भावनात्मक संवेदनाओं से खेलना, गिरबी रखना या किसी भी कीमत पर खरीदना किसी वस्तु या खिलौने की तरह और तब तक खेलना जब तक खुद का जी चाहे फिर चाहे किसी लेस्बियन स्त्री की दमित इच्छाएं हों या किसी कामुक पुरुष की वासना कोई फर्क नहीं पड़ता | शोषित या कमजोर को हमेशा ही आर्थिक बराबरी का भरोसा ही मिला है आर्थिक बराबरी नहीं इसी वर्गीय चरित्र का खुला बयान है ‘अमृता ठाकुर’ की कहानी ….| – संपादक
अपने-अपने सच
अमृता ठाकुर
जन्म – बिहार
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित |
दूरदर्शन में विषय विशेषज्ञ के तौर पर स्वतंत्र रूप से कार्यरत
विगत १३ वर्षों से पत्रकारिता में सक्रीय
सम्प्रति – स्वतंत्र पत्रिकारिता
318 मीडिया अपार्टमेन्ट, अभय खंड – 4
इन्द्रापुरम, गाज़ियाबाद
फोन – 09868878818
मै नीतू के तर्क को समझने की कोशिश कर रही थी । उसकी बातें बिल्कुल टू दी पोइंट होती है, जहां किसी गहरी सोच की गुंजाइश नहीं रहती।
“ लेकिन नीतू ! क्या सच उतना ही होता है जहां तक हमें नजर आता है ? या सच उससे भी कहीं आगे की चीज़ है। या सच व्यक्ति सापेक्ष या संदर्भ सापेक्ष होता है। कई बार हम किसी चीज को वहीं तक देख पाते जहां तक हमारी सोच का दायरा होता है, उस दायरे के बाहर अगर उस चीज का वजूद होता तो हम उसे गलत ठहरा देते । पर इसका अर्थ ये तो नहीं की उस चीज का विस्तार या वजूद वहीं तक होता है, जहां तक हमारी सोच का दायरा होता है। सच का अस्तित्व उसके आगे भी तो है ही, हम मानें या ना मानें ।”
”पता नहीं तुम कहां से कहां पहुंच जाती हो । इसमें ज्यादा सोचने के लिए कुछ है ही नहीं । सीधी सी बात है ,कल्पना बहुत शातिर है, पूरा प्लान बना करके एक्ट कर रही है। तुम उसमें ज्यादा दर्शन ढूंढ रही हो । मस्त रहो यार । फालतू का सारा लफड़ा है। वो अपने आप निपट लेंगे,छोडो ये सब, अपना सिर क्यों खपा रही हो ,बताओं आज शाम का क्या प्लान है।“
“मै संजना के मामले में सिर खपा रही हूं ? तुम ही जब देखो फोन करके बुला लेती हो ,आ जा यार संजना को हमारे एडवाइज की बहुत जरूरत है, तो कभी कल्पना ने ये कर दिया ,वो कर दिया। यार! मुझे लगता है कि मै कैसे बात को समझे बिना, किसी एक का साइड ले लूं । दूसरे के साथ तो ज्यादती होगी ना ?” आजकल ऐसी कोई शाम नहीं गुजर रही थी, जब कल्पना और संजना के हॉट-टॉपिक पर, हम दोनों के बीच बहस ना हुई हो। और आज तो वो कुछ ज्यादा ही मेरे दिमाग पर छाई हुई थी ,जितनी बार उसे देखती उसके व्यक्तित्व का अलग ही पहलू मुझे नजर आता।
दिल्ली की ठंड और गरमी दोनो ही जानलेवा होती है। इन दिनों ठंड से पूरा उत्तर भारत ठिठुर रहा था, रही सही कसर बिन मौसम की बरसात पूरी कर रही थी । पर काम तो मौसम के हिसाब से चलता नही ना! संगठन की मिटिंग को टाला भी तो नहीं जा सकता ,पिछले हफ्ते भी नहीं गई थी, इस बार नहीं गई तो… संगठन का प्रोग्राम भी आने वाला है, चली ही जाती तो ठीक रहता । मै अपने मन को कड़ा करते हुए सड़क की तरफ चल दी। अब थोड़ी बारिश भी कम होती लग रही थी। रिक्शा पकड़ लेती हूं, मेट्रो स्टेशन तक की ही तकलीफ है, पर कहीं रिक्शा भी तो नही दिख रहा । इतने में तेजी से पानी उड़ाते हुई एक गाड़ी ने बिल्कुल मेरे सामने आकर ब्रेक लगाया। ”दिखता नही भाई !” बहुत तेज गुस्सा आया ,पर मै गाड़ी की तरफ घूर कर चुप हो गई। गाड़ी से एक महिला बाहर निकली । तेजी से बिना मेरी तरफ देखे आगे बढ गई। टाईट सी जीन्स ,थोड़ा लम्बा कोट । ओवरकोट नहीं कहेंगे उसे, ओवरकोट और शार्ट कोर्ट के बीच की कोई चीज़ और चेहरे को मफलर नूमा कपड़े से लपेटा हुआ था । वो महिला काफी स्मार्ट लगी । पर चाल ढाल से ऐसा लगा कि इसे कहीं देखा तो जरूर है ,पर कहां ? उसके ढ़ंके हुए चेहरे में आंखें ही एकमा़त्र थी जो खुली हुईं थी और आंखे बता रहीं थी कि वो कल्पना ही है । ये कल्पना ! फिर वो कल्पना कौन थी जो मुझे पंद्रह दिन पहले ,छत पर मिली थी। बालों को बिखेरे हुए ,घुटनों से काफी ऊपर तक का एक कट स्लवीस गाउन पहनी हुई , और कट भी ऐसा कि हाथ उठाती थी तो आस पास सौ मीटर तक खडे लोगो को भी पता चल जा रहा था कि उसने गाउन के अलावा अंदर कुछ नहीं पहन रखा है। संजना से गुत्था-मुत्था हो रही थी वो शायद संजना से मोबाइल छिनने की कोशिश कर रही थी । आते जाते लोग थेाड़े अचंभित हो कर उनकी तरफ देख रहे थे। मैने उसे संजना से अलग करने की कोशिश की ,पर उसकी पकड़ इतनी मजबूत होगी इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी । नीतू जैसी लम्बी चैड़ी औरत भी, संजना को उसके गिरफ्त से छुड़ाने में असफल रही ,उसने तो गुस्से में आ कर कल्पना को दो चार थप्पड़ भी लगा दिए । ऐसे में मुझे एकमा़त्र रास्ता सूझा कि उस पर साइक्लोजिकल प्रेशर डालूं । पता नहीं क्यों लगा कि वो मेरी बात नही टालेगी ।
“कल्पना ,संजना को छोड़ दो ।”
“नहीं दीदी मै उसको नहीं छोड़ेगी ।”
“कल्पना बच्चे! उसको छोड़ दो ,दूर हट कर बात करते हैं।” हालांकि मेरी उम्र और उसकी उम्र में कुछ ख़ास फर्क नहीं था । पर अपने और उसके बीच एक अलग तरह का संवाद शुरू करने के लिए मुझे जरूरी लगा कि मै उससे एक दूसरे धरातल पर बात करुं ।“
“तुम मुझे बताओ कि क्या बात है । फिर आराम से देखते हैं न रास्ता क्या निकलता है ।”
“दीदी आप नहीं जानती इसने मेरे साथ क्या किया ।”
“मुझे मालूम है।“
“दीदी इसने मेरे साथ गंदा काम किया है आप नहीं जानती । “कल्पना ने अभी भी संजना को नहीं छोड़ा था । लेकिन मुझे महसूस हो रहा था कि मेरे बात करने से उसकी पकड ढीली पड़ती जा रही है।उ सने संजना को छोड़ दिया। मुझसे लिपट कर रोने लगी।
दीदी हमको कुछ पता नहीं हो रहा है ,मै क्या करूं ?
