365 दिन के सफ़र में “हमरंग”
(हनीफ मदार)
हनीफ मदार
साथियो
जहाँ समय का अपनी गति से चलते रहना प्राकृतिक है, वहीँ वक्ती तौर पर चलते हुए अपने निशान छोड़ना इंसानी जूनून है | वक़्त के उन्हीं पदचापों के अनेक खट्टे-मीठे, अहसासों और घटना-परिघटनाओं से सीखते-समझते हुए ‘हमरंग’ ने आज एक वर्ष का सफ़र तय कर ही लिया | अंकों के लिहाज़ से यह “एक” भले ही सबसे छोटी इकाई हो लेकिन यह एक वर्ष 365 दिन की वह यात्रा है जिसका हर दिन कुछ नई उपलब्धियों, चुनौतियों, उर्जा और अवसाद लिए अलग-अलग रूप एवं कलेवर में प्रस्तुत होता रहा है | गोया आज हमरंग के इस एक वर्ष के सफ़र को, हम, जीवन की अविस्मर्णीय यादों की एक बेशकीमती पोटली के रूप में पा रहे हैं | समय की दृष्टि से यथा संभव हमरंग की लम्बी यात्रा के पहले पड़ाव पर पहुंचकर इस यात्रा के कुछ अनुभव मैं आपके साथ बाँट लेना चाह रहा हूँ | यह इसलिए भी कि इस सफ़र के हर दिन से जूझने, संघर्ष करने और दिशा देने की जिम्मेदारी भले ही हमारी थी लेकिन उन चुनौतियों पर काबिज़ होने की ताक़त और समझ आपके साथ होने, आपकी हौसला अफज़ाई और आपके अटूट विश्वास से ही मिली है |
365 दिन के सफ़र में “हमरंग”
हनीफ मदार
साथियो
जहाँ समय का अपनी गति से चलते रहना प्राकृतिक है, वहीँ वक्ती तौर पर चलते हुए अपने निशान छोड़ना इंसानी जूनून है | वक़्त के उन्हीं पदचापों के अनेक खट्टे-मीठे, अहसासों और घटना-परिघटनाओं से सीखते-समझते हुए ‘हमरंग’ ने आज एक वर्ष का सफ़र तय कर ही लिया | अंकों के लिहाज़ से यह “एक” भले ही सबसे छोटी इकाई हो लेकिन यह एक वर्ष 365 दिन की वह यात्रा है जिसका हर दिन कुछ नई उपलब्धियों, चुनौतियों, उर्जा और अवसाद लिए अलग-अलग रूप एवं कलेवर में प्रस्तुत होता रहा है | गोया आज हमरंग के इस एक वर्ष के सफ़र को, हम, जीवन की अविस्मर्णीय यादों की एक बेशकीमती पोटली के रूप में पा रहे हैं | समय की दृष्टि से यथा संभव हमरंग की लम्बी यात्रा के पहले पड़ाव पर पहुंचकर इस यात्रा के कुछ अनुभव मैं आपके साथ बाँट लेना चाह रहा हूँ | यह इसलिए भी कि इस सफ़र के हर दिन से जूझने, संघर्ष करने और दिशा देने की जिम्मेदारी भले ही हमारी थी लेकिन उन चुनौतियों पर काबिज़ होने की ताक़त और समझ आपके साथ होने, आपकी हौसला अफज़ाई और आपके अटूट विश्वास से ही मिली है |
‘हमरंग’ की एक वर्षीय यात्रा पर लिखी जाने वालीं यह पंक्तियाँ हमारी कोई आत्ममुग्धता नहीं है अपितु आपके हिस्से की वह हर्षानुभूति है जो खुद व् खुद शब्द ग्रहण कर रही है | क्या आपको नहीं लगता कि ऐसा होना इसलिए भी लाज़मी है कि महज़ इस एक वर्ष में 70 कहानियां, दो उपन्यास, 600 कवितायें, 80 समसामयिक आलेख, 60 व्यंग्य, 8 नाटक, 24 समीक्षाएं, 25 फिल्मों से जुड़े महत्वपूर्ण आलेख, 9 संस्मरण, 15 लिखित एवं विडियो साक्षात्कार, यात्रावृत्तांत, स्मृतियों के अलावा 24 संपादकीय आलेखों के साथ एक हज़ार से ज्यादा रचनाएं यहाँ प्रकाशित एवं संकलित हुईं जिन्हें करीब 60000 से ज्यादा पाठकों ने पढ़ा सराहा और अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियां लिखीं | हमरंग से पाठकों का बड़ी संख्या में जुड़ाव के कारण ही ‘ऐलेक्सा’ पर हमरंग की ग्लोबल रैंक जहाँ 3.75 करोड़ से शुरू होकर 3 लाख से नीचे तक पहुंची वहीँ भारतीय रैंक 2 लाख से शुरू होकर 9600 तक पहुंची हालांकि अनेक चुनौतियों और अभावों के प्रभाव में हम अपनी उस रैंक को स्थाई रख पाने में सफल नहीं रह पाए, किन्तु आज भी ग्लोबल रैंक 300000 से नीचे और भारतीय रैंक 30000 के पास है जिसे फिर से आपके स्नेह के बल पर अवश्य ही कम करने की दिशा में बढ़ेंगे | यूं हमारी कोशिश रही कि हमरंग अपने निश्चित उद्देश्यों के साथ विशुद्ध ‘साहित्यिक वेब पोर्टल’ के रूप में आपके बीच मौजूद रहे | बावजूद इसके, इन आंकड़ों के आधार पर हम अपनी कोशिशों में कितने कामयाब रहे हैं यह आप तय करें और यह भी आप ही तय करेंगे कि हमरंग की साहित्यिक गरिमा बनाए रखने में हमारा प्रयास कितना सफल रहा है | यदि यह स्थिति संतोषजनक है तो इसके लिए लेखकों का बेहतर रचनाकर्म और पाठकों से मिला स्नेह ही जिम्मेदार है | खामियों के लिए स्वम् हम |
इस पूरी समयावधि में उभरते युवा लेखकों को स्थान देने की हमारी पुरजोर कोशिश रही है नतीज़तन अभिनव निरंजन, नाज़िश अंसारी, सुशील कुमार भारद्वाज, सीमा आरिफ़, संध्या नवोदिता, आशीष जयसवाल, पुलकित फिलिप, आशिका सिवांगी जैसे युवा लेखकों को हमरंग से जुड़कर एक नई और बड़ी पहचान मिली और अन्य पत्र-पत्रिकाओं इनकी रचनाएं प्रकाशित हुईं | जहाँ समागम, सुखनवर, अर्बाबे क़लम, जनमत, वर्तमान साहित्य, दैनिक जागरण आदि प्रिंट पत्र-पत्रिकाओं में हमरंग से ली गईं रचनाओं का प्रकाशन हुआ वहीँ इन्टरनेट चैनल ‘न्यूज़ क्लिक हिंदी’ पर हमरंग के कुछ संपादकीय आलेखों का प्रकाशन महत्वपूर्ण रहा | इन प्रयासों के में देश भर के वरिष्ठ और स्थापित लेखकों का रचनात्मक सहयोग, युवा लेखकों और हमरंग परिवार के लिए साहित्य पाठशाला की भूमिका निभाता रहा | बावजूद इसके पूरे वर्ष में हर रोज़ कम-अज-कम एक लेखक के लिहाज़ से 365 लेखकों को हमरंग से जोड़ने के अपने लक्ष्य से कुछ पीछे रह कर हम २०० लेखकों को जोड़ने में ही सफल हो सके | हालांकि हमरंग के प्रति आपका प्यार और विश्वास यूं ही बना रहा तो निश्चित ही आगे के सफर में देश-दुनिया के लेखकों का उत्कृष्ट रचनात्मक सहयोग हमरंग को अवश्य मिलता रहेगा… ऐसी अपेक्षा है और हम प्रयासरत हैं |
हाँ ! ‘यह सफ़र नहीं है आसां’ का आभास इस सफ़र में कई बार हुआ जब आर्थिक, समय या संसाधनों के अभाव से जूझना पड़ा किन्तु साथियों, सहयोगियों से निरंतर मिलता हौसला चलते रहने की उर्जा भी देता रहा | ऐसी परिस्थितियों और मुश्किलों में चलते हुए भी हमरंग ने “भाषा और शिक्षा साहित्य” विषय पर ‘प्रेमपाल शर्मा’ द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन मथुरा में किया जिसमें ‘नकुल साहनी’ और ‘नित्यानंद गायेन’ का अभूतपूर्व सहयोग प्राप्त हुआ |
दुनिया में कुछ सार्थक और बड़ा करने का सपना बहुत लोग देखते हैं और निश्चित ही देखना चाहिए किन्तु अच्छे दोस्त, साथियों, सार्थक उद्देश्यों और ईमानदार प्रयासों के अभाव में वे सपने अक्सर ही दम तोड़ देते हैं | यहाँ, बहुत कम वक़्त में अनेक ऐसे साथी, सहयोगी, और आत्मीयजन मिले जिनकी चर्चा के बिना हमरंग के सफर की यह चर्चा मुकम्मल नहीं होती | मैं यहाँ, भाई ‘अनवर सुहैल’ की भूमिका को जरूर याद करना चाहता हूँ, भले ही हमरंग के संपादक मंडल में शामिल होने के चलते यह उनकी जिम्मेदारी ही थी | किन्तु सारा दिन ‘कोयला खान’ में उतरकर दीन-दुनिया से कटे रहने के बावजूद देर रात तक खुद के लेखन और परिवार से समय काटकर, किया गया उनका परिश्रम हमरंग के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं रहा |
