कहानी में सौन्दर्य या कलात्मक प्रतिबिम्बों की ही खोज को बेहतर कहानी का मानक मान कर किसी कहानी की प्रासंगिकता तय करना भी वक्ती तौर पर साहित्य में परम्परावादी होने जैसा ही है | तीब्र से तीब्रतम होते संचार और सोसल माद्ध्यम के समय में वैचारिक प्रवाह और भूचाल से गुजरती कहानी भी खुद को बदल रही है | वह गहरे प्रतीक और कला प्रतिबिम्बों के गोल-मोल भंवर में पाठक को न उलझाकर सीधे संवाद कर रही है | वह सामाजिक ताने-बाने में पल-प्रतिपल घटित होती उन सूक्ष्म घटनाओं को सीधे उठाकर इंसानी वर्गीकरण और संवेदनाओं को तलाश रही है बल्कि खुद के वजूद के लिए संघर्ष के साथ उठ खड़ी हो रही है | कहानी का यह बदलता स्वरूप साहित्यिक मानदंड को भले ही असहज करे किन्तु वक़्त की दरकार तो यही है | विश्व महिला दिवस पर ‘अनीता चौधरी’ की ऐसी ही एक कहानी…… | – संपादक
परवाज़
अनीता चौधरी अनीता चौधरीकविता, कहानी, नाटक, समीक्षा देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित मंचीय नाटकों सहित एक शॉर्ट व् एक फीचर फिल्म में अभिनय| विभीन नाटकों में सह निर्देशन, संयोजन और पार्श्व पक्ष में सक्रियता |लगभग 10 वर्षों से ‘संकेत रंग टोली’ में सक्रिय |हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तय्याब्पुर रोड, यमुना पार , मथुरा 281001anitachy04@gmail.comphone – 08791761875आज सुबह से श्रुति ने ड्राइंगरूम का सारा सामान निकालकर बाहर आँगन में रख दिया था | झाड़ू लेकर कमरे के हर कोने को साफ़ करके, कमरे की प्रत्येक चीज को रगड़-रगड़ साफ़ कर, पुनः व्यवस्थित करके ही उसने सांस में सांस ली थी | ऐसा नहीं था कि आजकल में कोई मेहमान या रिश्तेदार घर में आने वाला था | कोई देख लेता तो अवश्य पूंछ बैठता, घर में कोई आने वाला है ? जो इस तरह से घर की सफाई कर रही हो | लेकिन यह सब पूछने आये भी कौन ? क्योंकि आस पास के सभी लोगों को उसके बारे में पता चल चुका था कि हर रविवार को इसी तरह से अपने घर की सफाई करती है | इसे हम उसकी हॉबी भी कह सकते है | जब तक वह अपने हाथों से यह सब नहीं कर लेती, उसे चैन नहीं मिलता | रविवार कितना भी व्यस्त क्यों न हो ? लेकिन वह अपना मन पसंद काम करना नहीं भूलती है | इतनी व्यस्तताओं में से भी वह इस काम के लिए समय निकाल ही लेती है | उसे घर को साफ़ कर चीजों को संजोने में बड़ा ही आनंद आता है | हाँलाकि छः दिन लगातार ऑफिस का काम व् अपनी पढ़ाई करते-करते थक जाती है | अगर चाहे तो आराम भी कर सकती है, लेकिन नहीं | आज सुबह से कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गयी थी | मम्मी को लगातार खांसता देखकर महसूस कर रही थी कि साँस की बीमारी होने की वजह से उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी | उनकी तबीयत ठीक नहीं थी | इसी वजह से उसने आज घर के कुछ ज्यादा ही काम किए थे | जबकि साथ में बड़ी बहिन आयशा भी थी | लेकिन उसके और आयशा के काम करने की स्पीड में काफी अंतर था | जितनी देर में श्रुति चार काम करती तो आयशा एक काम | जिस कारण काम की अधिकता होने से वह बहुत थक चुकी थी |
