‘दि इमीटेशन गेम’ ऐसा ट्रीट करते हैं हम अपने जीनियस को! ( प्रो विजय शर्मा)

सिनेमा फिल्म-समीक्षा

विजय शर्मा 596 6/11/2020 12:00:00 AM

जीनियस व्यक्ति अक्सर असामान्य होता है, समाज उसकी प्रतिभा का उपयोग करता है मगर उसके निजी जीवन में दखल देता है। उसे नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोडता है। जीते-जी उसे अपराधी घोषित करता है। यदि किसी प्रतिभा को आत्महत्या के लिए समाज-राज्य मजबूर करे और उसके मरने के दशकों बाद उसे माफ़ कर दे तो क्या यह न्याय हुआ? क्या एक कीमती जान की हानि पूरे समाज की हानि नहीं है? पूरी मानवता की हानि नहीं है? एक फ़िल्म देखते हुए ये विचार मन में उठे। फ़िल्म है, ‘दि इमीटेशन गेम’।

‘दि इमीटेशन गेम’


मनुष्य ने समाज और राज्य बनाया ताकि वह सकून के साथ रह सके। उसने कुछ दायित्व इन संस्थाओं को सौंप दिए ताकि वह अपना जीवन कुछ महत्वपूर्ण कार्यों के संपादन में लगा सके। समाज और राज्य ने इस स्थिति का फ़ायदा उठाया और मनुष्य को जकड़ने के लिए कानून बनाने शुरु किए। जितना सभ्य समाज उतनी अधिक जकड़न। राज्य शक्तिशाली होता गया, समाज ने आदमी का सांस लेना दूभर कर दिया। 

ब्रिटेन ने जब उपनिवेश कायम किए तो स्थानीय सभ्यता-संस्कृति को नष्ट कर अपने नियम-कायदे अपने अधिनस्थ दूसरे देशों पर थोपे। विडम्बना यह है कि स्वतंत्र होने के बहुत बाद तक ये देश उन्हीं कानूनों को ढ़ोते रहे। समलैंगिकता कानूनन वैध हो मगार समाज अभी भी उसे स्वीकार नहीं करता है।

जीनियस व्यक्ति अक्सर असामान्य होता है, समाज उसकी प्रतिभा का उपयोग करता है मगर उसके निजी जीवन में दखल देता है। उसे नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोडता है। जीते-जी उसे अपराधी घोषित करता है। यदि किसी प्रतिभा को आत्महत्या के लिए समाज-राज्य मजबूर करे और उसके मरने के दशकों बाद उसे माफ़ कर दे तो क्या यह न्याय हुआ? क्या एक कीमती जान की हानि पूरे समाज की हानि नहीं है? पूरी मानवता की हानि नहीं है? एक फ़िल्म देखते हुए ये विचार मन में उठे। फ़िल्म है, ‘दि इमीटेशन गेम’।

ऐसा ही कुछ किया ब्रिटेन ने अपने एक गणितज्ञ के साथ (हमने भी अपने गणितज्ञों के साथ बहुत अच्छा नहीं किया है)। द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में नाजी जर्मनी के ‘एनिग्मा’ कोड को ले कर ब्रिटेन बहुत परेशान था। उसने एक टीम बना कर कुछ लोगों को इसे डिकोड करने का भार सौंपा हुआ था। इस टीम का प्रमुख व्यक्ति था एलन टूरिंग। टूरिंग कम्प्यूटर का पितामह है। उसे आर्टिफ़ीसियल इंटेलिजेंस का पितामह भी कहा जाता है। उसके काम पर आगे चल कर कम्प्यूटर बने जिसने हमारा जीवन पूरी तरह से बदल दिया है, आसान कर दिया है। जिस सुविधा के चलते यह लेख तैयार हुआ और जिस सुविधा के चलते आप इसे आसानी से पढ़ पा रहे हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र देशों की जीत का श्रेय भी उसे दिया जाता है। टूरिंग ने एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया जो जर्मनी के ‘एनिग्मा’ कोड का रहस्य खोलने में सफ़ल रही। यह मशीन प्रति मिनट दो संदेश डिकोड करने की क्षमता तक पहुँची। मगर इस व्यक्ति एलन टूरिंग ने आत्महत्या की। कारण था वह होमोसैक्सुअल था। उसने अपने ऑफ़ीसर के सामने यह बात स्वीकार कर ली यदि यह बात खुल जाती तो उसे जेल होती। अत: उसे हॉरमोन बदलने, कैमिकल कास्ट्रेसन के लिए दवाएँ दी जाने लगीं। दवाओं का असर, आंतरिक उथल-पुथल, मानसिक दबाव के तहत 1954 में उसने पोटासियम साइनाइड से अपना जीवन समाप्त कर लिया। 1912 में जन्मा टूरिंग जीनियस था, मरते समय वह मात्र 42 साल का था। 2013 में महारानी एलीजाबेथ ने उसे उसकी होमोसैक्सुआलिटी के लिए माफ़ कर दिया। उसने गणित, क्रिप्टाएनालिस, तर्कशास्त्र और फ़िलॉसफ़ी में महत्वपूर्ण योगदान किया है।

