साहित्यिक वैचारिकी को आगे बढ़ाने का सगल, ‘हमरंग’: (डॉ. मोहसिन ख़ान ‘तनहा’)

बहुरंग टिप्पणियां

डॉ0 मोहसिन खान 'तनहा' 375 11/17/2018 12:00:00 AM

हमरंग के दो वर्ष पूरा होने पर देश भर के कई लेखकों से ‘हमरंग’ का साहित्यिक, वैचारिक मूल्यांकन करती टिपण्णी (लेख) हमें प्राप्त हुए हैं जो बिना किसी काट-छांट के, हर चौथे या पांचवें दिन प्रकाशित होंगे | हमारे इस प्रयास को लेकर हो सकता है आपकी भी कोई दृष्टि बनी हो तो नि-संकोच आप लिख भेजिए हम उसे भी जस का तस हमरंग पर प्रकाशित करेंगे | इस क्रम में आज रायगढ़, महाराष्ट्र से ‘डॉ मोहसिन खान ‘तनहा‘ ….| – संपादक

साहित्यिक वैचारिकी को आगे बढ़ाने का सगल, ‘हमरंग’ 

डा0 मोहसिन खान ‘तनहा

डा0 मोहसिन खान ‘तनहा

हमरंग से मेरा परिचय सीधा नहीं हुआ बल्कि हुआ कुछ यूं कि अनवर सुहैल के कहानी संग्रह ‘गहरी जड़ें’ की समीक्षा बिना किसी के (लेखक और प्रकाशक) निवेदन किये अपनी मर्ज़ी से मैंने की। अनवर सुहैल से बात हुई कि आपके कहानी संग्रह की समीक्षा मैंने की है, तो उन्होंने कहा इसे हमरंग पर प्रकाशित कराएंगे। मेरा प्रथम परिचय हमरंग वेब पत्रिका से इसी माध्यम से हुआ।
पश्चात में समीक्षा प्रकाशित हुई और हमरंग के संपादक हनीफ़ मदार जी से मेरी बात हुई। दूर मथुरा में बैठे एक ऐसे व्यक्ति से पहली बार बात हुई, जिसका बौद्धिक स्तर मुझे बात करने के बाद धीरे-धीरे पता चला। एक सौम्य आवाज़ और बहुत संतुलित होकर संवाद करने वाले व्यक्ति के रूप में हनीफ़ जी की छवि मेरे मस्तिष्क में बन गई और आज भी यही बनी हुई है। कई बार फिर मेरी रचनाओं के प्रकाशन के सन्दर्भ में हनीफ़ जी से बातें होती रहीं। कई मुद्दे खुलते रहे और अपनी अपनी राय हम आपस में ज़ाहिर करते रहे। एक बात ख़ास यह नज़र आने लगी कि वे भाववादी सिद्धांतों की अपेक्षा भौतिकवादी सिद्धांतो को महत्त्व देते हैं। फिर क्या था , एक अच्छा बौद्धिक स्तर का चिंतन हमारे मध्य समय-समय पर होता रहा और हम एक – दूसरे को बेहतर रूप में समझने लगे।
हनीफ़ जी से मेरा मिलना कभी हो न पाया था, लेकिन जीवन में अवसर आएगा , ये मैंने सोचा था और एक वर्ष के भीतर उनसे भेंट का अवसर तब प्राप्त हुआ जब अलीगढ़ विश्वविद्यालय से मुझे असोसिएट प्रोफ़ेसर के साक्षात्कार की सूचना आई। मैंने तुरंत निःसंकोच हनीफ़ जी को फोन किया कि मैं अलीगढ़ आ रहा हूँ, मेरा साक्षात्कार है। हनीफ़ जी ने मेरे लिए ज़हमत उठाना चाही कि आप मेरे पास ही आकर रुकें, लेकिन ऐसा मेरे लिए संभव न था | मैंने वादा किया कि साक्षात्कार के पश्चात अवश्य आपसे मिलने आऊंगा। साक्षात्कार के पश्चात हनीफ़ जी के पास यमुना पार मिलने गया। उन्होंने अपनी कार मेरे लिए भेजी। कार से मैं उनके द्वारा संचालित स्कूल में पहुंचा और फिर बातों के लंबे दौर की शुरुआत हुई। कई विषयों पर बातें हुईं | अपने हमरंग परिवार से मुलाक़ात हुई, जिसमें अनीता चौधरी, एम ग़नी और सनीफ़ मदार हैं। अनीता चौधरी के व्यक्तित्त्व के दर्शन हुए, तो एक आधुनिक विचारधारा की महिला से परिचय हुआ। अपनी बेबाकी से राय वे भी संवाद के दौरान देती रहीं और महिला स्वतंत्रता की पक्षधरता पर गहनता से अपने विचारों से अवगत कराती रहीं। एम ग़नी एक बेहतरीन फ़िल्म मेकर की छवि और चिंतक के रूप में नज़र आए और वहीं सनीफ़ मदार एक अच्छे कलाकार और रंगकर्मी के रूप में अपनी पहिचान लिए युवाओं के बीच दिखाई दिए ।
साक्षात्कार के दौरान मुझे ताप था, ये ताप निरंतर बना हुआ था | थकान भी बहुत लग रही थी, लेकिन हनीफ़ साहब से बातों का जो सिलसिला चला तो फिर ताप होते हुए भी नहीं रुक सका। निरंतर बहुत से मुद्दों पर वैचारिक विमर्श होते रहे। सुरुचिपूर्ण असली घी की पूरियाँ और सब्ज़ी , दाल इत्यादि का भोजन उन्होंने कराया। शाम को कुछ विद्यार्थी एकत्रित हो गए जो एक नाटक की तैयारी कर रहे थे। पूरा वातावरण संगीतमय हो उठा और ख़ूब आनंद के साथ प्रेमचंद जयंती की तैयारियां देखता रहा।
मुझे आश्चर्य होता है, एक छोटी सी जगह में लोगों में इतनी चेतना, वह भी साहिय को लेकर, यह तारीफ़ की बात से अधिक जीवटता की और साहित्य पर आस्था की बात नज़र आती है। साहित्य का जीवन में इस तरह का प्रवेश और उसी को आधार बनाकर जीवन को गति देना सचमुच यह बात मेरे लिए बड़ी महत्त्व की है। महत्त्व की इसलिए कि साहित्य आज भी जीवन की प्राथमिकता में सम्मिलित है और लोग साहित्य की संवेदना से जुड़े हुए हैं | जीवन के पर्याय के रूप में हिंदी के साहित्य को देख रहे हैं।
हमरंग वेब पत्रिका का कलेवर पहले भी बेहतरीन था और अब नए परिवतन से हमरंग और भी शानदार होकर हमारे सम्मुख है। हमरंग से देश के अच्छे लेखक निरंतर जुड़ते जा रहे हैं। यह हनीफ़ जी की एकतरफ़ा मेहनत का सुपरिणाम है कि अच्छे लेखकों की रचनाओं को हमरंग पर गंभीरता के साथ ला रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परिचय करा रहे हैं। हमरंग के संपादकीय के विषय में भी कुछ कहना चाहूँगा कि हमरंग का संपादकीय अपने आसपास के माहौल और जीवन को केंद्र में रखकर ही होते रहे हैं। मैंने जब भी संपादकीय पढ़ा नए चिंतन का साक्षात्कार किया। हमरंग के संपादक ने अपनी विचारभूमि समाज की उन समस्याओं को दी है जिसमें बहुत सी उलटफेर की गहन आवश्यकता है ताकि नई उर्वर भूमि का निर्माण हो सके। कई बार संपादकीय का अलोक इतना निखार लिए होता है कि पढ़कर संतुष्टि का आभास होता है।
और भी बहुत सी बात यहाँ स्पष्ट करूँ लेकिन अब अवकाश नज़र नहीं आ रहा है, कुछ यादें शेष रखते हुए मैं हमरंग को बहुत सी शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ कि साहित्य की वैचारिकी को वे हरदम नए सूत्र में निरंतर आगे बढ़ाते रहेंगे और पाठकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाभ पहुँचाते रहेंगे। इस अवसर पर हमरंग के पूरे दल को मेरी और से असीम बधाई और बहुत सी साहित्यिक अभिव्यक्तियों को हमरंग से रूबरू होते देखता रहूँ, बहुत सी कामनाओं के साथ आपका पाठक और लेखक।

डॉ0 मोहसिन खान 'तनहा' द्वारा लिखित

डॉ0 मोहसिन खान 'तनहा' बायोग्राफी !

नाम : डॉ0 मोहसिन खान 'तनहा'
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.