बाबा नागार्जुन’ सा कोई नहीं: आलेख (सूरज प्रकाश)

शोध आलेख कानून

सूरज प्रकाश 722 11/18/2018 12:00:00 AM

बिहार के धधकते खेत-खलिहानों के खेत-मजदूरों के दर्द को अपनी कविताओं से बुलंद आवाज़ देने वाले जनकवि “बाबा नागर्जुन” का व्यक्तित्व महज़ कविता लेखन तक ही सीमित नहीं रहा | आप आज़ादी के पहले से लेकर आज़ादी के बाद अपनी आखिरी सांस तक जनता के कंधे से कंधा मिलाये खड़े रहे | और इसी लिए दिल्ली की बसों के चिढ़े-खीझे ड्राइवरों से लेकर मजदूरों के अलावा देश भर का साहित्यिक खेमा उन्हें सर-आँखों पर रखता है | वरिष्ठ साहित्यकार ‘सूरज प्रकाश” का लघु आलेख और “बाबा नागर्जुन” की एक कविता ……| – संपादक

अपने खेत में…. 

बाबा नागार्जुन

बाबा नागार्जुन

जनवरी का प्रथम सप्ताह
खुशग़वार दुपहरी धूप में…
इत्मीनान से बैठा हूँ…..

अपने खेत में हल चला रहा हूँ
इन दिनों बुआई चल रही है
इर्द-गिर्द की घटनाएँ ही
मेरे लिए बीज जुटाती हैं
हाँ, बीज में घुन लगा हो तो
अंकुर कैसे निकलेंगे !

जाहिर है
बाजारू बीजों की
निर्मम छटाई करूँगा
खाद और उर्वरक और
सिंचाई के साधनों में भी
पहले से जियादा ही
चौकसी बरतनी है
मकबूल फ़िदा हुसैन की
चौंकाऊ या बाजारू टेकनीक
हमारी खेती को चौपट
कर देगी !
जी, आप
अपने रूमाल में
गाँठ बाँध लो ! बिलकुल !!
सामने, मकान मालिक की
बीवी और उसकी छोरियाँ
इशारे से इजा़ज़त माँग रही हैं
हमारे इस छत पर आना चाहती हैं
ना, बाबा ना !

अभी हम हल चला रहे हैं
आज ढाई बजे तक हमें
बुआई करनी है….

‘बाबा नागार्जुन’ सा कोई नहीं

suraj-prakash

सूरज प्रकाश

दरभंगा, बिहार में जन्‍मे बाबा (मैथिली में यात्री) के नाम से प्रसिद्ध प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि नागार्जुन (1911-1998) का मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। 1936 में आप श्रीलंका चले गए और वहीं बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की।
नागार्जुन अपने व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों में ही सच्‍चे जननायक और जनकवि हैं। रहन-सहन, वेष-भूषा में तो वे निराले और सहज थे ही, कविता लिखने और सस्‍वर गाने में भी वे एकदम सहज होते थे। वे मैथिली, हिन्दी और संस्कृत के अलावा पालि, प्राकृत, बांग्ला, सिंहली, तिब्बती आदि भाषाएं जानते थे और कई भाषाओं में कविता करते थे। वे सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने कवि हैं।
बाबा मैथिली-भाषा आंदोलन के लिए साइकिल के हैंडिल में अपना चूड़ा-सत्तू बांधकर मिथिला के गांव-गांव जाकर प्रचार-प्रसार करने में लगे रहे। वे मा‌र्क्सवाद से वह गहरे प्रभावित रहे, लेकिन मा‌र्क्सवाद के तमाम रूप और रंग देखकर वह निराश भी थे। उन्होंने जयप्रकाश नारायण का समर्थन जरूर किया, लेकिन जब जनता पार्टी विफल रही तो बाबा ने जेपी को भी नहीं छोड़ा।
नागार्जुन सच्‍चे जनवादी थे। कहते थे – जो जनता के हित में है वही मेरा बयान है। तमाम आर्थिक अभावों के बावजूद उन्होंने विशद लेखन कार्य किया। एक बार पटना में बसों की हडताल हुई तो हडतालियों के बीच पहुंच गये और तुरंत लिखे अपने गीत गा कर सबके अपने हो गये। हजारों हड़ताली कर्मचारी बाबा के साथ थिरक थिरक कर नाच गा रहे थे।
उन्‍होंने छः उपन्यास, एक दर्जन कविता-संग्रह, दो खण्ड काव्य, दो मैथिली; (हिन्दी में भी अनूदित) कविता-संग्रह, एक मैथिली उपन्यास, एक संस्कृत काव्य “धर्मलोक शतकम” तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियों की रचना की। उनकी 40 राजनीतिक कविताओं का संग्रह विशाखा कहीं उपलब्ध नहीं है।
नागार्जुन को मैथिली रचना पत्रहीन नग्न गाछ के लिए में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्‍मानित किया गया था। वे साहित्य अकादमी के फेलो भी रहे।
वे आजीवन सही मायनों में यात्री, फक्‍कड़ और यायावर रहे। वे उत्‍तम कोटि के मेहमान होते थे। किसी के भी घर स्‍नेह भरे बुलावे पर पहुंच जाते और सबसे पहले घर की मालकिन और बच्‍चों से दोस्‍ती गांठते। अपना झोला रखते ही बाहर निकल जाते और मोहल्‍ले के सब लोगों से, धोबी, मोची, नाई से जनम जनम का रिश्‍ता कायम करके लौटते। गृहिणी अगर व्‍यस्‍त है तो रसोई भी संभाल लेते और रसदार व्‍यंजन बनाते और खाते-खिलाते। एक रोचक तथ्‍य है कि वे अपने पूरे जीवन में अपने घर में कम रहे और दोस्‍तों, चाहने वालों और उनके प्रति सखा भाव रखने वालों के घर ज्‍यादा रहे। वे शानो शौकत वाली जगहों पर बहुत असहज हो जाते थे। वे बच्‍चों की तरह रूठते भी थे और अपने स्‍वाभिमान के चलते अच्‍छों अच्‍छों की परवाह नहीं करते थे।
फक्कड़पन और घुमक्कड़ी प्रवृति नागार्जुन के साथी हैं। व्यंग्य की धार उनका अस्‍त्र है। रचना में वे किसी को नहीं बख्‍शते। वे एकाधिक बार जेल भी गये।
छायावादोत्तर काल के वे अकेले कवि हैं जिनकी रचनाएँ ग्रामीण चौपाल से लेकर विद्वानों की बैठक तक में समान रूप से आदर पाती हैं। नागार्जुन ने जहाँ कहीं अन्याय देखा, जन-विरोधी चरित्र की छ्द्मलीला देखी, उन सबका जमकर विरोध किया। बाबा ने नेहरू पर व्यंग्यात्मक शैली में कविता लिखी थी। ब्रिटेन की महारानी के भारत आगमन को नागार्जुन ने देश का अपमान समझा और तीखी कविता लिखी- आओ रानी हम ढोएँगे पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की।
इमरजेंसी के दौर में बाबा ने इंदिरा गांधी को भी नहीं बख्‍शा  लेकिन सुनने में आता है कि इंदिरा जी बाबा की कविताएं बहुत पसंद करती थीं।

