शार्लिट ब्रॉन्टी: आज की स्त्री : आलेख (प्रो० विजय शर्मा)

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विजय शर्मा 500 11/18/2018 12:00:00 AM

खासकर साहित्य के संदर्भ में, अभिव्यक्ति में स्त्री स्वर तब से शामिल हो रहे थे जब स्त्रियों का लिखना तो दूर शिक्षा प्राप्त करना भी सामाजिक अपराध था | दरअसल गोल-मोल तरीके से समाज स्वीकृत स्थितियों को लिखना या चित्रण करना तो हमेशा आसान था | किन्तु पुरूष सत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था में मानवाधिकारों की समानता की मांग के साथ सामाजिक भेदभाव के नंगे सच को उद्घाटित करना निश्चित ही न केवल साहस का काम था बल्कि उन्ही स्वरों कि प्रेरणा पाकर अब तक १४ स्त्री लेखिकाएं साहित्य के नोबोल पुरूस्कार तक पहुंची हैं | सामाजिक रूप से बेहद संकीर्ण और खतरनाक वक़्त में भी स्त्री स्वर को मुखर करने वाली लेखिका “शार्लिट ब्रॉन्टी” को उनके दूसरी शताब्दी वर्ष में चर्चा कर रहीं है ‘विजय शर्मा‘ ….| – संपादक

विश्वास नहीं होता किसी ने डेढ़-पौने दो सौ साल पहले लिखा कि औरत वैसा ही अनुभव करती है जैसा आदमी अनुभव करता है। उस समय उस लेखिका की इस बात की खूब जम कर आलोचना हुई। क्यों न होती आलोचना समय ऐसा था। यह विक्टोरियन युग था जिस समय चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को मानने के लिए तैयार न था। कोई नहीं मानता थान परिवारन समाजन ही विज्ञान कि औरत की स्वस्थ यौनेच्छा हो सकती है। ऐसे दुराग्रही समय में अपनी रचना में यौन चित्रण करके आ बैल मुझे मार वाली कहावत चरित्रार्थ करने वाली एक स्त्री लेखिका मौजूद थी।”

शार्लिट ब्रॉन्टी: आज की स्त्री

विजय शर्मा

विजय शर्मा

 यह सच है कि अब तक १४ स्त्री साहित्यकारों को नोबेल पुरस्कार प्राप्त हो चुका है लेकिन यह भी सच है कि उसके लेखन को बहुत देर से स्वीकृति प्राप्त हुई। एक समय था जब काम की गुणवत्ता से अधिक काम करने वाले का लिंग महत्वपूर्ण था, शायद आज भी है। हमारे यहाँ राज बाला घोष को अज्ञात महिला हो कर मात्र दुलाई की पहचान ओढ़नी पड़ी। बहुत समय तक लोग सोच नहीं सकते थे कि स्त्री को लिखना-पढ़ना चाहिए। मात्र तेरह वर्ष की सारडीनिया की ग्राज़िया डेलेडा ( १८७१-१९३६) ने ‘संगू रास्डो’ (सारडेनियन ब्लड) लिखा और यह रचना प्रकाशित हो गई तो उसके गाँव में तहलका मच गया। उसके साहस से गाँव वाले बहुत परेशान हो गए। जम कर उसकी खूब आलोचना की गई। मगर उसने परवाह न की और लिखती गई। नतीजा हुआ उसे १९२६ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। साहित्य और स्त्री का संबंध प्रारंभ से है। स्त्री साहित्य में शुरुआत से है। साहित्य की मौखिक परम्परा में उसका महत्वपूर्ण योगदान है। वह काम करते हुए गाती आई है, खुश हो कर गाती आई है और दु:ख को भी गा कर प्रकट करती आई है। आज भले ही यह बदल गया है। आज अभिव्यक्ति के तमाम अन्य साधन उसके पास उपलब्ध हैं। तकनीकि और शैक्षिक योग्यता ने उसकी प्रकटीकरण की विधा को बदल दिया है। स्त्री ने जब पढ़ना-लिखना सीखा तब से उसने खुद को लिखित रूप से व्यक्त करना चाहा है। लेकिन हमारे देश और अन्य देशों यानि यूरोप में शुरुआती दौर में समाज की मान्यता थी कि स्त्री का कार्य मात्र परिवार बढ़ाना और घर-परिवार की देखभाल करना है। लिखने-पढ़ने को महत्वाकांक्षा से जोड़ कर देखा जाता था, यह उपलब्धि का बायस माना जाता था और आज भी है। आज भी माना जाता है कि यह स्त्री का क्षेत्र नहीं है। इसी कारण जब करीब दो सौ साल पहले शार्लिट ब्रॉन्टी ने लिखा तो छद्म नाम से लिखा। अपना नाम गुप्त रख कर लिखा।

यह साल शार्लिट ब्रॉन्टी के जन्म का द्विशताब्दी वर्ष है, १८४७ में इंग्लैंड में शार्लिट ब्रॉन्टी (१८१६-१८५५) ने करर बेल के गुप्त नाम से ‘जेन एयर’ एक ऐसा उपन्यास लिखा जिसने उस समय पाठकों और आलोचकों के बीच हलचल मचा दी। लोग उपन्यासकार को नहीं जानते थे और उधर उपन्यासकार को भय था यदि उसकी असलियत, उसका स्त्री होना पता चल गया तो प्रकाशक उसे प्रकाशित नहीं करेंगे। शार्लिट ब्रॉन्टी की दो-दो बहनें, एन (ग्रे) और एमिली (बदरिंग हाइट्स) भी छद्म नाम से लिख रही थीं। इसी तरह इंगलैंड की मेरी एन इवांस अपना नाम छिपा कर जॉर्ज इलिएट (१८१९-१८८०) के नाम से लिखती थी।

स्त्री प्राकृतिक रूप से मल्टी-टास्कर होती है। एक साथ कई काम कर सकती है, कई दायित्व संभाल सकती है। लेकिन समाज लिखते समय उसे कोई रियायत नहीं देता है। उस पर से बराबर कहा जाता है कि किसने कहा है, तुम्हें लिखने के लिए? क्या लिखना जरूरी है? लिख कर कौन-से झंड़े गाड़ लोगी? लेकिन स्त्री किसी के कहने पर नहीं लिखती है, वह अपने आंतरिक दबाव के तहत लिखती है। अपने लिए लिखती है, दूसरों के लिए लिखती है, अपना सुख-दु:ख लिखती है, दूसरा का दु:ख-सुख लिखती है। वह लिख कर खुद को व्यक्त करती है। बेजुबानो को जुबान देती है, जैसा कि २०१५ की नोबेल पुरस्कार विजेता स्वेतलाना एलेक्सीविच ने किया है।

