डा0 भीमराव अम्बेडकर को पढने की जरूरत है: संपादकीय (हनीफ मदार)

अपनी बात अपनी बात

हनीफ मदार 527 11/17/2018 12:00:00 AM

डा0 भीमराव अम्बेडकर को पढने की जरूरत है हनीफ मदार दलित चिंतन के बिना साहित्य या समाज को पूर्णता न मिल पाना एक व्यावहारिक यथार्थ है कि बिना दलित समाज या उस वर्ग पर बात किये हम अपने समय समाज को गति प्रदान नहीं कर सकते | और यह इस लिए भी कि दलित वर्ग वस्तुगत रूप से श्रमिक वर्ग से सम्बद्ध रहा है | ग्रामीण भारतीय समाज में प्रारम्भ से ही दलित वर्ग की अद्धुतीय भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, कारणतः समाज को उसकी अनुपस्थिति में सामाजिक विकास की गति ही नहीं मिल सकती | लेकिन विडम्बना रही है कि सदियों से इस वर्ग की न केवल उपेक्षा की गई बल्कि उसे इंसान होने का अधिकार भी नहीं दिया गया | मानव सभ्यता के विकास का युग कोई भी रहा हो किन्तु सत्ता और शासन ने भारतीय समाज की इस वर्णवादी व्यवस्था को बदलने की कोशिश नहीं की | बीसवीं शताब्दी तक अंग्रेज शासन भी वर्णवादी व्यवस्था के कर्णधारों से परोक्षतः परस्पर हितों के लिए स्वार्थी गठबंधन ही कर रहा था |

डा0 भीमराव अम्बेडकर को पढने की जरूरत है  

हनीफ मदार

दलित चिंतन के बिना साहित्य या समाज को पूर्णता न मिल पाना एक व्यावहारिक यथार्थ है कि बिना दलित समाज या उस वर्ग पर बात किये हम अपने समय समाज को गति प्रदान नहीं कर सकते | और यह इस लिए भी कि दलित वर्ग वस्तुगत रूप से श्रमिक वर्ग से सम्बद्ध रहा है | ग्रामीण भारतीय समाज में प्रारम्भ से ही दलित वर्ग की अद्धुतीय भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, कारणतः समाज को उसकी अनुपस्थिति में सामाजिक विकास की गति ही नहीं मिल सकती | लेकिन विडम्बना रही है कि सदियों से इस वर्ग की न केवल उपेक्षा की गई बल्कि उसे इंसान होने का अधिकार भी नहीं दिया गया |
मानव सभ्यता के विकास का युग कोई भी रहा हो किन्तु सत्ता और शासन ने भारतीय समाज की इस वर्णवादी व्यवस्था को बदलने की कोशिश नहीं की | बीसवीं शताब्दी तक अंग्रेज शासन भी वर्णवादी व्यवस्था के कर्णधारों से परोक्षतः परस्पर हितों के लिए स्वार्थी गठबंधन ही कर रहा था |
हालांकि भारतीय समाज और साहित्य की लम्बी यात्रा में वर्णवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष एवं दलित विमर्श के सूत्र मिलते तो हैं जहाँ बौद्धों, जैनों, सिद्धों, नाथों, सूफियों तथा भक्तिकाल के संतों ने वर्णवाद की सामाजिक आर्थिक विषमताओं को न केवल चुनौती दी अपितु शूद्रों तथा अछूतों को समाज में मानवीय दर्जे की पक्षधरता भी की | किन्तु उत्तर आधुनिक समय के सबसे करीब में डा0 भीमराव अम्बेडकर को आधुनिक विचारों एवं दलित चेतना के महानायक के रूप में देखा गया | कहना न होगा कि यदि डा0 अम्बेडकर ने दलित समस्या को सही परिपेक्ष्य में प्रस्तुत न किया होता तो दलित समस्या को लेकर तात्कालीन भारतीय राजनीति में दलितों के साथ जो नया चक्रव्यूह चल रहा था उसका पर्दाफास नहीं होता और दलित हरिजन नाम के दल दल में फंसकर रह जाते |
तातकालीन राजनीति ने भले ही डा0 भीमराव अम्बेडकर को संविधान सभा के सदस्य तथा प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किया बावजूद उसके लेकिन दलित वर्ग के लिए डा0 अम्बेडकर अपनी मांग के अनुरूप बहुत कम ही प्राप्त कर सके क्योंकि संविधान सभा के समक्ष डा0 अम्बेडकर के ज्यादातर प्रगतिशील प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया गया | निश्चित ही यह वर्णवाद पोषक मानसिकता के तात्कालीन प्रभाव को भी इंगित करता है |
इधर बीसवीं शताब्दी के आरम्भ के समाजशास्त्रियों और वैज्ञानिकों द्वारा उस सदी को तर्क, विवेक और बदलाव का युग कहना एवं विश्वास के साथ यह घोषणा करना कि हमारा समय उन सामाजिक विकृत रूपों का भी उदघाटन करेगा जो अब तक हमसे ओझल थे | समाज और मनुष्य की तमाम जटिलताओं का विश्लेषण वैज्ञानिक तर्क और विवेक की कसौटी पर होगा | लेकिन शताब्दी के अंत से लेकर अब तक जो सामने है क्या उसे आँखों से ओझल किया जा सकता है | हम कुतर्कों, अवैज्ञानिक चिंतन विवेक के स्थान पर भावुकता और सामाजिक उत्थान के नाम पर पाखंडों का आश्रय ले रहे हैं | इक्कीसवीं शताब्दी के सभी और विकसित भारतीय समाज में पिछली और वर्तमान सरकारें भी दलितों के विकास की घोषणाएं तो करती रहीं उनके वोट बैंक को पाने के लिए राजनीति तो करती रहीं है लेकिन उनके वास्तविक उत्थान और विकास के नाम पर कहीं कुछ ठोस परिणाम और लाभ की स्थिति दिखलाई नहीं पड़ती | कारण स्पष्ट है कि पूंजीवादी व्यवस्था में भूमि का केन्द्रीकरण |
ऐसे में अम्बेडकर को पढना या जानना भी वर्तमान समय के बड़े व्यापारियों, अवसरवादी राजनीतिज्ञों, ह्रासोन्मुखी सामंती संस्कृति के गठजोड़ के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ीं करना जान पड़ रहा है | इस गठजोड़ के द्वारा अम्बेडकर को फूल मालाओं में लादकर देवस्थान दिलाने को चलाये जाने वाले कुचक्र का नतीज़ा दलित चिंतन धारा और खाता पीता दलित मध्य वर्ग भी अम्बेडकर को ईश्वरीय सम्मान देकर महज़ अम्बेडकर जयंती पर उन्हें याद कर इतिश्री कर लेने की दिशा में अग्रसर है | हम सिर्फ जाति देखकर सच और झूठ का फैसला करने में जुटे हैं लेकिन पूरे समाज का नेतृत्व करने के लिए बाबासाहेब की तरह उठ खड़े होने की चर्चा करने के बजाय बाबा साहेब की जय-जयकार की रस्म अदायगी के बाद वही कर रहे हैं जैसा हिंदुत्व का एजंडा है। यथार्थ, इतिहास, संघर्ष और चिंतन की परम्परा को दलित वर्ग जिस तरह नकार रहा है वह वेहद दुखद है ऐसे में बाबा साहेब का संविधान सभा का अंतिम भाषण, जिसे उन्होंने 25 नवंबर, 1949. को पढ़ा आज उसे पुनः पढ़ लेने की जरूरत है |