google से साभार
मैं समझ नही पा रही थी, उसे समझाऊं तो समझाऊं क्या, सिवाए इस रटे रटाए जुमले के कल्पना अपना नहीं बच्चों के बारे में सोचो । इस तरह की तुम हरकतें करती हो कभी कहती हो छत से कूद जाऊंगी ,कभी कुछ , कभी कुछ । ऐसा कैसे चलेगा । तुम्हारे बच्चों का क्या होगा। पर जैसे मेरी बातें कल्पना के कान तक पहुंच ही नहीं रही थी । वो अपने ही धुन में बड़बड़ाई जा रही थी इसने मेरी ज़िंदगी बर्बाद करदी। इसको छोड़ूंगी नहीं। काफी देर तक वो मुझे पकड़ कर रोती रही। शाम के वक्त, सोसायटी की छत पर लोगों का अच्छा जमावड़ा था। कुछ दिनों से इवनिंग वाक करने वाले बुजुर्गों के लिए छत, पसंदीदा जगह बनती जा रही थी। कुछ मजबूरी भी थी, नीचे गाड़ियों के पार्किंग के बाद, इतनी जगह कहां की कोई चैन से टहल सके। और सोसायटी से बाहर निकल कर घूमना, यानी चोर उचक्कों को खुला आमंत्रण देना है। जो भी वहां से गुजर रहा था एक नजर कल्पना पर, एक नजर मुझ पर डालकर आगे निकल जा रहा था। अक्षत के दादाजी ,कल्पना को देखकर रुक गए। गुस्से में एक नजर कल्पना पर डाला, कुछ सोच रहे थे, फिर ’डिस्गस्टिंग’ कह कर आगे निकल गएं। कुछ महिलाएं मुझे देख, पास आ कर पूछने लगी, क्या हो गया इसे ? क्यों रो रही है ? उनकी जिज्ञासा उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी,जिसमें सहानुभूति लेशमात्र भी नहीं थी। गायित्री ने तो आंखेां से ही मुझे इशारा कर दिया, ये ऐसी ही है, निकल लो इसी में तुम्हारी बेहतरी है। मै काफी देर तक कोशिश करती रही कि वो शांत हो जाए, कम से कम घर जाकर ढंग के कपड़े तो पहन ले, पर उसका कहना था, संजना उसे घर में घुसने नही देगी । “चलो मैं चलती हूं, तुम्हारे साथ।“ “नहीं दीदी आप रहने दो ।“ मै थक हार के घर वापिस लौट आई । बाद में सुना कि वो संजना के घर के दरवाजे़ केा तोड़कर अंदर आ गई । ”दीदी जी! रिक्शा चाहिए क्या ?” रिक्शे वाले की घंटी से अचानक मै अपनी तन्द्रा से जागी । ”हां! भइया मेट्रो स्टेशन चलोगे क्या ?” अभी मेरे पास इतना वक्त भी नही था कि मै उससे किराए के लिए बहस करूं। रिक्शे पर बैठने के बाद भी कल्पना ही मेरे जेहन में छाई रही।
कल्पना का पूरा व्यक्तित्व एक अनबूझ पहेली सा था मेरे लिए । सच कहूं तो जब पहली बार मैने उसे देखा था तभी से उसे समझने का एक आकर्षण मेरे मन था । कल्पना से मैं पहली बार आज से करीब पांच साल पहले मिली थी ,लेकिन तब की और अब की कल्पना में जमीन आसमान का अंतर था ,या शायद कल्पना यही थी मै ही उसे ठीक से समझ नहीं पाई थी ,पर क्या अब ठीक से उसे समझ पा रही हूं?
उन दिनों बच्चे छोटे थे और एक हेल्पर की मुझे सख्त जरूरत थी , उसी दौरान मेरी मुलाकात कल्पना से हुई । कुछ उसकी जरूरतों ने कुछ मेरी जरूरतों ने हमें आपस मे मिलवा दिया था । एक प्लेसमेन्ट ऐजेन्सी वाला उसे लेकर घर आया था । ऐजेन्सी वाले से औपचारिकताएं पूरी करने के बाद जब मैने कल्पना की तरफ रुख किया , उत्सुकता व जोश से उसकी आंखें चमक रहीं थी । उसकी आंखों में कुछ अलग बात थी।
”क्या क्या काम कर सकती हो ?“
”दीदी हम सब काम कर लूंगी। हां! खाना जैसा आप लोग खाती पता नहीं वैसा बना सकेगी की नही ? “कल्पना बोल चाल के अपने बंगाली लहजे को दिल्लियाई रंग देने की असफल कोशिश कर रही थी।
“चावल, दाल, रोटी तो बनाना आता है ना! बाकि तो लोग सीख ही जाते हैं ,तुम्हें भी आ जाएगा । दूसरे काम मेरे लिए इतना इम्पोर्टेंट भी नहीं है ,बस बच्चों का ध्यान ठीक से रखना । खासतौर पर बेटी का, बिल्कुल खाना नहीं खाना चाहती है।
” दीदी तुम चिन्ता मत कोरों ।“ कल्पना झट बिटिया को गोद में उठा कर तुतलाती जबान में उससे बात करने लगी।
ये कल्पना से मेरी पहली मुलाकात थी । कुछ अलग बात तो थी उसमें , क्या थी वो मै समझ नहीं पा रही थी । सांवला सा बंगाली चेहरा, तीखी नाक कमर तक बाल, और गदराया बदन। उसे देख कर उम्र का अंदाज लगाना इतना आसान नहीं था। तीस के आस पास लग रही थी ,लेकिन चेहरे पर एक अल्हड़पन था।
धीरे धीरे कल्पना हमारे घर में घुल मिल गई । सचमुच, मानना पड़ेगा, बेटी को खाना खिलाने के पीछे तो वो ऐसी पड़ती कि सारी सोसायटी खाने की थाली लिए हुए घूम जाती , जहां मौका मिलता उसके मूंह में कौर डाल कर ही उसे चैन आता । लेकिन बेटे के साथ उसका छत्तीस़ का आंकड़ा था । अक्सर उसे किसी न किसी बात पर छेड़ती थी , और वह उस पर चिल्लाता रहता। मै कल्पना को समझा समझा कर थक गई थी ”लड़का है ,ऐसे उससे छेड़ छाड़ मत करो तुम्ंहारी इज्जत नही करेगा “ पर कल्पना को मेरी इन बातों का कोई असर पड़ता नहीं दिखता था। कहती इज्जत न करता है तो न करे, कोई बात नही ,मुझे ऐसे ही अच्छा लगता है। कल्पना के आने के बाद मैं घर को लेकर निश्चिंत हो गई थी , मेरी एक बड़ी ज़िम्मेदारी को कल्पना ने अपने कंधों पर ले लिया था।
खाली वक्त में कल्पना के पास बहुत सी बातें होती थी मसलन् उसके गांव वाले घर मे कौन कौन है, वहां की समस्याएं ,घर छोड़कर उसे क्यों इतनी दूर काम करने आना पड़ा । पति से जुड़ी यादें, ससुर के प्रति नाराज़गी । कल्पना के पति की मृत्यु किसी बीमारी से हो गई थी । ऐसा उसने मुझे बताया था। बीमारी क्या थी उसके बारे में स्पष्ट नहीं बताती थी, या शायद उसे पता ही नहीं था कि बीमारी क्या थी। पति की मृत्यु के बाद ससुर ने मकान हथिया लिया था ,वो और उसके दो बेटे सड़क पर आ गए थे। कल्पना अपने बेटों को किसी पहचान वाले के घर पर छोड़ आई थी, पर इस शर्त पर कि बच्चों की पढ़ाई लिखाई और खाना कपड़ा का पैसा, वो हर महीनें भेजती रहेगी । उसके संघर्ष को मै मन ही मन सराहा करती , और हौंसला देती कि एक दिन उसका संघर्ष रंग लाएगा , उसके बच्चे पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ें हो जाएगें । पर कई बार मैने गौर किया जब मै इस तरह की बातें उससे कर रही होती, तो लगता कि मेरी बातें दीवार से टकरा कर लैाट आ रहीं है । अपनी बात कहने के बाद, कल्पना का दिमाग किसी और उधेड़ बुन में लग जाता । ”कल्पना तुमने अपना पैसा घर भेजा ? “
कल्पना का जवाब आता “ दीदी ऐजन्सी वालें का फोन आएगा तो बोल दीजिएगा कल्पना नौकरी छोड़ कर चली गई।”
“क्यों ? ”
बस बोल देना ।
ऐसे कैसे कह दें ?
