प्रमुख रूसी लेखक, सोवियत साहित्य के प्रवर्तक गोर्की के लेखन से सारी दुनिया के पाठक भली भाँति परिचित हैं। सोवियत देश के पहले शिक्षा मंत्री अनातोली लूनाचसर्कि ने गोर्की के बारे लिखा था "मैक्सिम गोर्की की कृतित्व की विलक्षण रेखा आरम्भ होकर उन शिखरों को जा छूती है जिन्हें विश्व इतिहास में बहुत काम लोग ही चू पाए हैं। १९०६ से १९१३ के बीच इटली में लिखी गई उनकी कहानियों में से यह कहानी भी इटली के जनसाधारण के जीवन को समर्पित है। लोगों को कठिन दौर में शीघ्र उबा देना वाले जीवन में कुछ प्रफुल्लता लाना ही इन कहानियों का उद्देश्य रहा। प्रस्तुत है आज गोर्की की उन्हीं में से एक कहानी ॰॰॰॰॰
माँ
आइये नारी का , सर्वविजयी जीवन के अक्षय स्रोत , माँ का स्तुति - गान करें !
यह कहानी है संगदिल , लंगड़े चीते तैमूर - लेंग की , साहिब - ए - किरानी की , भाग्यशाली विजेता की , तैमूर - लंग की , जैसा कि उसे काफिर कहते थे , उस आदमी की जो सारी दुनिया को ही तहस – नहस कर डालना चाहता था ।
पचास साल तक वह धरती को रौंदता रहा , उसके फौलादी कदमों ने शहरों और राज्यों को वैसे ही कुचल डाला जैसे हाथी का पाँव चीटियों की बाँबी को कुचल देता है , उसके रास्ते पर सभी दिशाओं में खून की नदियाँ बहीं ; उसने विजित लोगों की हड्डियों से ऊँची - ऊँची मीनारें खड़ी की ; वह मौत की ताकत से अपनी ताकत का पंजा लड़ाते हुए जिन्दगी का नाश करता रहा था , मौत से इस चीज का बदला लेता था कि उसने उससे उसका बेटा जहाँगीर छीन लिया था । बहुत ही भयानक था वह आदमी ! वह मौत से उसकी सारी लूट - पाट को हथिया लेना चाहता था , ताकि भूख और गम से उसका दम निकल जाये !
उसका बेटा जहाँगीर जिस दिन मौत के मुँह में चला गया और समरकन्द के लोग काली तथा हल्की नीली पोशाकें पहने और सिरों पर धूल - मिट्टी तथा राख डाले हुए क्रूर जेत्तों के इस विजेता के स्वागत को आये , उस दिन से तथा ओत्रार में अपनी मृत्यु के दिन तक , जहाँ मौत ने आखिर उसे पराजित कर ही दिया था , तीस साल तक वह एक बार भी नहीं मुस्कराया । होंठों को कसकर भींचे हुए वह ऐसे ही जिया , कभी किसी के सामने उसने सिर नहीं झुकाया और तीस साल तक दूसरों के प्रति दया - सहानुभूति के लिए उसके हृदय - द्वार बन्द रहे ।
आइये नारी का , माँ का स्तुति - गान करें , उस एकमात्र शक्ति का जिसके सामने मृत्यु नत - मस्तक होती है । यहाँ चर्चा की जायेगी माँ के बारे में सच्चाई की , इस चीज की कि कैसे मौत के हुक्म बजानेवाले , मौत के गुलाम , पत्थर दिल तैमूर - लंग ने , हमारी धरती के । उस खूनी दरिन्दे ने माँ के सामने घुटने टेके ।
किस्सा यों हुआ ।
बहत ही खूबसूरत कनीगुल घाटी में , जो गुलाबों और चमेली के रज - बादलों से ढकी हुई थी और जिसे समरकन्द के शायरों ने बड़ा सुन्दर " फूलों का प्यार " नाम दिया है और जहाँ से महान नगर की नीली मीनारें और मस्जिदों के नीले गुम्बद नजर आते हैं , तैमूर - बेग जश्न मना रहा था ।
