हिचकोले खाती ज़िंदगी की राह में न जाने क्या-क्या घटित होता चलता जिसे अमूमन निरर्थक सामाजिक क्रिया-कलाप समझ अनदेखा किया जाता रहता है। किंतु लेखकीय जिज्ञासू दृष्टि उन घटनाओं में भी मानवीय संवेदना के सूक्ष्म एहसास खोज ही लेती है , यह सूक्ष्म स्मृति लेखकीय हृदय में तब तक स्पंदित होती रहती है जब तक वह ख़ुद को लेखक की कलाम से एक कहानी के रूप में लिखवा नहीं लेती । "अशोक बंसल" की प्रस्तुत कहानी से गुज़रना ऐसे ही मार्मिक मानवीय एहसासों से रू-ब-रू होने जैसा है॰॰॰॰॰। - संपादक
उस का चेहरा
मैंने बहुत कोशिश की उसके नाम को याद कर संकूँ .असफल रहा . अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षरों को बिखेर कर उसके नाम को मानो बनाया गया था . यह उसका कसूर न था. चेकोस्लोवाकिया में हर नाम ऐसा ही होता है .वह भी चैक नागरिक था .वेरिवी के शानदार शॉपिंग कॉम्प्लेक्स की एक बैंच पर बैठा था .सत्तर-अस्सी के मध्य का रहा होगा .
यह बात ज्यादा पुरानी नहीं. आस्ट्रेलिया आये मुझे एक माह ही तो हुआ था . म्यूजियम और घूमने-फिरने की अनेक जगह घुमक्कड़ी हो गई तो परदेश के अनजान चेहरों को निहारने में ही मज़ा आने लगा . स्वर्ग जैसी आभा बिखेरते शहर मेलबर्न के उपनगर वेरिवी के इस वातानुकूलित भव्य मॉल में जब मैं चहलकदमी करते-करते थक गया तो बरामदे में पड़ी एक बैंच पर जा बैठा. पास में एक छह फुटा गोरा पहले से बैठा था . गोरे की आँखों की चमक गायब थी ,खोई-खोई आँखे मानो किसी को तलाश रही थीं .
आस्ट्रेलिया की धरती ने डेढ़ सौ साल पहले सोना उगलना किया था .धरती की गर्मी को आज भी विराम नहीं लगा है .इस धरती में समाये सोने की चमक ने परदेशियों को लुभाने का सिलसिला सदियों से बनाए रखा है . शानदार और संपन्न महाद्वीप में लोग सात समंदर पार कर चारों दिशाओं से आ रहे हैं . नतीजा यह है कि सौ से ज्यादा देशों के लोग अपनी-अपनी संस्कृतियों को कलेजे से लगाये यहाँ जीवन जी रहे हैं.
बैंच पर बैठा मैं इधर से उधर तेज क़दमों से गुज़रती गोरी मेमों को कनखकियों से निहारते-निहारते सोचने लगता था कि वे किस देश की होंगी . भारत ,पकिस्तान ,लंका और चीन के लोगों की पहचान करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी पर सैकड़ों देशों के लोगों की पहचान करना सरल काम न था . एक जैसी लगने वाली गोरी मेमों को देख कर जब आँखों में बेरुखी पैदा हुई तो बैंच पर बैठे पडोसी के देश की पहचान करने की पहेली में मन उलझ गया . स्पेन का हो नहीं सकता ,इटली का है नहीं तो फिर है कहाँ का .तभी एक गोरे ने मेरे पड़ोसी बूढ़े के पास आकर ऐसी विचित्र भाषा में बतियाना शुरू किया कि मेरे पल्ले एक शब्दन पड़ा. गोरा चला गया तो मैं अपने आप को न रोक पाया .
मैंने बूढ़े की आँखों में आँखे डालते बड़ी विनम्रता से हिन्दुस्तानी अंग्रेजी में पूंछा ''आप किस देश से हैं?'
