गुलाबो सिताबो : (अभिषेक प्रकाश)

सिनेमा सिनेमा लोक

अभिषेक प्रकाश 1121 6/13/2020 12:00:00 AM

दुनिया ऐसे तमाम गुलाबो - सिताबो से भरी पड़ी हैं और ना जाने ऐसे कितने ही सिकन्दर भरे पड़े हैं। फ़िल्म के एक गीत का बोल है "बनके मदारी का बन्दर,डुगडुगी पर नाचे सिकन्दर"

गुलाबो सिताबो

"गुलाबो खूब लड़े,सिताबो खूब लड़े!" सही बात है गुलाबो-सिताबो अब लड़ते ही तो हैं , बिना यह सोचे कि आखिर वह किसके 'पपेट' है ! आखिर कौन सी ऐसी चीज़ है, कौन सी ऐसी परिस्थिति है, जो उन्हें लड़ाती ही रहती है ,और कौन से ऐसे लोग हैं जो इनके झगड़े में अपना मनोरंजन या फायदा देखते हैं।

दुनिया ऐसे तमाम गुलाबो - सिताबो से भरी पड़ी हैं और ना जाने ऐसे कितने ही सिकन्दर भरे पड़े हैं। फ़िल्म के एक गीत का बोल है "बनके मदारी का बन्दर,डुगडुगी पर नाचे सिकन्दर" बस यही कहानी है इस फ़िल्म की।

कहानी एक मकान मालिक और उसके कुछ किराएदारों के किचकिच से शुरू होती है। जिसमे सब उस हवेली पर अपना कब्जा चाहते हैं, जो उनकी है ही नही ! चाहे वह मिर्ज़ा( अमिताभ बच्चन) हो या बांके( आयुष्मान खुराना) हो या फिर कोई अन्य किरायेदार! पूरे फ़िल्म में मिर्ज़ा जैसे लालची मालिक और बांके जैसे चतुर किरायेदार से लेकर उस हवेली की किस्मत की चाबी बिल्डर, वकील, नेता से लेकर पुरातत्व विभाग तक के पास जाती है !लेकिन उस हवेली के किस्मत की चाबी तो मिर्ज़ा के बेगम( फर्रुख ज़फ़र) के पास होती है,जो एक पंचानबे वर्ष की बुढ़िया है।

फ़िल्म में मिर्ज़ा जैसे लोभी और माया के जकड़ में गहरे तक फंस चुके एक वृद्ध के साथ साथ बेगम जैसी तृप्त,शान्त और सौम्य महिला को समानांतर दिखाया गया है ,जो एक ही हवेली में एक ही परिस्थिति में रहते हुए भिन्न भिन्न मानसिकता के साथ जिंदगी को जीते हैं। मिर्ज़ा उम्र के इस पड़ाव में भी बेगम का सहारा न बनकर उसके मरने का ख्वाब पाला रहता है ताकि उस हवेली का मालिक वह बन सके।

फ़िल्म के एक दृश्य में जब बेगम के चले जाने की खबर डॉक्टर और उसकी नौकरानी सबको देते हैं तो मिर्ज़ा लालच के अंधेपन में अपने आंतरिक भाव को बहुत हद तक दबा नही पाता ! हवेली के लालच में वह ऐसा ही हृदयहीन, संवेदनहीन व्यक्ति हो चुका होता है।सच कहिए तो यह आधुनिक परिवेश के लिए बहुत सामान्य सी बात होते चली जा रही है।मिर्ज़ा उसी तरह का मक्कार है जो मरने के समय तक फ़र्ज़ी वसीयतनामा करा लेते हैं।

मिर्ज़ा प्रेमचन्द के कहानी "कफ़न" के पात्र घीसू और माधव से कही भी कमतर नही जो अपनी पत्नी के मृत्यु के कफ़न के पैसों से अपना पेट भरते हैं, वैसे ही मिर्जा बेगम की मृत्यु के मात्र अनुमान से ही उससे मिले बिना ही उसके लिए कफ़न और कब्र की जगह खरीद लेता हैं, और उसमें भी मोलभाव ऐसे करता है मानो कफ़न की कीमत उसके दुःख से भी ज्यादा हो!

