ऐ शाम : कविता (आकाश चौधरी)

बाल मंच कविता

आकाश चौधरी 736 12/12/2018 12:00:00 AM


ऐ शाम,

तेरी गली में हमारी भी दस्तख हुई,

तेरी मस्ती परवान चढ़ रही थी,

मचल-मचल कर झूम रही थी,

इठला रही थी,कर रही थी अट्टाहास,

भूल कर अपने दुःख,दर्द,हो कर नशे में चूर,

आ गयी थी मस्ती के आगोश में,

लेकिन किसी को ये गवारा नहीं,

वो आ रहा है,

तेरे अस्तित्व को तार-तार करने,

आ रहा है तूझे दहलाने,

आ रहा है तुझे छिन्न-भिन्न करने,

आ रहा है तेरी कश्ती को डुबोने,

जा बचाले अपना संसार,

ऐ शाम,

तेरी ज़िन्दगी बस इतनी थी,

खत्म हुआ तेरा-मेरा सफ़र,

अब न वो तेरी चादर, नाहीं तेरा अहसास,

न वो रूह को सुकून देने वाले वादा,

न वो मनमोहक सफ़र,

न वो उर्जा और नाहीं वो संघर्ष,

सिर्फ़ है,

 बदन में तपिश,

आँखों में धदकती ज्वाला,

रक्त में रोष,

दिल में आक्रोश और सिर्फ़ एक ही तमन्ना,

काश !

                                          -आकाश चौधरी

आकाश चौधरी द्वारा लिखित

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