गन्ध: कहानी (डॉ० श्याम सखा ‘श्याम’)

कथा-कहानी कहानी

डॉ० श्याम सखा 'श्याम' 151 11/18/2018 12:00:00 AM

“असली बात या मुद्दआ तो हमारी दोस्ती है जो चाहत व समझ की ठोस बुनियाद पर डटी है। हालाँकि हमने आपस में भविष्य के बारे में कभी कोई बात नहीं की है, पर लगभग तय है कि नमिता के एम.डी.करते ही हम पति-पत्नी बन जाएँगे, विधिवत। जी हाँ ! क्योंकि वैसे तो हम, जैसे एक साथ रह रहे हैं, वह रिश्ता भी पति-पत्नी जैसा ही है, बल्कि उससे बेहतर क्योंकि पति-पत्नी की तरह हमारी एक-दूसरे से कोई जबरदस्ती की अपेक्षा नहीं, कोई दबाव नहीं।”

गन्ध

जी स्ग्रिेट! स्ग्रिेट मैं कब से पी रहा हूँ, ठीक से नहीं बतला सकता। पर अब तो सिग्रेट मेरे जीवन मेरे व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग बन बैठी है।

    जी हाँ, स्ग्रिेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, मैं जानता हूँ। मैं क्या, सभी स्ग्रिेट पीने वाले यह जानते हैं। स्ग्रिेट की डिब्बी पर भी लिखा होता है, हालांकि ऐसे, कि इसे पढऩे के लिए उत्तल शीशे की आवश्यकता होती है।

    नमिता, नमिता मेरी स्त्री-मित्र है। हाँ, हाँ गर्ल-फ्रेंड। लगभग तीन साल से हमारी मित्राता है। खासी गहरी छनती है, हम दोनों में। वह आयुर्विज्ञान में स्नातकोत्तर की छात्रा है, हाँ, एम.डी.पीडियाट्रिक्स की स्टुडेन्ट, पुणे में पढ़ती है।

    मैं अभी फिल्म एवं टी.वी.इंस्टीच्यूट से डिप्लोमा करके मुम्बई आया हूँ, बॉलीवुड में भविष्य की तलाश में। छुटपुट मॉडलिंग करके काम चला रहा हूँ। निर्देशक बनने की चाह में भटक रहा हूँ।

    सप्ताहान्त मैं और नमिता इकटठे गुजारते हैं। पुणे से यहीं मेरे डेढ़ कमरे के फ्लैट पर आ जाती है। वैसे तो यह फ्लैट नमिता का ही कहना चाहिए क्योंकि किराया उसी के स्टायफंड से भरा जाता रहा है, अब तक। पर, ये तो गौण बातें हैं।

    असली बात या मुद्दआ तो हमारी दोस्ती है जो चाहत व समझ की ठोस बुनियाद पर डटी है। हालाँकि हमने आपस में भविष्य के बारे में कभी कोई बात नहींं की है, पर लगभग तय है कि नमिता के एम.डी.करते ही हम पति-पत्नी बन जाएँगे, विधिवत। जी हाँ ! क्योंकि वैसे तो हम, जैसे एक साथ रह रहे हैं, वह रिश्ता भी पति-पत्नी जैसा ही है, बल्कि उससे बेहतर क्योंकि पति-पत्नी की तरह हमारी एक-दूसरे से कोई जबरदस्ती की अपेक्षा नहीं, कोई दबाव नहीं।

    नमिता सुन्दर लड़की है। सुन्दर चेहरा-मोहरा, अनेक गोलाइयाँ, आखें, भौंहें, मुखमण्डल, सभी अण्डाकार, मोहक रूप से अण्डाकार, उर्स चाय-सा खिला-रंग। देहयष्टि ऐसी कि माडल लड़कियाँ ईष्र्या से जल मरें।

    पर वह अपने रूप, गुण से एकदम लापरवाह और वस्त्रों के बारे में साहिब उससे बेपरवाह लड़की शायद ही कोई मिले। पर उसकी इस बेरुखी, बेपरवाही ने उसके व्यक्तित्व को अजीब दिलकश बना छोड़ा है।    वह भी मेरी स्ग्रिेट की दुश्मन है। हमारे सम्बन्धों के शुरूआती दिनों में तो वह लम्बे-लम्बे वैज्ञानिक भाषण दे डालती थी। ‘माओकार्डियल इन्फारकशन से एलवियोलर कारसीनोमा आफ लंग्स’ का भय मुझे दिखाया जा चुका है। जिसे मैं बेशर्मी से हँसकर उड़ाता रहा हूँ।

