समय से संवाद का पर्याय, ‘दिनभर दिन’: पुस्तक समीक्षा (नंदलाल भारती)
समय से संवाद का पर्याय, ‘दिनभर दिन
नंदलाल भारती
श्री चरणसिंह अमी एक समर्थ रचनाकार है। कविता कर्म को समर्पित इनकी दिनभर दिन पुस्तक आयी है । पुस्तक का पन्ना पलटने से पहले नजर प्रथम फ्लैप पर ठहर जाती है जो एक हलफनामा है । कविश्री के हलफनामे पर गौर फरमाइने पर प्रतीत होता है की यह हलफनामा आस्था को प्रबल बनाने का यत्न तो है ही साथ ही नकारात्मकता का परित्याग कर सकारात्मकता को प्रोत्साहित भी करता है ।
अच्छे दिनों की तलाश में
अच्छे आदमी की तलाश में
मैं शपथ -पूर्वक
शपथ लेकर कहता हूँ कि
कविता में आस्था बनाये रखूंगा |
यक़ीनन यह आस्था कविता के प्रति है सभ्य समाज के प्रति है देश के प्रति है। यह आस्था स्वागत योग्य है। ऐसी आस्थाओ के प्रकाशपुंज से ही साहित्य,समाज और राष्ट्र गौरान्वित हो सकता है। हम किसी भी क्षेत्र में क्यों ना कार्यरत हो,कार्य के प्रति आस्था ही जीवन संग्राम को सफल बनाने की कुंजी साबित होती है,कविश्री का यह हलफनामा दूरदृष्टि का द्योतक है। इस संग्रह में 41 कविताएं संकलित है,संग्रह की पहली रचना है भाषा-जैसाकि सर्वविदित है कि भाषा जोड़ने का कार्य करती है परन्तु जब भाषा छली जाने लगती है और भाषा का उपयोग खंजर की तरह होने लगता है और यही भाषा रूढ़िवादी धर्म-सम्प्रदायों की तरह देखी जाने लगती है। भाषा पर हो रहे आघातों-प्रतिघातों से कविश्री चिंतित है। अपनी भाषा के माध्यम से आगाह करने का भरसक प्रयास कर रहे है । रचना देखिये;
सब ही ने छाला है
किसी ने थोड़ा
किसी ने ज्यादा ।
x x x x x x
भाषा उनके पास होती है
चाकू की तरह
खंजर की तरह ।
पृष्ठ क्रमांक 39 /राजनीति /छोटी सी रचना है परन्तु वर्तमान परिपेक्ष्य् में राजनीति के अर्थ को विस्तृत रूप से हमारे सम्मुख प्रस्तुत कर रही है। रचनाकर की दूरदृष्टि देखिये|
एक असंदिग्ध अर्थ भरे
वक्तव्य की तलाश में
मैंने छान मारे, सारे शब्दकोश ।
पुस्तक-दिनभर दिन (काव्य संग्रह )
कृतिकार -श्री चरणसिंह अमी
प्रकाशक -अयन प्रकाशन,महरौली नई दिल्ली
मूल्य :रु – 220/-
ISBN:978-81-7408-832-1
हर शब्द के, एक अर्थ के साथ, जुड़ा है
प्रच्छन अर्थ, जो हिंसक है,सांप्रदायिक है
विध्वंसक है, राजनीतिक है ।
यह रचना जातिवाद,धर्मवाद,हिंसा, साम्प्रदायिकता ,षणयंत्र ,विध्वंस दुर्भाग्यवश जो वर्तमान में राजनीति के औजार हो गए है,का मौन ही सही पर पटाक्षेप कर रही है,साथ ही राजनीति कर्म के साथ परमार्थ,समता ,सदभावना और राष्ट्रहित को समाहित करने का आहवाहन भी करती है,तभी सही अर्थो में राजनीति समाज और राष्ट्र के लिए हितकर हो सकती है। पृष्ठ क्रमांक 46 -47 /समाजवाद -भारतीय व्यवस्था में व्याप्त कुरीतियों को सरल ,सहज,मार्मिक और हृदय स्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया गया है,यकींन के साथ कहा जा सकता है कि यह रचना समाजवाद की सच्ची प्रतिनिधि रचना है। रचना की बानगी देखिये ;
माननीय,यह आपका सौभाग्य है कि
आप बड़े है, अड़े है।
x x x x x x
आपका भी बायाँ हाथ ही धोता है शौच,
जैसे कि हमारा
x x x x x x
वह जमाना गया
जब आपकी शौच उठाते हुए
हमारे पुरखो की नाक की सूंघने की शक्ति
जन्मजात ख़राब होती थी।
कवि सजग है,भागदौड़ भरी ज़िन्दगी से सजग करते हुए हमारी तरह बैल या… ? रचना के माध्यम से कहते है;
बैलों के पाँव में
बदल गए है मेरे पाँव
खींची जा रही है जिनसे
ज़िन्दगी की गाड़ी।
x x x x x x
मेरे मनुष्य होने को
चुनौती मिली है मेरे द्वारा।
मैं कौन हूँ ,मनुष्य या बैल ?
इस संग्रह की आखिरी रचना शपथ पथ -सच्चे मन से कर्म पथ पर चलते रहने का आहवाहन है। सच भी यही है जिस तरह से रचनाकार जीवन पथ पर चलने का शपथ पत्र दे रहे है,काश उसी तरह से आम से खास आदमी अपने नैतिक दायित्वों का पालन करने लगे तो सचमुच मानवता,समता और सदभावना का साम्राज्य स्थापित हो जायेगा और पुनः भारत भूमि सोने की चिड़िया के सर्वनाम से अलंकृत हो जायेगी। मानवीय समानता ,सदभावना, नारी सम्मान,स्वयं पर विश्वास,दायित्वबोध,सामजिक सुरक्षा,और राष्ट्र हित के इर्द-गिर्द घूमती यह रचना वाकई तारीफ़ के काबिल है,रचनाकार बधाई के पात्र है। वैसे तो इस संग्रह में 41 रचनाये- संकलित है,और ये सभी रचनाये उददेश्य से परिपूर्ण है,बार-बार पढने का मन होता है। छपाई एंव शब्द संयोजन उत्तम है।यह पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है । दिनभर दिन पाठको पसंद आएगा और साहित्य जगत इस पुस्तक को खुले मन से स्वीकार करेगा ,इस पुस्तक के मंतव्य को देखकर ऐसी आशा तो की ही जा सकती है। रचनाकार,कविश्री चरणसिंघ अमी को बहुत-बहुत बधाई ।