हिंदी उपन्यास, ‘परीक्षा गुरु’ समालोचनात्मक आलेख (आशीष जायसवाल)
हिंदी उपन्यास, ‘परीक्षा गुरु’ समालोचनात्मक आलेख (आशीष जायसवाल)

आशीष जयसवाल
हिंदी उपन्यास की शुरुआत उसी युग में हुई जिसे हम आधुनिक युग या भारतेंदु युग की संज्ञा देतें हैं ! हिंदी का प्रथम मौलिक उपन्यास कौन है, हिंदी साहित्य में शुरू से ही एक विवाद का विषय रहा है, कुछ विद्वानों ‘ मालती ‘ तो कुछ लोग मनोहर उपन्यास एवम् कई लोग ‘देवरानी जिठानी की कहानी ‘ को हिंदी का प्रथम मौलिकं उपन्यास मानतें है !
परन्तु परीक्षा गुरु पर अब तक सभी की आम सहमति रही है कि पहला उपन्यास यही है ! आचार्य रामचंद्र शुक्ल – अंग्रेजी ढंग का मौलिक उपन्यास पहले-पहल हिंदी में लाला श्रीनिवास दास का ‘परीक्षा गुरु’ ही निकला था ! इससे पहले जो उपन्यास जैसे रचनाओं को रचा गया, परीक्षा गुरु उनसे कई मायनों में नया था जो लाला श्रीनिवास दास भी कहतें है !
‘ अपनी भाषा में अब तक जो पुस्तकें लिखीं गयी है, उनमे अक्सर नायक -नायिका वगैरे का हाल ठेट से सिलसिलेवार (यथाक्रम) लिखा गया है -जैसे कोई राजा ,बादशाह ,सेठ ,साहूकार का लड़का था | उसके मन में इस बात से यह रूचि हुईं एवम् उसका यह परिणाम निकला ऐसे सिलसिला इसमें कुछ भी नहीं होता !……..अपनी भाषा में यह नयी चाल की पुस्तक होगी !
वास्तव में कथा परम्परा में युग परिवर्तन करने वाले लाला श्री निवास दास ही हैं ! प्रेम के परिचित दायरे के बाहर जीवन के अन्य पक्षों पर पहले-पहल इन्ही की दृष्टी गयी ! कथ्य की दृष्टी से परीक्षा गुरु ,देवरानी जिठानी की कहानी, वामा शिक्षक, भाग्यवती आदि की परम्परा में होते हुए भी राष्ट्रीय परिवेश से अधिक जुड़ा हुआ उपन्यास है !
ज्ञानचंद्र जैन के अनुसार -लाला जी ने १८७५ की ‘ हरिश्चंद्र चन्द्रिका ‘ में प्रकाशित अपने ‘भारत खंड की समृद्धि ‘ शीर्षक लेख में इस बात खेद प्रकट किया गया था कि परीक्षा गुरु में यद्यपि देश के पराधीनता के सम्बन्ध लेखन चिंता कहीं व्यक्त नहीं हुई है, पर देशोन्नति का भाव प्रछन्न रूप में उसके मानस में अवश्य है !
परीक्षा गुरु में अध्याय या परिच्छेद के स्थान पर ‘प्रकरण’ शब्द का प्रयोग किया गया है !इसमें उपन्यास को कुल ४३ प्रकरणों में बाँटा गया है ! ज्ञानचंद्र जैन ने माना है कि इतने प्रकरणों में विभक्त होने पर भी परीक्षा गुरु की कथा का घटना काल केवल ५ दिन का है, जो कदाचित ५ अंकों में विभाजित नाटक के सामान है !
परीक्षा गुरु में दिल्ली के एक कल्पित रईस साहूकार दनमोहन के अंग्रेजी सभ्यता की नकल ,अपव्यय ,व्यावसायिक असजगता ,खुशामदी दोस्तों की कपटपूर्ण बातों आदि के कारण बिगड़ने एवम् दिवालिया होने की हद तक पहुँचने एवम् अपनी पतिव्रता पत्नी एवम एक सच्चे मित्र का चित्रण किया गया है !
