“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” मानवता की कलात्मक हुंकार!

रंगमंच मंचीय गतिविधिया

मंजुल भारद्वाज 428 11/17/2018 12:00:00 AM

थिएटर करने के लिए व्यवसायिकता के नाम पर बड़े बड़े औपनिवेशिक संसाधनों या रंग ग्रहों की ज़रूरत नहीं है.थिएटर की बुनियादी ज़रूरत है एक परफ़ॉर्मर और एक दर्शक यहीं हमारी मौलिक और आधारभूत ज़रूरत है. “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस”रंग सिद्धांत के अनुसार रंगकर्म ‘निर्देशक और अभिनेता केन्द्रित होने की बजाय“दर्शक और लेखक केन्द्रित हो क्योंकि दर्शक सबसे बड़ा और शक्तिशाली रंगकर्मी है.’दर्शक’ के मुद्दों और सरोकारों को अपना मिशन बनाया.

“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” मानवता की कलात्मक हुंकार! 

मंजुल भारद्वाज

मंजुल भारद्वाज

नब्बे का दशक देश,दुनिया और मानवता के लिए आमूल बदलाव का दौर है.”औद्योगिक क्रांति” के पहिये पर सवार होकर मानवता नेसामन्तवाद की दासता से निकलने का ख्वाब देखा.पर नब्बे के दशक तक आते आते साम्यवाद के किले ढह गए और ”औद्योगिक क्रांति” सर्वहारा की मुक्ति का मसीहा होने की बजाय पूंजीवाद का खतरनाक,घोर शोषणवादी और अमानवीय उपक्रम निकला जिसने सामन्ती सोच को ना केवल मजबूती दी अपितु विज्ञान के आविष्कार को तकनीक देकर भूमंडलीकरण के जरिये दुनिया को एक शोषित ‘गाँव’ में बदल दिया. ऐसे समय में भारत भी इन वैश्विक प्रक्रियाओं से अछुता नहीं था .

एकध्रुवीय वैश्विक घटनाओं ने भारत की उत्पादक क्षमताओं को तहस नहस करना शुरू किया.अपने ह्क्कों की मांग करने वाले 66 हजार मिल मजदूरों को पूंजीवादी षड्यंत्र के तहत काम से निकाल दिया गया और मिलों पर ताला लग गया और मुंबई को सिंगापूर और शंघाई बनाने की साज़िश को अमली जामा पहनाया गया जो आज मिलों की जगह पर बड़े बड़े ‘माल’ और ‘टावर’ के रूप में मौजूद हैं.

ऐसे विकट और मानवीय संकट के समय में जनता को एक ऐसे मंच की ज़रूरत थी जो उन्हें अपनी अभिव्यक्ति का मौक़ा दे.जो उनके बीच में,उनकी अपनी बात को जन जन तक पहुंचाए! इसलिए एक रंग चिंतन की शुरुआत हुई और एक नये रंग सिद्धांत का सूत्रपात हुआ.इस रंग सिद्धांत ने पूंजीवाद के शोषण और दमनकारी ‘कला के लिए कला’ के कलात्मक भ्रम की साज़िश का भांडा फोड़ किया और नए रंग तत्व दुनिया के सामने रखे:

थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के सिद्धांत

  1. ऐसा रंगकर्म जिसकी सृजनशीलता विश्व को मानवीय और बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हो।
  2. कला, कला के लिए ना होकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करे।लोगों के जीवन का हिस्सा बने।
  3. जो मानवीय जरूरतों को पूरा करे और अपने आप को अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में उपलब्ध कराये।
  4. जो अपने आप को बदलाव के माध्यम के रूप में ढूंढे । अपने आप को खोजे और रचनात्मक बदलाव की प्रक्रिया आगे बढ़ाये ।
  5. ऐसा रंगकर्म जो मनोरंजन की सीमाएँ तोड़कर जीवन जीने का ज़रिया या पद्धति बने ।
नाटक-–-“मेरा-बचपन”

नाटक-–-“मेरा-बचपन”

