‘जननायक कबीर का प्रभाव साहित्य पर आज छह सौ वर्षो के बाद भी ज्यों का त्यों देखा जा सकता है । आज जब भी धरती के किसी कोने में मानवता लहूलुहान होती है, तो झट से हमें कबीर का पढ़ाया पाठ याद आ जाता है । टैगोर और गांधी जी की चिंतनधारा पर तो कबीर-रचनावली की अमिट छाप है ही । डाॅ. राधाकृष्णन ने कबीर दर्शन की चिंरतनता को रेखांकित करते हुए लिखा है कि ‘पूरे भारतीय साहित्य में पांच शख्सियतें सदा अमर रहेंगी, जिनमें से एक शख्सियत कबीर की है । इधर हिंदी-साहित्य में ‘प्रेमचंद’, ‘निराला’ मुक्तिबोध और नागार्जुन के रूप में कबीर की परम्परा बखूबी प्रवाहित है ।’ आधुनिक हिंदी काव्य धारा में कबीर को व्याख्यायित करता ‘प्रमिला देवी’ का आलेख ….
संत कबीर और आधुनिक हिन्दी काव्य
प्रमिला देवी
महात्मा कबीर देशकाल-जयी रचनाकार हैं । वे व्यक्ति-दर्द के कवि हैं । यही कारण है कि मानवता के दुःख-दर्द कबीर-वाणी की केन्द्रीय धुरी हैं । उल्लेखनीय है कि इस कार्य को संपादित करने के लिए संत कबीर ने स्वयं अपनी भूमि तैयार की और मानवीय अस्मिता के प्रश्नों को व्यवहारिक चिंतन से जोड़ा ‘‘कागद की लेखी’’ की अपेक्षा ‘‘आँखिन की देखी’’ को प्रश्रय देने वाले कबीर ने मध्यकालीन भारतीय बोध के हर पक्ष को गहराई से पहचाना और व्यक्त किया।
कबीर का व्यक्तित्व, चिंतन और सृजन अद्वितीय है । उन्होंने देश, क्षेत्र, जाति, धर्म और भाषा आदि से ऊपर उठकर अपनी बात कही है । कबीर अपने समय के जर्जर और पतनशील समाज के प्रति न केवल निंदनीय रुख अपनाते हैं, बल्कि उसके ढाँचे में मूलभूत परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध भी दिखाई पड़ते हैं । यहीं कारण हैं कि मनुष्य मनुष्य में विषमता और सामाजिक असमानता के विरूद्ध आवाज बुलंद करने वाले कबीर एक युग के न रहकर युग-युग के हो गए ।
जननायक कबीर का प्रभाव साहित्य पर आज छह सौ वर्षो के बाद भी ज्यों का त्यों देखा जा सकता है । आज जब भी धरती के किसी कोने में मानवता लहूलुहान होती है, तो झट से हमें कबीर का पढ़ाया पाठ याद आ जाता है । टैगोर और गांधी जी की चिंतनधारा पर तो कबीर-रचनावली की अमिट छाप है ही । डाॅ. राधाकृष्णन ने कबीर दर्शन की चिंरतनता को रेखांकित करते हुए लिखा है कि ‘पूरे भारतीय साहित्य में पांच शख्सियतें सदा अमर रहेंगी, जिनमें से एक शख्सियत कबीर की है । इधर हिंदी-साहित्य में ‘प्रेमचंद’, ‘निराला’ मुक्तिबोध और नागार्जुन के रूप में कबीर की परम्परा बखूबी प्रवाहित है ।
कबीर ने अक्षर ज्ञान से दूर होने के बाद भी हिन्दी कविता के लिए वह योगदान दिया है जिसके आधार पर वे हिन्दी के ही नहीं विश्व के श्रेष्ठ कवि हो गए हैं । यह बात इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि ‘‘रचनाकार के पास कहने के लिए कुछ है तो भाषा, शैली और शिल्प गौण होते हैं।’’1 हिन्दी कविता को भाव तथा अभिव्यक्ति की दृष्टि से परिवर्तन करने का कार्य कबीर काव्य ने किया है ।
प्रतीकात्मक चित्र साभार google से