विश्वास नहीं होता किसी ने डेढ़-पौने दो सौ साल पहले लिखा कि औरत वैसा ही अनुभव करती है जैसा आदमी अनुभव करता है। उस समय उस लेखिका की इस बात की खूब जम कर आलोचना हुई। क्यों न होती आलोचना समय ऐसा था। यह विक्टोरियन युग था जिस समय चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को मानने के लिए तैयार न था। कोई नहीं मानता था, न परिवार, न समाज, न ही विज्ञान कि औरत की स्वस्थ यौनेच्छा हो सकती है। ऐसे दुराग्रही समय में अपनी रचना में यौन चित्रण करके आ बैल मुझे मार वाली कहावत चरित्रार्थ करने वाली एक स्त्री लेखिका मौजूद थी। समय और उसका समाज स्त्री रचनाकार को स्वीकारने के लिए तैयार न था अत: इस स्त्री को पुरुष के छद्म नाम से लिखना पड़ा। उसे डर था यदि प्रकाशक को पता चल गया कि वह स्त्री है तो वे उसे प्रकाशित नहीं करेंगे। उसे प्रकाशकों और आलोचकों के पूर्वग्रह का थोड़ा बहुत अनुमान था। केवल उसने ही नहीं उसकी दो और बहनों ने भी यही किया। शार्लिट ने लिखा है, “हमें इस बात का हल्का-सा भान था कि लेखिका होने पर वे हमें पूर्वग्रह से देखेंगे।” इसीलिए उन्होंने बहनों ने असली नामों को करर, एलिस तथा अक्टोन बेल के नाम में छिपा लिया। उन्होंने क्रिस्चियन पुरुष नाम अपनाए। वे स्वयं को औरत के रूप में घोषित नहीं करना चाहती थीं क्योंकि उनके लिखने का तरीका “फ़ेमिनाइन” नहीं था। उन्हें मालूम था कि वे औरतें हैं, यह बात पता चलते ही आलोचक उनके व्यक्तित्व को हथियार बना कर उन्हें पुरस्कृत करेंगे या उनकी झूठी प्रशंसा करेंगे जो वास्तविक प्रशंसा न होगी। और ऐसा ही हुआ। जब आलोचकों को पता चला कि वे एक स्त्री हैं तो उनके लेखन को “रुखड़ा” कहा गया। शार्लिट के तीसरे उपन्यास ‘विलेट’ को आलोचकों ने सोफ़िस्केटेड तो माना लेकिन रुखड़ेपम (कोरसनेस) के लिए उसकी खूब आलोचना हुई। कहा गया कि यह नारी सुलभ लेखन नहीं है। कारण उन्होंने इसमें नायिका लुसी की आदिम इच्छाओं को खुल कर व्यक्त किया था।

साभार google

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इसके भी बहुत पहले उन्हें न लिखने की सलाह दी गई थी। बीस वर्ष की उम्र में शार्लिट ब्रॉन्टी ने कवि रॉबर्ट सौथे से अपनी प्रतिभा के विषय में जानना चाहा था। कवि का उत्तर था कि तुम्हारे अंदर प्रतिभा तो है, वर्ड्सवर्थ जिसे “फ़ैकल्टी ऑफ़ वर्स” कहता है, वह तुम्हारे भीतर है। आगे उसने कहा, “इसमें एक खतरा है जिसके विषय में मैं तुम्हें आगाह करना चाहता हूँ… साहित्य स्त्री के जीवन का व्यापार नहीं हो सकता है, नहीं होना चाहिए।” शार्लिट ने इसे अनदेखा किया और लिखती रही। हाँ, उन्होंने काफ़ी समय तक अपनी पहचान छिपाए रखी। १८३३ में उन्होंने ‘द ग्रीन ड्वार्फ़’ नाम से एक उपन्यासिका लिखी इसमें उन्होंने लेखिका के स्थान पर वेल्सले नाम का प्रयोग किया। इसी तरह इसी साल १८३३ में अपने दूसरे काम ‘ए टेल ऑफ़ द परफ़ेक्ट टेन्स’ में अपना नाम लॉर्ड चार्ल्स एल्बर्ट फ़्लोरियन वेल्सले रखा, अपना असली नाम शार्लिट ब्रॉन्टी नहीं।

उसे आलोचकों के पूर्वाग्रह की भी चिंता थी। समीक्षक स्त्री रचनाकार के प्रति सदय होंगे इसमें उसे शंका थी। विक्टोरियन युग की इस रचनाकार ने स्त्री-पुरुष के लिए समान अवसर की माँग करते हुए एक ऐसी कृति रच दी जो आज भी चर्चा का विषय बनी हुई है और न मालूम यह कृति कितनी फ़िल्म, नाटक और टीवी सीरियल का विषय बन चुकी है। आगे तमाम लोगों की प्रेरणा बनने की संभावनाएँ इसमें हैं। इस रचनाकार ने जानबूझ कर कभी यौन का ग्राफ़िक चित्रण नहीं किया। इसने जीवन में जिन कुरूप परिस्थितियों का खुद अनुभव किया था बस उन्हें कागज पर उतार दिया था। जब प्रकाशन हुआ  तो समाज अपना ही यथार्थ, अपना कुरूप चेहरा देख कर तिलमिला उठा। जम कर आलोचना हुई। और-तो-और सो काल्ड नारीवादियों के लिए भी इसे गले से उतारना कठिन हो गया। लेकिन काम में मौलिकता थी, टटकापन था, रोचकता थी अत: आलोचकों को स्वीकारना पड़ा कि उपन्यास और उपन्यासकार में दम है। इस आत्मकथाकार, गोथिक शैली की रचनाकार ने ऐसे चरित्र गढ़े जो सदा के लिए अमर हो गए और आज स्कूल-कॉलेज में अध्ययन-अध्यापन का विषय हैं, दूसरे कलाकारों की प्रेरणा हैं। पहली ही रचना और इतनी प्रौढ़ रचना। ऐसी रचना जो काल और स्थान की सीमा का अतिक्रमण कर आज भी जीवित है, सब देशों में पढ़ी और सराही जाती है। उस काल के लिए इस उपन्यास की शैली अनोखी, टटकी थी, इसमें प्रकृतिवाद और गोथिक मेलोड्रामा का अद्भुत सम्मिश्रण था। इसने एक नई जमीन तोड़ी थी और प्रथम पुरुष वह भी स्त्री स्वर में, स्त्री नजरिए से लिखा गया था यह उपन्यास।