12 अगस्त 1992 को ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य दर्शन का सूत्रपात हुआ और इसके क्रियान्वयन की चुनौती सामने आ गयी.पूंजीवाद के अपने शोषण के तरीके है वो अक्सर धर्म,अज्ञान,राष्ट्रवाद और अन्य रुढ़िवादी परम्पराओं के तहत अपने कदम पसारता है. भारतीय संविधान के सबसे पवित्र और भारत के अस्तित्व के लिए आधारभूत सिद्धांत ‘सेकुलरवाद’ को खुलेआम चुनौती दी और धार्मिक कट्टरवादियों की उन्मादी भीड़ ने बाबरी(मस्जिद) ढांचा ढहा दिया और देश,मुंबई साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस गया .

ऐसे नाजुक दौर में ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ के प्रतिबद्ध कलाकारों ने अपनी जान पर खेलकर मुम्बई के चप्पे चप्पे पर जाकर ‘दूर से किसी ने आवाज़ दी’ नाटक खेला. मुझे याद है वो दिन जब अपने रंगकर्मियों को सफ़ेद कुर्ता देते हुए कहा था ‘ये है अपना कफ़न’! पर सभी कलाकारों ने दंगो की नफरत व घावों को अपनी कला से प्यार और मानवीय ऊष्मा से भर दिया। मेरे मन में हर वो कलाकार सांस लेता है जिसने अपने कलात्मक दायित्व को निभाया! ये शोषण,हिंसा और धार्मिक कट्टरवाद से लम्बे संघर्ष की एक छोटी सी जीत थी पर ये जीत हमें और हमारे कलात्मक सिद्धांत में विश्वास भर गई और ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ रंग सिद्धांत को जन स्वीकार्यता दे गयी.

पूंजीवाद गिरगिट की तरह रंग बदलता है और किसी भी व्यवस्था के शोषणकारी तत्व इसके वाहक और मित्र होते हैं.भारतीय परिपेक्ष्य में जातिवाद,पितृसत्तात्मक समाज,रूढ़ीवाद और धार्मिक कट्टरवाद से लैस एक मध्यम वर्ग के रूप में मौजूद हैं.‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ ने इन चुनौतियों का एक योजनाबद्ध तरीके से सामना किया.मसलन बच्चों के अधिकार की एक लम्बी लड़ाई लड़ी जो आज भी जारी है.“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस”‘नाटक से बदलाव आता है’ की प्रयोगशाला है। उस बदलाव को आप छूकर, नाप कर देख सकते हैं। ‘मेरा बचपन’ नाटक के 12000 से ज्यादा प्रयोग और इस नाटक के जरिये पूरे देश में 50000 से ज्यादा बाल मजदूरों का जीवन बदला जो आज स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। कुछ तो आज कॉलेज जा रहे हैं और कुछ पेशेवर रंगकर्म कर रहे हैं।

Manjul“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने जीवन को नाटक से जोड़कर रंग चेतना का उदय करके उसे ‘जन’ से जोड़ा है। अपनी नाट्य कार्यशालाओं में सहभागियों को मंच,नाटक और जीवन का संबंध,नाट्य लेखन,अभिनय, निर्देशन,समीक्षा,नेपथ्य,रंगशिल्प,रंगभूषा आदि विभिन्न रंग आयामों पर प्रशिक्षित किया है और कलात्मक क्षमता को दैवीय से वरदान हटाकर कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण की तरफ मोड़ा है। 24 सालों में 16 हजार से ज्यादा रंगकर्मियों ने 1000 कार्यशालाओं में हिस्सा लिया।पूंजीवादी कलाकार कभी भी अपनी कलात्मक सामाजिक जिम्मेदारी नहीं लेते इसलिए “कला– कला के लिए” के चक्रव्यहू में फंसे हुए हैं और भोगवादी कला की चक्की में पिस कर ख़त्म हो जाते हैं.“ थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने “कला– कला के लिए” वाली औपनिवेशिक और पूंजीवादी सोच के चक्रव्यहू को अपने तत्व और सार्थक प्रयोगों से तोड़ा है और हजारों ‘रंग संकल्पनाओं’ को ‘रोपा’ और अभिव्यक्त किया। अब तक 28 नाटकों का 16,000 से ज्यादा बार मंचन किया है.