पन्द्रह हजार गोल तम्बू एक चौड़े पंखे की तरह घाटी में तने हुए थे । वे सभी गुल लाला की तरह थे और हर तम्बू के ऊपर सैकड़ों रेशमी झण्डियाँ फूलों की तरह झूम रही थीं ।
इन तम्बुओं के बीचोबीच था गुरगन - तैमूर का तम्बू - सहेलियों से घिरी हुई महारानी के समान । चार कोने थे उसके , हर तरफ सौ कदमों की लम्बाई थी , तीन भालों जितनी ऊँचाई थी और उसके मध्य में थे बारह स्वर्ण - स्तम्भ और हर स्तम्भ की मोटाई थी आदमी जितनी । इस तम्बू के ऊपर था नीला गुम्बद , उसके सभी ओर थी काली , पीली और नीली धारियों - वाली रेशमी कनात , लाल रंग की पाँच सौ रस्सियाँ उसे कसे हुए थीं ताकि वह आकाश में न उड़ जाये । उसके चार कोनों में चाँदी का एक - एक उकाब था और तम्बू के मध्य में , गुम्बद के नीचे खुद पाँचवाँ उकाब , शाहों का शाह , अजेय तैमूर - गुरगन बैठा था ।
वह आसमानी रंग का रेशमी जामा पहने था जिस पर बड़े - बड़े मोती जड़े हुए थे ।पाँच हजार मोती ! सफेद बालोंवाले उसके भयानक सिर पर सफेद टोपी थी जिसके नुकीले सिरे पर लाल लगा हुआ था । सारी दुनिया को देखनेवाली यह लाल मणि , यह खूनी आँख हिल - डुल रही थी , हिल - डुल रही थी ।
लंगड़े तैमूर का चेहरा हजारों बार खून में डूबने के कारण जंग लगे चौड़े खंजर जैसा था । उसकी आँखें छोटी - छोटी थीं , मगर उनकी नजर से कुछ नहीं बचता था और उनकी चमक अरबों के प्यारे रत्न जमुर्रद की सर्द चमक के समान थी जिसे काफिर पन्ना कहते हैं और जो मिरगी के भयानक रोग को दूर करता है । उसके कानों में थीं श्रीलंका के लालों की बालियाँ , किसी बहुत ही सुन्दर युवती के होंठों के रंग जैसी लाल मणि की बालियाँ ।
फर्श पर ऐसे कालीन बिछे थे जैसे कि अब नहीं रहे , और उन पर शराब से भरी तीन सौ सुराहियाँ और शाही दावत के लिए जरूरी बाकी सभी चीजें रखी हुई थीं । तैमूर के पीछे साजिन्दे बैठे थे और उसके नजदीक कोई नहीं । उसके कदमों में बैठे थे रिश्तेदार , शाह और शहजादे और फौजी सरदार । उसके सबसे ज्यादा नजदीक बैठा था मस्त शायर केरमानी , वही करमानी जिसने दुनिया को तबाह - बरबाद करनेवाले के एक बार यह पूछने पर कि " अगर मुझे बेचा जाये तो तुम मेरी क्या कीमत दोगे ? " मौत का बाजार गर्म करने और खौफ से दिल दहलानेवाले को यह जवाब दिया था :
" पच्चीस आसकर ! "
" लेकिन यह तो सिर्फ मेरे कमरबन्द की कीमत है ! " तैमूर हैरान होकर चिल्ला पडा ।
" मैं तो सिर्फ कमरबन्द के बारे में ही सोच रहा हूँ , " केरमानी ने जवाब दिया . " सिर्फ कमरबन्द के बारे में ही , क्योंकि तुम्हारी तो एक कौड़ी भी कीमत नहीं ! "
तो यह जवाब दिया था शायर केरमानी ने शहंशाहों के शहंशाह को , उस क्रूर और भयानक आदमी को । हमारे लिये सदा अमर रहे कीर्ति कवि की , सच्चाई के साथी की , सदैव ऊँची रहे उसकी कीर्ति तैमूर की कीर्ति से ।
आइये , गुण - गान करें कवियों - शायरों का जिनका केवल एक ही भगवान है , सुन्दर ढंग से कहा गया सच्चाई का निर्भय शब्द । बस , यही है उनका भगवान , शाश्वत भगवान !