शाम के सात बज चुके थे | सब खाने के इन्तजार में बैठे थे | श्रुति ने देखा, वाटर कूलर में पीने का पानी ख़त्म हो गया है | बहुत थकान होने की वजह से, उसने अपने छोटे भाई काकू को किचिन में से आवाज लगाईं जो उससे उम्र में पांच वर्ष छोटा था, “काकू…… ओ काकू, जा नीचे फ़िल्टर में से वाटर कूलर भर कर ले आ, पीने का पानी ख़त्म हो गया है |” वह अपनी बहिन की आवाज को अनसुना करके टीवी देखता ही रहा | श्रुति ने दोबारा आवाज लगाई तो वह गुस्से से उठकर श्रुति के पास आया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “मैं नहीं जा रहा हूँ पानी लेने | तू अपने आप ले आ | घर में आ जाऊं तो एक मिनट भी चैन से बैठने नहीं देते |” और वापस आकर टीवी देखने लगा | श्रुति उसका मुहँ देखती रह गयी | उसे बहुत बुरा लगा | लेकिन यह कोई नई बात नहीं थी | वह अक्सर ही श्रुति से ऐसे ही चिल्लाकर बात करता था। उसकी शिकायत करने जब वह माँ के पास गयी तो माँ ने उसी को डांटते हुए कहा, “श्रुति तुझे क्या परेशानी होती है | जब भी काकू घर में आता है तू किसी न किसी काम के लिए उसे आवाज लगाती ही रहती है | चल जा अब जो कुछ काम करना है तू खुद ही कर लिया कर | वैसे भी बाहर के सारे काम तो यही करता है | जब घर के काम भी यही करेगा तो तुम दो-दो लड़कियों का मैं आचार डालूँगी…. ?”माँ के मुहँ से इस तरह की बातों को सुनकर श्रुति बहुत इरिटेड हो गयी और बोली, “मम्मी, आप छोटी-छोटी बातों पर भी इसी का सपोर्ट करती हो, आज तक मैंने आपसे कोई शिकायत नहीं की, हमेशा इन छोटी छोटी बातों को इग्नोर किया और आज भी आप इस तरह की बातें कर रही है । बताना, यह घर का कौन सा काम करता है ? रही बात बाहर के कामों की तो उन्हें भी हम कर सकते हैं और करते भी हैं | कल जब आपने बिजली का बिल भरने के लिए इससे कहा तो यह उल्टा मुझे ही आर्डर देने लगा, आपने उसे टोका तक नहीं और न ही एक बार उसे जाने के लिए कहा और वह जाकर गली के आवारा लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने लगा | आखिर बिजली का बिल मैं ही भर कर आई।
जब हम नौकरी करने जा सकते है तो क्या गैस का सिलेंडर, आटे का कट्टा और सब्जी लेकर नहीं आ सकते है, अगर आप एग्री हों तो | मेरी समझ में एक बात नहीं आती कि आप इसको इतना सिर पर क्यों चढ़ा रही हो, घर में बैठाकर इसकी पूजा करोगी ? जब हम कमायेंगे तो इसे यह सब काम करने ही पड़ेंगे |” माँ गुस्से में लाल हुए चेहरे से श्रुति को देखती रही उसके अंतहीन प्रश्नों का जबाव दिए बिना, वह खीजती हुई बस इतना ही बोली थी, “बहुत हो गया, अब चुप हो जा। क्या करती हो तुम मेरे लिए ? और अब तक तुमने क्या किया है मेरे लिए ? कौन सी तुमने मेरी कोई ख्वाहिश पूरी कर दी है जो मैं तुम्हारी सुनूँ | मेरी सारी उम्मीदें इसी से है और यही पूरी करेगा | तुझे बहुत घमंड है न अपनी नौकरी पर | ले रख इन्हें अपने पास |” माँ ने अलमारी से सारे रुपये निकालकर श्रुति के ऊपर फेंक दिए | माँ की इस प्रतिक्रिया पर श्रुति बहुत तेज चिल्लाई, “आज यह बात तुम कह रही हो | तुम्हारी वजह से ही मैंने बैंक की नौकरी छोड़ दी | तुम चाहती थी, मैं भी ताऊ जी की बेटी की तरह ही बी० एड० करू | जिससे तुम ताई जी के सामने शान से कह सको | देखो, मेरी बेटी तुम्हारी बेटी से कमतर नहीं है | क्योंकि तुम अपनी बेटियों की तुलना हर समय उनकी बेटियों से करती हो | हम क्या चाहते है ? इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं है और तुम कह रही रही हो कि मैंने………?
