ऐसे दौर में जब आपकी अभिव्यक्तियों पर एक अदृश्य सा अंकुश दिखाई देता हो | सामाजिक और राजनैतिक हालात वर्त्तमान जैसे हों तो ऐसे में किसी भी रचनाक्कर का दम घुटना या बेचैन होना लाज़िमी हैं क्योंकि ये हालात कहीं कहीं हमें और हमारी व्यक्तिगत जिंदगियों को प्रभावित करते हैं | उन्हीं बेचैनियों व् घबराहटो की आहट रूपाली सिन्हा की कविताओं में बखूबी देखने को मिलती है |
१-
मैं जानती हूँ
मेरे प्रश्न
आपको असहज कर देते हैं
कभी-कभी बहुत क्रोधित भी
लेकिन मुझे आपकी असुविधा के लिए
खेद नहीं है
आपको यूँ देख
मेरे होठों पर तिर जाती है
एक तिरछी मुस्कान
और आप हो जाते है कुछ और असहज
फिर भी
आपकी असुविधा के लिए मुझे खेद नहीं है
मैं आपको और असहज
और असुविधाग्रस्त देखना चाहती हूँ
सुविधाजनक सवालों का वक़्त अब बीत चला है
यह असुविधाग्रस्त होने का वक़्त है
आइए, बिना खेद व्यक्त किए
उठाये जाएँ
असुविधाजनक ढेरों सवाल।
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२-
ये बाढ़ जब उतरेगी
छोड़ जाएगी अपने पीछे
ढेर सारा कचरा और दीर्घकालिक बीमारियाँ
और हम सदियों तक खर्च होते रहेंगे
उनसे जूझने में
न जाने कितना ज़हरीला पानी
घुल चुका होगा हमारी नसों में
हमारे रक्त के साथ
फिलहाल बाढ़ अपने उफ़ान पर है
बहुत से डूब रहे हैं
बहुत से उतरा रहे हैं
लेकिन
कुछ इसी में सीख रहे हैं तैरना
उन्हें मालूम है बाढ़ का पानी है
एक दिन उतरेगा ज़रूर।
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३-
चलो कुछ संजीदा हो जाते हैं
हँसते हुए आँखों में उतरे पानी को
सहेज कर रख लेते है ख़ुश्क दिनों के लिए
और उनकी चमक को
उन अंधेरे दिनों के लिए
जो हमें हौसला देंगी आगे बढ़ने का
अपनी सारी अनकही बातों की
छोटी-छोटी पोटलियाँ बनाकर
रख लेते हैं अलग-अलग
उन्हें एक -एक कर खोलेंगे
ज़रूरत के हिसाब से
जब सफ़र होने को होगा बोझिल
तुमने सही याद दिलाया
अभी तो सहेजना है
सारी मुस्कुराहटों और कहकहों को
उनकी जरूरत पड़ेगी
जब हम गुज़रेंगे दर्द की नदी से
वे हमारी बाँह गहेंगे
आओ मिलकर सहेज लें सब कुछ
सफर पर निकलने से पहले
आओ कुछ संजीदा हो लेते हैं।
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४-
मैंने ज़िन्दगी की राह में रखे गए
बैरिकेड्स को एक-एक कर
शुरू कर दिया है हटाना
तुम भी हाथ बँटाओ न
सच है कि आगे बना बनाया
नहीं है रास्ता कोई मनमाफ़िक
सो कहीं बनाई हैं मैंने पगडंडियां
जो कच्ची हैं अभी हमारे सपनों की तरह
उम्र के साथ होती जाएँगी परिपक्व
कहीं रखी है अभी सिर्फ एक बाँस की डंडी
पार करने को धारा
बना लेंगे वक़्त रहते पुल भी
फिलहाल डूबने से बचने को
इतना काफ़ी है
जीवन के निर्मम राजमार्गों पर
उदास मन लिए
बेतहाशा भागते जाने से बेहतर है
खुद के गढ़े
इन अधबने अनगढ़ रास्तों पर चलना
जहाँ न सपनों के घायल होने की संभावना है
न बेमौत मरने की
जहाँ जीवन के पहियों की गति और नियम
राजमार्ग निर्धारित नहीं करता
चलो पगडंडियों पर उतर कर
ज़िन्दगी के सहज-सुलभ
उन रास्तों की तैयारी करें
जिन पर मनचाहे ढंग से
चल पाएँ मेरे-तुम्हारे जैसे
अनगिनत लोग।
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५-
यह अदृश्य हो जाने का वक़्त है
कुछ समय के लिए
मुँह छुपाने के लिए नहीं
भगदड़,कोलाहल और
भोंडे सामूहिक गान के
कर्णभेदी नाद से बच
गुनने-बुनने के लिए।
ये पार्श्व में सरक जाने का वक़्त है
ताकि मंच पर होने वाले करतबों
पर नज़र डाली जा सके अच्छी तरह
सतह को छोड़कर अब
अतल में धँस जाने का वक़्त है ये
दम साधे पानी थिराने तक।
यह लंबी यात्राओं पर
निकल जाने का वक़्त है
नदी पहाड़ जंगलों से
मुलाक़ातों और गुफ़्तगू का
उनसे सीखने और ऊर्जा लेने का
मुफ़ीद समय है ये।
यह सफ़र में छूट गए तमाम दोस्तों की
खोज-ख़बर लेने का वक़्त है
वे भी जो साथ चलते रहे लगातार
लेकिन अजनबियों की तरह
उनकी शिकायतों
निर्मम आलोचनाओं को
सुनने का वक़्त है ये।
बहुत से काम हैं करने को
इस मुश्किल वक़्त में
कठिन समय के दिये गए काम
कठिन होते हैं उसकी ही तरह
लेकिन नामुमकिन नहीं।
(प्रतीकात्मक चित्र गूगल से साभार)