मौज - मस्ती , रंग - रलियों , लड़ाइयों और जीतों की गर्वीली स्मृतियों , बादशाह के तम्बू के सामने संगीत और लोक - खेलों के कोलाहल में , जहाँ रंग - बिरंगी पोशाकें पहने असंख्य मसखरे उछल - कूद रहे थे , पहलवान कुश्तियाँ लड़ रहे थे , तने रस्सों पर नट ऐसे करतब दिखा रहे थे जो यह सोचने को मजबूर करते थे कि उनकी हड्डी - पसली ही नहीं है , सैनिक पटेबाज मरने - मारने की कला का कौशल - प्रदर्शन कर रहे थे , लाल और हरे रंग से रंगे हाथियों के तमाशे हो रहे थे जो कुछ तो भयानक और कुछ हास्यास्पद प्रतीत होते थे - तैमर के लोगों की खुशी के इस क्षण में , जिनमें से कुछ उसके भय और उसके यश पर गर्व के कारण , विजयों की थकान , सुरा और कुमिस * के कारण नशे में थे , मदहोशी की इस घडी में अचानक शोर को चीरती , बादलों में से कड़कती बिजली की तरह एक नारी की चीख सुलतान बायेजिद के विजेता क कानों तक पहुंची । एक मादा उकाल की गर्वीली चीख , वह आवाज तो उसकी आहत आत्मा की जानी - पहचानी और उसके नजदीक थी , मृत्यु द्वारा आहत आत्मा के अनुरूप थी और इसलिए लोगों तथा जीवन के प्रति क्रूर थी ।
तैमूर ने यह जानने का हुक्म दिया कि ऐसी दर्दभरी आवाज में कौन चीख रहा है । उसे बताया गया कि एक औरत आयी है , धूल - मिट्टी से लथपथ और चिथड़े पहने हुए । वह पागल लगती है , अरबी बोलती है और आप से , तीन मुल्कों के मालिक से मिलने की माँग – हाँ , माँग करती है !
" उसे यहाँ ले आओ ! " बादशाह ने कहा ।
और उसके सामने थी नंगे पाँव , धूप में बदरंग हुए चिथड़े पहने एक औरत । काले , खुले बाल उसकी नंगी छाती को ढके थे , चेहरा मानो काँसे का था , आँखों में रोब था और तैमूर - लंग की तरफ फैला हुआ हाथ जरा भी काँप नहीं रहा था ।
" तुम्हीं ने जीता है न सुलतान बायेजिद को ? " औरत ने पूछा ।
" हाँ , मैंने । उसे और बहुत - से दूसरों को भी जीता है और अभी तक थका नहीं हूँ जीतों से । अपने बारे में तुम क्या कह सकती हो , ऐ औरत ? "
" सुनो ! " वह बोली । “ तुम चाहे कुछ भी क्यों न करो - तुम सिर्फ आदमी ही रहोगे और मैं हूँ माँ । तुम मौत की खिदमत करते हो और मैं जिन्दगी की ! तुम मेरे सामने कुसूरवार हो और मैं यही माँग करने आयी हूँ कि तुम मेरे सामने अपना कुसूर मानो । मुझे बताया गया है कि तुम " इन्साफ में ताकत है " - इस उसूल के कायल हो । मैं इसका यकीन नहीं करती , लेकिन मेरे साथ तुम्हें इन्साफ से काम लेना होगा , क्योंकि मैं माँ हूँ । "
बादशाह काफी समझदार था , इसलिए शब्दों की दबंगता में उसने उनकी ताकत को महसूस कर लिया । वह बोला :
" बैठकर अपनी बात कहो । मैं उसे सुनना चाहता हूँ । "
औरत राजाओं के तंग घेरे में , उसके लिए जैसे भी सुविधाजनक हुआ , कालीन पर बैठ गयी और उसने यह आपबीती सुनायीः
"मैं सालेरनो इलाके के नजदीक की रहनेवाली हूँ । यह बहुत दूर , इटली में है और तुम इसे नहीं जानते ! मेरे पिता मछुआ थे , पति भी । मेरे पति खुशकिस्मत आदमी की तरह खूबसूरत थे और उन्हें खुशी की यह मस्ती दी थी मैंने ! इनके अलावा मेरा एक बेटा भी था - दुनिया में सबसे ज्यादा खूबसूरत लड़का . . . "
" मेरे जहाँगीर की तरह , ' बूढ़े योद्धा ने धीरे से कहा ।