अरे दीदी आप नहीं जानती, ये ऐजेन्सी वाला सब बहुत गंदा लोग होता हैं । इसका मालिक हमको बोला , मेरे साथ सो जा।
शादीशुदा है ?
हाँ ! पर शायद बीबी घर पर नहीं थी ।
फिर ?
हम भी बोल दिए, ठीक है सोऊंगी ,पर पहले मेरे साथ शादी मना ।
सही बात है। अगर शादी के लिए कोई तैयार हो जाए तो ?
अरे कहां दीदी, सब बस सोना चाहते हैं ,शादी वादी काईे बोलता नहीं। आदमी लोग का सारा प्यार पैरों के बीच ही होता है। उधर का काम हो गया तो बस सब प्यार मोहब्बत मिट्टी में । मै उसकी बेबाकी से थेाड़ा सकपका गई।
एक दोपहर ,मै अपना काम निपटा के लंच के बारे में सोच ही रही थी कि बेटी का रोते हुए फोन आया ’मै घर पर अकेली हूं मुझे डर लग रहा है।’ पता चला कि बेटा किसी के घर खेलने गया हुआ है और कल्पना का पिछले एक घंटे से कुछ पता नहीं । बेटी को सोता हुआ छोड़ वो कहीं चली गई थी । तुरंत समझ नहीं आया क्या करूं ,कल्पना पर गुस्सा भी आ रहा था, इतनी गैरजिंम्मेदाराना हरकत उसने क्यों की ,वहीं संदेह भी हो रहा था, काम छोड़कर चली तो नहीं गई, कहीं ज्यादा पैसे की नौकरी मिल गई हो। चली गई तो क्या होगा ? कैसे मै घर बाहर दोनो मैनेज कर पाऊंगी। मन की तो वो स्थिति थी कि सामने अगर साक्षात ईश्वर के दर्शन हो जाते तो पहली और आखिरी मनोकामना यही होती कि एक मेड दिला दो। ’दो दिन के बाद तो सास-ससूर भी आने वाले हैं, कैसे कर पाऊंगी चार वक्त का खाना, बच्चे, ऑफिस ,हे! ईश्वर मेरा क्या होगा ’मै मन ही मन बडबड़ाई। अभी क्या करूं,ऑफिस से छुट्टी ले के चली जाऊं ? आधे घंटे बाद मिटिंग होने वाली है, छुट्टी कैसे मिलेगी। विनय को बोलूं ? वो तो, तुम्हारी समस्या है, खुद डील करो, कह कर पल्ला झाड़ लेगा बल्कि दो चार बातें भी सुना देगा, अंजान औरत के भरोसें बच्चों को छोड़ कर आती हो, ये और वो , उससे तो बोलना बेकार है। फटाफट पड़ोसन को फोन किया वही एकमात्र सहारा लगी। फिलहाल की समस्या तो पड़ोसी ने सोल्व कर दी, बेटी को अपने घर ले गई । उसने ही बताया कि कल्पना को उसने एक घंटे पहले किसी बाईक वाले से बात करते हुए देखा था । मै सोच में पड़ गई आखि़र कौन हो सकता है ? शायद कोई रिश्तेदार । पर बाईक में था इसका मतलब कोई लोकल रहा होगा । शायद ऐजेंसी वाला होगा । एक घंटे बाद पता चला कि कल्पना लौट आई । मेरी जान में जान आई । घर लौटने पर उसे प्यार से बुलाकर पुछा । गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन मौके की नजाकत यही कह रही थी कि अहाना गुस्सा पी लो इसी में तुम्हारी भलाई है। पुछने पर उसने बताया कि बच्चे को फोन करने गई थी, बच्चा घर पर नही था इसलिए इतना वक्त लग गया । बात आई गई। लेकिन अब अक्सर कल्पना फोन के नाम पर जाती और घंटों बाद लौटती और हर बार यही जवाब होता कि बच्चा घर पर नही था ,या दो तीन लोगों से बात करनी थी ,फलां घर पर नहीं था इसलिए देर हो गई ।
आफिस में काम का प्रेशर लगातार बढता जा रहा था और वहीं कल्पना का घर से बाहर रहने का सिलसिला भी बढता जा रहा था । मै समझ नहीं पा रही थी कि उसे कंट्रोल कैसे करूं ,नाराज हो कर भी देख लिया था, प्यार से समझा कर भी देख लिया था, पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। अब कल्पना सोसायटी मे एक चिर परिचित शख्सियत हो गई थी । लेकिन मैने गौर किया कि अक्सर गार्ड ,सफाई करने वाले उसका जिक्र बड़ी दबी सी मुस्कुराहट के साथ करते ।
“ये मर्द जात अपनी आदतों से बाज नहीं आएगें, सोसायटी का बड़ा प्रेसिडेंट बना फिरता है, लेकिन औरतों को लेकर इसकी सेाच कितनी घटिया है। शाम को घर में ही घुसते ही नीतू की आवाज सुनाई पड़ी । विनय के साथ सोसायटी की राजनीति पर उसकी बहस चल रही थी। नीतू एकमात्र ऐसी पड़ोसन थी, जिसकी कम्पनी मुझे कम्फर्टेबल लगती थी । बल्कि अब तो वो फैमिली फ्रेण्ड बन गई थी। उसे विचारों से प्रोग्रेसिव कहा जा सकता है। लेसबियन रिलेशन पर उसने शोध कर रखा है, कई साल विदेश में रह चुकी है और सबसे बड़ी बात अपनी शर्तो पर जीने वाली औरत है। अक्सर सोसायटी में महिलाओं को अपने परिवार या पति से कोई समस्या आती थी तो उसके घर का ही रुख करती थी । यही वजह है कि सोसायटी के पतियों को वो खासी चुभती है। हड़बडा कर आने वाले अपने ख़ास अंदाज में वो आज भी आई थी,पर मै मिली नही ंतो विनय से बातचीत में डूब गई । मुझे देखते ही जैसे
उसे याद आया कि वो यहां आई क्यों थी।
आहाना यार चलना पड़ेगा , संजना को हेल्प की जरूरत है
“ अभी तो आई हूं , अभी तुम भी ना ! दूसरों के मामलें में टांग अड़ाए बिना चैन नहीं है ? और साथ में मुझे भी फंसाती हो, चलो। वैसे मुझे समझ नहीं आता कि तुम, ऐसे मामलों में टांग अड़ाने के लिए अपने अलावा मुझे इतना सुटेबल कैंडीडेट क्यों समझती हो । ठीक है , मै औरतों के अधिकारों के लिए आवाज उठाती हूं,लेकिन यहां तो मामला दो औरतों के बीच का है। इसमें कौन सी नारी के उत्पीडन को देखूंगी। ” मै चुटकी ले कर, मुस्कुराते हुए ,उसके साथ चल पड़ी । ”संजना को तुम्हारी जरूरत है। उस औरत ने उसका जीना मुश्किल कर रखा है। वो उसके मकान के चक्कर में है ,मै बता रही हूं।“
”यार ! मुझे समझ नहीं आ रहा । कल्पना संजना के यहां एक हेल्पर है केवल ,फिर ये कैसा रिलेशन है दोनो के बीच का कि एक हेल्पर से मालकिन घबरा रहीं है। दिक्कत है, निकाल बाहर करे । तुम्हें अजीब नहीं लग रहा ? और जैसे छत पर उस दिन कल्पना कह रही थी, कहीं का नहीं छोड़ा उसने मुझे । ऐसी बातें आदमी के बारे में एक औरत कहे, तो समझ में आता है लेकिन एक औरत दूसरे औरत के बारें में कहे, समझ नहीं आता ? “
संजना के घर का दृश्य ऐसा लग रहा था, जैसे जोर की आंधी आई हो । टेबल का सारा समान बिखरा पड़ा था। दरवाजा टूटा पड़ा था । तुफान के बाद की
शांति का मंजर साफ दिख रहा था।
“अए हए! ये क्या हो रखा है” नीतू, घर के टूटे सामान पर तौलती हुई नजर डाल कर बोली ।
“कहां हैं देवी ?”
