'डॉ शरदिंदु मुखर्जी स्वयं एक भू-वैज्ञानिक हैं और 1985 से 2009 तक चार बार इस अनोखे महाद्वीप की यात्रा और वहाँ के भूगर्भीय सर्वेक्षणों में सम्मिलित रहे हैं, कभी अभियान के सदस्य के तौर पर तो कभी टीम लीडर के तौर पर| करीब २५० पृष्ठों की इस पुस्तक में ३६ अध्याय हैं जिसमे डॉ शरदिंदु मुखर्जी ने इस अनोखे महाद्वीप पर अनेक रोचक प्रसंगों व घटनाओं का वर्णन किया है| किसी भी संस्मरण की रोचकता न केवल उसकी रोमांचकता के कारण तो होती है| सोने पर सुहागा यह है कि डॉ शरदिंदु मुखर्जी ने वहाँ की जिन घटनाओं का ज़िक्र किया है उनके वैज्ञानिक कारण भी बताएँ हैं जो एक सामान्य पाठक की जिज्ञासा को शांत करने में सहायक होते हैं| इस पुस्तक में लेखक ने अंटार्कटिका के सौन्दर्य का वर्णन किया है, कहीं वैज्ञानिक कारणों सहित वहाँ की रहस्यमई और नई नई घटनाओं का| मूल हिन्दी पुस्तक में लेखक ने कविताओं का उपयोग किया है जिससे लेखक के साहित्यिक रुझान का पता चलता है|' ॰॰॰॰॰॰ 'प्रदीप कांत' का आलेख
डॉ दिनेश श्रीवास्तव एक
जाने माने नाभिकीय वैज्ञानिक हैं, कुछ समय पहले तक मुझे यही पता था| किन्तु हाल ही
में इन्दौर में हुई एक मुलाक़ात में उनके व्यक्तित्व का एक अलग पहलू सामने आया – एक
साहित्यिक विद्वता वाला व्यक्तित्व| वे कविताएँ और कहानियाँ लिखते रहे हैं| अंग्रेज़ी
में उनकी कहानी की एक किताब आई है – रूट्स| किन्तु यह चर्चा उनकी एक दूसरी पुस्तक
के बारे में हैं – The Edge of the Earth (Reminiscences of
Antarctica)| यह डॉ शरदिंदु मुखर्जी के अंटार्कटिका प्रवास के संस्मरण पृथ्वी के
छोर पर का अनुवाद है| इस पुस्तक को संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, रहस्य-रोमांच के इतिवृत्त का
सम्मिलित रूप कहा जा सकता है| डॉ शरदिंदु मुखर्जी स्वयं एक भू-वैज्ञानिक हैं और 1985 से 2009 तक चार बार इस अनोखे महाद्वीप की यात्रा और
वहाँ के भूगर्भीय सर्वेक्षणों में सम्मिलित रहे हैं, कभी अभियान के सदस्य के तौर
पर तो कभी टीम लीडर के तौर पर| करीब २५० पृष्ठों की इस पुस्तक में ३६ अध्याय हैं
जिसमे डॉ शरदिंदु मुखर्जी ने इस अनोखे
महाद्वीप पर अनेक रोचक प्रसंगों व घटनाओं का वर्णन किया है| किसी भी संस्मरण की
रोचकता न केवल उसकी रोमांचकता के कारण तो होती है| सोने पर सुहागा यह है कि डॉ
शरदिंदु मुखर्जी ने वहाँ की जिन घटनाओं का ज़िक्र किया है उनके वैज्ञानिक कारण भी
बताएँ हैं जो एक सामान्य पाठक की जिज्ञासा को शांत करने में सहायक होते हैं| इस
पुस्तक में लेखक ने अंटार्कटिका के सौन्दर्य का वर्णन किया है, कहीं वैज्ञानिक
कारणों सहित वहाँ की रहस्यमई और नई नई घटनाओं का| मूल हिन्दी पुस्तक में लेखक ने
कविताओं का उपयोग किया है जिससे लेखक के साहित्यिक रुझान का पता चलता है|
डॉ दिनेश श्रीवास्तव का
अनुवाद सरल अंग्रेज़ी में है जिसे सामान्य अंग्रेज़ी जानने वाला पाठक आसानी से समझ
सकता है| ये सब first call से लेकर A unique journey and last glimpse तक सम्मिलित किये गए हैं| रोचकता