    कई बार तो मामला कुछ अधिक गम्भीर हो आया था। उसने पैस्सिव स्मोकिंग की बात की और ताल्लुकात तरक करने की धमकी दे डाली। पर साहिब, मैंने भी कोई कच्ची गोलियाँ नहीं खेलीं, ऐसे मौकों पर बेदाग बच निकलने की कला मुझमें है।

    आज शाम को जब ताला खोलकर कमरे में दाखिल हुआ तो पाया कि नमिता शावर ले रही है। फ्लैट की एक चाबी उसके पास रहती है ना। मैं आगे आने वाली मादक रात्रि का आभास पाकर प्रफुल्लित हो उठा। कपड़े बदलकर बरमूडा पहन लिया तथा फ़्रिज से बीयर तथा बर्फ निकाल कर टेबल पर नमकीन के साथ सजा दी तथा लगा नमिता के बाहर आने का इन्तजार करने।

    नमिता ऐसे मौकों पर कबाईली हो जाती है। वह अक्सर शावर से इस तरह आ जाती है कि उसके भीगे बदन से पानी की बूँदें टपकती हैं और वस्त्रा के नाम पर तो एक रूमाल भी नहीं होता उसके शरीर पर। मैं उसे शरारत से आदिवासिनी जंगली बिल्ली आदि कहता रहा हूँ। पर उसका यह अन्दाज मुझे हमेशा मोहक लगता है और अनेक बार तो नाकामियों से उपजा क्षोभ भी उसे ऐसे देखकर कोसों दूर भाग जाता है।

    मैं सिग्रेट सुलगाने ही लगा था कि नमिता बाहर आ गई। भीगी-भीगी, टपकती एक मादा तेंदुए सी लग रही थी जो अपने शिकार को दबोचने के लिए लपकने की मुद्रा में हो। वह मंथर गति से चलती हुई मेरे पास आई और उसने मेरे मुँह में लगी सिगरेट निकालकर बाहर फैंक दी। फिर टेबल से अपना बैग उठाया और उसमें से एक हवाना सिगार का पैकिट निकाला। पैकिट में से सिगार निकालकर उसने उसके अगले किनारे को मुँह से ऐसे तोड़ा जैसे वह एक अभ्यस्त स्मोकर हो। फिर लाइटर से सिगार सुलगाकर एक लम्बा कश खेंचा और गाढ़ा काला धुआँ अपने नथुनों से बाहर निकाल दिया। मैं मुँह बाये हतप्रभ-सा उसे देख रहा था कि उसने वह सिगार मेरे मुँह में ठूस दिया। सिगार को सम्भालने के लिए मुझे कोशिश करनी पड़ी।

    जब संयत होकर मैंने एक लम्बा कश खैंचा तो, सिगार का गाढ़ा कसैला धुआँ मेरे फेफडों में फैल गया और मुझे जोर से खाँसी आने लगी। काफी देर में ठीक हो पाया मैं। सिगार हालाँकि बढिय़ा किस्म का मँहगा आयातित सिगार था, पर मुझे उसकी गन्ध से मतली आ रही थी और नमिता थी कि मेरे पीछे पड़ी थी कि मैं सिगार पीऊं। सारा सप्ताहान्त इसी झगड़े में खराब हो गया।

    नमिता पुणे लौट गई। अगले सप्ताह उसकी वही जिद कि मैं वही सिगार पीऊं। मैंने उसे बहुत समझाया पर उसने मेरी एक न सुनी। अब तो हर बार यही होता कि अगर मैं सिगार पीता तो मेरी बुरी हालत हो जाती। अगर नहीं तो नमिता अपने भीतर सिमट जाती और बकौल फ्रायड के, रिजड हो जाती। बड़े बुरे दिन कटने लगे, हालाँकि उसने दोबारा सिगार नहींं पिया।

