मानवीय करुणा का उच्च शिखर है परसाई का व्यंग्य: आलेख (सुरेश क़ांत)
सुरेश कान्त 628 11/18/2018 12:00:00 AM
जीवन की व्याख्या के लिए एक विचारधारा की अनिवार्यता बताते हुए परसाई लिखते हैं, “एक ही बात की व्याख्या भिन्न–भिन्न लोगों के लिए भिन्न–भिन्न होती है. इसलिए एक विचारधारा जरूरी है, जिससे जीवन का ठीक विश्लेषण हो सके और ठीक निष्कर्षों पर पहुंचा जा सके. इसके बिना लेखक गलत निष्कर्षों का शिकार हो जाता है. मेरा विश्वास मार्क्सवाद में है. यहीं से प्रतिबद्ध लेखन का विवादास्पद प्रश्न खड़ा हो जाता है. प्रतिबद्ध लेखन को जो पार्टी–लेखन मानते हैं, वे अनजाने या जान–बूझकर भूल करते हैं. प्रतिबद्धता एक गहरी चीज है, जो इस बात से तय होती है कि समाज में जो द्वंद्व है, उसमें लेखक किस तरफ खड़ा है—पीड़ितों के साथ या पीड़कों के साथ. कोई यह स्वीकार नहीं करेगा कि वह पीड़कों के साथ है. पर यदि वह अपने को किनारे की या बीच की स्थिति में रख लेता है, तो निश्चित रूप से पीड़कों का साथ देता है. अपने पक्ष के निर्वाचन से कोई बचाव नहीं, सिवा छल के. …जो जीवन से तटस्थ है, वह व्यंग्य–लेखक नहीं, जोकर है.”