तो first call से ही शुरू हो जाती है जब पहली बार इस अभियान में जाने के लिए वे बेहद
खराब मौसम में भी दूनगिरी के आगे की हिमालय की चोटियों से अपने आप को बचाते हुए
उतरते हैं| उतरने की इस शीघ्रता में लेखक के अन्टार्कटिका जाने का उत्साह शामिल
है|


इन संसमरणों की शुरुआत में 1985 के बाद का समय है, यह समय
आज के समय की तरह सहज-सरल नहीं होता था, जिसमे मोबाइल के एक क्लिक पर इमेल तो क्या
whatsapp मेसेज होता है यानि आपकी अपने परिवार से कनेक्टिविटी की सरलता| उस समय
लेखक का उस अनोखे और दुर्गम महाद्वीप पर जाने को चुनना और अपने परिवार से अलग होकर
रहना न केवल उसकी जिज्ञासा वरन साहस को भी प्रकट करता है| यह वह समय था जब
कम्प्यूटर या लेपटॉप जैसी चीज़ें नहीं थी कि आदमी टाइप कर ले और सहेज ले| तो घटनाओं
के कारण सहित वर्णन निश्चित ही लेखक ने अपनी किसी डायरी में दर्ज किये होंगे और
उन्हें पुस्तकाकार रूप दिया होगा|
दरअसल इस पुस्तक में उन
दृश्यों की अनुभूतियाँ है जो दुनिया के किसी और हिस्से में महसूस नहीं की जा सकती|
और आप उन दृश्यों की कल्पना करने लगते हैं या और अच्छे से कहूँ तो वहाँ स्वयं
विचरण करने लगते हैं| डॉ दिनेश श्रीवास्तव ने अपने अंग्रेज़ी अनुवाद में इसे बड़े
अच्छे ढंग से कहा है ....And Antarctica opened the
Pandora’s Box of nature’s wonder for me.
अब ये wonder या आश्चर्य क्या है, यह
देखिये – Flames Dancing in the Sky, The
Headlight, Walking Over the Sea, The Ship Disappeared, Fire!..., Fire!..., Fire आदि| मूल हिन्दी पुस्तक में
डॉ शरदिंदु मुखर्जी ने इन सब चीज़ों का वर्णन जितना हो सका वैज्ञानिक कारणों के साथ
किया है तो डॉ दिनेश श्रीवास्तव ने अपने अंग्रेज़ी अनुवाद में संप्रेषित करने में
कोई कसर नहीं छोड़ी है| उदारहरण के रूप में हम Flames Dancing in the Sky को लेते हैं| इस में लेखक को आकाश में ज्वालाएँ दिखाई दी, वे आश्चर्य में
हैं कि दूर तक कोई बस्ती नहीं, किसी ज़हाज़ के आने की कोई सूचना नहीं तो फिर यह क्या
है? इस का कारण उन्हें टीम लीडर बताते हैं कि अभी आकाश में लाखों बर्फ कण हैं और
उगते हुए चंद्रमा की रोशनी इन कणों से अपवर्तित (refract) हो रही है जो चन्द्रमा
के आकाश में ऊपर उठने के साथ ख़त्म हो जाएगी और वही होता है| ऐसा ही स्पष्टीकरण The
Headlight में हेडलाइट के लिए भी है जिसमें हेडलाईट वास्तव में हेडलाईट नहीं, वरन
वीनस से आती वह रोशनी है जो बर्फ कणों द्वारा परावार्तित (Reflected) हो रही है| सचमुच,
यह उन दृश्यों की अनुभूतियाँ हैं जो आप दुनिया के किसी और हिस्से में नहीं देख
सकते|
ऐसा नहीं कि आप अंटार्कटिका
जाकर केवल एक वैज्ञानिक बनकर रह जाते हैं, वैज्ञानिक भी मूल रूप से है तो इंसान
ही| वहाँ की हमारी प्रयोगशाला में सहयोग की पूरी पूरी भावना मिलती है, जो यहाँ से
चयनित होते समय ही बना दी जाती है – इस अभियान में कोई भी कुली जैसे नहीं जाता वरन