असल में शार्लिट ब्रॉन्टी ने इसके पहले ‘द प्रोफ़ेसर’ नामक रचना की, लेकिन उनकी दूसरी रचना पहले प्रकाशित हुई। ‘द प्रोफ़ेसर’ उनकी मृत्योपरांत १८५७ में प्रकाशित हुआ। शार्लिट के पति ने इसका संपादन किया। यह भी आत्मकथात्मक है। इसमें एक युवा प्रोफ़ेसर विलियम क्रिम्सवर्थ अपनी कहानी बता रहा है। वह लड़कियों के स्कूल में काम करते हुए प्रौढ़ावस्था को प्राप्त करता है। युवावस्था में उसके चचा ने उसे पादरी बनने की सलाह दी थी, धनी भाई ने अपने कंपनी में क्लार्क बनाने का प्रस्ताव दिया था मगर उसने इन बातों को ठुकरा कर पढ़ाने का काम चुना। शुरु में वह लड़कों के एक स्कूल में काम कर रहा था। शिक्षक के रूप में उसकी ख्याति से प्रभावित हो कर पड़ौस की एक हेडमिस्ट्रेट ने उसे अपने स्कूल में काम करने का प्रस्ताव दिया। उसने लड़कियों के स्कूल में पढ़ाना शुरु किया। वह इस हेडमिस्ट्रेट से प्रेम करने लगा लेकिन उसे शीघ्र ज्ञात हुआ कि हेडमिस्ट्रेट की शादी होने वाली है। जबकि हेडमिस्ट्रेट अनजान होने का दिखावा करती रही। कुछ समय बाद हेडमिस्ट्रेस ने अपनी एक अन्य युवा टीचर की भाषा सुधार के लिए विलियम को कहा। भाषा सिखाते हुए विलियम धीरे-धीरे इस युवा शिक्षिका फ़्रांसेस से प्रेम करने लगता है। लेकिन हेडमिस्ट्रेट ईर्ष्यावश उसे स्कूल से निकाल देती है और विलियम से फ़्रांसेस का पता भी छिपाती है। विलियम स्कूल छोड़ देता है और फ़्रांसेस को खोजता है, वह उसे कब्रगाह में मिलती है। दोनों विवाह करते हैं, विलियम को एक कॉलेज में ऊँचे वेतन पर काम मिल जाता है। दोनों अपनी संतान के साथ मजे में रहते हैं।

करर बेल के नाम से पहले इंग्लैंड में १८४७ में एक उपन्यास प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था ‘जेन एयर: एन ऑटोबायग्राफ़ी’। अगले साल यह अमेरिका के न्यू यॉर्क में हार्पर एंड ब्रदर्स के यहाँ से भी प्रकाशित हो गया। बाद में यह उपन्यास मात्र ‘जेन एयर’ के नाम से ही प्रकाशित और मशहूर हुआ। इसकी उपन्यासकार शार्लिट ब्रॉन्टी एक अन्य उपन्यासकार विलियम मेकपीस थाकरे के प्रति कृतज्ञ्य थी अत: उसने उपन्यास का दूसरा संस्करण उसे समर्पित किया। मजे की बात है वह कभी थाकरे से मिली नहीं थी। लेकिन लोगों को मनोरंजन का मसाला मिल गया। लोग ले उड़े। असल में उसी समय थाकरे मानसिक रूप से अस्वस्थ अपनी पत्नी से अलग हुए थे। लोगों ने यहाँ तक सोच डाला हो-न-हो यही लेखिका उनकी प्रेमिका है और इसी के कारण वे पत्नी से अलग हुए हैं। अफ़वाहों ने उन्हें पत्नी से अलग होने का श्रेय भी इसी लेखिका को दे डाला। और एक मजे की बात है तब तक लोगों को उपन्यासकार की असलियत (स्त्री अथवा पुरुष है) ज्ञात न थी, केवल कयास लगाए जा रहे थे कि हो-न-हो यह एक स्त्री है। असल में उपन्यासकार के स्त्री होने की बात थाकरे ने ही उठाई थी।

‘जेन एयर’ के प्रकाशक विलियम स्मिथ विलियम्स ने थाकरे को एक अनजान लेखक का उपन्यास पढ़ने और अपनी सम्मति देने के लिए सौंपा। थाकरे उसे पढ़ने में इतना तल्लीन हो गए कि अपना एक प्रमुख कार्य भूल गए, वे पढ़ते जाएँ और उनकी आँखों से आँसू झरते जाएँ। थाकरे के निजी नौकर के लिए यह अप्रत्याशित था। हालाँकि उपन्यास के ऊपर एक पुरुष का नाम, करर बेल, लिखा था। लेकिन थाकरे को पहचानने में भूल नहीं हुई। पढ़ना समाप्त करने के बाद थाकरे ने प्रकाशक को लिखा, यह एक स्त्री का लिखा हुआ है, मगर कौन है यह स्त्री? इस प्रश्न का उत्तर उस समय प्रकाशक के पास भी न था। लंदन के रचनाकारों के समूह से बाहर योर्कशायर में रह रही शार्लिट ब्रॉन्टी अनजान रही, लेकिन ‘जेन एयर’ ने साहित्य जगत में खूब धूम मचा दी। शार्लिट ब्रॉन्टी का मानना था कि निजी अनुभव पर आधारित लेखन लोगों को सर्वाधिक अपना लगता है, ऐसा सर्वभौमिक अपील की शक्ति रखता है। यही उसने अपने समस्त लेखन में किया है, अपने जीवनानुभवों को शब्दों में बाँध कर उपन्यास की शक्ल में पेश किया है ।