इसी टूरिन के जीवन के कुछ हिस्से पर आधारित है फ़िल्म ‘दि इमिटेशन गेम’। फ़िल्म को टोरोंटो फ़िल्म फ़ेस्टिवल में पीपुल’स च्वाइस अवॉर्ड मिला। फ़िल्म टूरिंग को ऑटोस्टिक दिखाती है। उसे कभी समलैंगिक क्रिया में लीन नहीं दिखाती है, स्कूल में उसका एक दोस्त था, क्रिस्टोफ़र और उसके न रहने पर वह मानसिक रूप से खुद को सदा उसके संग पाता है। टूरिंग की भूमिका अत्मसात की है अभिनेता बेनेडिक्ट कम्बरबैट ने। यह त्रासद फ़िल्म शुरु से अंत तक टूरिंग की एक-एक कर तमाम त्रासदियों को दिखाती है। हालाँकि वह अपनी टीम के साथ अपने मिशन में सफ़ल रहता है, ‘एनिग्मा’ डिकोड करता है, ब्रिटेन की जीत होती है। लेकिन इस बीच में चूँकि वह यूनिर्सिटी से मिलिट्री में आया है अत: मिलिट्री वालों का उसके प्रति व्यवहार अच्छा नहीं है। उसकी अलग-थलग रहने की आदत के कारण टीम के अन्य सदस्य शुरु में उससे सहयोग नहीं करते हैं। उस पर शत्रु देश का जासूस होने का आरोप लगता है। लड़की उसके जीवन में आती है मगर वह उससे जुड़ नहीं पाता है, दवाइयों के प्रभाव से उसका हाथ काँपता रहता है, आत्मविश्वास समाप्त हो गया है, वह अपना प्रिय शगल क्रॉसवर्ड पजल हल करने के लिए ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है और अंत तो त्रासद है ही। फ़िल्म बाद में परदे पर लिख कर बताती है कि टूरिंग को अपनी मिलिट्री सेवा के लिए मेडल मिला और बाद में महारानी ने उसे माफ़ कर दिया।

ग्राहम मूर के इस स्क्रीनप्ले में जब जोआन क्लार्क के रूप में कैरा नाइटली परदे पर आती है तो फ़िल्म में एक नई चमक आ जाती है। पुरुषों की इस दुनिया में वह खुशनुमा हवा का झोंका है, साथ ही प्रतिभा में उनकी टक्कर की भी। वही अपनी युक्ति से टीम को टीम बनाती है। फ़िल्म में यदि कोई बेनेडिक्ट के जोड़ का है तो वह कैरा ही है। वैसे इंटेलीजेंस विभाग का प्रमुख स्टेवार्ड मेंज़िस (मार्क स्ट्रॉन्ग) उसके पक्ष में है, हर बार उसे बचाता है, उसके काम करने के लिए आवश्यक सहायक सामग्री, सहायता जुटाता है। 

टूरिंग के जीवन पर एंड्रु होग्स ने एक किताब लिखी, ‘एलन टूरिंग: दि एनिग्मा’। इसी पर आधारित मॉटेन टाइलडम की निर्देशित 2014 की यह फ़िल्म हो सके तो अवश्य देखें। 114 मिनट व्यर्थ नहीं जाएँगे।

- प्रयुक्त सभी फ़ोटो google से साभार 


विजय शर्मा द्वारा लिखित

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