'अनवर सुहैल' हिंदी साहित्य की प्रमुख दोनों विधाओं गद्य और पद्य में समानांतर रूप से सक्रिय हैं । आप वर्तमान सामाजिक, राजनैतिक वक़्त में अपना महत्वपूर्ण रचनात्मक हस्तक्षेप कर रहे हैं । प्रस्तुत कविताएँ बेसुरा समय, आखेट, हर हाल में जीत, 'अनवर सुहैल' के लेखक को बेहतर स्पष्ट करतीं हैं ॰॰॰॰
बेसुरा समय
सुर में बजता रहता एक गीत
हम हैं अहिंसक, दयालु
सहिष्णु और कोमल हृदयी
सह-अस्तित्व के पुरोधा
वसुधैव-कुटुम्बकम के पैरोकार
इस गीत को बिना अर्थ समझे
लयबद्ध गाते हैं लोग मुद्दतों से
जैसे विद्यार्थी गाते हैं प्रार्थना
मैंने कितनी बार कहा भाई
तुम्हारे शब्दों के अर्थ खो चुके हैं
तुम्हारे गीतों से भाव गुम हो गये
एक बार हमें इन गीतों को
इस तरह से भी गुनगुनाना चाहिए
कि हम हिंसक हैं, क्रूर हैं,
असहिष्णु हैं और बेहद कठोर हृदयी भी
हमनें ठुकराया है सह-अस्तित्व के सरोकार
मुझे पूरा यकीन है भाई
इस तरह गाकर यह गीत
हम जान जायेंगे कि हमें
एक बेहतर इंसान बनने के लिए
अभी करनी हैं बहुत सी मंजिलें तय
कि बहुत कठिन है डगर पनघट की
आखेट
हम तुम्हें चुनते हैं
हम सबकी बेहतरी के लिए
और तुम हमारी सामूहिक मौत के लिए
ईजाद करते हो नित नई तरकीबें
गढ़ते रहते हो नित नए कारण
घात लगाकर किये गये हर प्रहार को
तर्क-संगत और न्यायपूर्ण साबित करने के लिए
तुमने पाल रक्खे हैं ढिंढोर्चियों के गिरोह
कितने विकट हालात बन गये हैं
कि अपनों की मौत पर दे नहीं सकते कांधा
गा नहीं सकते शोकगीत
चढा नहीं सकते समाधियों पर फूल
इस डर से कि जब मालूम है
शिकारी आखेट पर निकला हुआ है
हर हाल में जीत
कुछ भी करो मित्रों
कैसा भी जतन करो
जान लो कि अब हमें
केवल जीतना है जीतना
हर हाल में है जीतना
हो चूका बहुत कि मंजिल करीब है
हारने के लिए अब नहीं खेलना
वह चुनाव हो या कि खेल
किसी भी कीमत में नहीं होना है फेल
कुछ भी करो मित्रों
इस खेल से ही हमें मिलेगी जीत
और लगातार जीत के बाद
हम पा जायेंगे ताकत
कि खेल के नियम ही ऐसे बना लेंगे
कि आईंदा जब भी हो खेल
तो सिर्फ हम ही खेलें
और फिर हम ही हम जीतें
इसीलिए कहता हूँ मित्रों
तब तक तुम सभी को
जी-जान से लगे रहना होगा