मालिक रोचेस्टर के प्रति गवर्नेस जेन एयर के प्रेम ने तहलका मचा दिया। साहित्य कला में क्रांति ला दी। उस समय लिखे जा रहे साहित्य से भिन्न इस उपन्यास ने पाठकों की रूचि को सदा-सदा के लिए बदल दिया। जेन का मजबूत व्यक्तित्व उस युग के लोगों को परेशान करने के लिए काफ़ी था। चारों ओर से आलोचना बरसने लगी। साथ ही जेन एयर की संवेदनशीलता, उसका शांत व्यक्तित्व, उसका नैतिक साहस, उसका धार्मिक विश्वास चकित करने वाला था/है। इसके पहले तक ये अनुभूतियाँ मात्र पद्य का हिस्सा हुआ करती थीं, पहली बार यह सब गद्य में हो रहा था। पहली बार यूरोप में रचनाकार चरित्रों के मन के भीतर चल रहे विचारों, भावनाओं, नजरिए को दर्शकों के समक्ष चित्रित कर रहा था। आज के समय में भी इसका चित्रण आकर्षित करता है, चकित करता है। देखा जाए तो क्लासिक का दर्जा पाए इस उपन्यास में क्या नहीं है? स्त्री-पुरुष का जीवन है, सो यौनिकता भी है, उस युग के अनुरूप नैतिकता, धार्मिकता है और सबसे बढ़ कर है स्त्रीवाद। थीम ऐसी है जो हर पाठक/ दर्शक को छूती है।

प्रकाशन के साल भर के भीतर लेखक की सहमति की चिंता न करते हुए ‘जेन एयर’ को मंच प्रस्तुति के लिए चुन लिया गया। फ़िर इसको ले कर काम करने का ताँता लग गया जो आज भी जारी है, अभी हाल में बीबीसी ने इस पर टीवी नाटक बनाया है। इस पर तमाम फ़िल्में बनी हैं। कभी जेन को पीछे रख कर रोचेस्टर की पागल पत्नी को प्रमुखता दी जाती है, कभी इसे मेलोड्रामा बना कर प्रस्तुत किया जाता है। मूक फ़िल्मों के दौर से इस पर फ़िल्म बनी है। इस उपन्यास पर आधारित नवीनतम फ़िल्म २०११ में कैरी जोजी फ़ुकुनागा ने अंतरराष्ट्रीय कास्ट मिया वासिकोव्स्की, माइकेल फ़ैसबेंडर तथा जेमी बेल को ले कर बनाई है। साहित्य को भी इस कृति ने प्रेरणा दी है। नायक के पिछले जीवन को उजागर करती हुई रचना हुई है। इस आशय का एक उपन्यास जीन राइस ने ‘वाइड सारागासो सी’ नाम से लिखा है। १९९३ में इस उपन्यास पर इसी नाम से फ़िल्म बनी है। इस उपन्यास और फ़िल्म में जीन राइस ने रोचेस्टर को उसकी वेस्ट इंडियन पहली पत्नी के साथ चित्रित किया है। इसी तरह एम्मा टेनेंट ने ‘द फ़्रेंच डॉन्सर्स बास्टर्ड’ नाम से रोचेस्टर की बेटी एडेले के बारे में रचना की है। एडेले फ़्रेंच बच्ची है जिसे पढ़ाने के लिए गवर्नेस के रूप में जेन एयर की नियुक्ति होती है।

हर नाटक और फ़िल्म निर्देशक ने इस उपन्यास को अपने मन मुताबिक मोड़ दिया है। किसी ने जेन के बचपन को संक्षिप्त रखा है, किसी ने रोचेस्टर की पत्नी को सहानुभूति दी है, किसी ने जेन को प्रेम में पागल हो कर रोचेस्टर से लिपटता दिखाया है। किसी के लिए जेन का व्यक्तित्व बहुत शांत है, किसी के लिए बहुत उग्र। कंपोजर माइकल बेरकली ने इसे ऑपेरा में ढ़ाला है। पौला रेगो ने इससे प्रेरित हो कर र्क फ़ेयरी टेल सिरीज की इमेजेज बनाई है। पॉली टीले ने इसे मंचित किया है। उपन्यास में बहुत संभावनाएँ हैं, इस उपन्यास की रेंज निर्देशकों को इन बातों की अनुमति देती है। उम्मीद है भविष्य में जेन और कई बार साहित्य, मंच और परदे पर दिखाई देगी और दर्शकों का मनोरंजन करेगी, उन्हें थोड़ा और संवेदनशील बनाएगी।

कौन है इतने लोगों को इतने लंबे काल तक प्रभावित करने वाला? यह ब्रॉन्टी परिवार की एक सदस्य शार्लिट ब्रॉन्टी है। पूरा परिवार प्रतिभा संपन्न था। कई बहनें और एक भाई। कुछ बहने समय के पहले गुजर गई। बचे हुए सब-के सब पढ़ने-लिखने के शौकीन। बची हुई सब बहनों ने विक्टोरियन युग के रीति-रिवाजों को धता बताई। शार्लिट, एमिली, एन, एलीजाबेथ, मारिया ब्रॉन्टी बहनें और भाई ब्रानवेल ब्रॉन्टी। शार्लिट का जन्म २१ अप्रेल १८१६, एमिली का ३० जुलाई १८१८, एन का १७ मार्च १८२० को हुआ, भाई ब्रानवेल का जन्म १८१७ में हुआ था। सब योर्कशायर के थोर्नटोन में पैदा हुए थे। उनके पिता की पैदाइश आयरलैंड की थी। वे रेक्टर के रूप में योर्कशायर मूर्स के हावर्थ गाँव में काम करते थे। शार्लिट बहुत छोटी थी जब १८२१ में उनकी माँ मर गई। माँ मरे मौसी जीए, तो उनकी मौसी मारिया ब्रानवेल उन लोगों की देखभाल करने आ गई। इस समय उनकी बहन मारिया और एलीजाबेथ कौवान ब्रिज़ में क्लर्जी डॉटर्स के स्कूल में पढ़ रही थीं। शार्लिट और एमिली को भी वहीं भेज दिया गया। स्कूल में बच्चों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था। वहाँ का वातावरण बहुत दमघोटूँ और धूसर था। ‘जेन एयर’ चूँकि आत्मकथात्मक है अत: उसका लोवुड स्कूल इसी स्कूल पर आधारित है। मारिया और एलीजाबेथ दोनों बीमार हो कर घर लौटी, दोनों १९२५ में मर गई। इस कारण शार्लिट तथा एमिली को स्कूल से हटा लिया गया।