" सबसे ज्यादा खूबसूरत और सबसे ज्यादा अक्लमन्द था मेरा बेटा । वह छः साल का था जब सारात्सिन के समुद्री डाकू हमारे तट पर आये , उन्होंने मेरे पिता , पति और बहुत - से दूसरे लोगों को मौत के घाट उतार डाला और मेरे बेटे को भगा ले गये । चार साल से मैं सारी दुनिया की खाक छानती हुई उसे खोज रही हूँ । अब वह तुम्हारे पास है , मैं यह जानती हूँ , क्योंकि बायेजिद के बहादुरों ने समुद्री लुटेरों को गिरफ्तार कर लिया था और तुमने बायेजिद को हराकर उससे सब कुछ छीन लिया । तुम्हें यह मालूम होना चाहिये कि मेरा बेटा कहाँ है , तुम्हें उसे मुझे लौटा देना चाहिये ! ' '
सभी खिलखिलाकर हँस दिये और हमेशा अपने को समझदार माननेवाले शाहों ने बादशाह को सम्बोधित किया ।
" यह पागल है । " तैमूर के दोस्तों , शाहों और सेनापतियों ने कहा और सभी ठठाकर हँस पड़े ।
सिर्फ केरमानी ही इस औरत को संजीदगी से , और तैमूर बड़ी हैरानी से देखता रहा
" वह माँ की तरह पागल है ! " मस्त शायर ने धीरे से कहा और सारी दुनिया का दुश्मन बादशाह बोला :
" ऐ औरत ! मेरे लिये अनजान मुल्कों से तुम समुद्रों , नदियों , पहाड़ों और जंगलों को लाँधकर यहाँ कैसे पहुँची ? दरिन्दों और लोगों ने , जो अक्सर दरिन्दों से भी ज्यादा जालिम होते हैं तुम्हें जिन्दा कैसे छोड़ दिया ? तुम तो कोई हथियार भी साथ नहीं लिये थीं जो बेसहारा इन्सानों का अकेला मददगार होता है और जब तक हाथों में उसे सँभालने की ताकत रहती है , कभी साथ नहीं छोड़ता ? तुम्हारी बात पर यकीन करने को और इसलिए भी मेरा यह जानना जरूरी है कि मेरी हैरानी तुम्हें समझ पाने में मेरे आड़े न आये !
" आइये , हम नारी की गौरव - गाथा गायें जिसका प्यार किसी भी बाधा को नहीं स्वीकारता , जिसके दूध से ही सब का लालन - पालन होता है ! मानव में जो कुछ सबसे । बढ़ - चढ़कर है , वह सूर्य की किरणों और माँ के दूध की देन है - यही है जो हमें जीवन के प्रेम से ओतप्रोत करता है !
औरत ने तैमूर - लंग को जवाब दियाः
" समुन्दर तो मेरे रास्ते में सिर्फ एक ही आया । उस पर बहुत से जजीरे और मछुओं की नावें थीं और जब हम अपने किसी आँख के तारे की तलाश में होते हैं तो हवा भी हमारा साथ देती है । समुन्दर के किनारे पर पैदा और बड़े होनेवाले के लिए नदियों - दरियाओं को लाँघ जाना तो बायें हाथ का खेल होता है । रहे पहाड़ ? तो वे तो मुझे दिखायी ही नहीं दिये ।
" मस्त केरमानी ने खुशमिजाजी से कहाः
" प्यार करनेवाले के लिए पहाड़ घाटी बन जाता है ! "
" रास्ते में जंगल आये , हाँ , ऐसा तो हुआ ! जंगली सूअरों , भालुओं , बनबिलावों और सींग ताने हुए खतरनाक जंगली साँड़ों को भी मैंने अपने सामने देखा और तुम्हारे जैसी । आँखोंवाले चीतों से भी दो बार मेरा वास्ता पड़ा । लेकिन हर दरिन्दे के भी दिल होता है , मैंने उनके साथ भी वैसे ही बातें की जैसे तुम्हारे साथ । उन्होंने यकीन कर लिया कि मैं । माँ हूँ और वे आह भरकर मेरे रास्ते से हट गये , उन्हें मुझ पर रहम आया ! क्या तुम्हें यह मालूम नहीं कि जानवर भी अपने बच्चों को प्यार करते हैं और लोगों के मुकाबले उनकी जिन्दगी और आजादी के लिए कुछ कम डटकर नहीं लड़ते हैं ? "
