“अगर कोई स्त्री इन्हें गलती से भी पोजिटिव रिस्पोंस दे देती है तो इनके मन में मंदिर की सामूहिक आरती के समय बजने वाले हजारों घंटे बजने लगते हैं . ये उसको समझाते हैं कि नारी मुक्ति का रास्ता देह से होकर जाता है इसलिए देह से मुक्त होना बहुत ही जरुरी है अप्रत्यक्ष रूप से ये भी बता देते हैं कि इस मुक्ति के लिए वही बेस्ट माध्यम हैं . कई दफा भारी भरकम किताबों और लेखकों का नाम लेने के कारण आतंकित लडकी इनके झासें में आ भी जाती है…….”
आज के बाजारी समय में यह तो खूब देखने को मिल रहा है कि वाकई जो लोग वास्तव में ज्ञानी हैं और सामाज की जड़ों तक गहरे जुड़े होते हैं, उन्हें न तो अपनी वाह वाह कराने के लिए चेलों – चपाटों की जरुरत होती न ही अपनी मार्केटिंग की | और कई बार इसका फायदा कुछ ख़ास तरह के लोग उठाते हैं जिसका जिक्र अनीता मिश्रा के इस शानदार व्यंग्य से व्यक्त होता हैं |…. सम्पादक
घंटा बुद्धिजीवी
अनीता मिश्रा
एक होते हैं सामान्य बुद्धिजीवी जो पढ़ते –लिखते तो हैं पर खुद में सिमटे सिकुड़े रहते हैं . इन्हें किसी की तारीफ या आलोचना से कोई फर्क नहीं पड़ता है .ये किसी को प्रभावित करने की कोई चेष्टा नहीं करते हैं .
एक इनके विपरीत होते हैं घंटा बुद्धिजीवी . इन्हें घंटा इसलिए कहा जाता है कि जब लोग प्रभावित होकर किसी का नाम लेते हैं वो डंका होता है लेकिन जब खुद बजवाया जाए तो घंटा होता है. इसलिए इन बुद्धिजीवियों का नाम घंटा बुद्धिजीवी पड़ गया .इनकी खास बात होती है ये हर वक़्त अपने तमाम चेले चापड़ों से घिरे रहते हैं . दरअसल ये चेले इन्होने हर महफ़िल में अपने नाम का घंटा बजवाने के लिए पाले होते हैं . इनके चेले इनकी वाह – वाही करते और जब महफ़िल शवाब पर होती ये जाते सुट्टा लगाते, दो पैग लेते और फिर महफ़िल में बड़ी –बड़ी किताबों का और लेखकों का नाम लेकर अपने ज्ञान का घंटा इतनी जोर से बजाते हैं कि सामने वाला चित्त हो जाये . दरअसल इनका मकसद भी यही होता है खुद को महंत के तौर पर स्थापित करना इसलिए विषय कोई भी हो ये महफ़िल में अपने ओरिजनल ज्ञान के बजे बड़े –बड़े नाम लेकर लोगों को आतंकित करने की कोशिश करते हैं. सामने बैठा व्यक्ति इनके घंटा ज्ञान का सार ग्रहण कर पा रहा है कि नहीं इस बात से इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है ना इन्हें देश काल से कोई मतलब होता है . इनका सारा प्रयास होता है कि बड़ी – बड़ी किताबों और लेखकों का नाम लेकर रौब जमाना है .
घंटा बुद्धिजीवियों की एक और खास बात होती है अगर इनके सामने कोई सुदर्शना नारी हो तो इनके ज्ञान का घंटा आपे से बाहर हो जाता है ये तुरंत स्त्री हितों के सबसे बड़े शुभचिंतक बन जाते हैं . अपनी प्रगतिशील छवि बनाने के लिए इतने आतुर हो जाते हैं कि स्त्री को ये अहसास करा देते हैं कि ये ही उसके सच्चे उद्दारक हैं . अगर कोई स्त्री इन्हें गलती से भी पोजिटिव रिस्पोंस दे देती है तो इनके मन में मंदिर की सामूहिक आरती के समय बजने वाले हजारों घंटे बजने लगते हैं . ये उसको समझाते हैं कि नारी मुक्ति का रास्ता देह से होकर जाता है इसलिए देह से मुक्त होना बहुत ही जरुरी है अप्रत्यक्ष रूप से ये भी बता देते हैं कि इस मुक्ति के लिए वही बेस्ट माध्यम हैं . कई दफा भारी भरकम किताबों और लेखकों का नाम लेने के कारण आतंकित लडकी इनके झासें में आ भी जाती है.
कुछ दिन बाद जब ये स्त्री के साथ सामान्य व्यक्ति से भी गया बीता व्यवहार करने लगते हैं क्योंकि इन्हें कुछ दिन बाद किसी और स्त्री का उद्दार करना होता है. इसलिए ये पहले वाली के प्रति निर्मम होकर उसे पिछड़ा बताने लगते हैं . इतना ही नहीं अपनी मित्र मंडली के बीच बैठकर उस स्त्री के चरित्र का पोस्टमार्टम करने के साथ ही उसके साथ बिताये पलों के श्रृंगार रस का ब्यौरा भी वीभत्स रस में देते हैं . तब लडकी को पता चलता है कि वो जिस प्रगतिशीलता से प्रभावित हुई वो छद्म प्रगतिशीलता थी . इनसे अच्छा मोहल्ले की पान की दुकान में खड़ा लड़का था जो अन्दर बाहर एक जैसा था .
इन घंटा बुद्धिजीवियों की एक और खास बात होती है कि ये मान -अपमान से भी परे हो जाते है . मतलब कभी इनकी किसी बात पर ठुकाई हो जाये या कोई महिला सरे आम इनकी पोल खोल कर इनकी इज्ज़त का फालूदा बना दे तो इन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता . ये तत्काल किसी नामी गिरामी शायर का कलाम सुना देते हैं . यानि इन्हें अपनी बेईज्ज़ती को कैसे महिमामंडित करना है बखूबी आता है. ये आलसी भी एक नंबर के होते हैं . लम्बे लम्बे मन भर के वार्तालाप कर डालेंगे लेकिन एक रत्ती प्रक्टिकल रूप से शायद ही किसी के काम आ पायें . कोई इनसे मदद मांगने जाए तो बदले में देरिदा ,चोमस्की ,मार्क्स का ज्ञान लेकर आ जायेगा पर उस जरूरतमंद को एक फूटी कौड़ी भी इनसे नहीं मिलेगी .
इसलिए इन घंटा बुद्धिजीवियों से जितना बचकर रहा जाए अच्छा है . ये किसी काम आने वाले हैं नहीं आपका इस्तेमाल जरूर अपना घंटा बजवाने में कर डालेंगे .