आम आदमी को समर्पित: ग़ज़ल (मोहसिन ‘तनहा’)
मोहसिन तनहा
आम आदमी को समर्पित
मछलियों को तैरने का हुनर चाहिए।
गंदला है पानी साफ़ नज़र चाहिए।
बातों से न होगा हासिल कुछ यहाँ,
आवाज़ में भी थोड़ा असर चाहिए।
न देखो ज़ख्मों से बहता ख़ून मेरा,
लड़ने के लिए तो जिगर चाहिए।
कचरा खुद दूर नहीं होता दरिया से,
फेंकने को किनारे पे लहर चाहिए।
हर सूरत बदलती है कोशिशों से,
कौन कहता है तुझे मुक़द्दर चाहिए।
अब चीर दे अँधेरे का सीना ‘तनहा’,
रौशनी के लिए नई सहर चाहिए।
2-
वक़्त ने आज सबक़ सिखा दिया,
आवाम ने आईना दिखा दिया।
ख़ूब रही ख़िलाफते-जंग दौराँ,
हमने पानी उनको पिला दिया।
बंद आँखों से वादों पे किया यकीं,
सोचो तुमने क्या सिला दिया।
तख़्त पर जो बैठे थे जमकर,
ख़ाक में उनको मिला दिया।
हुक़ुमते-ज़ुल्म जिनके सहते रहे,
आज हमने उनको मिटा दिया।
ताक़त पर जिनको गुमान था,
पैर उनका ज़मीं से हिला दिया।