इंसानी ज़ज्बातों से होकर जीवन स्पंदन की तरह हरहराती किसी हवा सी गुज़रतीं अनीता सिंह की कुछ ग़ज़लें……..
डॉ0 अनीता सिंह की गज़लें…..
डॉ0 अनीता सिंह
१-
ऐसा न था कि पुकारे नहीं थे
वो सुनते हीं क्यों जो हमारे नही थे।
हसरत तो थी , चाँद हो जाये मेरा
मुट्ठी में जुगनू थे , तारे नहीं थे।
कोशिश तो थी तैर कर पार कर लें
मौजें तो थी , पर किनारे नहीं थे।
फँसे भीड़ में पर अकेले रहे हम
रिश्ते तो थे , पर सहारे नहीं थे।
नही ले सके उनके रहमोकरम को
ज़रूरत तो थी , पर बेचारे नहीं थे।
२-
साभार google से
दर्द ज़िगर में पाले रखना
लेकिन मुँह पर ताले रखना।
अम्मा तो न सह पायेगी
बँटवारे को टाले रखना।
घुन लग गये शहतीरों में
छत को जरा संभाले रखना
जिनके घर चूल्हे सोते हैं
उनके कण्ठ निवाले रखना
जहाँ रात ज़िद पर बैठी हो
थोड़े -बहुत उजाले रखना
बन जाये न ज़ख्म कहीं
हाथों में मत छाले रखना।।
३-
दरिया ख़फ़ा है मैंने उसे काम लिख दिया
साहिल की रेत पर जो तेरा नाम लिख दिया।
मौजों की कोशिशें भी जब ,नाकाम हो गईं
हैराँ है मैंने कैसे , सरेआम लिख दिया।
चन्दा की चांदनी को भी , तेरी तलाश थी
मैंने पता दिया तेरा , गुलफ़ाम लिख दिया।
चर्चे तो हर जगह थे , तुझको खबर न थी
मजबूर हो मैंने तुझे , पैगाम लिख दिया।
बहती हवा ने हर जगह , बदनाम कर दिया
अपने ही सर पे मैंने ये, इल्ज़ाम लिख दिया।