मन की व्यथा कथा: व्यंग्य (नित्यानंद गायेन)

व्यंग्य व्यंग्य

नित्यानंद गायेन 564 11/17/2018 12:00:00 AM

मन की व्यथा कथा: व्यंग्य (नित्यानंद गायेन)

मन की व्यथा कथा 

नित्यानंद गायेन

नित्यानंद गायेन

योग करने के तुरंत बाद ही इन्द्र, मौनेंद्र से मिले | योग को इतना बड़ा इवेंट बनाने के लिए उन्हें बधाई दी और उसी क्षण फादर्स डे मनाने के लिए अपने निजी पायलट रहित विमान को हांकते हुए आकाश पहुँच गए | वहां जाकर, उन्हें मौनेंद्र से मिलकर जो ख़ुशी-गम हुआ, उसे वे अपनी घरवाली के साथ बाँटना चाहते थे | धरती पर अपने प्रवास के दौरान मौनेंद्र ने इंद्र को अपने सभी भाषणों की सीडी उन्हें उपहार स्वरुप भेंट किये थे | और मन की बात की कुछ ऑडियो भी दिए थे |
उन्हें उपहार स्वरुप पाकर इंद्र बहुत पुलकित हुए थे |
किन्तु जैसे ही उन्होंने अपनी पत्नी से कहा – सुनो, प्रिय आज मैं भी तुमसे अपने मन की बात कहना चाहता हूँ …….बस फिर क्या था ….वे इस कदर बिगड़ी कि पूछिये मत | रानी माँ ने कहा ‘तुम पहले से ही कम नहीं थे रहने दो,  तुम्हरी सोच से पृथ्वीवासी पहले से परिचित तो थे ही,  कि तुम शुरू से ही इतने डरपोक हो कि किसी ने भी यदि तपस्या की बात भी की तो तुम अपनी कुर्सी पकड़ कर बैठ जाते हो, और नीचे, वह भी यही करता है | और उससे मिलकर तुम मन की बात करना सीख आये हो ? छी | बस फिर क्या था इन्द्रदेव की नींद उड़ गई , गुस्सा कर के देने लगे ..प्रवचन ….खुद को कोसने लगे | इतने आहत हुए कि एक बार तो यहाँ तक सोच लिया कि क्यों न एम.पी . जाकर व्यापम घोटाले का गवाह बन जाऊं , ताकि वे मेरी हत्या ही करवा दें और सारा दोष मौनेंद्र पर आ जाये | इनकी थू -थू हो और फिर उनका सुप्रीम कोर्ट मेरी हत्या के आरोप में उन्हें आजीवन कारवास की सजा सुना दे | …भाई देखो आदमी सब कुछ सह सकता है ..पर पत्नी वियोग सहना बहुत कठिन काम है , पत्नी वियोग में बहुत पहले एक व्यक्ति तुलसीदास बन गये थे और राम चरित् मानस लिख कर अमर हो गए थे | उस पुस्तक में बहुत से काण्ड हैं | ऐसा उन्होंने कहानियों में पढ़ रखा था | किन्तु देवेन्द्र अब सोचने लगे ‘कि यार मैं कौनसा कांड लिखूंगा,  मुझसे अधिक काण्ड तो मौनेंद्र एंड पार्टी रोज लिख रहे हैं | आखिर शांत हुए, अपनी शक्ति का विश्लेषणात्मक मनो-अध्ययन करने के पश्चात् …चुपचाप प्रिय से माफ़ी मांग ली और प्रण किया कि भविष्य में फिर कभी किसी से मन की बात नहीं करूँगा , चाहे प्रेशर से पेट ही क्यों न फट जाये |

नित्यानंद गायेन द्वारा लिखित

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