ऐ शाम,
तेरी गली में हमारी भी दस्तख हुई,
तेरी मस्ती परवान चढ़ रही थी,
मचल-मचल कर झूम रही थी,
इठला रही थी,कर रही थी अट्टाहास,
भूल कर अपने दुःख,दर्द,हो कर नशे में चूर,
आ गयी थी मस्ती के आगोश में,
लेकिन किसी को ये गवारा नहीं,
वो आ रहा है,
तेरे अस्तित्व को तार-तार करने,
आ रहा है तूझे दहलाने,
आ रहा है तुझे छिन्न-भिन्न करने,
आ रहा है तेरी कश्ती को डुबोने,
जा बचाले अपना संसार,
ऐ शाम,
तेरी ज़िन्दगी बस इतनी थी,
खत्म हुआ तेरा-मेरा सफ़र,
अब न वो तेरी चादर, नाहीं तेरा अहसास,
न वो रूह को सुकून देने वाले वादा,
न वो मनमोहक सफ़र,
न वो उर्जा और नाहीं वो संघर्ष,
सिर्फ़ है,
बदन में तपिश,
आँखों में धदकती ज्वाला,
रक्त में रोष,
दिल में आक्रोश और सिर्फ़ एक ही तमन्ना,
काश !
-आकाश चौधरी