'बेटियों के संपत्ति में अधिकार का मामला अंतर्विरोधी और पेचीदा कानूनी व्याख्याओं में उलझा हुआ है। अधिकांश मीडिया यह कहते नहीं थकती कि अब तो माँ-बाप की संपत्ति में बेटे-बेटियों को बराबर हक़ मिल गया है। पति की कमाई में भी पत्नी को आधा अधिकार है। कहाँ है भेदभाव? बेटे-बेटियों या पत्नी को मां-बाप या पति के जीवित रहते संपत्ति बँटवाने का अधिकार नहीं और क्यों हो अधिकार? बेशक़ बेटी को पिता-माता की संपत्ति में अधिकार है, बशर्ते मां-बाप बिना वसीयत किये मरें...कृपया प्रतीक्षा करें, आप लाइन में हैं! जिनके पास संपत्ति/पूँजी है, वो बिना वसीयत के कहाँ मरते हैं! वसीयत में बेटी को कुछ दिया, तो उसे वसीयत के हिसाब से मिलेगा। अगर वसीयत पर विवाद हुआ / होगा तो बेटियाँ सालों कोर्ट-कचहरी करती रहेगी।'॰॰॰॰
बेटियों के संपत्ति में अधिकार का मामले की क़ानूनी पेचीदगियों को विस्तार से समझने को पढ़ें, महिला, बाल एवं कॉपीराइट कानून के विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता 'अरविंद जैन' का आलेख
उत्तराधिकार बनाम बेटियों के संपत्ति में अधिकार
हिन्दू उत्तराधिकार
2005 से संशोधन के बावजूद बेटियों के संपत्ति में अधिकार का मामला
अंतर्विरोधी और पेचीदा कानूनी व्याख्याओं में उलझा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के
अनुसार 9.9.2005 से पहले अगर पिता की मृत्यु हो चुकी है, तो बेटी को पैतृक
संपत्ति में अधिकार नहीं मिलेगा। कानून में भी यह व्यवस्था पहले ही कर दी गई थी कि
अगर पैतृक संपत्ति का बँटवारा 20 दिसंबर, 2004 से पहले हो चुका है, तो उस पर यह संशोधन
लागू नहीं होगा। अब यह मामला 5 दिसंबर, 2018 को तीन जजों की
पूर्णपीठ (न्यायमूर्ति अर्जन सीकरी, अशोक भूषण और एम.आर. शाह) को
भेजा गया है, जो अभी विचाराधीन है।
मीडिया के
दुष्प्रचार से प्रभावित अधिकांश स्वयं सेवी संगठनों की अर्ध-शिक्षित, अनभिज्ञ या
कुप्रचार की शिकार शहरी पत्रकार या मास्टरनियाँ, यह कहते नहीं थकती
कि अब तो माँ-बाप की संपत्ति में बेटे-बेटियों को बराबर हक़ मिल गया है। पति की
कमाई में भी पत्नी को आधा अधिकार है। कहाँ है भेदभाव? बेटे-बेटियों या
पत्नी को मां-बाप या पति के जीवित रहते संपत्ति बँटवाने का अधिकार नहीं और क्यों
हो अधिकार? बेशक़ बेटी को पिता-माता की संपत्ति में अधिकार है, बशर्ते मां-बाप
बिना वसीयत किये मरें...कृपया प्रतीक्षा करें, आप लाइन में हैं!
जिनके पास संपत्ति/पूँजी है, वो बिना वसीयत के
कहाँ मरते हैं! वसीयत में बेटी को कुछ दिया, तो उसे वसीयत के हिसाब से मिलेगा।
अगर वसीयत पर विवाद हुआ / होगा तो बेटियाँ सालों कोर्ट-कचहरी करती रहेगी।
सही है कि कोई भी
व्यक्ति (स्त्री-पुरुष) स्वयं अर्जित संपत्ति को वसीयत द्वारा किसी को भी दे सकता
है। जरूरी नहीं कि परिवार में ही दे, किसी को भी दान कर
सकता है। निसंदेह पत्नी-पुत्र-पुत्री को पिता-पति के जीवनकाल में, उनकी संपत्ति बँटवाने का कानूनी अधिकार नहीं। मुस्लिम कानूनानुसार
अपनी एक तिहाई संपत्ति से अधिक की वसीयत नहीं कि जा सकती। हिन्दू कानून में पैतृक
संपत्ति का बँटवारा संशोधन से पहले सिर्फ मर्द उत्तराधिकारियों के बीच ही होता था।
पुत्र-पुत्रियों से यहाँ अभिप्राय सिर्फ वैध संतान से है। अवैध संतान केवल अपनी
माँ की ही उत्तराधिकारी होगी, पिता की नहीं। वैध
संतान वो जो वैध विवाह से पैदा हुई हो। वसीयत का असीमित अधिकार रहते उत्तराधिकार
कानून अर्थहीन हैं।
संशोधन से पहले
पैतृक संपत्ति का सांकेतिक बंटवारा पहले पिता और पुत्रों के बीच बँटवारा होता था
और पिता के हिस्से आई संपत्ति का फिर से बराबर बँटवारा पुत्र-पुत्रियों
(भाई-बहनों) के बीच होता था। इसे सरल ढंग से समझाता हूँ। मान लो पिता के तीन पुत्र
और दो पुत्रियां हैं और पिता के हिस्से आई पैतृक संपत्ति 100 रुपये की है, तो यह माना जाता था