सूरज प्रकाश द्वारा लिखित

सूरज प्रकाश बायोग्राफी !

नाम : सूरज प्रकाश
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

सूरज प्रकाश का जन्म उत्‍तराखंड (तब के उत्तर प्रदेश) के देहरादून में हुआ था। सूरज प्रकाश ने मेरठ विश्‍व विद्यालय से बी॰ए॰ की डिग्री प्राप्त की और बाद में उस्‍मानिया विश्‍वविद्यालय से एम ए किया। तुकबंदी बेशक तेरह बरस की उम्र से ही शुरू कर दी थी लेकिन पहली कहानी लिखने के लिए उन्‍हें पैंतीस बरस की उम्र तक इंतजार करना पड़ा। उन्होंने शुरू में कई छोटी-मोटी नौकरियां कीं और फिर 1981 में भारतीय रिज़र्व बैंक की सेवा में बंबई आ गए और वहीं से 2012 में महाप्रबंधक के पद से रिटायर हुए। सूरज प्रकाश कहानीकार, उपन्यासकार और सजग अनुवादक के रूप में जाने जाते हैं। 1989 में वे नौकरी में सज़ा के रूप में अहमदाबाद भेजे गये थे लेकिन उन्‍होंने इस सज़ा को भी अपने पक्ष में मोड़ लिया। तब उन्‍होंने लिखना शुरू ही किया था और उनकी कुल जमा तीन ही कहानियाँ प्रकाशित हुई थीं। अहमदाबाद में बिताए 75 महीनों में उन्‍होंने अपने व्‍यक्‍तित्‍व और लेखन को संवारा और कहानी लेखन में अपनी जगह बनानी शुरू की। खूब पढ़ा और खूब यात्राएं कीं। एक चुनौती के रूप में गुजराती सीखी और पंजाबी भाषी होते हुए भी गुजराती से कई किताबों के अनुवाद किए। इनमें व्‍यंग्य लेखक विनोद भट्ट की कुछ पुस्‍तकों, हसमुख बराड़ी के नाटक ’राई नो दर्पण’ राय और दिनकर जोशी के बेहद प्रसिद्ध उपन्‍यास ’प्रकाशनो पडछायो’ के अनुवाद शामिल हैं। वहीं रहते हुए जॉर्ज आर्वेल के उपन्‍यास ’एनिमल फॉर्म’ का अनुवाद किया। गुजरात हिंदी साहित्‍य अकादमी का पहला सम्‍मान 1993 में सूरज प्रकाश को मिला था। वे इन दिनों मुंबई में रहते हैं। सूरज प्रकाश जी हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी भाषाएं जानते हैं। उनके परिवार में उनकी पत्‍नी मधु अरोड़ा और दो बेटे अभिजित और अभिज्ञान हैं। मधु जी समर्थ लेखिका हैं।


अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.