एक जिप्सी चितेरे का जीवन संघर्ष: (राजेश चन्द्र)

एक जिप्सी चितेरे का जीवन संघर्ष: (राजेश चन्द्र)

राजेश चन्द्र 324 11/18/2018 12:00:00 AM

मुंबई के बीहड़ फुटपाथों पर रात गुज़ारते हुए हुसैन सिनेमा के होर्डिंग बनाने का काम शुरू करते हैं और उनकी गुमनामी के दिन तब समाप्त होते हैं जब वे 1947 में प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप में शामिल होते हैं। फ्रांसिस न्यूटन सूज़ा के नेतृत्व में चला यह आंदोलन भारतीय कला जगत में इसलिये एक ख़ास मुकाम रखता है, क्योंकि इसने न सिर्फ़ भारतीय चित्रकला को पारंपरिक और रूढ़ बंगाली शैली से मुक्ति दिलायी, बल्कि उसे एक आधुनिक पश्चिमी शैली से अनुप्राणित भी किया। कल 17 सितम्बर को भारत के पिकासो कहे जाने वाले चित्रकार ‘एम० एफ़० हुसैन’ के जन्मदिवस पर उनके जीवन के कुछ संघर्षरत पहलुओं से अवगत कराता ‘राजेश चन्द्र’ का आलेख……

मोहब्बत को समझना है तो प्यारे ख़ुद मोहब्बत कर: स्मरण शेष, 'कादर खान'

मोहब्बत को समझना है तो प्यारे ख़ुद मोहब्बत कर: स्मरण शेष, 'कादर खान'

मनीष पाण्डेय " आशिक़ " 2106 1/2/2019 12:00:00 AM

'हमारी तारीफ़ ज़रा लम्बी है । बचपन से सर पर अल्लाह का हाथ और अल्लाहरक्ख़ा है अपने साथ । बाज़ू पर ७८६ का है बिल्ला, बीस नम्बर की बीड़ी पीता हूँ, काम करता हूँ क़ुली का और नाम है इक़बाल' - फ़िल्म क़ुली का एक संवाद ।

हिन्दुस्तानी फ़िल्म जगत के मशहूर चरित्र अभिनेता और लेखक कादर खान का आज कनाडा के अस्पताल में निधन हो गया. वह 81 साल के थे. कादर खान को हिन्दी फ़िल्मों के महान संवाद लेखक और हास्य अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है. नब्बे के दशक में, कादर खान और अभिनेता गोविंदा की जोड़ी ने अपनी शानदार कॉमेडी के ज़रिये भारतीय दर्शकों के दिल में अमिट छाप छोड़ दी थी. आज जब कादर खान साहब हमारे बीच नहीं हैं तो इस लेख के ज़रिये, हम उनकी ज़िंदगी के तमाम संघर्षों और उपलब्धियों को आपसे साथ साझा करेंगे. यही हम सबकी तरफ़ से कादर खान साहब को सच्ची श्रद्धांजली होगी.॰॰॰॰ मनीष पाण्डेय " आशिक़ " का आलेख 

कैसा है इंतिज़ार हुसैन का भारत: स्मरण शेष

कैसा है इंतिज़ार हुसैन का भारत: स्मरण शेष

हनीफ मदार 804 11/16/2018 12:00:00 AM

७ दिसंबर १९२३ को डिवाई बुलंदशहर, भारत में जन्मे इंतज़ार हुसैन पाकिस्तान के अग्रणी कथाकारों में से थे | वे भारत पाकिस्तान के सम्मिलित उर्दू कथा साहित्य में मंटो, कृश्नचंदर और बेदी की पीढ़ी के बाद वाली पीढ़ी के प्रमुख कथाकारों में से एक थे । उनकी स्कूली शिक्षा हापुड़ में हुई और १९४६ में मेरठ से उर्दू में एम.ए. की पढ़ाई पूरी करने के बाद विभाजन के कारण वे सपरिवार पाकिस्तान में बस गए। वैसे तो इंतजार हुसैन १९४४ से उर्दू में कहानियाँ लेखते रहे हैं किंतु विभाजन के बाद १९५० के आसपास इनका रचना संसार एकदम बदल गया और पाकिस्तान के उर्दू कथा साहित्य में एक चमकते सितारे की तरह इनका प्रवेश हुआ। इंतजार हुसैन ने अनेक अहम कहानियों के अलावा तीन उपन्यास भी लिखे हैं जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास बस्ती है। इसे पाकिस्तान के सबसे बड़े साहित्यिक पुरस्कार आदमजी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। बाद में इंतजार हुसैन ने यह पुरस्कार वापस कर दिया था । उनके निधन पर श्रृद्धांजलि स्वरूप, 2008 में ‘बी बी सी’ हिंदी के लिए ‘मिर्ज़ा ए. बी. बेग’ द्वारा किया गया उनका साक्षात्कार (‘बी बी सी हिंदी’ से साभार) ….

