मुस्लिम महिला संरक्षण विधेयक: आलेख (अरविंद जैन)

मुस्लिम महिला संरक्षण विधेयक: आलेख (अरविंद जैन)

अरविंद जैन 1624 1/15/2019 12:00:00 AM

आदेश ! अध्यादेश !! ‘अध्यादेश’ के बाद, ‘अध्यादेश’

'यह संसद और संविधान की अवमानना है। ‘राजनितिक फ़ुटबाल’ खेलते-खेलते, ‘मुस्लिम महिलाओं की मुक्ति’ के रास्ते नहीं तलाशे जा सकते। संसद में बिना विचार विमर्श के कानून! देश में कानून का राज है या ‘अध्यादेश राज’? बीमा, भूमि अधिग्रहण, कोयला खदान हो या तीन तलाक़। सब तो पहले से ही संसद में विचाराधीन पड़े हुए हैं/थे। क्या यही है सामाजिक-आर्थिक सुधारों के प्रति ‘प्रतिबद्धता’ और ‘मजबूत इरादे’? क्या यही है संसदीय जनतांत्रिक व्यवस्था की नैतिकता? क्या यही है लोकतंत्र की परम्परा, नीति और मर्यादा? यह तो ‘अध्यादेश राज’ और शाही निरंकुशता ही नहीं, अंग्रेजी हकुमत की विरासत का विस्तार है। ऐसे नहीं हो सकता/होगा ‘न्यू इंडिया’ का नव-निर्माण। अध्यादेशों के भयावह परिणामों से देश की जनता ही नहीं, खुद राष्ट्रपति हैरान...परेशान होते रहे हैं।' 

मुस्लिम महिला संरक्षण विधेयक पर गहरी क़ानूनी समझ सामने लाता वरिष्ठ अधिवक्ता 'अरविंद जैन' का आलेख 

यौन स्वतंत्रता, कानून और नैतिकता: आलेख (अरविंद जैन)

यौन स्वतंत्रता, कानून और नैतिकता: आलेख (अरविंद जैन)

अरविंद जैन 3176 1/7/2019 12:00:00 AM

वर्तमान भारतीय समाज का राजनीतिक नारा है 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ', मगर सामाजिक-सांस्कृतिक आकांक्षा है 'आदर्श बहू'। वैसे भारतीय शहरी मध्य वर्ग को 'बेटी नहीं चाहिए', मगर बेटियाँ हैं तो वो किसी भी तरह की बाहरी (यौन) हिंसा से एकदम 'सुरक्षित' रहनी चाहिए। हालाँकि रिश्तों की किसी भी छत के नीचे, स्त्रियाँ पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं हैं। यौन हिंसा, हत्या, आत्महत्या, दहेज प्रताड़ना और तेज़ाबी हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

संक्षेप में ‘नया कानून’ यह है कि शादी से पहले ‘सहजीवन’ और शादी के बाद पत्नी से बलात्कार और अन्य यौन क्रीड़ाओं तक का कानूनी अधिकार और घर से बाहर ‘व्यभिचार’ (कॉल-गर्ल, एस्कॉर्ट, वेश्या या प्रेमिका) की खुली कानूनी छूट...’समलैंगिकता’ भी अपराध नहीं! स्त्रियों को ‘सबरीमाला’ या किसी भी मंदिर जाने पर रोक नहीं और मर्दों को किसी भी लाल बत्ती क्षेत्र में कोई नहीं पकड़ेगा। व्यभिचारिणी (अपवित्र) पत्नी को गुजाराभत्ता तक नहीं मिलेगा...! दहेज़ की शिकायत पर कोई गिरफ़्तारी नहीं....बहुत कर लिया दहेज़ कानूनों का दुरुपयोग! समाज में व्यभिचार बढे या देह-व्यापर, स्त्री शोषण-उत्पीड़न बढे या यौन-हिंसा के आंकड़े! स्त्रियाँ चीखती-चिल्लाती रहें ‘सोशल मीडिया’ पर...#METOO...#मीटू!

वरिष्ठ अधिवक्ता 'अरविंद जैन' का विस्तृत आलेख॰॰॰॰॰॰

उत्तराधिकार बनाम बेटियों के संपत्ति में अधिकार: आलेख (अरविंद जैन)

उत्तराधिकार बनाम बेटियों के संपत्ति में अधिकार: आलेख (अरविंद जैन)

अरविंद जैन 2096 12/24/2018 12:00:00 AM

'बेटियों के संपत्ति में अधिकार का मामला अंतर्विरोधी और पेचीदा कानूनी व्याख्याओं में उलझा हुआ है। अधिकांश मीडिया यह कहते नहीं थकती कि अब तो माँ-बाप की संपत्ति में बेटे-बेटियों को बराबर हक़ मिल गया है। पति की कमाई में भी पत्नी को आधा अधिकार है। कहाँ है भेदभाव? बेटे-बेटियों या पत्नी को मां-बाप या पति के जीवित रहते संपत्ति बँटवाने का अधिकार नहीं और क्यों हो अधिकार? बेशक़ बेटी को पिता-माता की संपत्ति में अधिकार है, बशर्ते मां-बाप बिना वसीयत किये मरें...कृपया प्रतीक्षा करें, आप लाइन में हैं! जिनके पास संपत्ति/पूँजी है, वो बिना वसीयत के कहाँ मरते हैं! वसीयत में बेटी को कुछ दिया, तो उसे वसीयत के हिसाब से मिलेगा। अगर वसीयत पर विवाद हुआ / होगा तो बेटियाँ सालों कोर्ट-कचहरी करती रहेगी।'॰॰॰॰

