समकालीन हिन्दी आलोचना और कबीर: आलेख (संजय कुमार पटेल)

शोध आलेख कानून

संजय कुमार पटेल 2645 11/18/2018 12:00:00 AM

कबीर पर आज तक जितने भी आलोचक अपनी आलोचना से दृष्टिपात किए हैं वह आज भी सबको स्वीकार्य नहीं है । सभी लोग अपने-अपने अनुसार कबीर को व्याख्यायित करने का प्रयास किए हैं लेकिन उन्हीं में से कबीर के प्रति कुछ ऐसे भी शोध हुए हैं जो अन्य शोधों की अपेक्षा अधिक सटीक, वास्तविक व ऐतिहासिक हैं । वह कबीर की विरासत की बात करते हैं । उनके वास्तविक और ऐतिहासिक स्वरूप पर बड़ी मजबूती के साथ लिख रहे हैं । कबीर को समझने के लिए हमे आज उनको इसी रूप को केंद्र में रखना होगा । वह वैष्णव दार्शनिक पृष्ठभूमि के थे ही नहीं, उनकी तो अपनी परंपरा है, विरासत है और अस्मिता है । उनकी अपनी मौलिकता है । इसलिए कबीर जैसे व्यक्तित्व और कृतित्व को घालमेल करने से सावधान रहना होगा । आज हमे कबीर को समझकर ऐसे आलोचकों को करारा जबाब देना होगा । उनके झांसे से बचना होगा । उनके वस्तिविक और ऐतिहासिक रूप को समझना व मानना होगा । वह भक्त नहीं थे, वैष्णव दर्शन से सम्बद्ध नहीं थे, सत्ता के साथ उनका दूर तक कोई नाता नहीं था, उनके गुरु रमानन्द नहीं थे और न ही वह हिंदुत्ववादी अस्मिता के साथ थे । ‘संजय कुमार पटेल’ का शोध आलेख …….

समकालीन हिन्दी आलोचना और कबीर 

संजय कुमार पटेल

संजय कुमार पटेल

कबीर के व्यक्तित्व, विचारधारा और उनकी संघर्ष-चेतना से भक्ति आंदोलन का जो आधार और ढांचा निर्मित हुआ, भक्ति आन्दोलन की परवर्ती सगुण धारा उससे टकराती हुई आगे बढ़ी । निर्गुण-सगुण के बीच का वैचारिक-सांस्कृतिक संघर्ष इसका प्रमाण है । इसी संघर्ष की प्रक्रिया में कबीर की प्रेरणा से निर्मित प्रतिरोधी शक्तियों के धीरे-धीरे कमजोर पड़ने से कबीर के आत्मसातीकरण यानि वैष्णवीकरण की प्रक्रिया घटित हुई होगी । कबीर की प्रतिरोध चेतना को लेकर आलोचकों में भले ही कोई गहरा मतभेद न उभरता हो, लेकिन इस प्रतिरोधी चेतना के सामाजिक एवं वैचारिक स्रोत को लेकर विद्वानों में गहरे मतभेद और मत-मतान्तर उभरे हैं । यही कारण है कि कबीर के काव्य की व्याख्या के संदर्भ में कबीर के वैचारिक स्रोतों और उनकी सामाजिक अस्मिता को खोजने और अपने-अपने मत प्रस्तुत करने के प्रयास हुए हैं। इस खोज प्रक्रिया में कबीर के वैचारिक एवं सामाजिक स्रोत को पहचानने और गढ़ने के क्रम में तमाम मिथक, किंवदंती और प्रक्षिप्त भी रच दिए गए हैं । इससे कबीर का ऐतिहासिक व्यक्तित्व उजागर होने के बजाय अधिकांशतः ढक गया है। बिना सुनिश्चित ऐतिहासिक आधार को लिये कोई भी व्यक्तित्व और उसकी कविता अपनी प्रमाणिकता खो देते हैं ।

          वैष्णव आंदोलन और उसके नायकों ने कबीर के आत्मसातीकरण की जो प्रक्रिया शुरू की उसको शुरूआती हिन्दी आलोचना वैधता प्रदान करती नज़र आ रही है, लेकिन समकालीन हिन्दी आलोचना कबीर को नई खोजों और अन्वेषणों के आलोक में कबीर के अनावृत्त करते हुए कबीर के मूल ऐतिहासिक रूप को खोजने-पाने का प्रयत्न करती हुई नज़र आती है । ऐसी परिस्थिति में कबीर का वैष्णव आंदोलन और उसके उन्नायकों से बनने वाले सम्बन्ध को इसी ऐतिहासिक प्रक्रिया को मद्देनज़र रख कर परिभाषित किया जाना समीचीन होगा ।