संजना ने बंद कमरे की तरफ इशारा किया ।
“दरवाजा खोल ही नही रही “
”जरूरत क्या है, खुलवाने की । रहने दो अपने आप शांत हो कर बाहर आ जाएगी।“ पर जैसे संजना ने मेरी बात सुनी ही नही । फिर जा कर दरवाजा भडभड़ाने लगी । बड़बडाती रही ,“घुस गई है निकलती ही नहीं । मेरा घर है ,कमरा क्यों बंद किए हुए है। मेरा फोन भी अपने पास रखे हुए है ,पता नहीं किसे फोन कर रही होगी ।
और पता है इस खिड़की से कूद कर दूसरे कमरे में चली जाती है ,और वहां ड्रार में से मेरे सारे कागज निकाल कर देखती है ।“
“पर उसे पढना तो आता ही नही है।अरे यार ! तुम उसे क्यों प्रवोक कर रही हो, अपने आप निकल जाएगी ,हमेशा वहां थोड़ी ना रहेगी ।“ मुझे ऐसा महसूस हुआ कि संजना उसके कमरे में रहने से, बैचेन हो रही थी। बंद कमरे के बाहर चक्कर पे चक्कर लगाई जा रही थी।
“तुम्हे पता है, मेरी इतनी प्यारी दोस्त थी आस्ट्रिया में, इसने उससे भी मेरा रिश्ता खराब करवा दिया।”
“कैसे ?दोस्त इण्डिया आई थी क्या़ ?”
”नही,फोन आया था। फोन पर मै बात कर रही थी ,ये मैडम बस चिल्लाना शुरू कर दीं । बात के बीच में बार बार टोकी जा रही है। शी फेल्ट वेरी इंसलटेड, उसने कहा तुमने किसे रखा हुआ है ? हटाओ यहां से उसे। अर्चना को लगा मेरा रिलेशन है इसके साथ ,उसने फोन करना बंद कर दिया।“
“ओह! पर मुझे समझ नहीं आता, तुम्हे इससे इतनी प्राब्लम है, तो जाने के लिए क्यों नही कहती हो ?“
“मैने कई बार कहा है,कई बार तो सामान निकाल कर बाहर भी फेंक दिया है ,तब भी वापिस आ जाती है। मै तो बिल्कुल परेशान हो गई हूं ,मेरी लिखाई पढ़ाई सब बंद हो गयी है। मै क्या करू, मुझे कुछ समझ नही आ रहा है। तुम्ही समझाओ ना! तुम्हारी बात बहुत सुनती है।“
“हर बार थोड़ी ना सुनेगी। इसके बच्चे कहां हैं? वहीं गांव में हैं क्या?“
“अरे ! मैने इसके लिए क्या. क्या नहीं किया है ,इसके गांव गई , इसके बच्चों को ले कर आई । कितनी मुश्किल से वहां के एम एल ए से कहके बच्चों का एडमिशन मिशन स्कूल में करवाया । इतने पैसे मुझसे लेकर इसने अपने घर भेजे। फिर कहा कि मै गांव से लडकियां लाकर प्लेसमेंट एजेन्सी चलाऊंगी , मैने इसके लिए बकायदा एक कमरा खरीदा , जिसमें कंप्यूटर रखा, सब कुछ सुविधा दी, लेकिन किसी चीज में इसका मन नहीं लगता है। गांव भी जाती है तो उसका ध्यान वहां कम और मेरे ऊपर ज्यादा लगा रहता है। दस बार फोन करेगी । एक बार भी फोन नहीं उठाऊंगी तो, तुरन्त अपना काम छोड़कर यहां आ जाती है।”
संजना की बाते जारी थी और मेरे मन में बस एक ही सवाल घूम रहा था, आखिर इतना वो कल्पना के लिए क्यों कर रही है ,क्या इसका अपना कोई स्वार्थ नही है? मेरे जेहन में चल रहे इन सवालों ने और दौड़ लगाना शुरू कर दिया जब कल्पना कमरे को खोल कर बाहर निकली ,और निकलते ही संजना पर बरस पड़ी
“हां बहुत दिया है हमको ,पर ये भी तो बोलो, कितना लिया है हमसे, ये भी बताओ। दीदी ! क्या- क्या किया हमको, ये हम नही बोल सकती । छी ! बता दूं ? बौलो ? उसने जलती हुई आंखेां से संजना को देखते हुए बोला । अचानक उसकी नजर नीतू पर गई ,गुस्से में वो फिर कमरे में वापिस चली गई, शायद छत वाली शाम का नीतू पर आया गुस्सा अभी उतरा नही था। लेकिन जो कल्पना सुबह गाड़ी से उतरते हुए मुझे दिखी थी वो कल्पना ये नही थी। हम कुछ देर वहीं बैठे रहें फिर कुछ जरूरी काम का बहाना करके निकल आए, और कर भी क्या सकते थे, दोनो में से कोई भी समझने को तैयार नहीं था।
कुछेक दिन यूंही गुजर गए। मै अपने काम में मशगुल ,नीतू अपने । सोसायटी में भी कुछ शांति थी। संजना का जानवर प्रेम को लेकर जरूर कुछेक जगह से दबी जबान में शिकायतें आ रहीं थी । ’गली के कुत्ते को परकाया हुआ है ,सोसायटी में जगह जगह गंदा कर जाता हैं ।‘ इन शिकायतों की पोटली बांध संजना शाम को मेरे घर आ गई। ““मै रोज खुद इन कुत्तों का गंदा उठा कर फेंकती हूं, पता नहीं एक जानवर से लोगों को क्या दिक्कत हो रही है,किसी का न कुछ न लेता है न देता । अब बताओ उस कुतिया ने बच्चे दिए हैं तो बच्चे मारे मारे फिर रहे थे,मै उन्हें घर ले आई, इससे दूसरों को क्या दिक्कत होती है।” “ संजना वो कुत्ता सोसायटी में घुमता है लोग उससे डरते हैं।”
“लोग उससे डरते हैं तो ये तो, लोगों की दिक्कत है ना !, उसमें इस जानवर की क्या गलती है कि लोग उससे डरते हैं।”
”बात तो सही है। ऐसा करते हैं, मै भी कुछ पैसे मिलाती हूं, उसको इंजेक्शन लगवा देते है।” पर मै मन ही मन सोची शायद ये करने पर भी लोगों को शांति नहीं मिलेगी, उस कुत्ते का लोग विरोध करेंगे ही ,गली का कुत्ता जो ठहरा। पर मैने देख कि चाहे जानवर हो या इंसान संजना के मन में ‘क्लास‘ जैसी बात नहीं आती थी। सोसायटी के गार्ड, कूड़ेवाला ,कामवालियां सबके प्रति उसका व्यवहार बहुत दोस्ताना था। कहीं इसी व्यवहार के कारण उसके सिर पर कल्पना बैठ तो नहीं गई । नीतू शायद ठीक कह रही है । “कल्पना का क्या हाल है ?”
