बचपन से लेकर जीवनपरियन्त कितनी ही छोटी बड़ी घटनाएँ होती गुज़रती जाती हैं इन्हीं घटनाओं में से जीवंत मानवीय संवेदनाएं खोज निकालना ही लेखकीय जूनून या रचनात्मकता है | ऐसे ही लेखकीय दृष्टिकोण की परिचायक है ‘अनीता चौधरी’ की यह छोटी कहानी …….| – संपादक
साल्व ऑफ़ लव
अनीता चौधरी
कविता, कहानी, नाटक, समीक्षा देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित मंचीय नाटकों सहित एक शॉर्ट व् एक फीचर फिल्म में अभिनय| विभीन नाटकों में सह निर्देशन, संयोजन और पार्श्व पक्ष में सक्रियता |
लगभग 10 वर्षों से ‘संकेत रंग टोली’ में सक्रिय |हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तय्याब्पुर रोड, यमुना पार , मथुरा 281001
anitachy04@gmail.com
phone – 08791761875
कक्षा में हमारा रोल नंबर एक ही अक्षर से शुरू होने की वजह से, हम दोनों एक ही सीट पर बैठते थे | हम दोनों लगभग एक ही उम्र, यही कोई पन्द्रह या सोलह वर्ष के रहे होंगे | लेकिन वन्दना मुझसे लम्बी थी | मेरी लम्बाई कम होने की वजह से सब मुझे बच्चा कहकर पुकारते थे | क्लास के दूसरे बच्चों का बच्चा कहना मुझे ज़रा ही बुरा नहीं लगता था लेकिन जब भी वन्दना मुझे बच्चा कहती तो मुझे उस पर बहुत गुस्सा आता था और मैं उसे बम्बू कहकर चिढाता था | हम दोनों अक्सर ही छोटी-छोटी बातों झगड़ा बहुत करते थे | लेकिन जिस दिन वह गुस्से में किसी दूसरी सीट पर बैठ जाती तो मुझे बहुत खराब लगता था | मैं कोई न कोई चीज माँगने के बहाने से उसके पास जा बैठता और फिर उससे झगड़ा करने लग जाता और उसे वापस अपनी सीट पर ले आता था |
जिस दिन वन्दना स्कूल नही आती थी उस दिन बड़ा खाली- खाली सा लगता था या यूँ कहूं कि मुझे झगड़ने के लिए कोई दूसरा नहीं मिलता था | मुझे उसकी आदत सी हो गयी थी | अक्सर उसकी आवाज मेरे कानों में गूंजती रहती थी | कई बार तो मेरे पास किसी दूसरे के बैठने पर, मैं उसी के भ्रम में उससे बोल देता, “चल उधर खिसक बम्बू, पूरी जगह घेर कर बैठ जाती है |” मेरे इस तरह से कहने पर दूसरी लड़की चौंक कर कहने लगती, “ पागल हो गया है, तुझे मैं बम्बू नजर आती हूँ |” और मैं उसकी तरफ देख कर मुस्करा देता | बहुत बार तो मैं मजाक ही मजाक में उसे रुला भी देता था | लेकिन थोड़ी देर रोने के बाद मैं ऐसा कुछ जानबूझ कर बोलता जिससे वह तुरंत हंस जाती थी |
उस दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ था | सुबह के नौ बजे होंगे | क्लास में हिन्दी का पीरियड चल रहा था | मैं मेम के द्वारा बताये प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था और मेरे हाथ में पेपर कटर था | मैं पेपर काट रहा था | वह मेरी हेल्प कराने के लिए बोली, “लाओ तुम्हारा यह पेपर मैं काट देती हूँ, तब तक तुम दूसरा पेपर पेस्ट कर लो | “ जैसा कि मेरी आदत थी, मैं पेपर कटर को हाथ में लेकर उसके चेहरे की तरफ ले गया और बोला, “ओये बम्बू, ला आज मैं तेरी गर्दन काटता हूँ |” वह वास्तव में डरकर झट से खडी हो गयी | मेरे कटर से उसकी ठोडी के नीचे वाला हिस्सा कट गया जिससे गर्दन पर खून बहने लगा | उसने हाथ लगा कर देखा | और वह खून को देखकर रोने लगी | उसका पूरा हाथ खून का हो गया जिसे देखकर मैं भी डर गया और रोने लगा था | जब टीचर ने देखा तो वह हम दोनों को ही डांटने लगी | पीरियड ख़त्म हुआ और वह चली गयी | अब पूरी कक्षा में हल्ला होने लगा था कि विवेक ने वन्दना को चाकू से काट दिया | यह शिकायत मेम से होते हुए हमारे ऑफिस तक पहुँच गयी थी |
वन्दना को चोट ज्यादा लगी थी उसका फर्स्ट-एड कर दिया गया था | कक्षा में आकर प्रिंसिपल सर ने हमें दोनों को समझाया और साथ ही आगे इस तरह की गलती न दोहराने के लिए चेतावनी भी थी | उसका रोना बंद नहीं हो रहा था | सब मुझसे उलटा- सीधा बोल रहे थे | मैं कुछ समझ नहीं पा आ रहा था कि क्या जबाव दूँ, जबकि ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं था | जब क्लास के बच्चे कुछ ज्यादा ही बुरा- बुरा मेरे बारे में कहने लगे तो वन्दना ने बीच में ही सबको डांट दिया था, “चुप हो जाओ सब के सब, इसके पीछे पड गये हो, इसने कुछ नहीं किया है | यह निर्दोष है | मेरी गलती की वजह से यह सब हुआ हैं | न मैं खडी होती और न यह सब………. | “ और वह बस रोए जा रही थी | पूरी क्लास के बच्चे एकदम चुप थे, लेकिन अब मेरी आँखों से और भी ज्यादा आंसू निकल रहे थे | मैंने धीरे से उसका हाथ पकड़ा और बोला, “ सॉरी यार, मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था लेकिन……… |” वह अपने आंसूओं को पोंछते हुए मुस्करा कर बस इतना ही बोली थी, “मुझे पता है, तू इतना परेशान न हो बच्चा |” इस बार उसके मुहँ से बच्चा शब्द सुनकर मुझे भी हंसी आ गयी थी | लेकिन उस रात मुझे नींद नहीं आई थी मैं सारी रात वन्दना के बारे में ही सोचता रहा कि अगर वह चाहती तो मेरे साथ कुछ भी हो सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया था |
इस घटना की वजह से, मैं कई दिनों तक परेशान रहा था | वंदना भी दो दिनों तक स्कूल नही आई थी | परन्तु मैं भी उसके घर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था | तीसरे दिन जब वह स्कूल आई तो मेरे पास उसी तरह से मुस्कराती हुई आई जैसे पहले आती थी, लेकिन अब मैं उसके सामने सहज नहीं हो पा रहा था | फिर कुछ दिन बाद ही मेरे पापा का ट्रांसफर जयपुर हो गया था और मैं उनके साथ चला गया |