" बिल्कुल ऐसा ही है , औरत ! ' तैमूर बोला । " मैं जानता हूँ कि अक्सर वे लोगों से । ज्यादा प्यार करते हैं और उनके लिए कहीं ज्यादा डटकर जूझते हैं ! "
" लोग , " वह एक बच्चे की तरह कहती गयी , क्योंकि हर माँ अपनी आत्मा में सौ गुना अधिक बालक होती है , " लोग - वे अपनी माताओं के बच्चे ही हैं , हर किसी की माँ होती है , हर कोई किसी माँ का बेटा होता है । यहाँ तक कि तुझ बुड्ढे को भी - तुम यह जानते हो – किसी औरत ने जन्म दिया है । तुम खुदा से इन्कार कर सकते हो , लेकिन इस बात से तुम बुड्ढे भी इन्कार नहीं कर सकते । "
" सोलह आने सही बात है तुम्हारी ! " निडर शायर केरमानी कह उठा । “ साँड़ों के झुण्ड से बछड़े - बछिया नहीं हो सकते , सूरज के बिना फूल नहीं खिल सकते , प्यार के बिना सुख नहीं मिल सकता , औरत के बिना प्यार नहीं हो सकता और माँ के बिना न तो शायर हो सकता है और न ही सूरमा ! "
और औरत बोली : " मेरा बेटा मुझे लौटा दो , क्योंकि मैं माँ हूँ और उसे प्यार करती हूँ ! "
आइये , औरत के सामने सिर झुकायें - उसी ने मूसा , मुहम्मद और महान ईसा को जन्म दिया जिसे क्रूर लोगों ने मरवा डाला , लेकिन , जैसाकि शरफद्दीन ने कहा है - वह फिर से जी उठेगा , जिन्दा तथा मुरदा लोगों के बारे में अपना फैसला सुनायेगा और यह होगा दमिश्क में , दमिश्क में !
आइये , उसके सम्मुख नतमस्तक हों जो निरन्तर महान सपूतों को जन्म देती है । अरस्तू भी उसी का बेटा था और फिरदौसी भी , शहद की तरह मीठा शेख सादी भी और जहर मिली शराब जैसा उमर खय्याम भी , सिकन्दर और नेत्रहीन होमर भी । ये सब उसी की सन्तान हैं , सभी ने उसका दूध पिया है और जब वे गुल लाला के पौधे जितने छोटे - से थे तो उसी ने इनकी उँगली पकड़कर इन्हें जिन्दगी की राह पर बढ़ाया था । माँ ही दुनिया । का गौरव - स्रोत है !
शहरों को तबाह - बरबाद करनेवाला बूढा , लंगड़ा तैमूर गहरी सोच में डूब गया , बहुत देर तक खामोश रहा और फिर सभी को मुखातिब करते हुए बोला :
" मैं तंगरी कुली तैमूर ! मैं खुदा का खिदमतगार तैमूर , वही कुछ कह रहा हूँ जो मुझे कहना चाहिये ! मैं इस दुनिया में जी रहा हूँ , बहुत सालों से धरती मेरे पाँवों के नीचे कराह रही है और तीस बरस से मैं उसे अपने इस हाथ से तहस - नहस कर रहा हूँ । इसलिए तहस - नहस कर रहा हूँ कि अपने बेटे जहाँगीर की मौत का बदला ले सकूँ , इसलिए कि उसने मेरे दिल के सूरज को मुझसे छीन लिया ! सल्तनतों और शहरों के लिए लोग मुझसे लड़े , लेकिन इन्सान के लिए कभी , कोई मुझसे नहीं लड़ा । मेरी नजर में कोई कीमत नहीं थी इन्सान की और मुझे मालूम नहीं था कि वह कौन है और किसलिए मेरे रास्ते में आता है ? मैंने तैमूर ने बायेजिद को जीतने के बाद उससे कहा था – ' ओ बायेजिद , लगता है कि खुदा के लिए सल्तनत और लोग कुछ भी मानी नहीं रखते । वह हम जैसों को - तुम काने हो और मैं लंगड़ा - उन पर हुकूमत करने के लिए उन्हें सौंप देता है ! ' मैंने उससे उस वक्त यह कहा जब जंजीरों से जकड़कर उसे मेरे सामने पेश किया गया और वह उनके बोझ तले दबता - सा खड़ा था । दुखी नजर से देखते हुए मैंने उससे ऐसा कहा और उस वक्त जिन्दगी मुझे नागदौने की तरह , खण्डहरों में उगनेवाली उस घास की तरह कड़वी महसस हुई थी !