“कल्पना ठीक है, गांव गई है। कुछ लड़कियां वहां सें आने वाली हैं, उन्हीं को लेने । कुछ तो आईं हुई हैं, उनको भी काम पर लगाना है।”
”अब कल्पना का मूड कैसा है?“
“ठीक है । अहाना वो बहुत अकेली है। उसको कोई समझ नहीं पा रहा हैं। कभी- कभी तो कहती है, आप काम -वाम छोड़ दो, आराम से रहो मै कमा कर खिलाऊंगी। कभी- कभी पता नहीं उसे क्या हो जाता है।”
“अच्छा संजना! लोग कहते थे कि उसका कई आदमियों के साथ मामला चल रहा है। मैने भी कई बार अलग अलग आदमियों के साथ उसे देखा है,क्या कुछ ऐसा है। बल्कि जिस सहेली वीणा को इसने मेरे यहां अपनी जगह पर काम में रखा था ,वही बताती थी, पता नहीं कैसी अलग- अलग तरह की कहानी । बता रही थी कि एक बार ,वो पुलिया है ना ! वहां उससे थोड़ा आगे जाने पर, पेड़ों का झुरमुट है वहां,एक बार रात को किसी आदमी के साथ कल्पना गई थी । और जो कपड़े पहने हुए थे, वही उसने खोल कर बिछा दिया, और वहीं पर, शी मेड फिजिकल रिलेशन विथ दैट मैन । फिर कुछ छोकरों की नजर उनपे गई, उन्होंने शोर मचा दिया। अच्छा खासा सीन बन गया था,लोगो ने मार पीटा भी उन्हें। फिर ये बगल वाली सोसायटी में कोई बंदा है, मैरेड है ,पत्नी गांव में रहती है, उसके साथ भी उसका रिलेशन है। ये क्या है, सब ? फिर किसी ने मुझे बताया था कि जहां फोन करने जाती थी ,उस दुकान वाले का बाप, बेटा तो दिन में दुकान पर होता ही नहीं था ,उसके बाप के साथ जा कर सोती थी, वो उसे फ्री में फोन करने देता था । पता नहीं कितना सच है, कितना झूठ अरे ! जब कल्पना मेरे यहां काम करती थी, उन दिनों, एक बार जब वो अपने गांव गई हुई थी, रात को डेढ- दो बजे मेरे पास फोन आते थे- कल्पना कहां है? उसने मुझसे पैसे लिए थे कहा था मेरे साथ सोएगी। कैसी अजीब अजीब बातें करते थे। मै तो काफी डर गई थी,उन दिनों मै अकेली रहती थी, विनय यहां नहीं थे । मै और बच्चे बस। तो सोच सकती हो इतनी रात को इस तरह से फोन आना डराता तो है ही। हां! लेकिन जब से तुम्हारे यहां काम कर रही है, ये सब नहीं सुनने में आता । तुमने उसे सुधार दिया। उसका तो पूरा हुलिया ही बदल गया । संजना ने मेरी कहानी पर कोई टिप्पणी नहीं की। उसके चेहरे पर अजीब से भाव थे जिसे मै पढ़ नहीं पाईं । उसने बात बदलते हुए मुझसे पूछा “शाम को सोसायटी में दिवाली मेले का आयोजन है, आ रही हो ना? अरे हां ! एक बात भी तुमसे पूछनी थी ।“
“क्या ?“
“समय मिले तो, घर आना।“
“हां, देखती हूं । लंच के बाद,आऊंगी।“
मै लंच के बाद संजना के घर गई । संजना के घर पर अच्छी खासी चहल पहल थी , चार पांच लडकियां प्लेसमेंट के लिए आईं हुईं थी । जातें ही अच्छे नाश्ते से मेरा स्वागत हुआ। संजना के छोटे से घर में लड़कियां ही लडकियंा दिख रहीं थी। सब बिल्कुल रिलेक्स उन्हें देख कर लग ही नहीं रहा था कि वो प्लेसमेन्ट के लिए आईं है और संजना के साथ उनका रिश्ता नौकर मालिक का ही है। ये खासियत तो है संजना में ,मानना पड़ेगा। उसकी यही खासियत उसे दूसरों से अलग करती थी,और मुझे आकर्षित।उन लड़कियों में से एक लड़की ऐसी भी थी जिसके साथ तीन चार साल की बच्ची थी। बड़ी प्यारी बच्ची थी, पर बच्ची ठीक से चल नहीं पा रही थी। लड़खड़ाती हुई चल कर मेरे पास आई,और मेरी ऊंगलियों को पकड़ लिया। बच्ची के इस एक्शन पर किसी को भी प्यार आ जाता । उस बच्ची के पैर की हड्डियों में कुछ दिक्कत थी। ,संजना उसके ईलाज के बारे में मुझसे राय लेना चाहती थी बल्कि उसने बच्ची को ओर्थो के बड़े डाक्टर को एक बार दिखा भी दिया था।
”डाक्टर का खर्च किसने दिया ?“
“अरे! इसकी मां कहां से देगी ,नौकरी के लिए ही यहां आई है। किसी पहचान वाले के यहां रखुंगी ताकि इसका बच्चा भी पल जाए।“ कुछ देर बच्चे के साथ खेल कर मै घर आ गई। सच उस बच्चे के लिए मुझे भी कुछ करने की इच्छा हो रही थी।
दिवाली मेले में संजना सभी लड़कियों के साथ मौजूद थी। पर एक लड़की को वो कुछ ज्यादा ही अटेंशन देती नजर आई। उसके साथ बांहों में बांहे डाले हंसी ठिठोली करती हुइर्, चाट पकौड़ों के मजे ले रही थी। मुझे तो जैसे उसने पहचाना ही नहीं । मै चाह रही थी की इस दृश्य को नीतू भी देखे, शायद तब उसे समझ में आए कि मै कल्पना और संजना के मामले को एक नौकर और मालिक से परे क्यों देख रही हूं । मैने अगले दिन उसे इस बारे में बताया लेकिन उसका वही जवाब “नही यार कल्पना बहुत चालू चीज है, जो भी है रिलेशन लेकिन इस रिलेशन में वो संजना को एक्सप्लायट कर रही है।“
” नीतू कभी कभी तो लगता है कि तुम्हारा पास्ट लेफ्टिस्टों वाला रहा ही नही है। या वो कहते हैं न जो लेफ्टिस्ट इस आइडियोलाजी से निकलता है वो तो नार्मल आदमी से ज्यादा कट्टर कैपटलिस्ट हो जाते हंै। तुम ना ! मुझे वही लगने लगी हो । बस मालिकों की तरफ से सोचो । संजना एक्सप्लायट हो क्यों रही है? ये सवाल तुम्हारे दिमाग में कभी क्यों नहीं आता ? ऐसी क्या मजबूरी है कि वो चाहते हुए भी उससे पीछा नहीं छुड़ा पा रही है। नही यार !कहीं कुछ घालमेल है।”
“संजना के रिश्तेदारों ने उससे अपना रिलेशन खत्म कर लिया है। शायद इसी लिए क्योंकि वो नार्मल नही है, या कह सकती हो उनके हिसाब से नार्मल नही है। तुम्हें पता है ना कि वो लेसबियन है। तुमने भी देखा होगा कई बार अपनी बहन का जिक्र करते हुए वो कितनी भावूक हो जाती है। वो काफी अकेली है अहाना। शायद इसी का फायदा कल्पना ने उठाया है।”
”उस तरह से देखा जाए तो कल्पना भी तो अकेली है। बीस बाइस साल की उम्र्र में पति मर गया, और तुम तो जानती हो की बंगाली परिवारों में एक विधवा की जिंदगी क्या होती है। जवान लड़की दो बच्चे ,संजना के पास उसे भावनात्मक सुरक्षा मिली होगी । हम ये क्यों मान लेते हैं कि औरत है तो उसे, अपने शरीर की जरूरतों को अपने नियऩ्त्रण में रखना चाहिए , उसे जाहिर नही करना चाहिए । अगर ऐसा नहीं कर पा रही थी तो वो गलत है। बाइस तेइस साल की लड़की रही होगी उसका शरीर भी तो उसे बैचेन करता ही होगा ।”
”पति मरा कैसे ?”
“किसका ?”
”उं हूं,कल्पना का ,और किसका।”
”बताती थी कि उसके पति का एक वर्कशाप था। काफी बढ़ियां चलता था । दो एक नौकर चाकर भी थे। बिल्कुल सेठानी बना के रखता था। ये तो संजना भी बता रही थी । फिर पति को कोई बीमारी हो गई ,इलाज में दुकान वुकान सब बिक गया, पर पति बचा नहीं। एक घर था उसे भी ससूर ने कब्जा कर रखा है। उसे पड़ोसियों के सहारे बच्चों को छोड़कर यहां काम के लिए आना पड़ा।”
”तो उसे संजना से आर्थिक सुरक्षा मिल रही है,तुम्हारे अनुसार।”
”नहीं केवल आर्थिक सुरक्षा नहीं कहंुगी ,भावनात्मक और एक हद तक शारीरिक भी। मुझे लगता है,पुरुष के साथ संबंध बनाने में उसे हमेशा असुरक्षित महसूस होता होगा, अपनी जरूरत पूरी हो जाने के बाद कब उसे वो छोड़ के चला जाए, कोई भरोसा नहीं, शायद बच्चे भी आड़े आतें होगे। यहां ये सारी समस्या नहीं है । कल्पना उसी सुरक्षा की तलाश में भटक रही थी और संजना के मिलने पर उसे लग रहा है कि उसकी ये तलाश खत्म हो गई।“
“नहीं अहाना, मुझे इस रिश्ते में आर्थिक पक्ष ज्यादा स्ट्रांग लग रहा है।“
“चलो आर्थिक सुरक्षा ही सही । लेकिन ये आर्थिक सुरक्षा संजना क्यों उसे दे रही है? कुछ न कुछ इसके बदले में उसे भी तो मिल रहा होगा ।“
“हां !उसकी जरूरत पूरी होती होगी ।“
“तो अब उसे क्यों दूध की मक्खी की तरह निकालना चाहती है। मन भर गया है ?“
“तुम कल्पना की तरफ से हमेशा सोचती हो। यार! वो बहुत चालू है, वो संजना के मकान के पीछे है।“
“मतलब “
“संजना बता रही थी कि अब वो कह रही ह,ै मकान बेच कर उसमें से आधा पैसा उसे दे दे । संजना मकान बेचने का सोच रही है ।“
“ कल्पना मकान बेच कर पैसा मांग रही है और वो मकान बेचने को तैयार है, हद हो गई। कल्पना हिली हुई है कि संजना, कभी.कभी मेरी समझ में नहीं आता! चलो छोड़ो, लेटेस्ट बताओ।“
“कुछ नहीं कल्पना गांव से लौट कर आ गई है, उसके दोनों बच्चे भी आए हुए हैं।“
“मतलब फिलहाल सब शांति।गुड। यार हम लोग जब मिलते हैं हमेशा कल्पना और संजना की बात ही क्यों करते रहते हैं? हमारे पास कोई और टापिक नही है क्या ?