माँ एकदम शांत सधे हुए स्वर में बोली, “ अब शांत हो जा | देखो, मुझे रहना अपने बेटे के साथ ही है | बुढापे में यही सहारा देगा | तुम अपनी-अपनी ससुराल चली जाओगी | तुम मेरा बुढ़ापा नहीं काट सकती | मेरे बुढ़ापे की नैया तो यही है | इसलिए इसे कष्ट नहीं दे सकती |” श्रुति एकदम ठहरे हुए पानी की तरह शांत होकर टुकुर टुकुर अपनी माँ को देख रही थी | वह तय नहीं कर पा रही थी कि इसे माँ की अज्ञानता कहे या निरीहता | जिस वृक्ष की अभी ढंग से कोंपल भी नहीं निकल पाई थी जिसे दरख्त बनने में अभी वक्त लगना है | उस वृक्ष की छाँव में रहने का काल्पनिक एहसास अभी से इनमें कूट-कूटकर भरा है | जिस आदमी की कमाई खा रही है और साथ जीने मरने की कसमें खाई है | उस आदमी पर ज़रा भी गर्व नहीं है | यह कैसी औरत है ? वह रसोई को जस का तस छोड़ अपने कमरे में चली गयी और बहुत देर तक रोती रही। कुछ देर बाद कमरे से बाहर आई तो देखा, सब लोग बड़े आराम से खाना खा रहे थे | किसी ने उसे खाने के लिए पूछा तक नहीं | जब श्रुति से रहा नहीं गया | वह माँ से पूछ ही बैठी, “मम्मी जब तुम्हें पता था, बेटा ही तुम्हारे लिए सब कुछ करेगा | वही तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है तो फिर तुमने हमें पैदा ही क्यों किया ?” बेटी के इस अर्थपूर्ण सवाल करने पर माँ गुस्से से खाने की प्लेट को जमीन पर फेंकते हुए चिल्लाई, “बस, अब एक भी लफ्ज आगे मत बोलना, अगर मुझे पता होता कि तू बड़ी होकर मुझसे इस तरह जुबान लड़ाएगी | मैं तुझे पैदा ही नहीं होने देती | माँ की यह बात सुनकर श्रुति की पानी से लवालव भरी आँखों की डॉर फूटने लगी। वह आँखों को पोंछती हुई अपने कमरे में चली गई | मेज पर पड़ी किताब के पन्नों को मन की व्याकुलता के कारण बार बार पलटने लगी । उसे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था, जिसके कारण उसने खाना भी नहीं खाया | पिता काम पर से आकर खाना खा कर चुपचाप सो चुके थे, जैसा कि हमेशा से उनकी आदत रही है रात को किसी से बात न करने की । बहिन के कई बार कहने पर भी श्रुति ने खाना खाने से मना कर दिया और भूखे पेट ही सो गयी |
सुबह उठी और सीधे अपने स्कूल चली गयी | दोपहर बाद स्कूल से लौटते वक्त उसे किसी दुल्हन के हाथों पर मेंहदी लगाने जाना था | जिससे वह आने में लेट हो गयी थी | नौकरी के अलावा श्रुति मेकअप, मेंहदी, स्टीचिंग और ट्यूशन आदि पार्ट टाइम के काम भी करती थी | उसकी अपनी छोटी-मोटी जरूरतें इन्हीं पैसों से पूरी होती थी | इसके अलावा उसे पढ़ाई-लिखाई से सम्बन्धित जरूरतों को भी इन्हीं कामों से मिले रुपयों से पूरा करना पड़ता था, चाहे कॉलेज की फीस हो या किसी प्रोफेसनल कोर्स की फीस | यहाँ तक कि उसने अपनी बी० एड० की फीस भी इन्हीं पैसों में से जमा की थी | उसे नौकरी की सारी तनख्वाह घर खर्चों के लिए माँ को देनी होती थी | रात को घर देरी से पहुँचाने पर उसने देखा, सभी लोग खाना खा चुके थे | किसी ने उसके आने का इंतज़ार नहीं किया था | जब उसने खाने के लिए किचिन में रखी टोकरी को खाली देखा तो अपने गुस्से पर काबू करते हुए उसने माँ को किचिन से ही आवाज लगाईं।, “मम्मी तुमने मेरे लिए खाना नहीं बनाया |” माँ ने उसे अनदेखा करते हुए अपने बिस्तर में लेटे हुए ही कह दिया, “जिसे खाना है वह अपने आप बना ले | मुझे न तेरी कमाई से मतलब है, न तेरे खाने से |” श्रुति ने अपने आप को सहज करते हुए एक लंबी साँस ली और बोली, “मम्मी तुम काकू से ऐसा नहीं बोलती हो, वह तो कितना भी देर से आये उसके बावजूद भी तुम उसे गरम गरम खाना पकाकर खिलाती हो और मेरे लिए………?
