‘सुकेश साहनी’ अनूदित लघुकथाएं…

कथा-कहानी लघुकथा

सुकेश साहनी 373 11/18/2018 12:00:00 AM

‘सुकेश साहनी’ अनूदित लघुकथाएं…

बोझ

सुकेश साहनी

कुछ फौजियों ने दुश्मन के इलाके पर हमला किया तो एक किसान भागा हुआ खेत में अपने घोड़े के पास गया और उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा, पर घोड़ा था कि उसके काबू में ही नहीं आ रहा था।

किसान ने उससे कहा, ‘मूर्ख कहीं के, अगर तुम मेरे हाथ न आए तो दुश्मन के हाथ पड़ जाओगे।’

‘दुश्मन मेरा क्या करेगा?’ घोड़ा बोला।

‘वह तुम पर बोझ लादेगा और क्या करेगा।’

‘तो क्या मैं तुम्हारा बोझ नहीं उठाता?’ घोड़े ने कहा, ‘मुझे क्या फर्क पड़ता है कि मैं किसका बोझ उठाता हूँ।’

तकरार

राह से गुजरते दो मुसाफिरों को एक किताब पड़ी दिखाई दी। किताब देखते ही दोनों इस बात पर तकरार करने लगे कि किताब कौन लेगा।

ऐन इसी वक्त एक और राहगीर वहाँ आ पहुँचा। उसने दोनों को इस हालत में देखकर कहा, ‘भाई, यह बताओ, तुम दोनों में पढ़ना कौन जानता है?’

‘पढ़ना तो किसी को नहीं आता।’ दोनों ने एक साथ जवाब दिया।

‘फिर तुम इस किताब के लिए तकरार क्यों कर रहे हो…। तुम्हारी लड़ाई तो ठीक उन गंजों जैसी है जो कंघी हथियाने के लिए पुरजोर कोशिश में लगे हैं… जबकि कंघी फिराने के लिए उनके सिर पर बाल एक भी नहीं है।’

अंधे की लालटेन

अँधेरी रात में एक अंधा सड़क पर जा रहा था। उसके हाथ में एक लालटेन थी और सिर पर एक मिट्टी का घड़ा। किसी रास्ता चलने वाले ने उससे पूछा, ‘अरे मूर्ख, तेरे लिए क्या दिन और क्या रात। दोनों एक से हैं। फिर, यह लालटेन तुझे किसलिए चाहिए?’

अंधे ने उसे उत्तर दिया, ‘यह लालटेन मेरे लिए नहीं, तेरे लिए जरूरी है कि रात के अँधेरे में मुझसे टकरा कर कहीं तू मेरा मिट्टी का यह घड़ा न गिरा दे।’

गुठली

माँ ने आलूबुखारे खरीदे। सोचा, बच्चों को खाने के बाद दूँगी। आलूबुखारे मेज पर तश्तरी में रखे थे। वान्या ने आलूबुखारे कभी नहीं खाए थे

उसका मन उन्हें देखकर मचल गया। जब कमरे में कोई न था, वह अपने को रोक न सका और एक आलूबुखारा उठाकर खा लिया।खाने के समय माँ ने देखा कि तश्तरी में एक आलूबुखारा कम है। उसने बच्चों के पिता को इस बारे में बताया।

खाते समय पिता ने पूछा, ‘बच्चो, तुममें से किसी ने इनमें एक आलूबुखारा तो नहीं लिया?’

सबने एक स्वर में जवाब दिया, ‘नहीं।’

वान्या का मुँह लाल हो गया, किंतु फिर भी वह बोला, ‘नहीं, मैंने तो नहीं खाया।’

इस पर बच्चों के पिता बोले, ‘यदि तुममें से किसी ने आलूबुखारा खाया तो ठीक है, पर एक बात है। मुझे डर है कि तुम्हें आलूबुखारा खाना नहीं आता, आलूबुखारे में एक गुठली होती है। अगर वह गलती से कोई निगल ले तो एक दिन बाद मर जाता है।’

वान्या डर से सफेद पड़ गया। बोला, ‘नहीं, मैंने तो गुठली खिड़की के बाहर फेंक दी थी।’ सब एक साथ हँस पड़े और वान्या रोने लगा।

(साभार – बिजूका )

सुकेश साहनी द्वारा लिखित

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