अच्छा बताओ ,वो क्या नाम है उसका ?अरे वो जो हमारा प्रेसिडेंट है, उसका क्या हाल है ?“
“मिस्टर गुप्ता बता रहे थे कि उसने एक और औरत कर रखी है। अपनी बीबी तो उसे गांव वाली लगती है ना! अक्सर वहीं रहता है ।“
“उसकी बीबी कौन सी है ? सोसायटी की आधी महिलाओं को तो मै जानती ही नही।“
“वो घर से निकलती ही कहां है। अच्छा यार मै चलती हूं।“
कई शाम संजना और कल्पना खुश खुश साथ नजर आए । कल्पना के बच्चे भी दूसरे बच्चों के साथ खेलते दिखते थे, साफ सुथरे ,करीने से बाल बनाए हुए। काफी दिन हो गए थे संजना से मुलाकात किए। मैने सोचा एक बार कल्पना के बच्चों से मिल कर आते हैं और संजना से भी। उस दिन कल्पना घर पर नही थी, बच्चे और संजना ही घर पर थे और हां! संजना के कुत्ते भी। कल्पना का बड़ा बेटा बारह साल का है ,संजना बता रही थी कि वो अभी भी अपने पापा की शर्ट को अपने साथ ले कर सोता है। छोटा बेटा जो उससे तीन चार साल छोटा , उसे अपने पापा का चेहरा भी ठीक से याद नहीं था। दोनो बच्चे किसी टूटे हुए खिलौने को मरम्मत करने में लगे हुए थे और संजना लैपटाप पर कुछ काम करने में। इधर उधर की बात के बाद कल्पना के मूड के बारे में उससे पूछा तो उसने कहा कि कल्पना ठीक है और वो सोच रही है कि इस मकान को बेच कर वो कल्पना के साथ रहे ।
”सच्ची में तुम यहां से जाने के बारे में सोच रही हो ?
”हां दो तीन लोग तो मकान देखने के लिए यहां आ भी चुके हंै।”
“और तुम्हारे इन तीनों कुत्तों का क्या होगा”
”एडोपशन के लिए ट्राइ कर रही हूं,किसी ने नहीं लिया तो अपने साथ ले जाऊंगी।“
“कल्पना इन्हें रखने के लिए तैयार हो गई है”
”हां। हालांकि उसे ये पसंद नहीं हैं,पर तैयार है।”
”पर कल्पना मेरे यहां रहती थी, तब तो उसे मेरे कुत्ते से बहुत प्यार था,अब क्यों नफरत है जानवरों से।”
”उसे जानवरों से नफरत नही है, मै इन कुत्तों को बहुत प्यार करती हूं इसलिए उसे इन कुत्तों से नफरत है। तुम कुत्तों की बात कर रही हो, मैने उसके बड़े बेटे को थोड़ा प्यार दुलार किया तो वो उस पर भी नाराज हो गई । उसे इतना डांटा, मारा कि वो छत से नीचे कूदने चला गया था। बड़ी मुश्किल से उस बच्चे को मैने समझाया। बार बार कह रहा था कि मुझे बाबा के पास जाना है, मुझे उनकी याद आती है कल्पना मुझे किसी के साथ शेयर नहीं कर सकती, चाहे उसका बच्चा ही क्यों न हो। बेचारी का मेरे अलावा और है कौन ? और देखो ये गार्ड कैसे हैं, कल्पना कितना ख्याल रखती थी इनका, जब भी बाजार जाती थी उनके लिए कुछ खाने का समान और फल ले आती थी, वही लोग आज मुझसे कह रहे थे कि आप कहंे तो हम उसे गेट के अंदर नहीं घुसने दें।“
”हूं , ”मै मन ही मन सोची, ये वफादारी उनकी मजबूरी है। पेट की ये मजबूरी, अपने लोगों का साथ देने की जगह उनके खिलाफ खड़ा कर देती हैं। सोसायटी वेलफेयर एसोसिएशन के अंदरूनी झगड़े अपने चरम पर थे। और संजना उसमें बढ़ चढ के हिस्सा ले रही थी। अपोजिशन ने उसके कुत्ता प्रेम को भी निशानें में ले रखा था, वहीं कल्पना ने भी, अपने और संजना के किस्से को उनके साथ शेयर करके संजना के खिलाफ अच्छी खासी जमीन बनाने में उनकी मदद कर दी थी।
अभी उन दोनों के बीच कैसा चल रहा ह,ै कुछ पता नहीं चल रहा था। मेरे इन्फोर्मेशन का मुख्य सोर्स नीतू कहीं बाहर गई हुई थी, मै भी कुछ दिनों से इतनी व्यस्त थी कि संजना कल्पना एपिसोड मेरे लिए गौण हो गया था । उस दिन रसोई में खाना बनाते हुए संजना के घर की तरफ से फिर शोर की अवाज सुनाई पड़ी। फिर लगता है, कुछ हुआ । मै अब इसमें टांग नहीं घुसाउंगी। कोई फायदा नहीं है ,न संजना ने सलाह माननी है न कल्पना ने। मै मन ही मन बड़बड़ाई ,हालाकिं छत वाल घटना के बाद से कल्पना से मेरी डायरेक्ट बात कभी नही हुई। कभी मिलती भी है तो बस नमस्ते दीदी करके चली जाती थी। मै अभी सोच ही रही थी कि इंटरकाम की घंटी घनघनाई । दूसरी तरफ संजना थी “अहाना यार पुलिस वालें आएं हुए हैं,ये जरा इन्हें समझाओ कितना परेशान कर दिया है मुझे कल्पना ने !,”
“हूं ,आती हूं।” ना चाहते हुए भी मै उसे मना नहीं कर पाई। हालांकि मेरे अपने सारे काम बीच में अटकें पड़े थे । सब्जी चुल्हे पर चढी, बस उबलने को तैयार बैठी थी, बच्चों की भूख लगी है कि आवाज तेज से तेज होती जा रही थी। विनय ने मेरी मनोस्थिति को समझते हुए कहा ”चले जाओ,पर ज्यादा उसके मामलें में टांग अड़ा के, अपने सिर पर कोई जिम्मेदारी मत ले लेना । पहले ही कम हैं क्या ?“ मै इन सब से बचती बचाती संजना के घर पहुंची। कल्पना और उसकी फिर शायद लड़ाई हुई थी, संजना ने ही पुलिस वालों को बुलाया था। मेरे वहां पहुंचने पर संजना को थोड़ी राहत महसूस हुई । तीन चार पुरुष पुलिसकर्मी और दो महिला पुलिसकर्मी बड़ी तन्मयता से संजना की बात सुन रहे थे और उनके चहरों से साफ झलक रहा था कि मसले को समझने के लिए उनके दिमाग को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है । उनकी सारी मशक्कत का लबोलोआब यही था कि कल्पना नाम की औरत दिमागी तौर पर बीमार है और वो संजना के लिए खतरनाक साबित हो सकती है । साथ ही “इस तरह की औरतें बहुत चालू होंती है, मैडम जी ! ऐसी औरतों से बच कर रहिए, इनका कोई भरोसा नहीं है। इसको तो ले जाते हैं; चार दिन लाकअप में रखते हैं दिमाग ठिकाने आ जाएगा “ जैसी मुफ्त सलाह और संात्वना भी पुलिस वालों की तरफ से संजना को मिल गई। लेडी कांस्टेबल कल्पना को खींच कर ले जाने की लगातार कोशिश कर रही थी और कल्पना अपनी पूरी ताकत लगाकर घर की चैखट को पकड़े हुई थी और लगातार कही जा रही थी ”हम तुमको कितना प्यार किया और तुम हमको घर से बाहर कर रही है,ज़बरदस्ती। हमको घर से बाहर नहीं कर सकती, हम नहीं जाएगी। ”बिखरे बाल, फटा हुआ कुर्ता, कल्पना का हुलिया देख कर उसके मनोस्थिति को समझना और जटिल लग रहा था। क्या एक बने बनाए प्लान को क्रियान्वित करने में इतनी वास्तविकता हो सकती है ? अगर प्लान के हिसाब से नहीं कर रही है तो ये इतना जुनून किस चीज के लिए है, संजना के लिए ? ईश्वर ही जाने। लेकिन जो भी था अभिनय या वास्तविकता, ये
