लकी सिंह ‘बल’ की लघुकथाएं

कथा-कहानी लघुकथा

हनीफ मदार 257 11/17/2018 12:00:00 AM

लकी सिंह ‘बल’ की छोटी कहानियां बड़ी बात कहती हैं जो उन्हें लघुकथा के उभरते हस्ताक्षर के रूप में एक संभावनाशील लेखक होने का परिचय देतीं हैं | इनकी कलम और धारदार रूप में चलती रहे इस अपेक्षा के साथ | -संपादक

आन
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” तुम्हारे बच्चे जीएँ, मन चाही मुरादें पाएँ ” बीच सड़क पर छोटे-छोटे तिरंगों को थामे हुए वो महिला ऐसी आवाजों के साथ बरबस सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रही थी !! अमित ने पास जाकर पूछा – “सड़क पर इस तरह क्या करती हो,अम्मा ” ? महिला बच्चे को संभालते हुए बोली – “मैं दुआएँ बेचती हूँ बेटा, लोग बदले में बची हुई रोटियाँ डाल देते हैं मेरे दामन में ,मेरा और बच्चे का गुजारा हो जाता है “। अमित ने फिर पूछा – “अम्मा ये तिरंगे भी बेचती हो “? महिला ने हड़बड़ाकर कहा -“नहीं नहीं बेटा ! ये तिरंगे तो जमीन पर फेंके हुए थे, वहीं से उठाए हैं, हमारी इज्जत हैं ये, तिरंगा बेचकर भी किसी का पेट भरा है “? इतना कहकर महिला आगे बढ़ गई और एक बड़ा प्रश्न अमित को मुँह चिढ़ा रहा था….

 समाज-सेवा

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“नहीं,नहीं,नहीं दुकानें आपको खाली करनी ही पड़ेंगी ” !!
समाज प्रमुख ने संस्था की दुकानें खाली करने का हिटलरी आदेश सुना दिया !
साथ आए एक करीबी ने आश्चर्य चकित होकर पूछा – “अध्यक्ष जी ये किराएदार तो समय पर किराया देते हैं और हमारे सजातीय भी हैं,ये विचित्र निर्णय कैसा ?”
अध्यक्ष-” सुनो रेशमलाल ! ये बहुत मौके की जमीन है ,दुकानें तोड़कर दुबारा नई कॉम्प्लेक्स बनाई जाएगी ,नीलामी से बड़ा पैसा आएगा,
हमें समाज की सेवा भी तो करनी है”…
अध्यक्ष के चेहरे पर एक कुटिल हँसी माहौल में घृणा भर रही थी…..

पेंटिंग- के0 रवींद्र

हैसियत

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हर साल की तरह इस साल भी नवरात्रि के अवसर पर शहर में मूर्तियाँ बनाने के लिए दूरदराज से कारीगर आए हैं !
मूर्तियाँ बनाते समय श्रद्धा में लिपटी उनकी तन्मयता देखते ही बनती है
इस बार विवेक ने पूछ ही लिया – “काका आपका हुनर कहीं ज्यादा निखरा हुआ है पर कपड़े और भी ज्यादा फटे हुए क्यों हैं ” ?
काका ने थकी हुई मुस्कुराहट से जवाब दिया -” बेटा हमारी मूतियाँ शायद हमारी हैसियत नहीं बदल पातीं ,ऐसा महसूस होता है विसर्जन के साथ हमारी किस्मत और हमारा हुनर भी विसर्जित हो जाता है “….

हनीफ मदार द्वारा लिखित

हनीफ मदार बायोग्राफी !

नाम : हनीफ मदार
निक नाम : हनीफ
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ऑथर के बारे में :

जन्म -  1 मार्च १९७२ को उत्तर प्रदेश के 'एटा' जिले के एक छोटे गावं 'डोर्रा' में 

- 'सहारा समय' के लिए निरंतर तीन वर्ष विश्लेष्णात्मक आलेख | नाट्य समीक्षाएं, व्यंग्य, साक्षात्कार एवं अन्य आलेख मथुरा, आगरा से प्रकाशित अमर उजाला, दैनिक जागरण, आज, डी एल ए आदि में |

कहानियां, समीक्षाएं, कविता, व्यंग्य- हंस, परिकथा, वर्तमान साहित्य, उद्भावना, समर लोक, वागर्थ, अभिव्यक्ति, वांग्मय के अलावा देश भर  की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित 

कहानी संग्रह -  "बंद कमरे की रोशनी", "रसीद नम्बर ग्यारह"

सम्पादन- प्रस्फुरण पत्रिका, 

 'बारह क़िस्से टन्न'  भाग १, 

 'बारह क़िस्से टन्न'  भाग ३,

 'बारह क़िस्से टन्न'  भाग ४
फिल्म - जन सिनेमा की फिल्म 'कैद' के लिए पटकथा, संवाद लेखन 

अवार्ड - सविता भार्गव स्मृति सम्मान २०१३, विशम्भर नाथ चतुर्वेदी स्मृति सम्मान २०१४ 

- पूर्व सचिव - संकेत रंग टोली 

सह सचिव - जनवादी लेखक संघ,  मथुरा 

कार्यकारिणी सदस्य - जनवादी लेखक संघ राज्य कमेटी (उत्तर प्रदेश)

संपर्क- 56/56 शहजादपुर सोनई टप्पा, यमुनापार मथुरा २८१००१ 

phone- 08439244335

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