मेलबर्न में बसे मेरे मित्र ने मुझे समझा दिया था कि परदेश में अपरिचितों से बिना जरुरत बात करने से बचना चाहिए .लेकिन पड़ोसी गोरे ने जिस सहजता और आत्मीयता से मेरे सवाल का जबाव दिया था उससे मेरे सवालों में गति आ गयी . उसने अपने देश 'चेकेस्लोवाकिया ' का नाम उच्चारित किया तो मैंने उसका नाम पूछा .नाम काफी लंबा था. मेरे लिए उसे लिखना संभव नहीं . सच पूछो तो मुझे याद भी नहीं .अतः मैं चैक के नाम से उसका परिचय आपसे कराऊँगा .
उसकी अंग्रेजी ऑस्ट्रेलियन थी पर वह संभल-संभल कर बोल रहा था ताकि मैं समझ सकूँ .
मेरे दो सवालों के बाद चैक ने मुझमें दिलचस्पी लेना शुरू किया ''आप तो इंडियन हैं ." उसकी आवाज में भरपूर आत्म विश्वास था.
मेरे देश की पहचान उसने बड़ी सरलता से और त्वरित की ,इसे जानकार मुझे गर्व हुआ और ख़ुशी भी .मेरी दिलचस्पी बूढ़े चैक में बढती गयी ."आप कहाँ रहते हैं ?"
"एल्टोना"
दरअसल मेलबर्न में दस से पंद्रह कि.मी. की दूरी पर छोटे छोटे अनेक उपनगर हैं .एल्टोना उनमें एक है . उपनगर वेरिवी जहाँ हम चैक से बतिया रहे थे ,एल्टोना से दस किमी दूर है .
चैक खाने-पीने के सामान को खरीदने के लिए अपनी बस्ती के बाजार के बजाय दस किमी की दूरी का सफ़र अपनी कार में तय करता है ,पेट्रोल पर फिजूलखर्ची करता है .वक्त की कोई कीमत चैक के लिए नहीं क्यों कि चैक रिटायर्ड जिन्दगी जी रहा है .लेकिन सरकार से मिलने वाली पेंशन पंद्रह सौ डालर में गुजर-बसर करने वाला फिजूलखर्ची करे ,यह मेरी समझ से बाहर था. इस परायी धरती पर रहते हुए मुझे मालूम पड़ गया था कि यहाँ एक-एक डालर की कीमत क्या है.
चैक की दरियादिली कहें या उसका शौक , मैंने सोचा कि अपनी जिज्ञासा को चैक से शांत करू .
तभी सामने की दुकान से मेरी पत्नी को मेरी ओर आते देख चैक बोला" आपकी पत्नी ?"
मैंने मुस्कराते कहा "आपने एक बार फिर सही पहचाना "
चैक अपने अनुमान पर मेरी मोहर लगते देख तनिक देर इस प्रकार प्रसन्न दिखाई दिया मानो किसी बालक द्वारा सही जबाब देने पर किसी ने उसकी पीठ थपथपाई हो .
'' आप कितने समय से साथ रह रहे हैं '', उसने पूछा .
''40 वर्ष से ''मैंने कहा .
वह बोला '' आप सौभाग्यशाली हैं ''
मुझे यह कुछ अटपटा लगा .पत्नी के साथ रहने को वह मेरे सौभाग्य से क्यों जोड़ रहा था जबकि यह एक सामान्य स्थिति है .
इसके साथ ही मेरी जिव्हा से सवाल रपट पड़ा " और आपकी पत्नी ?"
मेरा इतना पूछना था कि चैक के मस्तक पर तनाव उभर आया , चैक की आँखों ने क्षण भर में न जाने कितने रंग बदले ,मुझे नहीं मालूम .पलकें बार बार भारी हुईं ,पुतलियाँ कई बार ऊपर-नीचे हुईं . मैं कुछ अनुमान लगाऊं इससे पूर्व चैक के भरे गले से स्वर फूटे " थी, लेकिन अब वह वेरिवी में किसी दूसरे पुरुष के साथ रहती है "
मैं चैक के और समीप खिसक आया .उसके कंधे पर मेरा हाथ कब चला गया ,मुझे नहीं मालूम .चैक ने इस देश में हमदर्दी की इस गर्मी को पहले कभी महसूस नहीं किया था .उसने मन को हल्का करने की मंशा से कहा "हम तीस साल साथ साथ रहे थे "
मैंने देखा यह बात कहते चैक के होंठ कई बार बहेलिया के तीर लगे कबूतर के पंखों की तरह फड़फड़ाये थे .