इसमें प्रतीक के रूप में अंग्रेजों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण एवम लूट का यथार्थ प्रस्तुत किया गया है ,साथ-साथ प्रछन्न रूप में विरोध का स्वर भी सुनाई देता है ! उस समय की तात्कालिक समस्या का पूरा ध्यान लाला श्रीनिवास दास जी को था | वे इतने अनुभवी थे कि अपने ज्ञान ,चिंतन एवम अनुभव को कल्पित कथा के माध्यम से प्रस्तुत कर दिया ! श्रीनिवासदास जी ने उपन्यास में बार बार देशसेवा ,देशोन्नति जैसे शब्दों का प्रयोग किया है ! यह देशोन्नति को राजनितिक एवम सामाजिक सन्दर्भ में नही बल्कि नैतिक सन्दर्भ में ग्रहण करतें हैं ! उपन्यास के विभिन्न प्रसंगों पर गौर किया जाये तो स्पष्ट होता है कि चरित्र की स्वछता ,परोपकार ,निर्धनों, पर करुणा ,विद्याभ्यास आदि गुण देशोन्नति के लिए अनिवार्य हैं !
ब्रजकिशोर उपन्यास में कहता है – “अपने देश में उपयोगी विद्याओं की चर्चा फैलाना ,अच्छी अच्छी पुस्तकों का एवम भाषाओँ में अनुवाद करवाकर अथवा नई बनवाकर अपने देश में प्रचार करने एवम देश के सच्चे शुभचिंतकों एवम् योग्य पुरुषों को उत्तेजना देने एवम कलाओं की अथवा खेती आदि की सच्ची देश हितकारी बातों के प्रचलित करने में सच्चा धर्म समझतें हैं “!
विद्वानों ने इसे समाज सुधार ,देश प्रेम या नैतिक शिक्षा का उपन्यास न मान कर आर्थिक उपन्यास ही माना है क्योंकि इस उपन्यास के केंद्र में व्यापारिक खुशालता एवम वैज्ञानिक प्रबंधन का मूलमंत्र है ! इसका नायक मदनमोहन ऐसे धनाड्य व्यापारियों का प्रतिनिधि है जो अंग्रेजी सभ्यता की ऊपरी तड़क भड़क के प्रभाव में आकर एवम चाटुकार मित्रों की चंगुल में फसकर फिजूलखर्ची करता है और अपना व्यापर चौपट कर लेता है ! परीक्षा गुरु मात्र व्यापारिक प्रबंधन का मूलमंत्र बताने वाला उपन्यास नही है वर्ण उससे कहीं अधिक है ! लाला जी भारतीय औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत अंग्रेजी शिक्षा एवम भारतीय पुरातन शिक्षा प्रणाली की तुलना करतें दिखाई देते है !
मैकाले ने लिखा था – ‘ हमे भारत में इस तरह की श्रेणी पैदा कर देने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए जो उन करोड़ों भारतवासियों केबीच जिन पर हम शासन करतें हैं ,समझाने बुझाने का काम करें ! ये लोग ऐसे होने चाहिए ,जो कि केवल रक्त एवम रंग की दृष्टि से हिन्दोस्तानी हों , किन्तु जो अपनी रूचि , भाषा , भावों एवम विचारों की दृष्टी से अंग्रेज हों !”
श्रीनिवास दास के इस उपन्यास के कथ्य का मूल है – देश की अवनति की चिंता , मदनमोहन एवम उसके चापलूस मित्रों का गुट जैसे पत्रों की योजना द्वारा लेखक ने भारतीयों की अवनति को पहचानने की कोशिश की है ! वे भारत की अवनति एवम इंग्लॅण्ड की उन्नति के कारणों को वैज्ञानिक तर्क से सिद्ध करते प्रतीत होतें हैं !
उपन्यास में ब्रजकिशोर के रूप में लाला जी ने स्वयं को ही चित्रित किया है वह ऐसा आदर्श मात्र है , जो नवजागरण का प्रतिनिधि हो सकता है , वह एक ओर पाश्चात्य ज्ञान -विज्ञानं ,अंग्रेजों की व्यावहारिकता मेहनत आदि गुणों को अपनाता है तो दूसरी तरफ प्रबुद्ध गतिशील भारतीय चेतना की महान परम्परा को आत्मसात किये हुए है और वह चेतना संपन्न नए ज्ञान प्रवाह की जानकारी रखने वाला परिश्रमी व्यक्ति है , जो समझदारी एवम सहिष्णुता से भटके मित्र लाला मदनमोहन को सही राह पर ले आने में सफल होता है ! मदनमोहन पर जब हरकिशोर पैसे के लिए कोर्ट में नालिश कर देता है ,तब सारे चाटुकार मुह मोड़ लेतें हैं एवम मदनमोहन अकेला रह जाता है! ब्रजकिशोर के प्रयास से व्यापारियों का भंडाफोड़ होता है तथा मदनमोहन मुकदमों से पार आ पाता है इस परीक्षा से ही गुजरने पर उसे अहसास हो पाता है की कौन मित्र है कौन शत्रु , अंततः मदनमोहन ने कृत्रिम एवम खोखली जिन्दगी के स्थान पर एक ठोस और यथार्थ एवम मूल्यवादी जीवन जीना शुरू कर दिया !