          साहित्येतर माध्यमों (इतिहास आदि अनुशासन के भीतर) में हुए अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि सगुण काव्यधारा का सत्ता के साथ गहरा एवं वर्चस्वशाली सम्बन्ध था, जबकि निर्गुण काव्यधारा का सत्ता से दूर का भी सम्बन्ध नहीं था । बजरंग बिहारी तिवारी ने तद्भव में छपे अपने दो लेखों ‘भक्ति के वृहद् आख्यान में सत्पुरुषों की पीड़ा’ तथा ‘मध्ययुगीन भक्ति आंदोलन में सत्ता विमर्श का एक पहलू’ में यह प्रमाण दिया है ।

          आज संत आंदोलन (कबीर आदि) के वैष्णव दार्शनिक पृष्ठभूमि से अलग एक स्वतंत्र दार्शनिक स्रोत की खोज को लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल और डॉ0 धर्मवीर के मध्य एक लम्बी बहस ने जन्म लिया है। पुरुषोत्तम अग्रवाल कबीर आदि को वैष्णव दार्शनिक परम्परा के भीतर रखने के पक्ष में हैं तो डॉ0 धर्मवीर संतधारा को वैष्णव दार्शनिक परम्परा से अलग मानते हुए उसके स्वतंत्र दार्शनिक परम्परा के भीतर रखकर अध्ययन करने के पक्ष में हैं ।

          डॉ0 धर्मवीर ने अपनी पुस्तक ‘कबीर के आलोचक‘ में कबीर की अस्मिता को लेकर आगे आये हैं। वह हजारी प्रसाद द्विवेदी की कबीर की अस्मिता ‘हिन्दू अस्मिता’ को नकारते हुए कबीर को ‘दलित अस्मिता’ का रचनाकार सिद्ध करते हैं। वहीं राजीव कुमार कुंवर कबीर को इन दोनों अस्मिताओं से अलग एक नई अस्मिता से जोड़ते हैं, जो व्यापक हो ।

          आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने कबीर को भक्त माना है, उनके समाज-सुधारक वाले रूप को ‘फोकट का माल’ कहा है । डॉ0 धर्मवीर ने इस बारीकी को गहराई से समझा और कबीर को भक्त न मानकर समाज-सुधारक माना है । इस बात की पुष्टि राजीव कुमार कुंवर ने अपने लेख ‘अस्मिता के नये सवाल और हजारी प्रसाद द्विवेदी’ (तद्भव में छपे) में कर दी है। वह डॉ0 धर्मवीर को इस राजनैतिक पकड़ के लिए साक्ष्य बनाये हैं ।

          कबीर की जाति को लेकर अंतः साक्ष्य एवं बर्हिसाक्ष्य के आधार पर विभिन्न जाति का सिद्ध करते आये हैं। वह ब्राह्मण, जुलाहा, कोरी, बनिया जैसी जाति के सिद्ध किये गये हैं । इसी क्रम में समकालीन आलोचक कमलेश वर्मा ने एक नई जाति का सिद्ध करते हुए एक नई बहस को जन्म दिये हैं । उन्होंने कबीर को अपनी पुस्तक ‘जाति के प्रश्न पर कबीर (2015)’ में ओ. बी. सी. जाति का सिद्ध किया है। इस तरह कबीर पर गहरा मतभेद और राजनीति आज भी लगातार जारी है ।

          इन बिन्दुओं पर प्रस्तुत शोध विषय में कार्य करने की सम्भावना दिखाई दे रही है । यह सम्भावना जितनी आसानी से दिखाई दे रही है उतनी ही कठिन, उलझाऊ तथा जटिल है, क्योंकि राजनैतिक तरह से इसको जटिल बना दिया गया है । साहित्य के अलावा साहित्येतर अनुशासनों में नये अध्ययनों ने इधर सोचने पर मजबूर किया है । कबीर का स्पष्ट स्वरूप प्रतिबिंबित हो रहा है, वहीं सगुण काव्यधारा का भी । इससे कबीर की इतिहास-सम्मत व्याख्या की मांग उठने लगी है जिससे लोकतांत्रिक सम्भावनाओं की किरण दिख रही है । इस प्रकार उनके प्रति न्याय हो सकेगा तथा उनके द्वारा की गयी रचनाशीलता की नई व्याख्या हो सकेगी। उसका सकारात्मक मूल्यांकन हो सकेगा। उनके मौलिक योगदान की पहचान की जा सकेगी। अतः प्रस्तुत अध्ययन में ऐतिहासिक, गवेषणात्मक, समाजशास्त्रीय और आलोचनात्मक पद्धति अपनाई जाएगी ।

