दो दिलचस्प उबाऊ किताबें : आलेख (उज्जवल भट्टाचार्य)

विमर्श-और-आलेख विमर्श-और-आलेख

उज्जवल उपाध्याय 440 11/18/2018 12:00:00 AM

दो दिलचस्प उबाऊ किताबें : आलेख (उज्जवल भट्टाचार्य)

दो दिलचस्प उबाऊ किताबें %e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%95

बर्लिन दीवार गिरने के बाद एक मुहावरा बन गई. अब भी इसके इस्तेमाल की कोशिश जारी है.

यहां तक तो ठीक था, लेकिन पूंजीवाद की इस सनसनीख़ेज़ जीत को सैद्धांतिक आधार देना था – ऐसा आधार जिसका आयाम अब तक के कम्युनिज़्म विरोध से व्यापक हो, बुनियादी हो, और सबसे बड़ी बात, कि प्रतिक्रियात्मक न हो. बहुत कुछ लिखा गया, लेकिन सैद्धांतिक निष्कर्ष निकालते हुए दो किताबें आईं और सारी दुनिया में चर्चा में रही. पहली किताब थी फ़्रांसिस फ़ुकुयामा की, The End of History and the Last Man, और दूसरी किताब उसके जवाब में लिखी गई थी – The Clash of Civilizations, लेखक थे सैम्युएल हंटिंगटन.

इस बीच दोनों के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ चुकी हैं, लेकिन उस दौर में कम्युनिज़्म-विरोध के सैद्धांतिक मसीहे के रूप में उनका स्वागत किया गया था.

फ़ुकुयामा का प्रतिपादन इतिहास के बारे में हेगेल की अवधारणा पर आधारित था, किसी हद तक मार्क्स पर भी. हेगेल का मेरा अध्ययन लगभग नहीं के बराबर है, लेकिन इतिहास की उनकी अवधारणा में मैं दो बुनियादी कारक देखता हूं. पहली बात कि इतिहास की उनकी समझ का आधार यथार्थ नहीं बल्कि सिद्धांत है, और दूसरी बात कि वह इतिहास को विवर्तन की एक प्रक्रिया के रूप में देखते हैं. मेरी समझ में दूसरा कारक मार्क्स की अवधारणा में भी है. अन्य शब्दों में कहा जाय तो हेगेल मानते हैं कि विचारधाराओं के बीच संघर्ष के नतीजे के रूप में इतिहास विकसित होता रहेगा.

अपनी पुस्तक में फ़ुकुयामा का कहना था कि हेगेल की अवधारणा के अनुसार विकसित होते हुए इतिहास अब अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुंच चुका है. बाज़ार अर्थव्यवस्था और बहुदलीय लोकतंत्र अब इतिहास के स्थाई रूप होंगे. घटनायें होंगी, लेकिन इतिहास के विवर्तन का दौर अब समाप्त हो चुका है. उन्होंने इसे इतिहास का अंत कहा.%e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%95-%e0%a5%a7

उनके प्रतिपादन का खंडन करते हुए सैम्युएल हंटिंगटन ने अपनी पुस्तक The Clash of Civilizations में दावा किया कि इतिहास के द्वंद्व बने हुए हैं, लेकिन वे विचारधारा के आधार पर नहीं, बल्कि संस्कृतियों के बीच द्वंद्व के रूप में जारी रहेंगे. विश्व की प्रमुख संस्कृतियों की अपनी तालिका प्रस्तुत करते हुए इस सिलसिले में उन्होंने ख़ास तौर पर पश्चिम की ईसाई संस्कृति और इस्लामी संस्कृति के बीच आधारभूत द्वंद्व पर ज़ोर दिया.

ये दोनों विद्वान अमरीका के अनुदारवादी खेमे से गहरे रूप से जुड़े हुए थे. फ़ुकुयामा ने बाद में इस खेमे से अपनी वैचारिक दूरी स्पष्ट की. 1995 में ही उन्होंने अपनी नई किताब में स्वीकार किया था कि आर्थिक सवाल अन्य सवालों पर असर डालते हैं व डालते रहेंगे.

दोनों विद्वानों के प्रतिपादनों की मूल समस्या यह है कि वे किसी भी प्रणाली या प्रतिभास के आंतरिक द्वंद्व के प्रश्न को पूरी तरह से टाल जाते हैं. पिछले 25 साल की घटनाओं से स्पष्ट हो चुका है कि कम्युनिस्ट दुनिया के पतन के बावजूद बाकी दुनिया की समस्यायें व उनके अंतर्द्वंद्व मिटने या घटने के बजाय बढ़ते गये हैं. अगर इस्लामी दुनिया में तालिबान या आइएसआइएस को सांस्कृतिक द्वंद्व की मिसाल के रूप में पेश किया जाय, तो यह पूछना लाज़मी हो जाता है कि क्या वे इस्लाम के प्रतिनिधि के रूप में मान्य हो सकते हैं ? इसके अलावा वे पश्चिम के साथ द्वंद्व से ज़्यादा इस्लामी समाज के आंतरिक द्वंद्व को कहीं अधिक सामने लाते हैं. ऐसे गिरोहों को मज़बूत बनाने में पश्चिम की भूमिका व मदद को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता. और सबसे बड़ी बात : हंटिंगटन धर्म और संस्कृति को समार्थक मानकर चलते हैं.

इतिहास ने फ़ुकुयामा को झुठला दिया. हंटिंगटन के सिद्धांत आज नवनाज़ियों से तालिबानियों व हिंदुत्ववादियों तक के विचारों के आधार बन चुके हैं, औपचारिक रूप से पश्चिमी जगत इसे ठुकराने को बाध्य है, पश्चिम से बाहर तो कभी उसे पूछा भी नहीं गया. संस्कृतियों के बीच अंतर हैं, उनसे द्वंद्व की परिस्थितियां उभरती हैं, और इसीलिये वे नज़दीक भी आते हैं, जुड़ते भी हैं – नई सांस्कृतिक धाराओं का जन्म होता है, होता रहेगा.

जहां तक इतिहास के अंत का सवाल है तो उसके कोई लक्षण नहीं हैं. पूंजीवाद हमें किसी लक्ष्य तक पहुंचा नहीं पाया है. वह एक ऐसे भंवर में है, जिसमें से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखता. आज हम संकट के अंदर संकट के दौर में आ चुके हैं. उसका नकारात्मक प्रभाव मानव सभ्यता व प्राकृतिक पर्यावरण के साथ-साथ भूगर्भ प्रणाली पर भी दिखने लगा है. इतिहास रहेगा. सवाल सिर्फ़ इतना है कि क्या इतिहास में मानव रहेगा ?

(लेखक के निज़ी विचारों के आधार पर )

उज्जवल उपाध्याय द्वारा लिखित

उज्जवल उपाध्याय बायोग्राफी !

नाम : उज्जवल उपाध्याय
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.