बच्चों की कल्पनाशक्ति बहुत तीव्र होती है। ब्रॉन्टी बालकों की कल्पना शक्ति बहुत तीव्र थी। उन लोगों ने अन्गरिआ और गोन्डाल दो राजधानियाँ निर्मित कीं। उन्होंने अपनी इस शक्ति से काष्ठ सैनिकों के पात्रों का निर्माण किया और इस तरह कहानियों की एक शृंखला तैयार की। सैनिकों के दो सेट थे। ‘अंगरिया राज्य’ शार्लिट और ब्रानवेल की संपत्ति था तो ‘गोन्डाल राज्य’ एमिली और एन के अधिकार में था। बारीक हस्तलिपि में अन्गरिआ की कहानियाँ मिलती हैं। इनके विषय में ये बच्चे हस्तलिपि में कहानियाँ तैयार करते। इसमें से करीब सौ भाग में अंगरिया की कहानियाँ बच रही और एमिली की कुछ कविताओं को छोड़ कर बाकी गोन्डाल गाथा नष्ट हो गई। इनके रचियताओं के आगे के काम में इन कहानियों का विस्तार मिलता है जिस पर तमाम शोध कार्य हुए हैं। ये कहानियाँ स्कैप पेपर यानि वॉलपेपर, सामान के संग आए पेपर से कॉपी बना कर उस पर बारीक अक्षरों में लिखी गई थीं। इनमें ड्रामा, मार-पीट, रोजमर्रा की घटनाओं का चित्रण होता। इनके बाद के लेखन में इन बाल कहानियों को देखा जा सकता है।

जब शार्लिट को अपनी बहन एमिली की कविताओं का पता चला तो दोनों ने मिल कर कविता प्रकाशन की बात सोची और अपने खर्च पर ये कविताएँ ‘पोयम्स बाई करेर, एलिस एंड एक्टोन बेल’ के नाम से प्रकाशित करवाई जाहिर है छद्म नाम से। मात्र दो प्रतियाँ बिकीं। कोई गम नहीं लिखना जारी रहा। बहनें निराश नहीं हुई उन्होंने उपन्यास लिखने की योजना बनाई। इस बार बहनों ने उपन्यास को अपना विषाय बनाया। इस बार बहनों ने जो कमाल किया वह कालजयी साबित हुआ। शार्लिट ने लिखा ‘जेन एयर’, तथा एन के उपन्यास का नाम था ‘एग्नेस ग्रे’ और एमिली ने रचा ‘वदरिंग हाइट्स’।  १८४७ में तीनों उपन्यास आगे-पीछे प्रकाशित हुए। अभी भी रचनाकारों का नाम छिपा हुआ था। लोग कयास लगा रहे थे। रचनाकारों की स्त्री रूप में पहचान तब हुई जब बहने लंदन गई।

उन दिनों स्कूल में आना-जाना आसान था, आज की तरह स्कूल में दाखिले के लिए तमाम पापड़ नहीं बेलने पड़ते थे। १८३१ में शार्लिट फ़िर से उसी स्कूल में गई लेकिन एक साल बाद फ़िर लौट आई। एक साल बाद घर लौट कर अपनी बहनों को पढ़ाने लगी, उसने अपनी शिक्षा भी जारी रखी। १८३५ में वह रोए हेड स्कूल में शिक्षिका बन कर गई। इस बार वह अपने संग अपनी बहन एमिली को लेती गई। लेकिन एमिली तीन महीने बाद घर लौट आई और उसके स्थान पर एन स्कूल चली गई। एन उस स्कूल में दो साल तक रही। १८४२ में उन्हें लगा कि अपना निजी स्कूल खोलना चाहिए। अपनी फ़्रेंच भाषा में सुधार के लिए शार्लिट तथा एमिली ब्रॉन्टी ब्रुसेल्स के एक प्राइवेट बोर्डिंग स्कूल चली गई। वहाँ का उसका अनुभव ‘विलेट’ उपन्यास में लूसी स्नो के एकाकीपन, अजनबीपन और गृहातुरता के रूप में चित्रित हुआ। लेकिन घर की देखभाल कर रही मौसी की मृत्यु हो गई, सो इन्हें फ़िर वापस घर लौटना पड़ा। अब शार्लिट ने माँ-मौसी का स्थान ले लिया और वह बहनों, पिता और घर की देखभाल करने लगी। बाद में एमिली हॉवर्थ में हाउसकीपर के रूप में काम करने लगी और एन यॉर्क के नजदीक एक परिवार में गवर्नेस का काम करने  लगी, वहीं पर भाई ब्रानवेल भी ट्यूटर हो गया। इसके पहले वह पोट्रेट पेंटर और रेलवे क्लार्क के रूप में असफ़ल हो चुका था। १८४५ में जा कर परिवार एक बार फ़िर से एकत्र हुआ। लेकिन तब तक ब्रानवेल टीचर के रूप में हटाया जा चुका था, जिसका असली कारण उसका अपने मालिक की पत्नी के प्रेम में पड़ना था। सब ओर से असफ़ल ब्रानवेल पूरी तरह से शराबी और अफ़ीमची बन चुका था। यही उसकी मृत्यु का कारण बना।

नियति अलग खेल खेल रही थी। जब वे लंदन से लौटी तो उनका भाई मरने के कगार पर था और दिसम्बर १८४९ को चल बसा। उसके अंतिम संस्कार से लौटते हुए एमिली को ठंड लग गई और १९ दिसम्बर को वह चल बसी। एन भी २८ मई १८४९ को गुजर गई। एन का दूसरा उपन्यास ‘द टैनेंट ऑफ़ वाइल्डफ़ेल हॉल’ एक साल पहले ही प्रकाशित हुआ था। इसमें उसने एक पूरी पीढ़ी के पियक्कड़ होने का जिक्र किया था। यह ‘एग्नेस ग्रे’ की तरह ही एक गवर्नेस की जिंदगी का अवलोकन था।  १८४८ में शार्लिट ने अपने दूसरे उपन्यास ‘शिर्ली’ पर काम शुरु किया और इसी समय आठ महीने की छोटी-सी अवधि में परिवार के तीन सदस्य चल बसे। मन को समझाने के लिए शार्लिट ने मान लिया कि भाई शराब से नहीं टीबी अए मरा था।

