फी सेल्फी नारा गढ़ के,बईठ के दांत चियारे जवान।।

कि आल्हा सुनै जो सावन-भादौ, स्वाभिमान ये दियो जगाय।
फरकत भौहें चमकत बिजुरी, सुनतय खून खौल ही जाय।

करम भूमि मा उतरि पड़ो अब , मन काहे रे तू सकुचाय।
बुन्देलन की शान है आल्हा , ज्वानन मा फिर जोश जगाय।।

शिव प्रकश तिरपाठी द्वारा लिखित

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