पितृसत्ता की सत्ता को अपने आधा दर्जन से ज्यादा नाटकों से चुनौती दी,घरेलु हिंसा पर नाटक ‘द्वंद्व’, अपने अस्तित्व को खोजती हुई आधी आबादी की आवाज़ बुलंद की नाटक ‘मैं औरत हूँ’ ने और ‘लिंग चयन’ के विषय को राष्ट्रीय विमर्श का मुद्दा बनाया नाटक ‘लाडली’ ने !

दरअसल “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने भारतीय मानस में बसी औपनिवेशिक समझ को धीरे धीरे बदला. थियेटर ऑफ रेलेवन्स के अनुसार थियेटर एक अनुभव है। जो कहीं भी, किसी भी समय सृजित एवं पुनः सृजित किया जा सकता है,किया जाता है। थियेटर में समय और स्पेस को मानवीय अनुभवों से जीवित किया जाता है। इसीलिए थियेटर में टाइम और स्पेस मौलिक पहलु हैं। थियेटर एक अनुभव है। शुद्ध रूप में मनुष्य के मनुष्यगत रूप,आकार में घटित होनेवाला कार्य है।यह अनुभव हर व्यक्ति का, हर परिस्थिति में अलग होता है, नया होता है। हुबहू 100 प्रतिशत एक जैसा नहीं होता, बदलता रहता है। इसमें ‘समय‘ (काल) और परिस्थिति कारक हैं। इसमें कारक है मनोस्थिति (मनोवैज्ञानिक)। इसलिये थियेटर ठहरी हुयी कला नहीं हैं।

थिएटर करने के लिए व्यवसायिकता के नाम पर बड़े बड़े औपनिवेशिक संसाधनों या रंग ग्रहों की ज़रूरत नहीं है.थिएटर की बुनियादी ज़रूरत है एक परफ़ॉर्मर और एक दर्शक यहीं हमारी मौलिक और आधारभूत ज़रूरत है. “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस”रंग सिद्धांत के अनुसार रंगकर्म ‘निर्देशक और अभिनेता केन्द्रित होने की बजाय“दर्शक और लेखक केन्द्रित हो क्योंकि दर्शक सबसे बड़ा और शक्तिशाली रंगकर्मी है.’दर्शक’ के मुद्दों और सरोकारों को अपना मिशन बनाया.

भूमंडलीकरण ने दुनिया की जैविक और भौगोलिक विविधता को बर्बाद किया है और कर रहा है.इसका चेहरा बहुत विद्रूप है.इस विद्रूपता के खिलाफ नाटक “बी-७” से “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने अपनी वैश्विक हुंकार भरी और सन 2000 में जर्मनी में इसके प्रयोग किये. मानवता और प्रकृति के नैसर्गिक संसाधनो के निजीकरण के खिलाफ सन 2013 में नाटक “ड्राप बाय ड्राप :वाटर” का यूरोप में मंचन किया.नाटक पानी के निजीकरण का भारत में ही नहीं दुनिया के किसी भी हिस्से में विरोध करता है.पानी ‘हमारा नैसर्गिक और जन्मसिद्ध अधिकार है” निजीकरण के लिए अंधे हो चले सरकारी तन्त्र को समझना होगा की जो सरकार अपने नागरिकों को पीने का पानी भी मुहैया ना करा सके वो संस्कार,संस्कृति की दुहाई और विकास का खोखला जुमला बंद करे.

