हावर्डफ़ास्ट और ख्वाजा अहमद अब्बास जन्म्शाताव्दी वर्ष के अवसर पर “साहित्य- सिनेमा – प्रगतिशील सांस्कृतिक आन्दोलन” विषय पर पटना में आयोजित एक परिचर्चा की संक्षिप्त रिपोर्ट, “अनीश अंकुर” की कलम से ….| – संपादक
हावर्ड फास्ट एवं ख्वाजा अहमद अब्बास ने अपनी रचनाओं में हमेशा समाजवादी दृष्किोण को आगे बढ़ाया: रिपोर्ट (अनीश अंकुर)
अनीश अंकुर
पटना, 27 सितंबर। हावर्ड फास्ट और ख्वाजा अहमद अब्बास दोनों ने फासीवाद का आजीवन विरोध किया और अपनी रचनाओं के माध्यम से समाजवादी समाज के स्वपन को जिलाए रखा। हावर्ड फास्ट ने जहॉं अमेरिकी सत्ता का विरोध करते हुए स्पार्टाकस जैसा विश्वप्रसिद्ध उपन्यास लिखा जिसने लाखों युवाओं को समाज बदलने के लिए प्रेरित किया। ख्वाजा अहमद अब्बास ने बताया कि कैसे संगठन से जुड़कर ही कोई लेखक बड़ा रचनाकार बनता है’’ ये बातें प्रगतिशील लेखक संघ के करर्यकारी अध्यक्ष राजेंद्र राजन ने अभियान सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित हावर्ड फ़ास्ट व ख्वाजा अहमद अब्बास की जन्मशती समारोह में बोलते हुए कहा। माध्यमिक शिक्षक संघ भवन में आयोजित इस बातचीत का विषय था ‘साहित्य-सिनेमा और प्रगतिशील आंदोलन’। बातचीत में बड़ी संख्या में साहित्यकार, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं विभन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग उपस्थित थे।
इस मौके पर ‘कथांतर’ पत्रिका के हावर्ड फास्ट विशेषांक का भी लोकार्पण किया गया। इस पत्रिका के संपादक राणा प्रताप ने अपने संबोधन में कहा ‘‘ आज जिस तरीके से फासीवादी शक्तियां हावी हो गयी हैं। कलबुर्गी, पानसारे, दाभोलकर जैसे लेखकों की हत्या की जा रही है वैसे हावर्ड फास्ट का जीवन हमें प्रेरणा प्रदान करता है। उन्होंने 50 से उपर उपन्यास, कहानियां लिखीं। वैसे ही ख्वाजा अहमद अब्बास ने फिल्में बनायी और विपुल साहित्य रचा सबके केंद्र मनुष्य के जीवन के यथार्थ को चित्रित कर संघर्ष की प्रेरणा मिलती है।’’
षायर कासिम खुर्शीद ने ख्वाजा अहमद अब्बास के बारे में बताया ‘‘ हम लोग हमेशा अंधेरों का जिक्र करते हैं लेकिन ऐसे ही अंधेरों से जूझकर ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे लोगों प्रगतिशील आंदोलन के लिए जगह बनायी। ख्वाजा अहमद अब्बास ने कहानी, पत्रकारिता, फिल्म, नाटक सहित हर विधा को खुद को अभिव्यक्त किया। वैसा बड़ा कम्युनिकेटर बहुत कम देखने में आते हैं। उन्होंने ‘नीचा नगर’, ‘धरती के लाल’ जैसी फिल्म बनायी। राजकपूर की अधिकांश फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखा। राजेंद्र सिंह बेदी ने ख्वाजा अहमद अब्बास के बारे में कहा कि उनके काम करने की हैरतअंगेज ताकत एवं कूव्वत’
उर्दू कहानीकार शमोएल अहमद ने उनकी कहानियों का जिक्र करते हुए बताया ‘‘ 1947 के दंगों में जब ख्वाजा के सारे परिवारी पाकिस्तान चले गए लेकिन वे भारत में रहे। उनकी जान जवाहर लाल नेहरू के व्यक्तिगत हस्तक्षेप से बच सकी। उनके दादा 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए थे। दंगों के अपने अनुभव के कारण उन्होंने हमेशा सांप्रदायिकता का विरोध किया’’
फिल्म समीक्षक अजीत राय ने बताया ‘‘ फ्रांस के कान्स फिल्म समारोह में 1946 में ‘नीचा नगर’ के लिए सम्मान प्राप्त करने वाले ख्वाजा अहमद अब्बास पहले हिंदुस्तानी थे’’
भिखारी ठाकुर स्कूल आॅफ डा््रामा के हरिवंष सभा ने जनगायक रामबलि की गिरफ्तारी का प्रतिरोध करने की बात उठाते हुए कहा ‘‘ हमें रामबलि जैसे गॉंव के बीच काम करने वाले लोगों कलाकारों की गलत गिरफ्तारी के विरूद्ध भी उठना होगा। जनगायक रामबलि को कुछ दिनों पूर्व पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।’’
अध्यक्षीय वक्तव्य प्रख्यात कवि आलोकधन्वा ने हावर्ड फास्ट एवं ख्वाजा अहमद अब्बा को याद करते हुए लेनिन, स्टालिन, निराला, गॉंधी, रवींद्र नाथ ठाकुर, जैंक लंडन को याद करते हुए कहा ‘‘ हमारा इतिहास इतने पवित्र लोगों से, इतने क्रांतिकारी लोगों से भरा है कि उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। ज्यार्जी दिमित्रिव से पूछा गया कि तो उन्होंने कहा कि जब भी फासीवाद और संसदीय लोकतंत्र में संघर्ष होगा तो मैं संसदीय लोकतंत्र को चुनूंगा और जब भी संसदीय लोकतंत्र और समाजवाद में लड़ाई होगी तो मैं समाजवाद का साथ दूंगा’’ आलोकधन्वा ने फैज अहमद फैज की मशहूर रचना सुनायी ‘जिस धज से कोई मकतल में गया, वो षान सलामत रहती है’ और ‘इतने जां भी न थे जां से गुजरनेवाले, अरे नासेह उनकी रहगुजर को देख’ सुनायी।
हावर्ड फास्ट एवं ख्वाजा अहमद अब्बास जनमषती पर आयोजित सभा को संबोधित करने वाले अन्य प्रमुख लोगों में थे। प्रो नवल किशोर चौधरी , पत्रकार सरवर हुसैन, ओरिएंटल कॉलेज, पटना सिटी के मनोविज्ञान विभाग के हेड कलीमुर्ररहमान, साहित्यकार व लेखक नरेंद्र कुमार, आदि। सभा में बड़ी संख्या में रंगकर्मी, कलाकार, साहित्यकार सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। प्रमुख लोगों में सी.पी.आई के राज्य सचिव बद्री नारायण लाल, सामाजिक कार्यकर्ता अख्तर हुसैन, साहित्यकार अरूण शाद्वल, मजदूर पत्रिका के सतीष एवं पार्थ सरकार, केदार दास श्रम अध्ययन संस्थान के अजय कुमार , वाम पत्रिका के सपांदक सुमंत, बिहार आर्ट थियेटर के सचिव कुमार अनुपम, सुनील, अरूण नारायण, विनीत, माकपा कार्यकर्ता गोपाल षर्मा, बी.एन.विश्वकर्मा, जीतेंद्र कुमार, मुन्ना झा, गौतम, रविकांत, कवि राकेश प्रियदर्षी, कुणाल किशोर, पंकज आदि।