परीक्षा गुरु अंग्रेजी राज एवम अंग्रेजी बाजार में अंग्रेज सौदागरों की उपस्थिति से भारतीय दमुक वर्ग की युवा पीढ़ी ,उनसे प्रभावित होकर नए प्रकार के आचार विचार अपना रही थी ! फलस्वरूप भारतीय उद्योग -धंधों व्यवसाय एवम खान -पान को देखकर अपने जीवन में उतरने की कोशिश कर रहे थे ,जो सही दिशा में प्रगति नही हो रही थी एवम देश का आर्थिक विकास बाधित हो रहा था ! परीक्षा गुरु अपने समय के तात्कालिक राजनीतिक प्रसंग जैसे वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट १८५७ का वस्त्र आयत के खिलाफ आन्दोलन आर्म एक्ट आदि को लेकर चल रहा था !
परीक्षा गुरु के वर्ण्य विषय पर विचार किया जाये तो संक्षेप में कहा जा सकता है कि परीक्षा गुरु उपन्यास में बहुरूपता है, उपन्यास में जीवन अपने सत्य रूप में बहुत अच्छे ढंग से स्पष्ट हुआ है ! उसकी रचना का उदेश्य मनोरंजन मात्र न होकर जनमानस को जागृत करना है ! उपन्यास में सत्य ,न्याय ,उदारता ,त्याग ,इत्यादि, मानवीय मूल्यों पर बल दिया गया है ! भारतीय संस्कृति एवम सदाचार पर बल देने के साथ ही उपन्यास में नवीनता को संभलकर स्वीकार करने का आग्रह किया गया है ! उपन्यास कथोपकथन प्रधान है ! उपन्यास की भाषा सरल एवम स्वाभाविक हिंदी है , उपन्यास में संस्कृत ,फारसी,उर्दू,अंग्रेजी,आदि भाषाओँ के शब्दों का सुन्दर प्रयोग किया गया है अतः यह वर्तमान समय के वातावरण में भी अत्यंत उपयोगी एवम प्रासंगिक सिद्ध हो सकता है ! भारत को और आगे ले जाने ,लोगों के अंदर नैतिकता का उपदेश देने हेतु आज भी ये उपन्यास सहायक हो सकता है !
आशीष जायसवाल
हिंदी का पहला उपन्यास - परीक्षा गुरु
हिंदी उपन्यास की शुरुआत उसी युग में हुई जिसे हम आधुनिक युग या भारतेंदु युग की संज्ञा देतें हैं ! हिंदी का प्रथम मौलिक उपन्यास कौन है, हिंदी साहित्य में शुरू से ही एक विवाद का विषय रहा है, कुछ विद्वानों ‘ मालती ‘ तो कुछ लोग मनोहर उपन्यास एवम् कई लोग ‘देवरानी जिठानी की कहानी ‘ को हिंदी का प्रथम मौलिकं उपन्यास मानतें है !
परन्तु परीक्षा गुरु पर अब तक सभी की आम सहमति रही है कि पहला उपन्यास यही है ! आचार्य रामचंद्र शुक्ल – अंग्रेजी ढंग का मौलिक उपन्यास पहले-पहल हिंदी में लाला श्रीनिवास दास का ‘परीक्षा गुरु’ ही निकला था ! इससे पहले जो उपन्यास जैसे रचनाओं को रचा गया, परीक्षा गुरु उनसे कई मायनों में नया था जो लाला श्रीनिवास दास भी कहतें है !
‘ अपनी भाषा में अब तक जो पुस्तकें लिखीं गयी है, उनमे अक्सर नायक -नायिका वगैरे का हाल ठेट से सिलसिलेवार (यथाक्रम) लिखा गया है -जैसे कोई राजा ,बादशाह ,सेठ ,साहूकार का लड़का था | उसके मन में इस बात से यह रूचि हुईं एवम् उसका यह परिणाम निकला ऐसे सिलसिला इसमें कुछ भी नहीं होता !……..अपनी भाषा में यह नयी चाल की पुस्तक होगी !
वास्तव में कथा परम्परा में युग परिवर्तन करने वाले लाला श्री निवास दास ही हैं ! प्रेम के परिचित दायरे के बाहर जीवन के अन्य पक्षों पर पहले-पहल इन्ही की दृष्टी गयी ! कथ्य की दृष्टी से परीक्षा गुरु ,देवरानी जिठानी की कहानी, वामा शिक्षक, भाग्यवती आदि की परम्परा में होते हुए भी राष्ट्रीय परिवेश से अधिक जुड़ा हुआ उपन्यास है !