दृश्य अपने आप में बहुत मार्मिक था । पुलिसिया जोर के सामने कल्पना की कहां चलने वाली थी, अच्छे अच्छे हिल जाते हैं, वो तो बेचारी एक औरत ही थी और वो भी उस वर्ग की जिसकी आवाज व्यवस्था के कानों तक पहंुचने से पहले गुम हो जाती है। पुलिस उसे थाने ले गई, संजना भी थाने साथ गई । संजना शायद काफी देर रात थाने से लौटी। मै सारी रात जिज्ञासा को दबाए हुए सोने की कोशिश करती रही । कहीं छुपा मन का अपराध भी सोने नहीं दे रहा था, कल्पना की गिड़गिडाहट पीछा कर रही थी । क्या मुझे कल्पना को बचाने की कोशिश करनी चाहिए थी ? शायद दुविधा की स्थिति थी, समझ नही पा रही थी, कौन सही है कौन गलत । लेकिन कई बार ऐसा भी तो हुआ है कि मै चाह कर भी सही का साथ नहीं दे पाई । एक झिझक। आगे बढकर सच के साथ खड़े होने की झिझक शायद मेरे पैरों को रोक लेती है, लगता, क्या कहेंगे लोग कितनी वाहियात सच के साथ खड़ी हो गई । लेकिन जो भी हा,े ऐसा न कर पाने से कितनी घुटन होती है । इस द्वंद के बीच कब नींद आ गई पता ही नही चला। सुबह होते ही मेरे जेहन पर संजना और कल्पना ही छाए रहें । पता नही क्या हुआ होगा कल्पना का ? उस गरीब की तरफ से कोई बोलने वाला भी तो नही है। जल्दी जल्दी अपने काम निपटा कर मैने संजना के घर का रुख किया। संजना अखबार फैला कर बैठी हुई थी , मकानों के रेट क्या चल रहे हैं ,उसका गहन अध्ययन हो रहा था। घर में शांति थी । “क्या कल्पना थाने में ही है ?”
“काहे का थाना। मैने रात को इतनी देर तक पूरी कार्यवाही करके उसकेा थाने में छोड़ कर आई, पता नहीं उसने पुलिस वालों को क्या पट्टी पढाई, सो गई होगी उनके साथ । मै उसे वहां छोड़ के आई दो घंटे बाद मैडम जी यहां मौजूद। अब तो मेरे ही खिलाफ पुलिस वाले बोल रहे हैं।”
“तुम शांति स,े बिना ज़ाहिर किए उससे दूरी क्यों नही बना रही हो। तुम्हारी समस्या का हल यही है।“
”अरे ! मै तो उससे बिल्कुल बात नही करती, पूरा इग्नोर मारती हूं । सोती भी अपने कुत्तों के साथ हूं । रात में चुपके से आके मेरे पैर के पास सो जाती है। मै तो पैर से धीरे धीरे उसे धक्का मार के बिस्तर से नीचे भी गिरा देती हूं । सुबह सुबह ऐसे कपड़े पहन के आ जाती है, पूरा सामने से खुला । मुझे उत्तेजित करने की पूरी कोशिश करती है। मै ही जानती हूं कि मै कैसे अपनी भावनाओं को रोक पाती हूं, पर बस अब नहीं, मै अब खुद को कमजोर नहीं पड़ने दूंगी,वर्ना फिर उसका पलड़ा भारी हो जाएगा । मै खुद को पूरी तरह कंट्रोल करके रखी हुई हूं।“
“अभी कहां है ?“
“सब्जी लाने गई है, ऐसे बन रही है वो जैसे कुछ हुआ ही नही है।”
”उसके बच्चों का क्या हाल है?”
“ठीक हैं, गांव दादा के पास मिलने गए हुए हैं“
“ओह ! लेकिन उसके दादा ता,े इनलोगों से किनारा ही करते हैं, मकान को लेकर भी तो कुछ टेंशन है इसका उनके साथ ?”
”पता नही ,मकान को लेकर है कि बेटे को लेकर“
“मतलब “
“गांव वालों का कहना है कि कल्पना ने अपने पति को मारा है“
“पर वो तो बीमारी से मर गया था ना ?“
“नही खुदकुशी किया था, पर ये तो कल्पना कहती है“
“फिर ?“
“कल्पना के पति का कमर के नीचे का हिस्सा पैरेलाइज्ड था । वो बिस्तर से हिल भी नहीं सकता था । फिर उसने फांसी कैसे लगा ली?“
”हां ये तो है, पर पता नहीं” हां ये भी तो एक सच था । अपने अपने सच हैं। एक बाईस तेईस साल की औरत से मात्र तीन चार साल के वैवाहिक जीवन के बाद उम्मीद की जा रही है कि उसने नैतिकता का पालन क्यों नहीं किया, ताउम्र पति की सेवा में अपने को समर्पित क्यों नहीं कर दिया। पति की जगह पर कल्पना की ये हालत होती तो क्या उसके पति से भी ये उम्मीद की जाती कि वो ताउम्र कल्पना की सेवा में अपना जीवन निकाल दे।
”अरे तुम क्या सोचने लगी
”बस कुछ नही,ऐसे ही । और तुम सचमुच में मकान बेचने के बारे में सोच रही हो।
”हां भई! दो तीन लोगों से तो बात भी हो गई है। एक जगह तो लगभग पक्की हो गई है ”
”ओह ! अच्छा मैं चलती हूं, कुछ जरूरत हो तो बताना।” सीढियां उतरते हुए कल्पना से मुठभेड़ हो गई।
”नमस्ते दीदी!”
”नमस्ते ! कैसी हा,े ठीक हो ना ?”
”हां दीदी ठीक हैं।” खुद को ठीक बताने के लिए कल्पना ने हल्के से मुस्कुरा दिया। पर उड़ा और थका हुआ चेहरा तो कुछ और ही बयां कर रहा था। मै क्या कहूं उसे, दिमाग में तुरंत कुछ नहीं आया। कुछेक सेकेण्ड रुक कर मै आगे बढ गई। मेरी व्यस्तता लगातार बढती जा रही थी, घर बाहर दोनो फ्रंट को संभालना कोई आसान काम तो है नही । दोनो में संतुलन बनाने की असफल केाशिश जारी थी,हार कैसे मान लेती । हार मान कर पूरी औरत जाति की शान में बट्टा तो लगा नहीं सकती थी, हां लेकिन इस संतुलन के चक्कर में बुरी तरह थक गई थी। वक्त की कमी ने सोसायटी और सोसायटी की गतिविधियों से मुझे पूरी तरह काट दिया था। बीच बीच में नीतू के एकाध बार फोन जरूर आए थे, संजना से मिले तो जमाना हो गया था, हां! लेकिन उसकी शिकायतें नीतू के मार्फत जरूर मुझ तक पहुंच रही थी। संजना नाराज थी। उसे सारी दुनिया से शिकायत थी कि कोई मुसीबत में उसका साथ नही दे रहा है। अब तो एक पुलिस वाला भी उसे सलाह दे रहा है कि घर बेच दे , यहां से चली जाए, कल्पना से उसका पीछा वो छुड़वा देगा, हां लेकिन उसके एवज में मकान बेचने के बाद आए पैसे में उसका भी कुछ हिस्सा होगा। कुछ दिनों बाद कल्पना और संजना साथ साथ खुश, कहीं जाते नजर आए। दो एक बार संजना अकेली आती जाती दिखाई पड़ी, पर मुझे देखकर उसने अनदेखा कर दिया।
एक दिन सीढियों पर चढते हुए कल्पना नजर आई। वही उसकी चिरपरिचित ड्रेस व्हाइट कुर्ता और जिंस। लग रहा था नहा कर आई है ,बाल में से पानी टपक रहा था,चेहरा बिल्कुल फ्रेश। मुझे देख कर मुस्कुराई। ”कैसी हो कल्पना ?”
