कह कर वह मुस्कराई ओर रवि की तरफ देखा जिन्हें कोई अन्तर होता मालूम नहीं लगा।उसे अपनी ओर देखते हुए वह बोले मेरा रुमाल नहीं मिल रहा ।वह उठ कर एकदम खड़ी हो गई । ये कदम बहुत भारी लगा था,उसे सच बताऊँ तो।फिर उसके बाद तो दिन रात आटा दाल ,कपड़े बरतन मे एसी डूबी कि बस दिनों का पता ही नहीं चल रहा था। फिर रह गई उपर सुमती और नीचे बड़ी जेठानी । आमोद- प्रमोद से भरी पारिवारिक कहानी
बडा सा घर
वो घर काफी बडा था ।एक हवेली जैसा,सबके अपने अपने कमरे थे ,पिताजी सबसे बड़े थे पर उनका कमरा बाहर गेट की तरफ खुले दरवाज़े का एक सबसे छोटा कमरा था,जिसका नाम भी छोटा कमरा ही था ,एक चारपाईनुमा बड़ा पलंग और ठीक सामने छोटी अलमारी,शीशे वाली,जिसमे उनकी माला,हनुमानचलीसा,एक भगवान की फोटो और नीचे उनकी धोती और पगड़ी तय की हुई,तीन जोड़े बस।वो कमरा घर के ठीक बीचोँ बीच था,अन्दर की तरफ एक छोटा आंगन फिर बड़ा आंगन साथ में सटे हुए दो कमरे ,एक ड्राईंग रुम और साथ ही एक और कमरा जिसमे सबसे बड़े बेटे उनकी पत्नी और पांच बच्चे रहते ।ठीक सामने बड़े आँगन से होते हुए ही दीवार के साथ बड़ी से रसोई आधी खुली आधी बन्द।साथ ही आँगन को बींध कर चार फुट की एक दीवार बना कर छोटी सी कपडे धोने ,पानी भरने, छोटे बच्चों के नहाने की खुली जगह बनाई गईं थी, जहाँ बच्चे मस्ती करते हुए आधुनिक गानों को गाते हुए नहाया करते,साथ ही जब बरखा बाहर आती तो वहाँ की रोनक देखने लायक होती,उपर बारिश और नीचे खुले नलके के साथ नाचते बच्चे। सबसे मज़ेदार जब शान्ती बाई पूरे घर के कपड़े बड़े इत्मीनान से धोने के लिये वहाँ बैठती तो वह खुरा जाग उठता ।कपड़े धोने का उत्सव मनाती वह सबकी दुलारी जगह बन जाती थी ।शान्ती का कपड़े धोना एक उत्सव ही होता था ,उसके साथ उसकी बेटी सामने ही माँ की तरफ मुंह कर उसे एक-एक कपड़ा देती जाती,इसका एक कारण ये भी था कि शान्ती को आंखो से कम या कह लो बहुत ही कम दिखाई देता था,बस वह एक अंदाजे से कपड़े धोती जाती।पूरा दिन सुबह ग्यारह बजे से शाम चार बजे तक कपड़े धुलते और थापी की आवाज,गानों की आवाजें घर में गूंजती रहती साथ ही शान्ती मुहल्ले भर की बातें भी करती जाती ।ये कपड़े धोने का कार्यक्रम सप्ताह में तीन दिन चलता था। उन दिनों ना तो कोई सो सकता बस हा हा ही ही होता रहता ,जब तक शान्ती चाय पी कर पैसे ले कर दो दिन बाद फिर कपड़े धोने का वादा करके चली ना जाती।
सुमती सबसे छोटी बहू थी।यानी नीचे सबसे बड़ी, उपर सबसे छोटी ।जब सुमती की छोटी बहन पहली बार सुमती का ससुराल देखने आई तो आकर उसने कहा था -'सुमती घर बाहर से तो खूब बड़ा है पर हर कमरे में एक एक चारपाई बिछी हुई है बस,दोनों खूब हंसी थी।सुमती को भी उपर के दो कमरे मिले थे,और एक आँगन एक रसोई,पर हाँ,एक कमरा उसका एक माताजी पिताजी का ।वो कभी भी आ कर वहाँ रह सकते थे।माताजी अपनी दूसरी बहुरानी के घर रहतीं थी,और शुक्रवार को सुमती के पास आतीं क्योंकि वो बहू अध्यपिका थी उनका अवकाश होने पर ही वह सुमती के पास आया जाया करती।