Manjulदक्षिण पंथी राजनैतिक पार्टियां जन आस्था,धर्म,राष्ट्रीयता,संस्कृति,संस्कार,सांस्कृतिक विरासत जैसे भावनात्मक मुद्दों का उपयोग अपने शुद्ध राजनैतिक फायदे के लिए करती हैं और इन्होने युवाओं को बरगलाने का कामयाब षड्यंत्र रचा है.युवाओं के दिल को मैला किया है. उनकी भावनाओं को भड़का कर उनके तर्क,विचार करने की बौद्धिक क्षमता का ह्रास किया है.भारतीय संविधान के पवित्र सिद्धांतों के लगभग विरोध में युवाओं के दिल में जहर भरा है इसके उदहारण देखिये हाल ही में भारतीय विषमताओं में सामजिक न्याय और समता के लिए अनिवार्य एक पहल “आरक्षण” पर बवाल इस बात का प्रमाण है की सवर्ण जाति के युवा अपनी प्रगति में “आरक्षण’” को एक बाधा मानते हैं वो जन्म के संयोग से ऊपर उठकर विचार करने की हालत में नहीं है की भारत जैसे देश में जहाँ जन्म के संयोग से बच्चों का भविष्य तय होता हो वहां “आरक्षण” एक न्याय संगत संवैधानिक प्रावधान है .

ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में “थिएटर ऑफ रेलेवेंस” युवाओं की रंगकर्म में सीधी सहभागिता करवा रहा है. हम समाज में थिएटर के प्रभाव का गुणगान करते हैं। लेकिन रंगकर्म ( थिएटर ) में हमारी प्रत्यक्ष भागीदारी नगणय है। दर्शक होने के नाते नाटक के मंचन या प्रस्तुति का हम पर गहरा असर पड़ता है । लेकिन प्रत्यक्ष रूप से नाटक (थिएटर) में भागीदारी से हमारे व्यक्तित्व , विचार और मूल्यों में परिवर्तन होता है ।
इसलिए थियेटर निरन्तर परिवर्तित होता है। जुड़ता है “ अपने साथ, दूसरे के साथ, सबके साथ यानी अत्यन्त व्यक्तिगत होते हुए भी सामूहिक “ । अत्यन्त सामूहिक होते हुए भी ‘ व्यक्तिगत’,सामूहिक होते हुए भी सार्वभौमिक यही थियेटर का अद्भुत पहलू है । व्यक्तिगत अनुभव सामूहिक और सार्वभौमिकता का आकार लेता है और फिर व्यक्तिगत हो जाता है। और यह प्रक्रिया अद्भुत प्रक्रिया है जो बदलती हैं, आचार, विचार, भाव, मूल्य मनोविज्ञान और सृजित करती है नयापन,नये विचार, भाव, विचार मूल्य सूक्ष्म से सूक्ष्म को मूर्तरूप देकर फिर सूक्ष्म होने की प्रक्रिया। बनकर टूटने और टूटकर बनने की कलात्मक वैज्ञानिक प्रक्रिया है।

थियेटर ऑफ रेलेवेन्स तोड़ता है अवधारणाओ को, रूढ़ियों को, हीन ग्रंथियों को, जड़ता को , मानवीय कुंठाओं- complex  को। ‘ पारदर्शिता का निर्माण करता है। भावनात्मक स्तर पर सब पर्दो को गिराकर एक भावरूप होता है। यही भाव विचारों को पुनः विचार के लिए उत्प्रेरित कर नयी ‘ दृष्टि’ (अन्तः दृष्टि) सृजित करता है।

मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने के लिए नाटक मंचित किया “गर्भ”.नाटक मानव जाति के संघर्ष और मानवता के साथ विशद जानकारी देता है, एक मानवीय जीवन जीने की चुनौतियों के साथ संबंधित है. मानव मनोविज्ञान और अदृश्य कोकून के अस्तित्व  पर सवाल है जो हम में से हर एक के आसपास राष्ट्रवाद,नस्लवाद,धर्म,जाति,प्रणाली द्वारा बुना जाता है .