हनीफ मदार द्वारा लिखित

हनीफ मदार बायोग्राफी !

नाम : हनीफ मदार
निक नाम : हनीफ
ईमेल आईडी : hanifmadar@gmail.com
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

जन्म -  1 मार्च १९७२ को उत्तर प्रदेश के 'एटा' जिले के एक छोटे गावं 'डोर्रा' में 

- 'सहारा समय' के लिए निरंतर तीन वर्ष विश्लेष्णात्मक आलेख | नाट्य समीक्षाएं, व्यंग्य, साक्षात्कार एवं अन्य आलेख मथुरा, आगरा से प्रकाशित अमर उजाला, दैनिक जागरण, आज, डी एल ए आदि में |

कहानियां, समीक्षाएं, कविता, व्यंग्य- हंस, परिकथा, वर्तमान साहित्य, उद्भावना, समर लोक, वागर्थ, अभिव्यक्ति, वांग्मय के अलावा देश भर  की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित 

कहानी संग्रह -  "बंद कमरे की रोशनी", "रसीद नम्बर ग्यारह"

सम्पादन- प्रस्फुरण पत्रिका, 

 'बारह क़िस्से टन्न'  भाग १, 

 'बारह क़िस्से टन्न'  भाग ३,

 'बारह क़िस्से टन्न'  भाग ४
फिल्म - जन सिनेमा की फिल्म 'कैद' के लिए पटकथा, संवाद लेखन 

अवार्ड - सविता भार्गव स्मृति सम्मान २०१३, विशम्भर नाथ चतुर्वेदी स्मृति सम्मान २०१४ 

- पूर्व सचिव - संकेत रंग टोली 

सह सचिव - जनवादी लेखक संघ,  मथुरा 

कार्यकारिणी सदस्य - जनवादी लेखक संघ राज्य कमेटी (उत्तर प्रदेश)

संपर्क- 56/56 शहजादपुर सोनई टप्पा, यमुनापार मथुरा २८१००१ 

phone- 08439244335

email- hanifmadar@gmail.com

Blogger Post

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.