" खुदा को खिदमतगार मैं तैमूर , वही कुछ कह रहा हूँ जो मुझे कहना चाहिये ! मेरे सामने एक औरत बैठी है , वैसी ही , जैसी इस दुनिया में बेशुमार हैं और उसने मेरे दिल में ऐसे जजबात पैदा कर दिये हैं जिनसे मैं आज तक अनजान था । वह मेरे साथ बराबरी के नाते बात करती है , वह इल्तजा नहीं करती , माँग करती है । मुझे लगता है कि इस औरत में इतनी ताकत कहाँ से आयी , मैं इसका राज समझ गया हूँ । वह प्यार करती है और प्यार ने ही उसे यह समझने में मदद दी है कि उसका बेटा जिन्दगी की ऐसा चिंगारी है जिससे बहुत - सी सदियों के लिए कोई मशाल रोशन हो सकती है । क्या सभी पैगम्बर कभी बच्चे नहीं थे और सूरमा बेहद कमजोर ? ओ जहाँगीर , मेरी आँखों की रोशनी , शायद तुम्हारी किस्मत में यह लिखा था कि तुम धरती को प्यार की गर्मी दो , उसमें खुशी के बीज बोवो , क्योंकि मैंने उसे खून से अच्छी तरह तर कर दिया और वह फूल उठी । "
अनेक राष्ट्रों का नाशक फिर से देर तक सोचता रहा और आखिर बोला :
" खुदा का खिदमतगार , मैं तैमूर , वही कुछ कह रहा हूँ जो मुझे कहना चाहिये ! तीन सौ घुडसवारों को इसी वक्त मेरी सल्तनत के हर कोने में रवाना कर दो । वे इस औरत के बेटे को ढूँढ लायें , वह यहीं उसका इन्तजार करेगी और इसके साथ मैं भी इन्तजार करूँगा । जो कोई इसके बच्चे को अपने घोड़े की जीन पर बिठाकर लायेगा , उसकी किस्मत खुल । जायेगी - यह मैं कह रहा हूँ , तैमूर ! ठीक कहा न मैंने , औरत ? "
उसने अपने चहरे से काले बाल हटाये , उसकी ओर देखकर मुस्करायी और सहमति से सिर झुकाते हुए बोली :
" बिल्कुल ठीक , बादशाह सलामत ! "
तब वह भयानक बूढ़ा उठा , चुपचाप नारी के सामने झुक गया और खुशमिजाज शायर केरमानी ने बच्चे की तरह बड़ी खुशी से ये पंक्तियाँ सुनायीं :
फूलों और सितारों से क्या हो सकता बढ़कर सुन्दर ?
गीत प्रेम के , गीत प्यार के , होगा यह सबका उत्तर !
ऋतु वसन्त के सूरज से भी मधुर और क्या हो सकता ?
प्रेमी यही कहेगा – जिसको प्यार हृदय उसका करता ।
तारे प्यारे अर्ध - रात्रि के - यह मुझको मालूम है !
सूरज भी प्यारा वसन्त में - यह मुझको मालूम है ,
फूलों से बढ़ नयन प्रिया के - यह मुझको मालूम है ।
सूरज से मुस्कान मधुरतम - - यह भी तो मालूम है ।
लेकिन गाया नहीं गया है गीत अभी सबसे सुन्दर
इस धरती पर सब चीजों का जो सच्चा आधार अमर ,
विश्व - हृदय का गीत , अनूठे उस दिल का
गीत जिसे हम कह सकते माँ के दिल का ।
और तैमूर - लंग ने अपने शायर से कहाः
" बहुत खूब , केरमानी ! अपनी सूझबूझ को लोगों तक पहुँचाने के लिए तुम्हारे होंठों को चुनकर खुदा ने ठीक ही किया ! "
" अजी , खुदा तो खुद बहुत बड़ा शायर है ! " मस्त केरमानी ने जवाब दिया । और औरत मुस्करा रही थी , मुस्करा रहे थे सभी राजा और राजकुमार , सेनापति और दूसरे सभी बच्चे भी – उसकी ओर , माँ की ओर देखते हुए !
यह सब कुछ सच है , यहाँ लिखा गया हर शब्द सत्य है , इसके बारे में हमारी मातायें जानती हैं , उनसे पूछिये और वे कहेंगी :
" हाँ , यह शाश्वत सत्य है , हम मृत्यु से अधिक शक्तिशाली हैं , हम , जो निरन्तर इस संसार को बुद्धिमान , कवि और वीर देती हैं , हम , जो उसमें उस सब के बीज बोती हैं जिसके लिए संसार गर्व कर सकता है !
- अनुवाद "मदन लाल 'मधु'
प्रतीकात्मक चित्र google से साभार