”ठीक दीदी ,आप कैसा हो ?“
”हां मै ठीक हूं ।“
”गुड़िया कैसी है ? हम उसको कल देखा था। साइकिल चलाना सीख गई । कितना बड़ा साइकिल चला रहा था। हमको तो लगा गिर नहीं जाए। हम बोले तुम गिर जाएगी, बोली नही मै रोज चलाती हूं।“
“हां उसे भाई की साइकिल चलाने की आदत है। अपनी साइकिल तो छोटी लगती है। और ! बच्चे कैसे हैं, वहीं हास्टल में हैं ?”
”हां दीदी ,रंजन तो सिक्स क्लास में आ गया, संजू अभी चैथी मे है।”
”हूं। बढियां । सुना तुम लोग जा रहे हो यहां से ?”
”हां अब वहीं रहेंगे। यहां से काम के लिए बहुत दूर होता ना! एजेन्सी का आफिस वहीं बनाया है। हमको तो दिन भर वही रहना पड़ जाता, मैडम यहां अकेली। ये तो सोसायटी का मकान है ना,यहां से तो काम नहीं हो सकता। दीदी! ज्यादा बड़ा नही है, जनता फ्लैट है। ”
”और संजना ?”
”ओ भी जाएगी । मेरे साथ रहेंगी। यहां अकेली कैसी रहेगी।”
”पर वो तो तुम्हारे साथ रहना नहीं चाहती।”
”नहीं तो ,मै तो इतना प्यार करती हैं ,मेरे बिना कहां रह सकती ओ। ओ तो गुस्से में बोलती हैं,चली जा। पर मै जानती ,ओ नही रह सकती।” कल्पना के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे पहले जितनी घटनाएं हुईं हैं उनका तो कोई अस्तित्व ही नही है। एक कहानी या सपना है। ”अच्छा दीदी, नमस्ते !”
”नमस्ते!”
अब संजना ने भी खुद को सोसायटी की पालीटिक्स से काट लिया था। मिटिंग में भी नजर नही आ रही थी। कुछ दिनों बाद पता चला कि संजना घर को बेच कर कल्पना के साथ रहने चली गई है। हां लेकिन खबर ये पूरी नहीं थी ,कुछ दिन बाद फिर मैने संजना को एक दिन गार्ड से बात करते देख था। यानी अभी ये लोग यहीं पर हैं। फिर लम्बे समय तक वो नजर नही आई। नीतू भी इन दिनों इतनी बिजी थी कि कई बार फोन करने पर भी उसने जवाब नहीं दिया। सोसायटी में भी महिलाओं से जुड़े दो तीन मामलें मेरे पास आएं । ”ये सब नीतू जी की ही कारस्तानी लगती है, जैसे ही इस तरह का कोई मामला आता ,तुम्हारी तरफ फारवर्ड कर देतीं है ।ं मैडम हैं कहां आज कल ? नजर नहीं आ रही है। पता करो चाय पी कर आते हैं।” विनय की भी नीतू से इन दिनों अच्छी खासी दोस्ती हो गई थी। बाइचांस इस बार मैने फोन किया तो नीतू ने उठा लिया। “कहंा हो देवी,कुछ अता न पता । मतलब लोगो के पास तो आजकल समय ही नही होता है, हम जैसे लोगों से मिलने के लिए।“
”अच्छा! तुम खुद बिजी हो, मुझसे कह रही हो की मै गायब हूं । मैने तो इंटरकाम पे कई बार तुम्हें फोन किया था। तुम ही नही मिली । आजाओ साथ चाय पीते हैं।“ इधर उधर की बातों के बाद हम फिर अपने फेवरेट टापिक पर आ गए ।नीतू से संजना सम्पर्क में तब तक ही थी जब तक वो घर बेचकर चली नही गई थी, पर उसके जाने के बाद नीतू को उसने न कभी फोन किया और न कभी सम्पर्क करने की कोशिश की। हां! लेकिन ये सच था कि संजना घर बेच कर चली गई थी। नीतू ने बताया कि जाने से पहले संजना उसे मिली थी, उसी ने बताया था कि वो अब घर बेच कर कल्पना के साथ रहने जा रही है। आखिर कल्पना अपने चाल में कामयाब रही। नीतू खुश थी कि उसका प्रीडिक्शन सही निकला । मै फिर एक बार इंसान को समझने में फेल हो गई थी, या व्यवहारिकता की समझ मुझमें अभी तक नहीं आई । कुछेक महीनें बीत गए, अब संजना और कल्पना गाॅसिप सोसायटी के लोगों के लिए ज्यादा इंट्रेस्टिंग नही रह गया था बल्कि ’चलो अच्छा हुआ गई दोनो, थेाड़ी शांति हुई ’ जैसे जुमले भी अक्सर सुनने को मिलने लगे। संजना के घर पर अब किसी और का मालिकाना हक हो गया था । नए मालिक का सोसायटी में अपनी पहचान बनाने का प्रयास शुरू हों गया था। एक दिन फिर संजना के घर की तरफ से शोर की आवाज सुनाई पड़ी । किसी औरत की आवाज थी ,जोर जोर से चिल्ला रही थी और रो रही थी। कौन हो सकता है,आवाज तो पहचानी हुई लग रही है। कल्पना ? पर कल्पना यहा क्या करेगी, नही कोई और होगा। इतने में बेटे की आवाज आई “कल्पना दीदी ही हैं, पता नही क्यों वो जो नए लोग आए हैं ना! संजना आंटी के यहां ,उनसे लड़ रही हंै।”
”हैं! देख के आती हूं क्या मामला है। कल्पना इनसे क्यों लड़ रही है?” हां! कल्पना ही थी। बाल बिखरे हुए , हाथ में कुछ चाभियां , रो रोकर बेहाल हुई आंखें । घर के अंदर घुसने के प्रयास में ,उन लोगों से मारपीट करने के लिए उतारू। ”तुम लोग निकलों मेरे घौर से। तुम कैसे घौर में घुसा, ए मेरा घौर है । ऐसे कैसे बेच दिया घौर । ओ कैसें बेच सकती है । मेरा भी घौर है, हमारा घौर है, हम दोनो का ,वो कैसे बेच सकती है। हम तो गांव गई थी। हमको बताया नही, घैार कैसे बिक सकता है। वो हमको नहीं छोड़ सकती। मै इतना प्यार करती थी, ओ कितना प्यार करती थी। अब मै कहां जाएगी ? ” कल्पना ये लगातार कहती जा रही थी और दरवाजे को पकड़ कर बैठी गई थी। यानी संजना कहां है और उसने ये घर बेच दिया, ये कल्पना भी नहीं जानती। शायद इतने में किसी ने कल्पना को गेट से बाहर करने का आदेश चैकीदार को दे दिया। चैकीदार उसे खिंचते हुए बाहर ले गए और मेन गेट पर ताला लगा दिया। सुना, वो कई घ्ंाटे मेन गेट के बाहर ही बैठी रही। अब तो कई महीनें बीत गए,कल्पना को नही देखा है, हां संजना के बारे में खबर है कि वो कहीं है और ठीक है, पर कहां है, उसकी खबर वो किसी को नहीं देना चाहती।