इतनी मौतों के बाद वह अपना उपन्यास ‘शिर्ली’ काफ़ी समय तक आगे न बढ़ा सकी। ‘शिर्ली’ में वह औद्योगिक असंतोष और समाज में स्त्री की भूमिका पर लिख रही थी। यह १८४९ में प्रकाशित हुआ। मगर इसमें ‘जेन एयर’ की भावनात्मक ऊँचाई नहीं मिलती है और यह ‘जेन एयर’ की भाँति उत्तम पुरुष (फ़र्स्ट पर्सन) में न लिखा जा कर प्रथम पुरुष (थर्ड पर्सन) में लिखा गया है। आलोचकों को भी वह ‘जेन एयर’ जैसा चौंकाने वाला नहीं लगा। हालाँकि उसने यथार्थावाद का पल्ला  न इस उपन्यास में छोड़ा न ही ‘विलेट’ अथवा ‘द प्रोफ़ेसर’ में। अब शार्लिट अपने बीमार और चिढ़चिढ़े पिता के साथ अकेली थी।

बाद में शार्लिट ने अपने पिता के क्यूरेटर आर्दर बेल निकोलस से १८५४ में विवाह किया। क्यूरेटर की सीमित आ-मद-नी के कारण शार्लिट के पिता इस रिश्ते के लिए पहले तैयार न थे। शादी के बाद वह गर्भवती हुई लेकिन शादी के नौ महीने के भीतर ३१ मार्च १८५५ को गुजर गई। कुछ लोग कहते हैं वह टीबी से मरी कुछ और लोगों के अनुसार वह गर्भवती थी और इसी से जुड़ी जटिलताओं से गुजर गई। उन दिनों आयु रेखा छोटी और मृत्यु दर बड़ी हुआ करती थी। इसमें कोई शक नहीं कि उसका ‘जेन एयर’ उसे सदा अमर रखेगा।

‘जेन एयर’ की सफ़लता पर उसके प्रकाशक ने उसे लंदन आने का निमंत्रण दिया। लंडन जाने पर उसकी वास्तविक पहचान बनी और वह सामाजिक संकुल में घुलने-मिलने लगी। यहीं उसकी पहचान थाकरे तथा जी.एच. लेविस से हुई और हैरिएट मार्टिन्यू तथा एलिजाबेथ गैस्केल से उसकी दोस्ती हुई। वह लंदन बहुत कम जाती क्योंकि वह अपने पिता को अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी। वह बहुत कम बोलती थी। थाकरे की बेटी एन इसाबेला थाकरे रिटची ने एक बार शार्लिट के थाकरे के घर जाने का चित्रण किया है। यह चित्रण कोई बहुत उत्साह भरा नहीं है। एन इसाबेला सोच रही थी कि खूब बातें होंगी लेकिन सब कुछ बहुत ठंडा रहा। अपनी डायरी में शार्लिट ने लिखा है कि वह लिखना चाहती है मगर शायद बोलने में उसकी उतनी रूचि न थी।

शार्लिट की मृत्यु के दो साल बाद उसकी दोस्त उपन्यासकार एलिजाबेथ गैस्केल ने ‘द लाइफ़ ऑफ़ शार्लिट ब्रॉन्टी’ नाम से उसकी जीवनी लिखी। इस जीवनी की आज बहुत आलोचना होती है, कहा जाता है कि एलिजाबेथ ने शार्लिट के जीवन को बहुत तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है, वह उसे समझ ही नहीं आई। इस लेखन में ईर्ष्या की बात भी कही जाती है। लेकिन इसे ही क्लासिक बॉयोग्राफ़ी का दर्जा प्राप्त है। ऐसा काम ही होता है जब एक उपन्यासकार दूसरे उपन्यासकार की जीवनी लिखे। बाद में १९४१ में फ़ेनी ई. ऐचफ़ोर्ड ने ‘द ब्रॉन्टीज वेब ऑफ़ चाइल्डहुड’ नाम से उसकी जीवनी लिखी, लेकिन इसमें केवल बचपन को ही समेटा गया है।

अपनी मृत्यु के समय शार्लिट जो उपन्यास लिख रही थी उसे बाद में पूरा करने का काम २००३ में क्लारे बॉयलैन ने किया। उसने रचना का नाम दिया, ‘एम्मा ब्राउन: ए नॉवेल फ़्रॉम दि अनफ़िनिश्ड मैन्यूस्क्रिप्ट बाई शार्लिट ब्रॉन्टी’। एम्मा शब्द से याद आया यह जेन ऑस्टिन के उपन्यास ‘एम्मा’ के प्रकाशन का भी द्विशताब्दी वर्ष है। सोच रही हूँ उस पर भी एक लेख लिखूँ। लेकिन उसके पहले ‘जेन एयर’ की बात थोड़ी और विस्तार से। अच्छा होगा कि इसके साथ ही शार्लिट ब्रॉन्टी के अन्य कार्यों पर भी एक नजर डाल ली जाए।

‘जेन एयर’ उपन्यास का ताना-बाना शार्लिट के अपने अनुभवों से बुना गया है। पूरी कहानी नायिका की जबानी सुनाई गई है। जॉर्ज तृतीय के काल में स्थित कहानी चालीस साल (१७६०-१८२०) की समय सीमा में चलती है, वातावरण इंग्लैंड के उत्तर में स्थित है। पूरा उपन्यास पाँच स्पष्ट भाग में चलता है। पहला भाग जेन का बाल्यकाल है। गेट्सहेड हॉल में ऑन्टी (मामी) सराह रीड और उनके बच्चे दस साल की जेन का मानसिक और शारीरिक शोषण-दमन करते हैं। काफ़ी पहले टाइफ़स से उसके माता-पिता मर चुके हैं। दूसरा हिस्सा लोवुड स्कूल में चलता है जहाँ उसके दोस्त बनते हैं, वह दूसरों के लिए रोल मॉडल बनती है, लेकिन वातावरण पूरी तरह से अत्याचारपूर्ण और निराश करने वाला है। तीसरे भाग में वह थॉर्नफ़ील्ड हॉल में गवर्नेस है और वहीं वह अपने बायरोनिक मालिक एडवर्ड रोचेस्टर के प्रेम में पड़ती है। चौथा हिस्से में जेन एयर रिवर्स परिवार के साथ बिताती है और पाँचवें तथा अंतिम हिस्से में वह रोचेस्टर से दोबारा मिलती है, उनकी शादी होती है। यही कुल जमा कहानी है जेन एयर की, उपन्यास ‘जेन एयर’ की। इन्हीं पाँच हिस्सों में शार्लिट ब्रॉन्टी तमाम सामाजिक मुद्दों को उठाती है, जीवन-स्त्री संबंधी अपने नजरिए को प्रस्तुत करती हैं। पाँच हिस्से कुल ३८ चैप्टर में विभाजित हैं। पूरा उपन्यास तकरीबन चार सौ पन्नों में फ़ैला हुआ है।