कहानी, स्क्रीनप्ले और संवाद में जूही चतुर्वेदी ने अपने परफॉर्मेंस को दुहराया है। इन्होंने कुछ बहुत बेहतर, चुटीले और झन्नाटेदार संवाद लिखे हैं।जैसे मिर्ज़ा से बांके अपनी चोरी के चादर छीन कर ले जाता है तब मिर्ज़ा कहता है कि ' ले जाओ अपनी चादर दिन भर पादे हैं इसमें!' या फिर ज्ञानेश (विजय राज) द्वारा होटल में सृष्टि से यह कहना कि 'अब तुमसे क्या छुपाना, हम किस्स नही कर सकते पायरिया है न,' इस पर सृष्टि का जवाब कि ' डेंटल करा लीजिए अपना', पूरे मनोरंजन और व्यंग्य से सजा हुआ है।

फ़िल्म बीच-बीच मे थोड़ी भारी जरूर हुई है लेकिन उबाऊ कही नही हुई है।बल्कि आप इसमें अमिताभ को 'पा' के बाद एक अन्य चुनौतीपूर्ण भूमिका में देख सकते हैं।वही आयुष्मान ने लखनवी भाषा को बड़े ही आत्मविश्वास के साथ बोल कर दर्शकों को खूब जोड़ा है।

यद्यपि कैमरा और निर्देशक सुजीत सरकार ने फ़िल्म के बहाने दर्शकों को लखनऊ के महमूदाबाद पैलेस,लाल दरवाज़ा,छोटा व बड़ा इमामबाड़ा,आमिर-उद-दौला पुस्तकालय, गोमती नदी,अमीनाबाद, चारबाग,कैसरबाग जीपीओ हज़रतगंज के सड़क चौराहों से लेकर सड़क किनारे चप्पल की दुकान,पानी-पूरी की दुकान पान की दुकान तक की शानदार सैर कराई है।

मेकअप के लिए पी कोर्नेलियस और संदीप लिम्बचिया और इनकी टीम ने अमिताभ को अस्सी साल का एक खूसट बुड्ढा बनाने में कोई कमी नही छोड़ी है।

गीत लिखने वाले दिनेश पन्त,पुनीत शर्मा और विनोद दुबे ने क्या कमाल के गाने लिखे हैं जिसको हारमोनियम, गिटार,शहनाई, सितार,सैक्सोफोन, मैन्डोलिन, सारंगी और दो तारा जैसे वाद्य यंत्रों पर संगीतकार शांतनु मोइत्रा,अभिषेक चोपड़ा और अनुज गर्ग ने गुन कर मिका, पीयूष मिश्रा,विनोद दुबे,तोची रैना,भंवरी के आवाज़ से एक जादू सा बिखेर डाला है।

भारत मे ऑनलाइन प्लेटफार्म पर पहली बार इतनी बड़े बजट की फ़िल्म रिलीज हुई है तो घर बैठे अमिताभ-आयुष्मान-विजय राज को देखने मे कोई बुराई भी नही।


अभिषेक प्रकाश द्वारा लिखित

अभिषेक प्रकाश बायोग्राफी !

नाम : अभिषेक प्रकाश
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

लेखक, फ़िल्म समीक्षक

पूर्व में आकाशवाणी वाराणसी में कार्यरत ।

वर्तमान में-  डिप्टी सुपरटैंडेंट ऑफ़ पुलिस , उत्तर प्रदेश 

संपर्क- prakashabhishek21@gmail.com

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

Amit

13/Jun/2020
Abhishek you r jenious. And always write with heart...

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.