डॉ. जितेंद्र रघुवंशी के ६६वें जन्मदिन पर समर्पित
मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के सहायोग से रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान कीनाट्य प्रस्तुति
कन्यादान
धीरज मिश्रा
दो माह के अथक परिश्रम के बाद विजय तेंदुलकर कृत नाटक ‘कन्यादान’ का मंचन १६ सितम्बर, २०१६ को आगरा के सूरसदन प्रेक्षागृह में हुआ. मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल के सहयोग से रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान, आगरा द्वारा यह नाट्य प्रस्तुति दी गयी. रंगलोक की यह नाट्य प्रस्तुति इप्टा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव एवं जन नाट्य आन्दोलन के नवजागरण के सूत्रधार, स्व० डॉ. जितेन्द्र रघुवंशी को समर्पित थी. १३ सितम्बर को डॉ. रघुवंशी का ६६वां जन्मदिन था.
विजय तेंदुलकर उन विलक्षण नाटककारों में से एक हैं जो यथार्थ का चित्रण उसके मूल स्वरुप में ही करते हैं. उनके नाटक भारतीय समाज की तीखी आलोचना करते हैं. पित्रसत्ता वाले इस समाज में स्त्री की परिस्थिति उनके नाटकों के केंद्र में रही हैं. विजय तेंदुलकर के नाटक मानवीय रिश्तों की जटिलताओं और विषमताओं की गहरी पड़ताल करते हैं.
नाटक के एक दृश्य में गरिमा मिश्रा (ज्योति), प्रखर सिंह (नाथ जी) व रेनू मुस्कान (सेवा)
नाटक कन्यादान जाति व्यवस्था से सड़े गले भारतीय समाज की तीखी आलोचना है. दलित विमर्श में चल रही दो विचारधाराओं के बीच का द्वन्द है. यह नाटक है हमारे समाज में मान्यता प्राप्त वैचारिक धारणाओं और कठोर यथार्थ के बीच उभरते प्राणलेवा संघर्ष का- मनुष्य और उसकी प्रवृत्तियों के बीच का संघर्ष.
अंतरजातीय विवाह पर आधारित यह नाटक केवल पति और पत्नी के रिश्तों के बारे में ही नहीं है वरन नाथ के विचारों के बारे में है जो एक गांधीवादी विचारक है. धीरे-धीरे नाथ के टूटते विश्वास की कहानी है यह नाटक. साथ ही यह नाटक पित्रसत्ता पर भी चोट करता है. सामाजिक परिवर्तन के मंथन में लगातार टकराते-टूटते-उभरते हुए भारतीय समाज के सामने मुंह बाए कड़ी एक भीषण समस्या का झुलसता उद्घाटन है नाटक कन्यादान.
नाटक के चयन से लेकर उसके मंचन तक की प्रक्रिया के बीच कलाकार कई वैचारिक मतभेदों से गुज़रे. कई बार चर्चा इस
प्रखर सिंह और गरिमा मिश्रा
मुक़ाम तक पहुँच जाती कि लगता इस स्क्रिप्ट को ड्रॉप कर के किसी और स्क्रिप्ट पर काम करते हैं. कुछ साथियों का सुझाव था की नाटक का अंत बदल दिया जाए लेकिन तब नाटककार के साथ न्याय ना होता. लम्बी कश्मकश के बाद ये तय हुआ की नाटक को पूरी ज़िम्मेदारी के साथ उसकी मूल स्क्रिप्ट के साथ ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया जाए और सही ग़लत का निर्णय दर्शकों पर छोड़ दिया जाए. आख़िर सामाजिक मुद्दों का समाधान समाज के बीच से ही आना चाहिए. अन्य गम्भीर नाटकों के तरह ही ‘ कन्यादान’ के साथ भी ये डर लगातार बना हुआ था कि नाटक बोझिल ना हो जाए.
बहरहाल, तमाम जटिलताएँ के साथ रिहर्सल चलती रही. युवा साथी, मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल से स्नातक गरिमा मिश्रा ने निर्देशन की ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया.
पात्र परिचय के समय नाटक ‘कन्यादान’ के अभिनेता, निर्देशक व पार्श्व मंच सहयोगी
कम पात्रों वाले नाटक के चयन के समय ये विचार भी था कि अभिनेताओं को ख़ुद पर काम करने के लिए पर्याप्त समय मिले. कहना होगा कि बतौर अभिनेता गरिमा मिश्रा (ज्योति), प्रखर सिंह (नाथ जी), रेनू मुस्कान (सेवा), यश उप्रेती (अरुण अठावले), शैलेंद्र यादव (जय प्रकाश), रोहित राठोर (अतिथि) ने दर्शकों को बांधे रखा.
नाट्य परिकल्पना व मंच परिकल्पना सारांश भट्ट की थी. सोचिए नाटक के मंचन के लिए पूर्व निर्धारित स्थान में ५ दिन पूर्व परिवर्तन हो जाए.. तब??? तब सारांश जैसे प्रशिक्षित कलाकार ही नैया पार लगा सकते हैं. मंच निर्माण में आकाश कुमार, रोहित राठोर, जितेंद्र चौहान, इमरान कुरेशी ने सहयोग किया.
प्रकाश परिकल्पना व संचालन के लिए साथी भूषण शिम्पी हमारे साथ थे. भूषण मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित हैं और वर्तमान में मुंबई में स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे हैं.
नाटक के एक दृश्य में शैलेन्द्र सिंह (जय प्रकाश), गरिमा मिश्रा (ज्योति), प्रखर सिंह (नाथ जी) व रेनू मुस्कान (सेवा)
संगीत संयोजन व संचालन हर्षिता मिश्रा एवं धीरज मिश्रा ने संभाला.
पूर्व में रंगलोक द्वारा मंचित नाटकों के चित्रों की ख़ूबसूरत प्रदर्शनी आकृति सारस्वत, संस्कार जोशी और इशिता भटनागर ने लगाई.
दीपक जैन, डॉ. विजय शर्मा व अमन मित्तल जैसे साथियों के सहयोग से यह मंचन सफल हो सका.
कार्यक्रम का संचालन संयोजक, डिम्पी मिश्रा ने किया.
प्रस्तुति के समय आयकर आयुक्त आगरा श्री अमित सिंह, हिंदुस्तान कॉलेज आफ़ मैनेजमेंट स्टडीज़ के निदेशक डॉ. नवीन गुप्ता, रंगलोक के संरक्षक डॉ. सुबोध दुबे, प्रख्यात कवयित्री डॉ. शशि तिवारी, वरिष्ठ रंग निर्देशक बसंत रावत, आदि गणमान्य दर्शक उपस्थित थे.