माँ ने बात को पूरा भी नहीं होने दिया और बीच में ही बोल पड़ी, “काकू के विषय में कुछ मत बोलना, मैं बर्दाश्त नहीं कर पाउंगी | अगर चुपचाप रहना हैं तो रहो मेरे घर में, वरना अपना बोरिया-बिस्तर उठाओ और निकल जाओ यहाँ से | यह मेरा घर है | यहाँ ऊँची आवाज में बोलने का अधिकार नहीं है, समझी या एक बार फिर समझाऊ | अब तक की जिन्दगी में पहली बार माँ के मुहँ से इस तरह की बातें सुनकर श्रुति के पैरों तले जमीन खिसकने लगी थी | उसकी आँखों के सामने न जाने कितनी ही तस्वीरें टूट-टूटकर गिर रही थी | वह माँ की इस स्थिति को समझ नहीं पा रही थी | वह बार-बार यही सोच रही थी कि माँ यह सब कैसे कह सकती है ? आज उसे यह घर पराया लग रहा था | जिस माँ ने उसे नौ महीने अपनी कोख में रखा आज वह उसके साथ पराये लोगों की तरह व्यवहार कर रही थी |
वह पागलों की तरह माँ के चेहरे को एकटक देख रही थी जो बेटे के प्यार में इस कदर अंधी हो चुकी थी कि बेटी के लिए उसकी आँखों में ज़रा भी प्रेम न था | श्रुति अब इतना तो समझ ही गयी कि इस घर में गलत चीजों का विरोध मत करो | जो लड़कियों के साथ सदियों से होता आ रहा है उसे चुपचाप सहन करते रहो | श्रुति ने अपना पर्स उठाया और बोली, “जिस घर में मेरी कोई इज्जत न हो, वहां मैं नहीं रह सकती | मैं जा रही हूँ, अभी और इसी वक्त |” वह कमरे से निकलकर मेन गेट पर पहुँची ही थी कि माँ तुरन बोल पड़ी, “अरे हां…… हां….. हमें पता है | यह तो घर छोड़ने का बहाना है | देख रखा होगा कोई अपना यार दोस्त, जिसके साथ रहना है |” इतना सुनते ही आगे बढ़ रहे श्रुति के पाँव एक पल के लिए दरवाजे पर ही रुक गए | माँ की बात उसके ह्रदय में तीर की तरह चुभ गयी | उसकी बहिन आयशा ने उसका पर्स छीन लिया | हाथ पकड़कर अन्दर खींचने लगी और बोली, “श्रुति पागल मत बन, तू इस समय रात में कहाँ जायेगी ? कोई बात नहीं मम्मी तो हमेशा ही ऐसा बोलती रहती है |
आयशा उस समय क्या बोलती जा रही थी ? श्रुति को कुछ पता नहीं | उसके दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था | वह सोच रही रही थी कि अगर आज उसने घर से निकलकर विरोध नहीं किया तो कभी भी नहीं कर पायेगी | इसी तरह सारी उम्र चुप रहकर अन्याय सहती रहेगी | उसने झटके से अपना हाथ छुडाया और पर्स उठाकर तुरंत घर से बाहर निकल गयी | रात के करीब नौ बज चुके थे | वह टैम्पू पकड़कर अपने घर से दस किलोमीटर दूर रह रही अपनी सहेली कंचन के घर पहुँच गयी | कंचन की माँ के पूंछने पर उसने बताया कि वह पास किसी शादी में मेकअप के कारण लेट हो गयी है | सोचा आपके यहाँ ठहर जाऊं | उसकी मित्र कंचन ने उसके लिए खाने व सोने का प्रबंध कर दिया | आधी रात बीत जाने पर भी श्रुति की आँखों में नींद न थी | वह बार-बार अपने फोन को देखती रही | शायद अब कोई कॉल आयेगी, माँ गुस्से में है तो क्या ? पापा मुझे कॉल जरुर करेंगे | और तो और आयशा ने भी फोन नहीं किया | वह तो मेरे बिना एक पल भी नहीं रह सकती | फोन को देखती-देखती रात के किस पहर में सो गयी उसे पता भी नहीं चला |