ऑन्टी के घर में उसके बचपन में जेन से एकमात्र बेस्सी सहानुभूति रखती है, वह भी जब-तब उसे डाँटती रहती है। परिवार के किसी काम, किसी आयोजन में उसे भाग नहीं लेने दिया जाता है। मिस्टर लोय्ड की सलाह पर उसे गेट्सहेड हॉल स्कूल में भर्ती करा दिया जाता है। ऑन्टी पहले ही स्कूल में जेन की बुराइयों को पहुँचा देती है। जहाँ उसे झूठी-मक्कार कहा जाता है। जेन के व्यक्तित्व की दृढ़ता का पता चलता है, जब वह अपनी ऑन्टी को कहती है कि वह कभी उसे दोबारा ऑन्टी कह कर संबोधित नहीं करेगी। वह कहती है कि वह नहीं बल्कि ऑन्टी और उसकी बेटी जॉर्जीआना झूठी और मक्कार हैं। वह सबके सामने उन लोगों की पोल खोल देने की बात कहती है।

अनाथ लड़कियों का स्कूल लोवुड कहीं से बेहतर नहीं है। एक बड़ी लड़की हेलन बर्न्स से जेन की दोस्ती हो जाती है। स्कूल में भी उसे झूठी-मक्कार कहा जाता है। लेकिन उस पर लगाया इल्जाम गलत साबित होता है, उसे बरी कर दिया जाता है। सर्द कमरों के इस स्कूल में  खाना-पहनना सब पतला है, छात्र बीमार पड़ते हैं, मरते हैं मगर किसी को फ़िकर नहीं है। जेन की दोस्त हेलन भी मर जाती है। बाद में स्कूल के हालात सुधरते हैं। छ: साल छात्र और दो साल टीचर के रूप में बिता कर जेन इस स्कूल से निकलती है।

जेन के विज्ञापन के उत्तर में थॉर्नफ़ील्ड की हाउसकीपर एलिस फ़ेयरफ़ैक्स उसे एक फ़्रैंच बच्ची एडेले वारेन्स की शिक्षा के लिए रखती है। एक रात जब वह बाहर जा रही थी एक घुड़सवार घोड़ा फ़िसलने से गिरता है, जेन उसकी उठने में और घोड़े पर बैठने में सहायता करती है। बाद में उसे पता चलता है कि वह थॉर्नफ़ील्ड घर का मालिक एडवर्ड रोचेस्टर है। एडेले की माँ, रोचेस्टर की रखैल उसे छोड़ एक संगीतज्ञ के साथ गई है और वह रोचेस्टर के संरक्षण में है। रोचेस्टर जेन पर इल्जाम लगाता है कि उसी ने अपने जादू से उसके घोड़े से उसको गिराया था। जेन उसकी बातों के एवज में उसे खूब सुनाती है। जल्द ही जेन और रोचेस्टर की दोस्ती हो जाती है, दोनों को एक-दूसरे का साथ भाता है।

मगर सब कुछ ठीक नहीं है घर में विचित्र बातें होती हैं। अजीब-अजीब तरह की हँसी सुनाई देती है, रोचेस्टर के कमरे में आग लग जाती है। रोचेस्टर के एक अतिथि मिस्टर मैसन पर आक्रमण होता है। इसी समय जेन को अपनी ऑन्टी की बीमारी की खबर मिलती है और पता चलता है कि उसका कजिन जॉन बुरी आदत में पड़ कर मर गया है। मरती हुई ऑन्टी बताती है कि उसने जेन के चाचा मिस्टर जॉन एयर को जेन के मरने की झूठी बात बताई थी। ऑन्टी के मरने के बाद जेन थॉर्नफ़ील्ड लौट आती है। यहाँ आ कर उसे रोचेस्टर के होने वाले विवाह की खबर मिलती है, वह हृदयहीन, नकचढ़ी, प्रतिभावान और खूबसूरत ब्लैंच इनग्राम से शादी करने वाला है। असल में यह सब वह जेन को चिढ़ाने के लिए दिखावे के रूप में कर रहा था। एक शाम वह जेन से प्रपंच भरी बातें करता है तो जेन उसे अपने मन की भड़ास निकालते हुए काफ़ी कुछ कह जाती है। रोचेस्टर को विश्वास हो जाता है कि जेन वास्तव में उसे चाहती है तो वह उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखता है। जेन शादी के लिए राजी हो जाती है।

घर में बहुत अजीब घटना घटती है, रात में एक अजीब-सी औरत उसके कमरे में आ कर उसके शादी के जोड़े को नष्ट कर डालती है। रोचेस्टर इसको एक नौकर ग्रेस पूल की कारस्तानी बता कर बात रफ़ा-दफ़ा करता है। लेकिन शादी वाले दिन मिस्टर मेसन और उसका वकील इस शादी को गैरकानूनी बताते हैं। उनके अनुसार रोचेस्टर की शादी मेसन की बहन बेर्था मेसन से हो चुकी है और वह जीवित है। रोचेस्टर बात की सच्चाई को स्वीकारता है लेकिन उसके अनुसार उसकी संपत्ति हड़पने के लिए धोखे से उसकी शादी करवाई गई थी और उसकी पत्नी पागल है अत: वह उसे घर के एक हिस्से में बंद कर के रखता है। यह भी पता चलता है कि मिस्टर मेसन और जेन का अंकल जॉन एयर एक-दूसरे के दोस्त हैं।