हालांकि ऐसा भी नहीं कि यहाँ सब कुछ बेहद सहज और हँसते हुए ही चलता रहा हो | हमरंग टीम के सभी साथियों का गंभीर रूप से थिएटर, फिल्म, लेखन, अध्यापन से जुड़े होने के कारण पैदा होतीं व्यस्तताओं के चलते कई दफा कार्य अधिकता और समयाभाव मतभेद का कारण बना तो कभी राजनीतिक, वैचारिक बहसों ने वक़्त निकाला | व्यस्त समय में भी अनीता जी ने, न केवल कई संपादकीय आलेख लिखे बल्कि हमरंग के प्रति उनके उत्साह से मुझे हौसला भी मिलता रहा | हालांकि शुरू के महीनों में ‘मज़कूर आलम’ का सहयोग भी मिलता रहा लेकिन ‘उबलते दूध में उठने वाले उफान के एकदम से बैठ जाने’ की तरह मज़कूर आलम गहरी नींद सो गए, हालांकि अब फिर से जागे हुए हैं |
कुछ वर्षों पहले इंटरनेट के माध्यम से इस आभासी दुनिया का हमारे जीवन में प्रवेश किसी दैवीय घटना की तरह था | आज भी डिजिटल होने की दिशा में अग्रसर भारत के लोग इस माध्यम को कितना सीख, समझ और जान पाए हैं यह अभी भी एक सवाल की तरह ही है | तब निश्चित ही हम लोग भी उसी सीखने समझने की प्रक्रिया से गुजरते हुए इस सफ़र को तय कर रहे हैं | यह जानकारी के अभाव का ही नतीज़ा था कि ‘हमरंग का शुरूआती स्वरूप कई तकनीकी अभावों के साथ आया | ऊपर से आर्थिक कारण के चलते किसी प्रोफेशनल व्यक्ति से हमरंग का लोगो डिजायन कराना कल्पना से परे था | शायद सब कुछ यूं ही चलता रहता यदि ‘सीमा आरिफ़’ और उनके मित्र ‘अजय कुमार’ का मथुरा आना न होता | ‘सीमा’ का आग्रह था हमरंग का लोगो बदलने का और उनके मित्र अजय ने बेहद आत्मिक होकर वर्तमान लोगो डिजायन किया | यहाँ ‘राकेश सैनी’ का आभार कहना भी आवश्यक है जिन्होंने महीने भर की लम्बी मशक्कत के बाद हमरंग के कलेवर को बदलकर बेहद आकर्षक रूप प्रदान किया है |
इधर ! ठीक एक वर्ष का सफ़र पूरा होते-होते ‘हमरंग’ को वैधता प्रदान होने के रूप में (ISSN) न० का मिलना, शोधार्थियों के शोध आलेखों के प्रकाशन के लिए एक और विकल्प का आ जाना है | यूं भी शोधर्थियों को ‘हमरंग’ का किसी न किसी रूप में लाभ मिल सके, यह शुरू से ही हमारे उद्देश्यों में शामिल रहा है |
साथ ही बच्चों की दुनिया को ध्यान में रखते हुए हमरंग पर ‘बाल साहित्य’ उपलब्ध करने और बच्चों की साहित्यिक व कलात्मक रचनाधर्मिता को ‘हमरंग’ पर स्थान देने की दिशा में भी अग्रसर हैं | अतः देश के बचपन के लिए इस महत्वपूर्ण कार्य में हम लेखकों से रचनात्मक सहयोग के रूप में ‘बाल साहित्यिक’ रचनाओं को भेजने का निवेदन और अपेक्षा करते हैं |
हालांकि दोस्तों हम बहुत जल्दी में नहीं हैं न ही यह एक वर्ष पूरा होने का कोई अतरिक्त जोश है बल्कि आप सभी पाठकों के प्यार, लेखकों के रचनात्मक सहयोग और हमरंग की पूरी टीम के प्रति मेरी व्यक्तिगत ह्रदय अभिव्यक्ति है | आपके साथ होने के हौसले से लाख अभावों में भी यह सफर निश्चित ही बहुत लंबा होगा क्योंकि में आशान्वित हूँ ‘दुष्यंत कुमार’ की इस लाइन की तरह “न हो कमीज़ तो पांओं से पेट ढंक लेंगे, ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए” |
धन्यबाद