सुबह उठते ही उसने तुरंत फोन को देखा | किसी का कोई कॉल नहीं थी | वहां से वह सीधे ऑफिस पहुँच गयी | आज का दिन उसे अपनी जिन्दगी का एक अजीब सा दिन महसूस हो रहा था | उसे बहुत घबराहट हो रही थी | वह समझ नहीं पा रही थी कि लौटकर घर जाए या आगे की सारी चीजें अपनी तरीके से तय करे | कुछ देर सोचने के बाद उसने निश्चय किया कि वह अपनी जिन्दगी अपने तरीके से जीयेगी | हांलाकि यह सब करना उसके लिए आसान नहीं था | लेकिन वह दृढ थी | जब शाम तक भी उसके घर वालों ने उसकी कोई खोज खबर नहीं ली तो उसने सारी बातें अपनी सहकर्मी मित्र पल्लवी को बताई | पल्लवी ने हमदर्दी दिखाते हुए उससे कहा, “कोई बात नहीं, दो चार दिनों के लिए के लिए तू मेरे घर में रह लेना | मैं अपनी मम्मी से कह दूंगी कि तेरे घर वाले सब लोग बाहर गए है | घर में कोई नहीं है और इन दो-तीन दिनों में तेरा और तेरी मम्मी दोनों का गुस्सा शांत हो जाएगा और तू घर चली जाना |”
श्रुति एकदम शांत बैठी थी, वह कुछ नहीं बोली | पल्लवी को लगा श्रुति किसी गहरी शोच में डूबी है | उसने श्रुति को झकझोर कर कहा, “वैसे मुझे कोई परेशानी नहीं है तू ज्यादा दिन भी मेरे घर पर रह सकती है लेकिन मेरी मम्मी थोड़े पुराने ख्यालात की है | जब उन्हें पता चलेगा कि तू………….| श्रुति उसकी पूरी मानसिक स्थिति को भांपती हुई बोली, “पल्लवी मैं सारी बातों को समझ रही हूँ | तू मेरी वजह से किसी परेशानी में मत पड़ अगर हो सके तो एक कमरा किराए पर दिला दे | मेरे लिए तेरी यही सबसे बड़ी मदद होगी |” आखिर पल्लवी ने उसे अपने घर के पास एक कमरा दिलावा दिया |
दूसरे दिन सुबह पिता को श्रुति दिखाई नहीं दी तो उन्होंने श्रुति की माँ से पूँछा तो उन्होंने बात को यह कहकर आया गया कर दिया कि अपनी सहेली कंचन के घर गयी है। जब तीसरे दिन भी श्रुति घर नहीं आई तो माँ के कहने पर आयशा ने कंचन को फोन पर सारी बातें बता दी और श्रुति को समझाकर घर भेजने के लिए कहा | कंचन, आयशा की बात सुनकर बहुत ही शोक्ड हुई | उसने बताया कि श्रुति कल सुबह ही उसके घर से चली गयी और उसने तो ऐसा कुछ भी नहीं बताया | इतना सुनते ही आयशा ने फोन काटा दिया | जब पिता को सारी बातें मालूम हुई तो वह बहुत नाराज हुए | उन्होंने फोन करके श्रुति को घर आने के लिए कहा तो उसने घर आने से मना कर दिया | ऑफिस पहुँच कर उन्हें पता चला कि श्रुति अपनी सहेली के साथ अपने कमरे पर जा चुकी थी | वहां से पता लेकर वह उसके कमरे पर पहुँच गए | बेटी को घर लौटने के लिए समझाने लगे, “बेटा लड़कियों को इस तरह घर छोड़ना शोभा नहीं देता | तुम्हें अपनी माँ की बातों का इतना बुरा नहीं मानना चाहिए था | लड़कियों का काम ही चुप रहना होता है | यही हमारी परम्पराएं और