जेन की शादी टूट जाती है फ़िर भी रोचेस्टर उसे फ़्रांस ले जाकर अपने साथ रखने का प्रस्ताव देता है। नैतिक दृष्टि से मजबूत जेन को रोचेस्टर का प्रस्ताव नागवार लगता है और वह रात में थॉर्नफ़ील्ड छोड़ देती है। उसके पास पैसे नहीं हैं और गलती से वह अपना बाकी सामान कोच में छोड़ देती है। भूखी-प्यासी, परेशानहाल जेन रिवर्स के घर जाती है, जहाँ घर के सारे लोग बाहर गए हुए हैं और हाउसकीपर उसे शरण नहीं देती है। वह मरने वाली है लेकिन सेंट जॉन रिवर्स तथा उसकी बहनें  डायना और मेरी उसे अपनी सेवा-सुश्रुषा से बचा लेते हैं। वह गाँव के स्कूल में पढ़ाने लगती है। बहनों से उसकी अच्छी पटती है। सेंट जॉन को जेन की असलियत पता चलती है तो वह बताता है कि वे रिश्तेदार हैं और जेन का चाचा उसके लिए एक बहुत बड़ी रकम छोड़ कर मरा है। चाचा ने उन लोगों को कुछ नहीं दिया है मगर जेन सम्पत्ति बाँटने को तैयार हो जाती है। सेंट जॉन उससे शादी करके मिशनरी के रूप में भारत आना चाहता है।

जेन को रहस्यमय तरीके से रोचेस्टर की पुकार सुनाई देती है। वह थॉर्नफ़ील्ड वापस लौट कर पाती है कि रोचेस्टर की पत्नी ने घर को आग लगा दी है और उसे बचाने के क्रम में रोचेस्टर की आँख की रौशनी और उसका एक हाथ नष्ट हो गया है। उसकी पत्नी बेर्था ने खिड़की से कूद कर आत्महत्या कर ली है। रोचेस्टर की अपंगता के बावजूद जेन उससे प्रेम और विवाह करती है। रोचेस्टर की आँख की रौशनी इतनी लौट आती है कि वह अपने नवजात को देख सके। इस तरह ‘जेन एयर’ उपन्यास का कटु-सुखद अंत होता है।

उपन्यास आत्मकथात्मक है अत: हेलन का अंत एलीबेथ और मारिया की मौत का पर्याय है। स्कूल का संचालक शार्लिट के अपने बचपन के स्कूल के संचालक की छवि है। जॉन रीड कोई और नहीं उपन्यासकार का अपना भाई ब्रानवेल ब्रॉन्टी है। शार्लिट खुद भी जेन की तरह गवर्नेस थी। लेखिका ने खुद एक पत्र में स्वीकारा है कि गोथिक शैली के मैनर जैसा एक मैनर उसने देखा था, आज यह नष्ट हो चुका है। आत्महत्या गोथिक शैली की एक विशेषता है। ‘जेन एयर’ में भी आत्महत्या होती है। शार्लिट वैम्पायर कथानक से परिचित थी, उसका प्रभाव उपन्यास पर देखा जा सकता है।

शार्लिट ब्रॉन्टी ने जेन को आत्मसम्मान से भरपूर एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में गढ़ा है। जीवन में जितने पुरुष उसे मिलते हैं सब उस पर शासन करना चाहते हैं। वह तभी संबंध स्वीकार करती है जब वह अपने पुरुष के समकक्ष है। सम्पत्ति-सत्ता में बराबरी पर पहुँच कर वह रोचेस्टर से शादी के लिए हाँ करती है। वह अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाती है और समाज में सिर उठा कर जीती है। वह किसी को अपना फ़ायदा नहीं उठाने देती है। जेन का चरित्र आज की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर-स्वतंत्र स्त्री पर बहुत हद तक सटीक बैठता है। उस काल में लोग अपनी लड़कियों को बिगड़ जाने के भय से यह उपन्यास नहीं पढ़ने देते थे। लॉर्ड बायरन के लेखन की मुरीद शार्लिट में कहीं भीतर बायरन से स्पर्द्धा भी थी। इसीलिए उसने न केवल खुद को सिद्ध किया लेखन में ‘मैं’ की शैली अपना कर बायरन के समकक्ष भी पहुँची। शार्लिट ब्रॉन्टी धार्मिक थी लेकिन उसे ईसाइयत विरोधी करार दिया गया। भला विक्टोरियन काल में कोई स्त्री कैसे कह सकती थी, “पाठक, मैंने उससे शादी की।” शार्लिट ब्रॉन्टी की यह नायिका आज की, इक्कीसवीं सदी की स्त्री है। इसलिए इसमें कोई शक नहीं कि आगे चल कर इस उपन्यास पर कई और फ़िल्में बनें, कई और टीवी सिरीज बनें। इनका अध्ययन होगा, इनकी अच्छाई-सीमाओं की तुलना होगी। ये फ़िल्में, ये सिरीज बार-बार देखी जाएँगी, सराही जाएँगी इसमें कोई दो राय नहीं है। यह उपन्यास बार-बार पढ़ा जाएगा।

शार्लिट ब्रॉन्टी के एक अन्य उपन्यास की बात भी कर ली जाए। १८५३ में प्रकाशित उपन्यास ‘विलेट’ एक एकाकी लड़की लूसी स्नो की कहानी है। लूसी की देखभाल उसकी ऑन्टी ने की है वह अपने परिवार के विषय में कुछ नहीं जानती है। जब वह बड़ी होती है तो बिना किसी सहारे और जानपहचान के खुद को पहचानने के लिए निकल पड़ती है। वह टीचर अथवा गवर्नेस के रूप में आर्थिक रूप से सक्षम होना चाहती है। इतना कुछ उपन्यास के पहले हिस्से में आता है। दूसरे हिस्से में लूसी जहाज से इंग्लैंड से ब्रुसल्स के विलेट में जा रही है। आगे की पूरी कहानी विलेट में चलती है। काफ़ी भटकने के बाद लूसी एक बोर्डिंग स्कूल में टीचर हो जाती है। स्कूल में रहते हुए वह लोगों, अपने प्रोटेस्टैंट धर्म, प्रेम, अपनी इच्छाओं के विषय में अवगत होती है। वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना चाहती है। उपन्यास के अंत में उसे अपना प्यार मिलता है और वह अपना स्कूल खोलने में भी सफ़ल होती है। कुछ आलोचक तो शार्लिट ब्रॉन्टी के उपन्यास ‘विलेट’ को ‘जेन एयर’ से बेहतर उपन्यास मानते हैं। मगर मेरी दृष्टि में जेन एयर तो जेन एयर है। उपन्यास और उसकी रचनाकार आज की स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है।

विजय शर्मा द्वारा लिखित

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