बेटियों के संपत्ति में अधिकार का मामले की क़ानूनी पेचीदगियों को विस्तार से समझने को पढ़ें, महिला, बाल एवं कॉपीराइट कानून के विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता 'अरविंद जैन' का आलेख

बेटी नहीं है बोझ :आलेख (कुश कुमार)

बेटी नहीं है बोझ :आलेख (कुश कुमार)

कुश कुमार 425 11/17/2018 12:00:00 AM

लम्बे समय से सभ्य समाज, लैंगिक अनुपात में लगातार बढ़ रही असमानता को लेकर चिंता तो जताता रहा है बावजूद इसके कन्या भ्रूण हत्या वर्तमान समय का बहुत बड़ा संकट बन गया है। इस पर सामाजिक व् मानसिक जागरूक चर्चाएँ भी कम नहीं हुईं या हो रहीं हैं | तब इस जागरूकता में कानूनी समझ भी महत्वपूर्ण है | कई वजहों से कन्या की भ्रूण में ही हत्या कर दी जाती है लेकिन एक बड़ी वजह लोगों की यह सोच भी है कि बेटा बुढ़ापे का सहारा है और लड़की बोझ। बेटा बुढ़ापे में मां बाप को निबाहता है और लड़की पराई बन कर पराये घर चली जाती है। यह सोच भी कन्या भ्रूण हत्या के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार बनती है। लेकिन क्या यह सच है। शायद नहीं, क्योंकि हमारे सामने ऐसे कितने ही नालायक बेटों के उदाहरण मौजूद हैं, जो मां-बाप को छोड़ देते हैं या उन्हें किसी वृद्धाश्रम में ले जाकर छोड़ आते हैं और पलट कर भी उनकी खैरोहाल जानने नहीं जाते; जबकि कई ऐसी बेटियों के उदाहरण आपको मिल जाएंगे, जो पूरी संवेदना और शिद्दत के साथ मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा बनती हैं। अगर कानून की बात करें, तब भी पाएंगे कि मां-बाप को यह हक मिला हुआ है कि वह बेटी से भरण-पोषण के लिए कहे और बेटी को यह जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। बुढ़ापे का सहारा सिर्फ बेटे नहीं, बल्कि समान रूप से बेटियां भी हैं, इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि अपनी पुत्रियों को सक्षम बनायें। यदि वे सक्षम होंगी, तभी वह आपका सहारा बन पाएंगी, जब आप आर्थिक रूप से असमर्थ हो जाएंगे। ……. इस दिशा में कानूनी समझ भरा ‘कुश कुमार’ का हमरंग पर अगला आलेख ……

पति भी मांग सकता है भरण-पोषण: आलेख (कुश कुमार)

पति भी मांग सकता है भरण-पोषण: आलेख (कुश कुमार)

कुश कुमार 681 11/17/2018 12:00:00 AM

आम तौर पर यह धारणा है कि पत्नी ही अपने भरण-पोषण की मांग कर सकती है | दरअसल यह धारणाएं सम्बन्धित और संदर्भित विषय के प्रति जानकारियों के अभाव की परिचायक ही होती हैं क्योंकि हमारे यहां की सामाजिक बुनावट और बनावट सदियों से पितृसत्तात्मक है। अनादि काल से आय के अधिकतर स्रोतों पर पुरुषों का आधिपत्य रहा है। तमाम कोशिशों और कानूनों के बावजूद कमोबेश अब भी पुरूष वर्चस्व कायम है। जाहिर है ऐसे में अधिकतर मामलों में महिलाएं ही आश्रित होती हैं, इसलिए देखा जाता है कि ज्यादातर मामलों में भरण-पोषण की हकदार व प्रार्थी भी महिलाएं ही होती हैं। यह स्थिति हमारे सामाजिक बनावट की देन है, न कि कानून व्यवस्था की। संविधान में इस बात का विशेष ख्याल रखा गया है कि लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव न हो। यह नियम जितना महिलाओं पर लागू होता है, उतना ही पुरुषों पर भी। अतः क़ानूनन, महज़ पत्नी ही नहीं पति भी मांग सकता है भरण-पोषण | …… भले ही हम इन्टरनेट पर सवार होकर डिज़िटल होने की कल्पनाओं की उड़ान पर हैं लेकिन अभी भी हमारी कानूनी समझ और जानकारी, खुद के या विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनैतिक मुद्दों पर समृद्ध नहीं मिलती | क़ानून के प्रति कमज़ोर समझ के कारण ही, पक्ष बेहद मज़बूत होने के बाद भी हम कितनी ही बार अपना ‘वाद’ न्यायालय में दाखिल नहीं कराते और अपने हक़ और अधिकारों से वंचित रह जाते हैं | इस दिशा में हमरंग की एक छोटी कोशिश है “शोध आलेख” के अंतर्गत ‘क़ानूनन’ स्तम्भ की शुरूआत | जहाँ हम अपने पाठकों के लिए हर महीने, व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक आदि जैसे मुद्दों के अनेक पहलुओं और विवादों पर कानूनी दृष्टि से समझ भरे आलेख प्रकाशित करेंगे | हमरंग पर इस कॉलम की शुरुआत ‘बेंगलोर स्कूल ऑफ़ लीगल स्टडीज’ से छात्र ‘कुश कुमार’ के आलेख से ……..| – संपादक

हाल ही में प्रकाशित

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