आज भी वैश्विक पटल पर हम देखते हैं तो सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक गैर-बराबरी के प्रश्न सदियों से अब भी वैसे ही मौजूद हैं सिर्फ वर्तमान में इनके स्वरुप, बदली टेकनोलोजी की चासनी में लिपट, मष्तिष्क पर नियन्त्रण कर एकांत के अंधकार की काल कोठारी में फेंक दिए गए हैं जहाँ से निकलकर सत्ता के गिलियारों से टकराना दिन प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा हैं | ऐसे ही कुछ कहे-अनकहे सवालों को अपनी कविताओं में पिरो रहीं हैं 'आशिका शिवांगी सिंह ' |
तुम्हारे नाम में क्या रखा है....?
तुम्हारे नाम में क्या रखा है....?
कुछ नहीं, कुछ नहीं रखा था नाम में जब तक धरती पर 'रेंगता' था
अब रेंगता हूँ "समाज" में..... तुम्हारी मेहरबानी है
मेरे नाम, सिर्फ़ नाम में क्या नहीं रखा है...
मेरे नाम में छिपा है
किस जिले के किस इलाके से हूँ मैं
किस मोहल्ले में बिलखता आया हूँ
मेरी गली किस "धार्मिक इमारत" के सजदे में रहती है
मेरे नाम में तुम्हारी 'जड़' सच्चाइयाँ रखी हैं
मेरे नाम में अदब, तहज़ीब, खान-पान, तीज-त्यौहार, बढ़ई के औज़ार
साड़ी के गोटे में छिपी ज़ात
'बोली' के लहज़े में पुरखों की हर बात
मेरे नाम को पहनाया है तुमने पायजामा
कहा है तुमने कभी नक्सली, कभी देशद्रोही जमात
औे' तुम पूछते हो मेरे नाम में क्या रखा है....?
मेरे नाम ने स्कूल की आखिरी बेंच मेरे नाम की है
पानी की एक टंकी, खेलने का मैदान
निकलने का समय तय किया है
कैसी किताबें मेरी आँखें पढ़ेंगी
रात को लैंम्प में फिर से मिट्टी का तेल डलेगा या आ जाएगी बिजली कुछ हफ़्तों बाद
मेरे जीवन की संभावनाएँ हैं
ये मेरे नाम में छिपे बताते हैं कुछ दानें
अस्सी प्रतिशत 'गटर', दस प्रतिशत 'बिरयानी वाले' या बचे दस प्रतिशत 'ऊँची कुर्सी पर खोखले दिमाग़' के ताने
औ' तुम पूछते हो मुझसे मेरे नाम में क्या रखा है...?
नाम बताने भर से रॉड से पीटा जाऊँगा
पेट भरने के लिए "आधार" छप जाऊँगा
फटी मैली शर्ट पर थूक जम जाएगा
मैं, मेरे नाम भर से... जिस मिट्टी में जन्म लिया उसी का क़ातिल बन जाऊँगा
ब्याह में शहनाई बजेगी, घोड़ी पर चढ़ा जाएगा
या सेहरा उतारकर किसी का जूता चूमा जाएगा
एक जानवर के 'पॉलिटिकल प्यार' में मेरी खाल को काढ़ लिया जाएगा
चलती ट्रेन से उतारकर पटरी पर फेंका जाएगा
मैं कहाँ तक के बंजर का मालिक हूँ
ये मेरे नाम से पहचाना जाएगा
औ' तुम पूछते हो मुझसे मेरे नाम में क्या रखा है..?
मैं बताता हूँ मेरे नाम में क्या-क्या रखा है
मेरे नाम में रिसता लहू 'इंकलाब' की चाह रखता है
जहान भर की कोशिशें कर लो
नाम पर मेरे कालिखें पोत दो
लाकर धार दार चाकू मेरे नाम के पेट-पीठ में गोद दो
तुम्हारे चाकू से लिपटा मेरा नाम...
मेरे नाम में तुम्हारे शोषण का पूरा इतिहास रखा है
तुम पूछते हो मेरे नाम में क्या रखा है...?
गलत पूछते हो.... पूछो मुझसे
तुम्हारे नाम में क्या नहीं रखा है...?
मेरी लड़कियों तुम पढ़ो
मेरी लड़कियों तुम पढ़ो
सिर्फ़ इसीलिए नहीं कि आज के वक़्त में शादी के लिए लड़कों को चाहिए एक पढ़ी-लिखी लड़की
सिर्फ़ इसीलिए नहीं कि रसोई के सामान को खरीदने में हो तुम्हें सहूलियत
तुम पढ़ो... इसीलिए ताकि तुम सवाल कर सको
तुम जवाब दे सको
तुम स्वतंत्र रह सको
उत्तर में बसी लड़कियों तुम पढ़ो
कि पढ़ने से ही सियासतदानों के मंसूबे समझ सकोगी
अपनी घाटी में चहक सकोगी आज़ादी के दुपट्टे लिए
तुम पढ़ो ताकि लोगों का भ्रम टूटे कि घाटी के लोग होते हैं 'देशद्रोही'
मेरी लड़कियों तुम पढ़ो
दक्षिण में खेलती लड़कियों पढ़ो
कि तुम्हारे पढ़ने से ही दक्षिण गंगा होगी साफ़
लड़ सकोगी ख़ुद के लिए
चुन सकोगी अपना प्रेमी
तुम सत्ता का रुख भी बदल सकोगी
मेरी लड़कियों तुम पढ़ो
पूरब की लड़कियों पढ़ो
तुम्हें पढ़ना है हर ज़ुल्मो सितम के महल तोड़ने के लिए
सिर्फ चाय की पत्तियाँ नहीं तोड़नी हैं
तुम्हें तोड़नी है पितृसत्ता की रीढ़
लड़कियों पढ़ो कि तुम्हारे पढ़ने से सतबेहनें ताज़ी हवा ले पाएँगी
मेरी लड़कियों तुम पढ़ो
पश्चिम में रेत के ढेरों में दबी लड़कियों पढ़ो
तुम्हें पढ़ना है ताकि हाथ पीले ना हो सकें तुम्हारे उस उम्र में जिस उम्र में होती है बच्ची को माँ की ज़रूरत
तुम पढ़ो ताकि तुम्हारी आने वाली पीढ़ियाँ तुम्हें दबा ना सकें, तुम्हें गवार ना कह सकें, तुम्हें छेक ना सके घर में मत लेने से
मेरी लड़कियों...
मेरे भारत की लड़कियों
तुम पढ़ो... और जो कोई ना पढ़ने दे तुम्हें तो छीन लो पढ़ने के सभी अवसर
लड़ जाओ अपने हक़ों के लिए
पढ़ो कि तुम्हारे पढ़ने से इंकलाब आएगा
तुम्हारे पढ़ने से क्रांति आएगी
तुम्हारे पढ़ने से ही इस देश में आएगा वो दौर
जो कभी नहीं लाया गया है तुम्हें दबा कर
तुम्हारे पढ़ने से सूखे हो चुके रेगिस्तानों में फूल उगेंगे।
जाना एक लंबी प्रक्रिया है
किसी के जीवन में से जाने की क्रिया
कभी-भी बहुत अचानक नहीं होती
पूरी एक प्रक्रिया होती है जाने की
जैसे किसी ककून में से एक दिन तितली निकलकर उड़ जाती है।