संस्कृति है |” वह बहुत ही संदेह की नजरों से अपने पिता को देख रही थी | ये वही पिता है जो अखबार में किसी महिला के साथ अन्याय की खबर पढ़ते ही कहते, “महिलाओं को अपने अधिकार व् आत्मसम्मान के लिए खुद ही लड़ना चाहिए | जब तक स्त्रियाँ इसका विरोध नहीं करेंगी | समाज में बदलाव नहीं आयेगा चाहे घर हो या बाहर | उन्हें अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठानी होगी |” आज उनके इस चरित्र को देखकर श्रुति बेचैन होने लगी | उसे कमरे में घुटन महसूस हो रही थी | वह बाहर खुली हवा में सांस लेना चाहती थी | उसका मन जोर से चिल्ला कर उन्हें चुप कराने का था लेकिन जीभ तालू से चिपक गयी थी |
श्रुति ने अपने पर्स से पानी की बोतल निकाली और एक ही सांस में गटागट पी गयी | थोड़ी राहत मिलने पर उनकी बात को बीच में काटती हुई बोली, “आज आपके मुहँ से इस तरह की बातें सुनकर, मुझे कोफ़्त हो रही है | तुम भी उन्हीं लोगों में से हो, जो बाहर प्रत्येक घर में लक्ष्मी शाह, भंवरी देवी, इरोम शर्मिला और संपत पाल जैसी अनेक लड़कियों व् महिलाओं को देखना चाहते है | परन्तु बात जब अपने घर की होती है तो चुप्पी साध लेते है | अब मैं समझी जब भी माँ और मेरे बीच में काकू को लेकर झड़पें होती थी | उस समय आप जान बूझ कर चुप हो जाते थे | मैंने आप से एक दो बार कहा भी था लेकिन आप ने कोई रेस्पोंस नहीं दिया | मैंने समझा माँ बेटी के बीच का मसला होने की वजह से आप चुप रहते है | आप भी यही चाहते थे |”
“श्रुति तुम जैसा सोच रही हो, वैसा कुछ भी नहीं है | जब लोगों को तुम्हारे बारे पता चलेगा तो हम क्या ज़बाव देंगे | हम उनके सामने सिर भी नहीं उठा सकेंगे | हमारी इज्जत ख़त्म हो जायेगी समाज में | तुम अपनी बड़ी बहिन के बारे में सोचो, तुम क्यों उसे जीते जी मारना चाहती हो ? कौन रिश्ता जोड़ेगा ऐसे घर से जिनकी लडकी घर छोड़कर अलग रह रही हो ? क्या छवि बनेगी तुम्हारी समाज में ? और कौन लड़का तुमसे शादी करने को तैयार होगा ? लोग तुम्हें इज्जत की नजरों से नहीं देखेंगे | इसलिए मेरा कहा मानो घर वापस चलो वरना मुझे मजबूरन……………|” उन्होंने अपने दांतों को मिसमिसाकर बड़ी-बड़ी आँखों से घूरते हुए श्रुति को आदेश दिया | “पापा अगर आप मुझे धमाका रहे है तो यह मुझे ठीक नहीं लगता | मैं कोई बच्ची नहीं हूँ जो आप मुझे इस तरह से डरा धमका रहे है और मैं डर जाऊँगी | रही बात आपकी इज्जत की तो उसे मैं घर ही छोड़कर आई हूँ | लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे, मैं इसकी परवाह नहीं करती ? लेकिन जो गलत है उसे मैं सहन नहीं कर सकती | चाहे इसके लिए मुझे जिन्दगी भर संघर्ष ही क्यों न करना पड़े ? इस सब के लिए मैंने अपना माइंड सैट कर लिया है | इसलिए आप चिंता मत कीजिए मैं यहाँ पर ठीक हूँ |” उसकी आँखों में नए बदलाव की चमक देखकर पिता अपनी नजरें झुकाए कमरे से बाहर निकल गए