कि अगर बंटवारा होता तो पिता और तीन पुत्रों को 25-25 रुपये मिलते। फिर
पिता के हिस्से में आये 25 रुपयों का बंटवारा
तीनों पुत्रों और दोनों पुत्रियों के बीच पाँच-पाँच रुपये बराबर बाँट दिया जाता।
मतलब तीन बेटों को 25+5=30×3=90
रुपये और बेटियों को 5×2=10 रुपये मिलते।
संशोधन के बाद पाँचों भाई-बहनों को 100÷5=20 रुपये मिलेंगे या
मिलने चाहिए। अधिकाँश 'उदार बहनें' स्वेच्छा से अपना
हिस्सा अभी भी नहीं लेती।
हिन्दू उत्तराधिकार
अधिनियम,1956 की धारा 6 में (9.9.2005 से लागू) प्रावधान किया गया है कि अगर पैतृक संपत्ति का बँटवारा 20 दिसंबर, 2004 से पहले हो चुका है, तो उस पर यह संशोधन
लागू नहीं होगा।
हिन्दू उत्तराधिकार
अधिनियम में संशोधन के बाद यह प्रावधान किया गया है कि अगर संशोधन कानून लागू होने
के बाद, किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना कोई वसीयत किये हो गई है और संपत्ति
में पैतृक संपत्ति भी शामिल है, तो मृतक की संपत्ति
में बेटे और बेटियों को बराबर हिस्सा मिलेगा। बेटी को भी पुत्र की तरह 'कोपार्शनर' माना-समझा जाएगा।
उल्लेखनीय है कि संशोधन पर 2004 से पहले ही लंबी
बहस शुरू हो चुकी थी। अधिकाँश बड़े परिवारों ने तय तिथि से पहले ही बँटवारे की
कागजी कार्यवाही पूरी कर ली गई।
पाठक कृपया ध्यान
दें कि बेटियों को पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति में ही नहीं, बल्कि पिता को पैतृक संपत्ति में
से भी जो मिला या मिलेगा उसमें भाइयों के बराबर अधिकार मिलेगा। बेटियों को पैतृक
संपत्ति में अधिकार जन्म से मिलेगा या पिता के मरने के बाद? इस पर अभी यह विवाद
सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
जिन बेटियों के
पिता का 9.9.2005 से पहले ही स्वर्गवास हो चुका है/था, उन्हें प्रकाश बनाम
फूलवती (2016 (2) SCC 36) केस में सुप्रीमकोर्ट के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और अनिल आर
दवे के निर्णय ( दिनांक 19 अक्टूबर 2015) के अनुसार संशोधित
उत्तराधिकार कानून से कोई अधिकार नहीं मिलेगा! लेकिन दनम्मा उर्फ सुमन सुरपुर बनाम
अमर केस (2018 (1) scale 657) में सुप्रीम कोर्ट की ही दूसरी खंडपीठ के न्यायमूर्ति अशोक भूषण और
अर्जन सीकरी ने अपने निर्णय (दिनांक 1फरवरी, 2018) में कहा कि बेटियों
को संपत्ति में अधिकार जन्म से मिलेगा,भले ही पिता की
मृत्यु 9.9.2005 से पहले हो गई हो। पर इस मामले में बंटवारे का केस पहले से (2003) चल रहा था।
मंगामल बनाम टी बी
राजू मामले में सुप्रीमकोर्ट के न्यायमूर्ति आर.के. अग्रवाल और अभय मनोहर सप्रे ने
अपने निर्णय (दिनांक 19 अप्रैल,
2018) में फूलवती निर्णय को ही सही माना और
स्पष्ट किया कि बँटवारा माँगने के समय पिता और पुत्री का जीवित होने जरूरी है।
लगभग एक माह बाद ही दिल्ली उच्चन्यायालय की न्यायमूर्ति सुश्री प्रतिभा एम सिंह ने
विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा केस में 15 मई, 2018 को सुप्रीमकोर्ट के
उपरोक्त निर्णयों के उल्लेख करते हुए अंतर्विरोधी और विसंगतिपूर्ण स्थिति का नया
आख्यान सामने रखा। फूलवती केस को सही मानते हुए अपील रद्द कर दी मगर सुप्रीमकोर्ट
में अपील दायर करने की विशेष अनुमति/प्रमाण पत्र भी दिया ताकि कानूनी स्थिति तय हो
सके।
इन निर्णयों से
अनावश्यक रूप से कानूनी स्थिति पूर्णरूप से अंतर्विरोधी और असंगतिपूर्ण हो गई है।
सुप्रीमकोर्ट की ही तीन खंडपीठों के अलग-अलग फैसले होने की वजह से मामला 5 दिसंबर, 2018 को तीन जजों की
पूर्णपीठ (न्यायमूर्ति अर्जन सीकरी, अशोक भूषण और एम.आर. शाह) को
भेजा गया है, जो अभी विचाराधीन है। देखते हैं सुप्रीमकोर्ट क्या फैसला सुनाती
है। बेटियों को संपात्ति में समान अधिकार मिल जाना कोई आसान काम थोड़े ही है। कोर्ट-कचहरी
के लिए एक उम्र भी कम समझें!
(अरविंद_जैन,17.12.2018)
(प्रतीकात्मक सभी चित्र google से साभार)