शेष दिन सुमती प्रायः अकेली ही होती। रवि सुबह के गये शाम को घर लौटते ।नीचे के शोरगुल,कभी हंसी कभी लडाई का पूरा आनंद लेती सुमती का दिन कैसे बीत जाता पता ही नहीँ चलता था।एक कोने में रसोई और दूसरे कोने में बैठ कर खाने वाला कमरा,बीचोंबीच खाना ले कर गुजरते हुए बोलते हुए,प्रति व्यक्ति आता जाता,जेठानी जी नीचे गैस पर रोटी बनाती जाती,साथ ही कहती जाती -"आज खा कर देख सब्जी कितनी स्वाद बनी है ।खूब अदरक हरा धनिया डाला है ।"
सुमती ने भी शादी के बाद एक महीना पूरा उनके हाथ का खाना बैठे-बैठे मेहमान की तरह खाया था ।जब शादी के शुरु के दिनो में वो घूम घूम कर या पिक्चर देख कर मज़े से घर आते तो सभी घर में उनकी राह देख रहे होते,आते
ही उन्हें बैठा कर खाना परोसा जाता,खाने का स्वाद सुमती को थोडा-बहुत अलग मालूम देता,पर वह बड़े चटकारे ले कर खाया करती।माताजी जो सुमती की सास थी,बड़े ही प्यार से दोनों को देखा करती ।
एसे में एक दिन सुबह ही ठीक एक महिने बाद दोनों सास ससुर जी सुमती के पास आ कर बोले बेटा " मैं ना कल एक स्टोव ओर पाँच किलो आटा ले कर आया था,सब्जियां मैं अभी ले आता हूँ,कल तुम्हारी माता जी चली जायेगीं, फिर तुम रवि को अपनी रसोई में खाना बना कर खिलाना।और भी तुम्हेँ जो चीज़ चाहिये मुझे एक लिस्ट बना कर दे दो मैं ले आऊंगा ।एक अजीब सी जिम्मेदारी का अहसास सुमती को महसूस हुआ था,'ओह अच्छा जी ठीक है,मैं अभी बना दूंगी,
कह कर वह मुस्कराई ओर रवि की तरफ देखा जिन्हें कोई अन्तर होता मालूम नहीं लगा।उसे अपनी ओर देखते हुए वह बोले मेरा रुमाल नहीं मिल रहा ।वह उठ कर एकदम खड़ी हो गई । ये कदम बहुत भारी लगा था,उसे सच बताऊँ तो।फिर उसके बाद तो दिन रात आटा दाल ,कपड़े बरतन मे एसी डूबी कि बस दिनों का पता ही नहीं चल रहा था। फिर रह गई उपर सुमती और नीचे बड़ी जेठानी ।
दिन धीरे धीरे धीरे बीत रहे थे। सुमती वो आवभगत का आनंद याद कर कभी कभी मुस्कुराती।रवि शादी से पहले बड़ी भाभी के पास ही रहते थे उन्के साथ माँ के तरह ही सम्बन्ध थे,अभी भी जब भी वो काम से आते,रोज़ ही "भाभी क्या बनाया था आज?सब्जी पड़ी है क्या?" पूछते और अपने आप कटोरी में डाल कर ले आते उपर,सुमती भी रवि के संग मिल कर खाती और खुश होती ।
रात में सभी लोग छत पर सोने जाते,अपना अपना बिस्तर लेकर।हाँ,रवि अपने कमरे के लिये कूलर ले कर आये थे।नीचे से उपर जाते समय बीच में ही सभी बच्चे, सुमती रवि ,जो बच्चों के चाचा चाची थे उनसे बातें करते फिर ही उपर छत पर सोने के लिये जाते, नीचे केवल बड़ी जेठानी ओर जेठ जी बीच आँगन में सो जाया करते। वो बड़ा सा घर और सभी लोग सुमती भी बहुत खुश रहती इस माहोल से ।
समय के साथ सुमती की भी दो प्यारी बिटियाँ हुई जिन्हें सब ने मिलकर पाला पोसा। समय जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था,बच्चे भी बड़े हो रहे थे।