धर्म,कला,साहित्य और सांस्कृतिक परम्पराएं थी मनुष्य के आपसी संवाद,मेल मिलाप और  सम्पर्क की पर दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूंजीवादी और साम्राज्यवादी  देशों ने ‘व्यापार’ को  विश्व के सम्पर्क का बुनियादी सूत्र माना, बनाया और विश्व में WTO के माध्यम से प्रस्थापित किया जिसका एक ही उद्देश्य है ‘मुनाफ़ा’.इस संकल्पना की जड में मनुष्य,इंसानियत श्रेष्ठ नहीं है,सभ्यता श्रेष्ठ नहीं है मुनाफ़ा श्रेष्ठ है जिसने मनुष्य को केवल और केवल खरीद फ़रोख्त का सामान बना दिया है.‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के तत्व से संचालित नई आर्थिक नीति का आधार है बोली,बाज़ार,उपभोग और मुनाफ़ा.इस तंत्र का शिकार हमारा किसान आज आत्महत्या को मजबूर है.किसानो की आत्महत्या और खेती के विनाश पर नाटक किया ‘किसानो का संघर्ष’ !

कलाकारों को कठपुतली बनाने वाले इस आर्थिक तंत्र से कलाकारों की मुक्ति के लिए नाटक “अनहद नाद-अन हर्ड साउंड्स ऑफ़ युनिवर्स”का मंचन किया. नाटक  कलात्मक चिंतन है, जो कला और कलाकारों की कलात्मक आवश्यकताओं,कलात्मक मौलिक प्रक्रियाओं को समझने और खंगोलने की प्रक्रिया है। क्योंकि कला उत्पाद और कलाकार उत्पादक नहीं है और जीवन नफा और नुकसान की बैलेंस शीट नहीं है इसलिए यह नाटक कला और कलाकार को उत्पाद और उत्पादिकरण से उन्मुक्त करते हुए, उनकी सकारात्मक,सृजनात्मक और कलात्मक उर्जा से बेहतर और सुंदर विश्व बनाने के लिए प्रेरित और प्रतिबद्ध करता है। मनुष्य से मनुष्यता,प्रकृति से उसके संसाधनों को छिनने वाला भूमंडलीकरण विषमता और अन्याय का वाहक है.हवा,जल,जंगल और मानवीयता की बर्बादी पर टिकी है इसके विकास की बुनियाद जिससे पृथ्वी का बुखार बढ़ रहा है .

ऐसे समय में लोकतान्त्रिक व्यवस्था की आवाज़ ‘मीडिया’ भी पूंजीवादियों की गोद में बैठकर मुनाफ़ा कमा रहा है तो थिएटर ऑफ रेलेवेंस”नाट्य सिद्धांत राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करता हैं बल्कि राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करता है ।

Manjulसत्ता हमेशा कलाकार से डरती है चाहे वो सत्ता तानाशाह की हो या लोकतान्त्रिक व्यस्था वाली हो.तलवारों,तोपों या एटम बम का मुकाबला ये सत्ता कर सकती है पर कलाकार,रचनाकार, नाटककार,चित्रकार या सृजनात्मक कौशल से लबरेज़ व्यक्तित्व का नहीं.क्योंकि कलाकार मूलतः विद्रोही होता है,क्रांतिकारी होता है और सबसे अहम बात यह है कि उसकी कृति का जनमानस पर अद्भुत प्रभाव होता है.

“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने जीवन को नाटक से जोड़कर रंग चेतना का उदय करके उसे ‘जन’ से जोड़ा है। “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस”की रंग प्रस्तुतियाँ किसी विशेष प्रतिष्ठित रंग स्थल तक सीमित नही हैं या इन रंग स्थलों की मोहताज नहीं हैं, नाहीं किसी सरकारी,ग़ैर सरकारी,देशी,विदेशी संस्था से वित्त पोषित है . इसका असली ‘धन’ है इसका मकसद और असली संसाधन है ‘दर्शक’ जिसके बूते ये हालातों के विरुद्ध ‘इंसानियत’ की आवाज़ बनकर राष्ट्रीय और वैश्विक पटल पर अपने तत्व और सकारात्मक प्रयोगों से एक बेहतर, सुंदर और मानवीय विश्व के निर्माण के लिए सांस्कृतिक चेतना का निर्माण कर सांस्कृतिक क्रांति के लिए प्रतिबद्ध है !

मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित

मंजुल भारद्वाज बायोग्राफी !

नाम : मंजुल भारद्वाज
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.