    मैंने कई बार नमिता को समझाना चाहा। सिग्रेट बिल्कुल छोड़ देने का आश्वासन दिया। पर वह टस से मस नहीं हुई, अड़ी रही अपनी जिद पर। उसके इस आकस्मिक परिवर्तन ने हमारे संबंधों में एक अजीब-सी दरार पैदा कर दी। मैंने उसे समझाया कि हमें किसी मनोवैज्ञानिक की सलाह लेनी चाहिए। पर वह नहीं मानी। अब और क्या हो सकता था? हम अलग-अलग हो गए।

    कहते हैं कि मुसीबत कभी अकेली नहीं आती, पर कभी-कभी मुसीबत के बाद भाग्य ऐसे जाग जाता है कि जैसे अमावस की रात के बाद सूरज का निकलना। मेरी पहली फिल्म हिट हो गई और मेरी डिमाण्ड बालीवुड में काफी बढ़ गई। व्यस्तता ने नमिता के विछोह को काफी हद तक भुला दिया था। पर एकान्त के पलों में पुरानी टीस फिर उभर आती थी।

    आज मैं कोवालम बीच पर, एक निर्जन जगह पर, एक लव सांग की शूटिंग कर रहा था। सभी कुछ ठीक-ठाक व्यवस्थित ढंग से हो रहा था। सूरज डूबने वाला था। मन्द-मन्द समीर चल रही थी। नायक-नायिका बिना रीटेक के काम किए जा रहे थे। मौसम भी बेवफाई से कोसों दूर था। अचानक मेरे सीने में एक अजीब सी बेचैनी होने लगी। मैं जितना इस बेचैनी को भूलकर काम में लगना चाहता था, उतनी ही यह पलटकर और परेशान कर रही थी। बेचैनी इतनी बढ़ गई कि मैंने शूटिंग बन्द कर दी और वापिस लौटने की तैयारी करने लगा।

    मुझे बेचैनी का कारण समझ आया। मेरे नथुनों ने पहचान लिया था, उस मरदूद गन्ध को। वह  थोड़ी दूर नारियल के झुरमुट से आ रही थी।

    मैं गुस्से में उधर चला। लगभग बीस मीटर जाने के बाद मैंने पाया कि एक अधेड़, गंजा, हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति, जिसकी पीठ मेरी ओर थी, एक छोटी चट्टान पर बैठा वही सिगार पी रहा था। मैं गुस्से में लगभग पागल हो गया। दिल किया कि बड़ा-सा पत्थर उठाकर उसके सिर पर दे मारूँ।    शायद मेरी पदचाप सुनकर, उसने पलटकर देखा। मैं स्तब्ध रह गया। वह डॉ० बैनर्जी था, नमिता का एम.डी.गाइड। इससे पहले कि मैं उससे कुछ कहता, नीचे समुंदर की तरफ से घुँघरूओं की सी आवाज गूँजी ‘डार्लिंग इधर आओ, देखो मैंने प्रान'[झींगा],] पकड़ा है। मेरी नजर उधर गई तो देखा नमिता अपने उसी कबाईली रूप में नजर आई। उसके नंगे बदन पर जगह-जगह समंदर फेन चिपका था तथा समन्दर का नमकीन पानी उसकी जुल्फों और बदन से चू रहा था बूंद-बूंद करके, वह मत्स्य कन्या लग रही थी।

        डॉ० बैनर्जी थोड़े परेशान होकर शर्मिन्दगी से कहने लगे, ‘सॉरी, शी इज माई वाइफ। इससे पहले कि नमिता मुझे देख पाती मैं लौट पड़ा।

        मुझे अपने सवाल का जवाब मिल गया था। एम.डी. करते करते नमिता को डॉ० बैनर्जी के साथ-साथ रहना पड़ता था तथा वहीं उसे इस सिगार की गन्ध से एक अजीब किस्म का लगाव-फेशिनेशन हो गया। गन्ध का लगाव इस सीमा तक बढ़ा कि दीवानगी में बदल गया। जब मैं सिगार अपनाने में नाकाम हो गया तो उसके पास इस गन्ध को पाने का एकमात्रा उपाय था, डॉ० बैनर्जी से विवाह रचाना।

डॉ० श्याम सखा 'श्याम' द्वारा लिखित

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