पर अचानक कुछ दिनों से सुमती महसूस कर रही थी कि बड़ी भाभी कुछ नाराज़ सी लगती थी।उसे कभी कभी नीचे से ज़ोर ज़ोर की आवाज़े भी सुनाई देती थी।वह सोचती रहती कि क्या बात हो सकती है?? सभी कुछ पिछ्ले दस बरस से ठीक ठाक चल रहा था।
एक दिन अचानक ससुर जी सुबह खाना खाने के बाद सुमती से बोले " बेटा तेरी बड़ी भाभी कहती हैं,उन्हें जगह बहुत कम पड़ रही है,बच्चे बड़े हो रहे हैं", तुम्हेँ अब दूसरी जगह जाना होगा,अलग होना पड़ेगा । सुमती को जायदा हैरानगी नहीँ हुई थी।कुछ दिनों के बर्ताव और खिंचाव से उसे दाल में कुछ काला नज़र आ रहा था।शाम को रवि के आने पर उसने सारी बात बताई ।
रवि किसी भी हालत में वहां से जाने के पक्ष में नहीं थे ।
किसी तरह जब तक उन्होने अपने कानों से कुछ कड़वे बोल नहीं सुने उन्हें विश्वास ही नहीँ हुआ। आखिरकार किसी तरह अलग होने को माने ।पिताजी ने उन्हें अलग, उनका अपना घर ले कर दिया।सुमती नये घर के लिये उत्सुक थी।
जाने का समय भी आ गया ।उन दिनों बड़े भाई साहब टूर पर गये हुए थे।सुमती ने किसी तरह सारा समान शिफ्ट कराने को रवि को राजी किया ।पर एक शर्त थी,उन्होंने भाभी को कहा मैं समान ले कर जा रहा हूँ पर जब तक भाई साहिब टूर से वापिस नहीँ आ जाते है, मैं यहां से नहीं जाऊंगा। भाभी भी मान गई थी।
सुमती परेशान ,तीन दिन बीत चुके थे हालांकी वो बच्चों के स्कूल का सारा समान नहीँ ले कर गई थी परंतु मौजे मिल नहीँ पा रहे थे ।एक दो दिन तो बच्चे दूसरे मोज़े पहन कर चले गये पर तीसरे दिन उनका रोना चालू हो गया जो रुकने का नाम ही नहीँ ले रहा था।इधर रवि अपनी जिद्द में कि मैं नही जाऊंगा जब तक भाईसाहब टूर से नहीं आ जाते।सुमती की हालत बुरी हो चली थी ,रवि की जिद्द को वो जानती थी आखिर उसने भाभी की शरण ली, उन्हें कहा कि वो ही रवि को समझा सकती हैं ।
शाम होते ही रवि ने आते ही पूछा-"आज क्या बनाया है ?और अपने आप ही रसोई से एक रोटी और सब्जी निकाली और खाने लगे,भाभी और सुमती सब गिले शिक्वे भूल कर एक दूसरे को देख रहे थे,भाभी ने भी रवि का रोटी खा चुकने का इन्तज़ार किया,रोटी खा चुकने के बाद भाभी अपने पुराने अंदाज मे बोली " ओ रवि, तुझे पता नहीं चलता, बच्चे कितने परेशान हैं,सुमती का हाल देख -गैस यहां सिलेंडर वहाँ,तीन दिनों से वो कितनी परेशान है,अभी इनको आने में दो दिन और लगेंगे, तो क्या ये एसे ही बैठे रहेंगे,तेरी मति मारी गई है क्या? तू इनको ले जा छोड़ आ,फिर बाऊजी को मिलने आ जाना ।हद हो गई तेरी तो।" रवि की सूरत देखने वाली थी बोले " अच्छा फिर रात को खाने के लिये खाना बना दो और मुझे चाय बना दो,छोड़ आता हूँ इन्हें ।सुमती की जान में जान आई।फटाफट आटा गून्धा रोटी बनाई ।पैक की और भाभी ने चाय बनायी ।
रवि ने चाय पी और चलने को कहा।सुमती ने भाभी के पाँव छुए,और एक नज़र उपर देखा फिर उस बड़े से घर की तरफ नज़र डाली।सभी बच्चे चाचा चाची को स्नेह की नजरों से देख रहे थे ।
सुमती को लगा वो घर बहुत बड़ा है पर उससे भी बड़े हैं,वहां के लोग।