"यह सब कैसे हुआ , क्यों हुआ " मुझसे रुका न गया .
शब्द उसके मुंह में थे पर नहीं निकले . गला रुंध आया था . उसने हाथों से जो इशारे किये उससे मैं समझ गया . मानों कह रहा हो सब नसीब-नसीब का खेल है . मगर मेरी जिज्ञासा मुझ पर हावी थी .मैंने अगला सवाल आगे बढ़ा दिया ----'' आपका कोई झगड़ा हुआ था ?''
''ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था'', वह बोला ,''वह एक दिन मेरे पास आई और बोली,'' चैक, आई एम् सॉरी, मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रहूँगी .मैंने और स्टीफन ने एक साथ रहने का फैसला किया है.फिर वह चली गई.''
'' आपने उसे रोका नहीं ?''
''मैं कैसे रोकता ---यह उसका फैसला था . यदि वह किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रहकर ज्यादा खुश है तो मुझे वाधा नहीं बनाना चाहिए .''
मै हैरानी से उसे देख रहा था .
'' लेकिन हाँ , आपसे झूठ नहीं कहूँगा . मैंने उसके लौटने का इन्तजार किया था .'' वह बोला .
उसकी आँखे नम हो रही थी .वह बोला -' आखिर हम लोग तीस साल साथ रहे थे .मुझे हर रोज उसे देखने की आदत पड़ गई थी ''.
उसने हाथ के इशारे से बैंच के सामने वाली दुकान की ओर संकेत करते हुए कहा-''इस दुकान में हम लोग अक्सर आते थे .यह उसकी पसंदीदा दुकान थी.''
मैं समझ गया कि बैरीवी के शॉपिंग कॉम्पेक्स में वह उस दुकान के सामने की बैंच पर क्यों बैठता है .
मैंने उससे पूछा--'' यहाँ उससे मुलाक़ात होती है?''
'' मुलाकात नहीं कह सकते .वह स्टीफन के साथ यहाँ आती थी . बहुत खुश नज़र आती थी .मैं उसे यहीं से देख लिया करता था .उसे देखकर लगता था कि उन दोनों को किसी तीसरे व्यक्ति की जरूरत नहीं है ---- वह खुश थी .लेकिन ----''
वह कुछ देर चुप रहा , फिर बोला --'' पिछली बार मैंने उसे देखा था तो वह अकेली थी ..
मैंने देखा कि उसके चेहरे पर गहरी उदासी उतर आई थी .कुछ परेशान लग रही थी. उसने मुझे देख लिया था . हमारी नज़रे मिली , मगर वह बचकर निकल जाना चाहती थी. मैंने आगे बढ़कर अनायास ही उसका हाथ थाम लिया था , पूछा था ' कैसी हो ?' उसने मेरी आँखों में देखा था , मगर वह कुछ बोल नहीं पाई थी .उसके हॉथ फड़फड़ाकर रह गए थे. वह हाथ छुड़ाकर चली गई थी . मैं सिर्फ इतना जानना चाहता था कि वह ठीक तो है. अब जब वह मिलेगी तो पूछूँगा कि वह खुश तो है .''
'' आपकी यह मुलाक़ात कब हुई थी ?''
'' करीब दो साल पहले ''
उसकी आँखे डबडबा रही थी और मैं हैरत से उसे देख रहा था .वह पिछले दो साल से इस बैंच पर बैठ कर इंतजार कर रहा था ताकि वह उससे पूछ सके कि वह खुश तो है.
उस दिन मैंने उसके कंधे पर सहानुभूति से हाथ रख कामना की थी कि उसका इन्तजार ख़त्म हो.
मैं अपने देश लौट आया था .मगर चैक मेरे दिमाग पर दस्तक देता रहा . बहुत से सवाल मेरे मन में कौंधते रहे . क्या उसकी मुलाकात हुई होगी ? . क्या रोजलिन उसको मिल गई होगी या वह उसी बैंच पर आज भी उसका इन्तजार कर रहा होगा ?
(प्रतीकात्मक फ़ोटो google से साभार)