हमरंग का एक वर्ष पूरा होने पर देश भर के कई लेखकों से ‘हमरंग’ का साहित्यिक, वैचारिक मूल्यांकन करती टिपण्णी (लेख) हमें प्राप्त हुए हैं जो बिना किसी काट-छांट के, हर चौथे या पांचवें दिन प्रकाशित होंगे | हमारे इस प्रयास को लेकर हो सकता है आपकी भी कोई दृष्टि बनी हो तो नि-संकोच आप लिख भेजिए हम उसे भी जस का तस हमरंग पर प्रकाशित करेंगे | इस क्रम  में आज जमशेदपुर से ‘डा० विजय शर्मा … | – संपादक 
                                                    
                                                        
‘हमरंग‘ की निरंतरता आश्वस्त करती है !  

विजय शर्मा
मुझे सदा लगता है कि यदि आप कोई नेक काम शुरु करते हैं, तो वह काम अवश्य सफ़ल होता है। ऐसा नहीं है कि अच्छा उद्देश्य ले कर चलने पर दिक्कतें नहीं आती हैं, असल में खूब कठिनाइयाँ आती हैं। मगर इन दिक्कतों का हल निकलता जाता है और आप अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाते हैं। जब आप एक अच्छे काम के लिए प्रतिबद्ध होते हैं तो आपके साथ और लोग जुड़ते जाते हैं, कारवाँ बनता जाता है। जब कारवाँ चलता है तो कुछ लोग राह में छूटते जाते हैं, कुछ नए लोग जुड़ते जाते हैं और सिलसिला चलता रहता है। हाँ बस एक बात अवश्य याद रखनी होती है कि आप उद्देश्य से भटके नहीं।
ऐसा ही एक नेक काम करीब एक साल पहले भाई हनीफ़ मदार ने शुरु किया। उन्होंने हिन्दी साहित्य की एक साइट प्रारंभ की। अब साइट है तो उसका एक नाम भी होना है, सो एक प्यारा-सा नाम रखा ‘हमरंग’। नाम में नाटक की झलक आनी ही थी क्योंकि हनीफ़ नाटकों और फ़िल्मों से जुड़े हुए हैं। इस प्यारे से नाम वाली साइट के प्यारे से इन्सान हनीफ़ से मेरा परिचय रचनाकार सत्यनारायण पटेल ने करवाया था। बाद में हम दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में मिले भी। मिलने पर मुझे इस युवा के अंदर एक जुनून दिखा। मुझे अच्छा लगा। अब  ‘हमरंग’ का एक साल पूरा हुआ है तो बधाई तो बनती है। मेरी ओर से ढ़ेर सारी बधाइयाँ और खूब सारी शुभकामनाएँ!
हर साइट की अपनी एक खास पहचान होती है । उसके संपादक और उसकी टीम के व्यक्तित्व की झलक उसमें होती है । ‘हमरंग’ में भी है । इस साइट के संरक्षकों में डॉ. नमिता सिंह शामिल हैं जो जनवादी लेखक संघ से जुड़ी हुई हैं तथा अभी हाल-हाल तक ‘वर्तमान साहित्य’ की संपादक थीं । अभी हनीफ़ मदार के एक संस्मरण से पता चला कि वे के. पी. के बहुत निकट थे । कुँवर पाल सिंह का सानिध्य व्यक्तित्व को बदल देता है, इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए । दूसरे संरक्षक हैं ‘परिकथा’ के संपादक शंकर | अनवर सुहैल, मजकूर आलम, अनीता चौधरी, सत्यनारायण पटेल जैसों का साथ ‘हमरंह’ को प्राप्त है ।
 ‘हमरंग’ के रचनाकारों की सूची बहुत लंबी है । इसमें नए-पुराने सब तरह के रचनाकार शामिल हैं । इनके परिचय यहाँ दिए हुए हैं । विषयों की विविधता देखने को मिलती है । कथा-कहानी, बहुरंग, गजल, कविता, रंगमंच, सिनेमा विमर्श, आलेख, किताबें यहाँ उपलब्ध हैं । इसकी शुरुआत कुछ साहित्यकारों एवं रंगकर्मियों द्वारा हुई है । ये सब लोग इससे अवैतनिक, स्वैच्छिक तथा अव्यावसायिक रूप से जुड़े हुए हैं । साइट रचनाओं तथा कला अभिव्यक्तियों को मंच प्रदान करती है। साहित्यिक-सांस्कृतिक धरोहर सहेज कर इस विरासत को समृद्ध करना इसका एक अन्य उद्देश्य है।
दिल्ली और अन्य कई राजधानियों में हिन्दी साहित्य के लिए काफ़ी कुछ होता रहता है । मगर ‘मथुरा’ जैसे छोटे शहर से ‘हमरंग’ का निकलना हिन्दी साहित्य और कला प्रेमियों को आश्वस्त करता है । एक साल किसी पत्रिका के जीवन में बहुत लंबा समय नहीं है, मगर एक साल तक निरंतरता बनी रहने पर एक उम्मीद जगती है । ‘हमरंग’ साइट एक उम्मीद जगाती है । इस एक साल में इसकी रूपरेखा में कुछ सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं । इसे और सुंदर-सार्थक बनाने का प्रयास हुआ है । ‘हमरंग डॉट कॉम’ में रंग के ऊपर लाल बिन्दी उसके सौदर्य में इजाफ़ा करती है । एक बार फ़िर से ‘हमरंग’ का एक साल पूरा होने पर हनीफ़ मदार और उनकी टीम को हार्दिक बधाई!