ज्ञानचंद्र जैन के अनुसार -लाला जी ने १८७५ की ‘ हरिश्चंद्र चन्द्रिका ‘ में प्रकाशित अपने ‘भारत खंड की समृद्धि ‘ शीर्षक लेख में इस बात खेद प्रकट किया गया था कि परीक्षा गुरु में यद्यपि देश के पराधीनता के सम्बन्ध लेखन चिंता कहीं व्यक्त नहीं हुई है, पर देशोन्नति का भाव प्रछन्न रूप में उसके मानस में अवश्य है !
परीक्षा गुरु में अध्याय या परिच्छेद के स्थान पर ‘प्रकरण’ शब्द का प्रयोग किया गया है !इसमें उपन्यास को कुल ४३ प्रकरणों में बाँटा गया है ! ज्ञानचंद्र जैन ने माना है कि इतने प्रकरणों में विभक्त होने पर भी परीक्षा गुरु की कथा का घटना काल केवल ५ दिन का है, जो कदाचित ५ अंकों में विभाजित नाटक के सामान है !
परीक्षा गुरु में दिल्ली के एक कल्पित रईस साहूकार दनमोहन के अंग्रेजी सभ्यता की नकल ,अपव्यय ,व्यावसायिक असजगता ,खुशामदी दोस्तों की कपटपूर्ण बातों आदि के कारण बिगड़ने एवम् दिवालिया होने की हद तक पहुँचने एवम् अपनी पतिव्रता पत्नी एवम एक सच्चे मित्र का चित्रण किया गया है !
इसमें प्रतीक के रूप में अंग्रेजों द्वारा भारत के आर्थिक शोषण एवम लूट का यथार्थ प्रस्तुत किया गया है ,साथ-साथ प्रछन्न रूप में विरोध का स्वर भी सुनाई देता है ! उस समय की तात्कालिक समस्या का पूरा ध्यान लाला श्रीनिवास दास जी को था | वे इतने अनुभवी थे कि अपने ज्ञान ,चिंतन एवम अनुभव को कल्पित कथा के माध्यम से प्रस्तुत कर दिया ! श्रीनिवासदास जी ने उपन्यास में बार बार देशसेवा ,देशोन्नति जैसे शब्दों का प्रयोग किया है ! यह देशोन्नति को राजनितिक एवम सामाजिक सन्दर्भ में नही बल्कि नैतिक सन्दर्भ में ग्रहण करतें हैं ! उपन्यास के विभिन्न प्रसंगों पर गौर किया जाये तो स्पष्ट होता है कि चरित्र की स्वछता ,परोपकार ,निर्धनों, पर करुणा ,विद्याभ्यास आदि गुण देशोन्नति के लिए अनिवार्य हैं !
ब्रजकिशोर उपन्यास में कहता है – “अपने देश में उपयोगी विद्याओं की चर्चा फैलाना ,अच्छी अच्छी पुस्तकों का एवम भाषाओँ में अनुवाद करवाकर अथवा नई बनवाकर अपने देश में प्रचार करने एवम देश के सच्चे शुभचिंतकों एवम् योग्य पुरुषों को उत्तेजना देने एवम कलाओं की अथवा खेती आदि की सच्ची देश हितकारी बातों के प्रचलित करने में सच्चा धर्म समझतें हैं “!
विद्वानों ने इसे समाज सुधार ,देश प्रेम या नैतिक शिक्षा का उपन्यास न मान कर आर्थिक उपन्यास ही माना है क्योंकि इस उपन्यास के केंद्र में व्यापारिक खुशालता एवम वैज्ञानिक प्रबंधन का मूलमंत्र है ! इसका नायक मदनमोहन ऐसे धनाड्य व्यापारियों का प्रतिनिधि है जो अंग्रेजी सभ्यता की ऊपरी तड़क भड़क के प्रभाव में आकर एवम चाटुकार मित्रों की चंगुल में फसकर फिजूलखर्ची करता है और अपना व्यापर चौपट कर लेता है ! परीक्षा गुरु मात्र व्यापारिक प्रबंधन का मूलमंत्र बताने वाला उपन्यास नही है वर्ण उससे कहीं अधिक है ! लाला जी भारतीय औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत अंग्रेजी शिक्षा एवम भारतीय पुरातन शिक्षा प्रणाली की तुलना करतें दिखाई देते है !