कबीर काव्य ने हिन्दी काव्य को मानवतावाद से प्रभावित किया है । कबीर ने धर्म की रूढ़िवादी विचारधारा के विरूद्ध आवाज बुलंद कर जनता को पारस्परिक प्रेम और सद्भावना का संदेश दिया, मिथ्या-आडम्बरों एवं पाखंडों को चुनौती दी और उपेक्षित, उत्पीड़ित मनुष्य को विचार करने की शक्ति दी । कबीर की इस मानवतावादी विचारधारा का आधुनिक काल के कवियों पर सबसे अधिक प्रभाव दिखाई देता है । कबीर ने सात सौ साल पहले जो मानवतावादी विचार अपने काव्य में प्रकट किए थे, उनका प्रभाव आधुनिक हिन्दी कवियों ने स्वीकार किया है । मुक्तिबोध ने तो सभी के सुखी होने की कामना अपनी कविता में की है । इतना ही नहीं मुक्ति की कामना भी उन्होंने सामूहिकता के आधार पर की है । कवि अपनी कविता में कहता है-
‘‘याद रखो! कभी अकेले में मुक्ति नहीं मिलती ।
यदि वह है तो सबके साथ है।’’
कबीर काव्य ने वैयक्तिक अनुभूति को अधिक महत्त्व दिया है। ‘अनुभूति की प्रामाणिकता’ इस तत्त्व का कविता में महत्त्व बताने का कार्य ही कबीर काव्य करता है । ‘अनुभूति की प्रामाणिकता’ से प्रभावित होते हुए आधुनिक काल मे अनेक कवियों ने जीवन के अनेक रूप काव्य में अंकित किए हैं । आधुनिक हिन्दी कविता आत्मानुभूत वाणी इसलिए है क्योंकि उसमें जीवन की यथार्थता है । मुक्तिबोध के काव्य में यह भाव सबसे अधिक है । वे सामाजिक स्थिति के संबंध में अत्यंत जागरूक कवि हैं । परिवर्तन के कार्य में कवि प्रत्येक व्यक्ति के साथ है । वे कहते हैं –
‘‘ऐ हिन्दूस्थानी फटेहाल जिंदादिल जिंदगी।
तेरे साथ तेरा यह बंदा नित रहेगा।’’
लोकहितार्थ भावना कबीर काव्य का मूल्य है । कबीर ने काव्य में वैयक्तिक भावनाओं को नहीं सामाजिक भावनाओं को महत्त्व दिया है । कबीर की लोकहितार्थ की भावना का प्रभाव आधुनिक हिन्दी कविता ने स्वीकार किया है । आधुनिक हिंदी कविता अधिक मात्रा मे सामाजिक है । आधुनिक हिंदी कविता अधिक मात्रा में प्रतिबद्ध इसलिए है क्योंकि उसने कबीर काव्य की परम्परा को स्वीकार किया है। डाॅ. कृष्णदेव झारी ‘‘निराला को लोक-पीड़ा तथा सामाजिक दृष्टि का कवि स्वीकार करते हैं।2 केवल निराला ही नहीं निराला के बाद के अनेक कवि भी कबीर काव्य से प्रभावित लोकहितार्थ को महत्त्व देते हैं ।
कबीर काव्य जनवादी है । कबीर काव्य के बाद हिंदी में एक स्वस्थ जनवादी कविता दिखाई देती है । छायावादोत्तर हिन्दी काव्य में यह जनवादी दृष्टि प्रभावी रूप में दिखाई देती है। नागार्जुन का काव्य इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । वास्तविक रूप में इस जनवादी कविता की परम्परा का सूत्रपात कबीर ने ही किया है । मुक्तिबोध, श्रीकांत वर्मा, धूमिल, लीलाधर, जगूड़ी आदि की कविताओं में भी यह जनवादी स्वर प्रभावी रूप में अंकित है । समाज की गतिशीलता, स्पंदन कवि सुरेन्द्र चतुर्वेदी को जनविरोधी ही प्रतीत होते हैं ।
‘‘तलवार चाहे कागज की हो
लोहे की हो
या चाँदी की हो ।
किसी न किसी तरीके से
हमेशा किसी कातिल के हाथ में चली जाती है
तलवार चाहे विधान की हो या संविधान की ।’’3
समाज में आयी हुई चेतनहीनता को नागार्जुन और रघुवीर सहाय जैसे कवियों ने प्रकट किया है । रघुवीर सहाय ने असहाय आदमियों तथा शोषित औरतों और बच्चों को कविताओं में अंकित किया है । उनकी कविता आमजन की पीड़ा का व्यक्त करती हैं। उनकी ‘रामदास’ कविता की कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं –
‘‘भीड़ ठेल लौट गया वह
मरा पड़ा रामदास वह
देखो देखो बार बार कह
लोग निडर उस जगह खड़े रहे
लगे बुलाने उन्हें जिन्हें संशय था हत्या होगी।’’
इस प्रकार हिंदी की नयी कविता भी कबीर-काव्य से प्रभावित होकर मनुष्य तथा समाज की चिंता को प्रकट कर रही है । नयी कविता अभावग्रस्त मनुष्य की पीड़ा को चित्रित करती है । इस दृष्टिकोण से इसे लघुमानव की पीड़ा को चित्रित करने वाली कविता कहा गया है। वास्तविक रूप में यह ‘लघुमानव’ की पीड़ा का चित्रण कबीर, निराला के काव्य से प्रभावित होकर साधारण मनुष्य का चित्रण करना ही है।
कबीर काव्य से प्रभावित होते हुए आधुनिक हिंदी कविता प्रगतिशील बनी है। प्रगतिशीलता एक मूल्य है । इसका किसी वाद के साथ कोई संबंध नहीं है । डाॅ. हणमंतराव पाटील ने ठीक ही लिखा है – ‘‘प्रगतिशील कविता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस कविता में मानव-जीवन का व्यापक चित्रण दिखाई देता है । इस कविता में किन्हीं महापुरूषों का नहीं, किन्हीं अवतारों का नहीं या किन्हीं सामंतों का नहीं तो साधारण आदमियों का चित्रण किया जाता है । साधारण आदमी इस कविता के पूर्व इतने सम्मान के साथ केन्द्रित नहीं था जितना कि इस प्रगतिशील कविता में दिखाई देता है । यह संघर्षो और क्रांतिकारी मानवतावाद प्रगतिशील कविता की महत्त्वपूर्ण विशेषता है।’’4 हिंदी के समकालीन कवियों के काव्य में भी इस प्रतियोगिता का भाव दिखाई पड़ता है ।
कबीर ने अपने काव्य में अभिव्यक्ति की दृष्टि से भी विविध प्रयोग किए हैं । उनके काव्य में व्यंग्य भाव भी दिखाई देता है। कहीं प्रतीकात्मक शैली के आधार पर कविता को प्रभावी बनाया है। कहीं शब्दों में नए-नए प्रयोग किए हैं । कबीर काव्य के शिल्प का यह भाग हिन्दी के आधुनिक कवियों पर दिखाई देता है। आधुनिक कवियों ने व्यंग्य भाव अपनाकर काव्य सृजन किया है । मुक्तिबोध की कविता में ‘तुम लोगों से दूर हूँ ’ में सामाजिक विषमता को व्यंग्य भाव से प्रकट किया है ।
‘‘मैं तुम लोगों से इतना दूर हूॅं
तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है
कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है।’’5
इस प्रकार कबीर काव्य से प्रभावित होकर हिंदी कविता एक विशिष्ट परम्परा प्राप्त कर चुकी है । आधुनिक हिन्दी कविता साहसिक बनी है। उसमें विद्रोह की भावना अधिक दिखाई देती है । यह कविता जनवादी होने के कारण सामाजिक है । इस कविता में लोक संस्कृति अधिक दिखाई देती है । जीवनानुभवों से सम्पन्न यह कविता संप्रेषणीय और विश्वसनीय बनी है । अतः कह सकते हैं कि कबीर काव्य के कारण आधुनिक हिंदी कविता अनेक दृष्टियों से परिवर्तित हो गयी है। कबीर काव्य का प्रभाव ग्रहण कर आधुनिक हिन्दी कवियों ने कविता को मानवीय भावों से जोड़ा है ।
संदर्भ-
1- ‘पंचशील शोध समीक्षा‘ संपादक – डाॅ. हेतु भारद्वाज, पृ0 49
2- ‘युगकवि निराला’ कृष्णदेव झारी, पृ. 25
3- ‘काव्य परम्परा और नयी कविता की भूमिका’, कमल कुमार, पृ. 87
4- ‘नव-निकष अंक 7’, संपादक लक्ष्मीकांत पाण्डेय, जनवरी 2008, पृ0 33
5- ‘कबीर मीमांसा’, रामचन्द्र तिवारी, पृ. 140.