          कुल मिलाकर कबीर पर आज तक जितने भी आलोचक अपनी आलोचना से दृष्टिपात किए हैं वह आज भी सबको स्वीकार्य नहीं है । सभी लोग अपने-अपने अनुसार कबीर को व्याख्यायित करने का प्रयास किए हैं लेकिन उन्हीं में से कबीर के प्रति कुछ ऐसे भी शोध हुए हैं जो अन्य शोधों की अपेक्षा अधिक सटीक, वास्तविक व ऐतिहासिक हैं । वह कबीर की विरासत की बात करते हैं । उनके वास्तविक और ऐतिहासिक स्वरूप पर बड़ी मजबूती के साथ लिख रहे हैं । कबीर को समझने के लिए हमे आज उनको इसी रूप को केंद्र में रखना होगा । वह वैष्णव दार्शनिक पृष्ठभूमि के थे ही नहीं, उनकी तो अपनी परंपरा है, विरासत है और अस्मिता है । उनकी अपनी मौलिकता है । इसलिए कबीर जैसे व्यक्तित्व और कृतित्व को घालमेल करने से सावधान रहना होगा । आज हमे कबीर को समझकर ऐसे आलोचकों को करारा जबाब देना होगा । उनके झांसे से बचना होगा । उनके वस्तिविक और ऐतिहासिक रूप को समझना व मानना होगा । वह भक्त नहीं थे, वैष्णव दर्शन से सम्बद्ध नहीं थे, सत्ता के साथ उनका दूर तक कोई नाता नहीं था, उनके गुरु रमानन्द नहीं थे और न ही वह हिंदुत्ववादी अस्मिता के साथ थे । जबकि राजीव कुमार कुँवर लिखते हैं कि कबीर की अस्मिता इन दोनों से अलग और बहुअस्तरीय है ।

संदर्भ ग्रंथ सूची

  1. रामचन्द्र शुक्ल, हिन्दी साहित्य का इतिहास, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद
  2. हजारी प्रसाद द्विवेदी, कबीर, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  3. गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’, नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबन्ध
  4. नामवर सिंह (क) दूसरी परम्परा की खोज, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  5. मैनेजर पाण्डेय, हिंदी कविता का अतीत और वर्तमान, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
  6. पुरुषोत्तम अग्रवाल, अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  7. डॉ0 धर्मवीर, कबीर के आलोचक
  8. डॉ0 धर्मवीर, कबीर नई सदी में : सीरीज़ के अन्तर्गत
  9. डॉ0 धर्मवीर, कबीर और रामानन्द : किंवदंतियाँ
  10. डॉ0 धर्मवीर, कबीर डॉ0 हजारी प्रसाद द्विवेदी का प्रक्षिप्त चिंतन
  11. डॉ0 धर्मवीर,कबीर बाज भी, कपोत भी और पपीहा भी
  12. कमलेश वर्मा, जाति के प्रश्न पर कबीर, पेरियार प्रकाशन, अशोकपुरी कॉलोनी, पटना
  13. चौथीराम यादव, लोकधर्मी साहित्य की दूसरी धारा, अनामिका प्रकाशन, नई दिल्ली
  14. सतीशचन्द्र, मध्यकालीन भारत में इतिहास-लेखन, धर्म और राज्य का स्वरूप, अनुवादक- एन0ए0 खान ‘शाहिद’, ग्रंथ शिल्पी प्रकाशन, नई दिल्ली
  15. आलोचना (‘अकथ कहानी प्रेम की : कबीर की कविता और उनका समय’ पर विशेषांक), सं0 अपूर्वानन्द, नई दिल्ली
  16. तद्भव, सं0 अखिलेश, लखनऊ

 बहुरि नहिं आवना : प्रधान सं0 प्रो0 श्योराजसिंह ‘बेचैन’, सं0-डॉ0 दिनेश राम, आजीवक महासंघ ट्रस्ट, नई दिल्ली

संजय कुमार पटेल द्वारा लिखित

संजय कुमार पटेल बायोग्राफी !

नाम : संजय कुमार पटेल
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.