सब अपने अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं, और किसी भी किस्म का शारीरिक श्रम सभी
लोग साँझा करते हैं| वहाँ रहते समय अभियान के सदस्य उत्सव भी मिलजुल कर मनाते हैं जिसे
Cultural Fest at Dakshin Gangotri में पढ़ा जा सकता है|
इस पुस्तक से गुज़रते वक्त ऐसे कई प्रसंग आते हैं तब आपको लगने लगता है
प्रकृति से बड़ा कोई नहीं, जिसके सामने मनुष्य तो महज़ एक खिलौना सा
है जैसे – Those Tension-Filled Hours, Those Fifty-Eight
Hours, Whom the God Saves….,
इत्यादि| Whom the God Saves…. में टीम लीडर को अपने एक वरिष्ठ सदस्य की गंभीर
बीमारी अल्सर का पता चलता है जिसमे जल्द से जल्द सर्जरी की आवश्यकता है| अब सोचिये कि हमारे स्टेशन पर इतनी
सुविधाएँ हैं नहीं, तो जर्मन टीम के ज़हाज़ पर संपर्क कर उन्हें
वहाँ शिफ्ट किया गया पर समस्या का निदान नहीं हुआ| तब किसी तरह से भारत में वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी गई| फिर जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका और न्यूजीलेंड की सरकारों से उच्च
स्तर पर संपर्क किया गया| और फिर
बीमार को किसी तरह से न्यूजीलेंड पहुँचा कर वहाँ से भारत भेजा जा सका और बचाया जा
सका| और इस पुस्तक में अन्टार्कटिका को लेकर
ऐसी बेबसी का कई बार कई बार ज़िक्र है, उदहारण Wohlthat
mountains में Gruber massif शिविर लगाने के समय का –
वहाँ के अनिश्चित वातावरण में अचानक ऐसी परिस्थिति भी
आयी जब अभियान दल के सदस्यों में इतनी भी चेतना शेष नहीं बची कि वे जीवन के लिए
कोई संघर्ष कर सके| दूसरा उदाहरण Moltke
Nunatak का है जहाँ लेखक और उनके साथी पहली बार पहुँचते
हैं और इतिहास रचते हैं (Creating History) और तमाम विषम
परिस्थितियों के बावजूद वहाँ की भूमि के नमूने लाने में सफल होते हैं| इसीलिये
हिन्दी में कहा भी जाता है – जाको
रखे साईंया, मार सके न कोई (तमाम वैज्ञानिक विकास के बावजूद)|
पुस्तक पढ़ते वक्त मुझे अग्रज कवि नरेश
सक्सेना की कविता याद आ रही थी, जिसे इस पुस्तक में उद्धृत भी किया गया है-
पुल
पार करने से
पुल
पार होता है
नदी
पार नहीं होती.
नदी
पार नहीं होती
नदी में धंसे बिना
सचमुच, अन्टार्कटिका को और समझने
के लिए वहाँ जाने को मन कर रहा है| हालांकि अन्टार्कटिका पर
वैज्ञानिक जाते रहे हैं और जाते रहेंगे पर यह पूरी पुस्तक डॉ शरदिंदु मुखर्जी के इस
महाद्वीप पर चार अभियानों का एक प्रमाणिक दस्तावेज़ है| बेशक डॉ शरदिंदु मुखर्जी का
वैज्ञानिक शोध सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज़ हो पर यदि वे इन यात्राओं को पुस्तकाकार
नहीं करते तो आम पाठक इन अनोंखे वर्णनों से वंचित रह जाता| और इस पुस्तक के
अंग्रजी अनुवाद के लिए डॉ दिनेश श्रीवास्तव का आभार किया जाना चाहिए जिन्होंने
अपनी पूरी मेहनत से इस पुस्तक का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया जिसके कारण यह अंग्रेज़ी
के पाठकों के लिए भी उपलब्ध हो पाई है|