उफ़ परसाई हाय परसाई: संस्मरण (यूनुस खान)

उफ़ परसाई हाय परसाई: संस्मरण (यूनुस खान)

युनुश खान 1137 11/18/2018 12:00:00 AM

(“हरिशंकर परसाई: – चर्चा ज़ारी है …….” के आठवें दिन ……. यूनुस खान का आलेख ‘) हिम्‍मत नहीं थी कि आकाशवाणी की कैजुएली वाले उन दिनों में अपनी बेहद प्रिय ‘स्‍ट्रीट-कैट’ साइकिल को परसाई जी के घर की ओर मोड़ दिया जाए । लेकिन ये शौर्य हमने दिखा ही दिया एक दिन । और नेपियर टाउन में परसाई जी के घर पहुंच गए । परसाई जी बिस्‍तर पर थे । हमें पता था कि एक दुर्घटना के बाद उनकी यही हालत है । उनसे बातें हुईं । उन्‍हें पता नहीं किस धुन में हमने अपनी ‘कविताएं’ तक सुना डालीं । ये बात याद करके आज भी गर्दन के पीछे वाले हिस्‍से में झुरझुरी दौड़ जाती है । उन बचकानी कविताओं पर परसाई ने अपनी राय दी । रास्‍ता दिखाया । फिर तीन चार बार की मुलाकात रही परसाई जी के साथ । एक बार तो गणतंत्र दिवस पर आकाशवाणी जबलपुर के लिए विशेष कार्यक्रम तैयार करते हुए हम उन्‍हें रिकॉर्ड करने भी गए । वो रिकॉर्डिंग पता नहीं जबलपुर केंद्र में अब है या नहीं । फिर विविध भारती वाले दिन आ गये जीवन में । मुझे याद है कि बंबई से ऑडीशन देकर लौटा ही था कि उसी दिन जबलपुर आकाशवाणी के केंद्र निदेशक क़मर अहमद का फोन आया । परसाई जी नहीं रहे, उनकी ‘अंतिम-यात्रा’ को कवर करना है । फौरन आओ । जाने क्‍या धुन थी । आनन-फानन पहुंचे । और हमने परसाई को पंच-तत्‍त्व में विलीन होते देखा ।

शांतिनिकेतन की यात्रा : संस्मरण (बाबा मायाराम)

शांतिनिकेतन की यात्रा : संस्मरण (बाबा मायाराम)

बाबा मायाराम 823 11/17/2018 12:00:00 AM

यहां घूमते घामते मैं सोच रहा था, क्या जरूरत थी टेगौर जैसे संभ्रांत वर्ग के व्यक्ति को जंगल में रहने की और शांतिनिकेतन की स्थापना की। इसका जवाब उनके लिखे लेखों में मिलता है। वे भारत में बाबू बनाने वाली शिक्षा से अलग अच्छा इंसान बनाने की शिक्षा चाहते थे। वे कहते थे, बच्चों का स्वाभाविक विकास हो, न कि उन्हें शुरू ही उन्हें किताबी कीड़ा बना दिया जाए। पुस्तकीय ज्ञान के अलावा कई और रास्ते हैं, ज्ञान की खोज के। वे एक जगह लिखते हैं कि “वास्तव में पुस्तकों द्वारा ज्ञान प्राप्त करना हमारे मन का प्राकृतिक धर्म नहीं है। वस्तु को सामने देख-सुनकर उसे हिला-घुमाकर, अपनी आंखों से देखभाल तथा जांच करके ही आविष्कृत ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।”……….

हाल ही में प्रकाशित

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