मैकाले ने लिखा था – ‘ हमे भारत में इस तरह की श्रेणी पैदा कर देने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए जो उन करोड़ों भारतवासियों केबीच जिन पर हम शासन करतें हैं ,समझाने बुझाने का काम करें ! ये लोग ऐसे होने चाहिए ,जो कि केवल रक्त एवम रंग की दृष्टि से हिन्दोस्तानी हों , किन्तु जो अपनी रूचि , भाषा , भावों एवम विचारों की दृष्टी से अंग्रेज हों !”
श्रीनिवास दास के इस उपन्यास के कथ्य का मूल है – देश की अवनति की चिंता , मदनमोहन एवम उसके चापलूस मित्रों का गुट जैसे पत्रों की योजना द्वारा लेखक ने भारतीयों की अवनति को पहचानने की कोशिश की है ! वे भारत की अवनति एवम इंग्लॅण्ड की उन्नति के कारणों को वैज्ञानिक तर्क से सिद्ध करते प्रतीत होतें हैं !
उपन्यास में ब्रजकिशोर के रूप में लाला जी ने स्वयं को ही चित्रित किया है वह ऐसा आदर्श मात्र है , जो नवजागरण का प्रतिनिधि हो सकता है , वह एक ओर पाश्चात्य ज्ञान -विज्ञानं ,अंग्रेजों की व्यावहारिकता मेहनत आदि गुणों को अपनाता है तो दूसरी तरफ प्रबुद्ध गतिशील भारतीय चेतना की महान परम्परा को आत्मसात किये हुए है और वह चेतना संपन्न नए ज्ञान प्रवाह की जानकारी रखने वाला परिश्रमी व्यक्ति है , जो समझदारी एवम सहिष्णुता से भटके मित्र लाला मदनमोहन को सही राह पर ले आने में सफल होता है ! मदनमोहन पर जब हरकिशोर पैसे के लिए कोर्ट में नालिश कर देता है ,तब सारे चाटुकार मुह मोड़ लेतें हैं एवम मदनमोहन अकेला रह जाता है! ब्रजकिशोर के प्रयास से व्यापारियों का भंडाफोड़ होता है तथा मदनमोहन मुकदमों से पार आ पाता है इस परीक्षा से ही गुजरने पर उसे अहसास हो पाता है की कौन मित्र है कौन शत्रु , अंततः मदनमोहन ने कृत्रिम एवम खोखली जिन्दगी के स्थान पर एक ठोस और यथार्थ एवम मूल्यवादी जीवन जीना शुरू कर दिया !
परीक्षा गुरु अंग्रेजी राज एवम अंग्रेजी बाजार में अंग्रेज सौदागरों की उपस्थिति से भारतीय दमुक वर्ग की युवा पीढ़ी ,उनसे प्रभावित होकर नए प्रकार के आचार विचार अपना रही थी ! फलस्वरूप भारतीय उद्योग -धंधों व्यवसाय एवम खान -पान को देखकर अपने जीवन में उतरने की कोशिश कर रहे थे ,जो सही दिशा में प्रगति नही हो रही थी एवम देश का आर्थिक विकास बाधित हो रहा था ! परीक्षा गुरु अपने समय के तात्कालिक राजनीतिक प्रसंग जैसे वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट १८५७ का वस्त्र आयत के खिलाफ आन्दोलन आर्म एक्ट आदि को लेकर चल रहा था !
परीक्षा गुरु के वर्ण्य विषय पर विचार किया जाये तो संक्षेप में कहा जा सकता है कि परीक्षा गुरु उपन्यास में बहुरूपता है, उपन्यास में जीवन अपने सत्य रूप में बहुत अच्छे ढंग से स्पष्ट हुआ है ! उसकी रचना का उदेश्य मनोरंजन मात्र न होकर जनमानस को जागृत करना है ! उपन्यास में सत्य ,न्याय ,उदारता ,त्याग ,इत्यादि, मानवीय मूल्यों पर बल दिया गया है ! भारतीय संस्कृति एवम सदाचार पर बल देने के साथ ही उपन्यास में नवीनता को संभलकर स्वीकार करने का आग्रह किया गया है ! उपन्यास कथोपकथन प्रधान है ! उपन्यास की भाषा सरल एवम स्वाभाविक हिंदी है , उपन्यास में संस्कृत ,फारसी,उर्दू,अंग्रेजी,आदि भाषाओँ के शब्दों का सुन्दर प्रयोग किया गया है अतः यह वर्तमान समय के वातावरण में भी अत्यंत उपयोगी एवम प्रासंगिक सिद्ध हो सकता है ! भारत को और आगे ले जाने ,लोगों के अंदर नैतिकता का उपदेश देने हेतु आज भी ये उपन्यास सहायक हो सकता है !