'मित्रो मरजानी' से अनंत यात्रा पर 'कृष्णा सोबती', स्मरण शेष

'मित्रो मरजानी' से अनंत यात्रा पर 'कृष्णा सोबती', स्मरण शेष

हनीफ मदार 1281 1/25/2019 12:00:00 AM

भारतीय साहित्य के परिदृश्य पर हिन्दी की विश्वसनीय उपस्थिति के साथ कृष्णा सोबती अपनी संयमित अभिव्यक्ति और रचनात्मकता के लिए जानी जाती रहीं उनकी लंबी कहानी मित्रो मरजानीके लिए  कृष्णा सोबती पर हिंदी पाठकों का फ़िदा हो उठना इसलिए नहीं था कि वे साहित्य और देह के वर्जित प्रदेश की यात्रा की ओर निकल पड़ी थीं बल्कि उनकी महिलाएं ऐसी थीं जो कस्बों और शहरों में दिख तो रही थीं, लेकिन जिनका नाम लेने से लोग डरते थे.यह मजबूत और प्यार करने वाली महिलाएं थीं जिनसे आज़ादी के बाद के भारत में एक खास किस्म की नेहरूवियन नैतिकता से घिरे पढ़े-लिखे लोगों को डर लगता था. कृष्णा सोबती का कथा साहित्य उन्हें इस भय से मुक्त कर रहा था. वास्तव में कथाकार अपने विषय और उससे बर्ताव में केवल अपने आपको मुक्त करता है, बल्कि वह पाठकों की मुक्ति का भी कारण बनता है. उन्हें पढ़कर हिंदी का वह पाठक जिसने किसी हिंदी विभाग में पढ़ाई नहीं की थी लेकिन अपने चारों तरफ हो रहे बदलावों को समझना चाहता था.

 

इसके अलावा निकष’, ‘डार से बिछुड़ी’, मित्रों मरजानी’, ‘यारों के यार’, ‘तिन-पहाड़’, ‘बादलों के घेरे’, ‘सूरज मुखी अँधेरे के’, ‘ज़िन्दगीनामा’, ‘ लड़की’, ‘दिलो-दानिश’, ‘हम हशमतऔर समय सरगमसे गुज़री आपकी लम्बी साहित्यिक ज़िंदगी में अपनी हर नई रचना में आपने ख़ुद अपनी क्षमताओं का अतिक्रमण किया जो सामाजिक और नैतिक बहसों की अनुगूँज के रूप में बौद्धिक उत्तेजना, आलोचनात्मक विमर्श, के साथ पाठकों में बराबर बनी रही

 

साहित्य अकादमी पुरस्कार और उसकी महत्तर सदस्यता के अतिरिक्त, अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों और अलंकरणों से शोभित कृष्णा सोबती साहित्य की समग्रता में ख़ुद के असाधारण व्यक्तित्व को भी साधारणता की मर्यादा में एक छोटी-सी कलम का पर्याय ही मानती रहीं बावज़ूद आपने हिन्दी की कथा-भाषा को एक विलक्षण ताज़गी दी आज अपने बीच से उनका चले जाना भले ही एक जीवन चक्र का पूरा होना हो किंतु यह सम्पूर्ण हिंदी साहित्य जगत के लिए एक ऐसी अपूर्णीय रिक्तता की तरह है  जिसे भर पाना नामुमकिन है

 

उन्हीं की एक कहानी के साथ हमरंगपरिवार कृष्णा सोबती को नमन करता है

जन-गण-मन एवं अन्य कवितायें, स्मरण शेष (रमाशंकर यादव ‘विद्रोही)

जन-गण-मन एवं अन्य कवितायें, स्मरण शेष (रमाशंकर यादव ‘विद्रोही)

रमाशंकर विद्रोही 702 11/16/2018 12:00:00 AM

3 जनवरी 1957 को फिरोज़पुर (सुल्तानपुर) उत्तरप्रदेश में जन्मे, रमाशंकर यादव ‘विद्रोही‘ हमारे बीच नहीं रहे … जैसे जे एन यू खाली हो गया है… जैसे फक्कड़ बादशाहों की दिल्ली खाली हो गयी है !! उनका बेपरवाह अंदाज़, फक्कडपन, और कविता में उनकी बुलंद आवाज़ की गूँज बहुत याद की जायेगी| ऐसा कोई कवि जो कहे मैं जनता का कवि हूँ, मैं तुम्हारा कवि हूँ, आज तो वाकई दुर्लभ है| उनका इतनी जल्दी जाना बहुत अखर रहा है| ऐसे समय में जब उनकी ज़रूरत सबसे ज्यादा है, वे चले गए हैं| हाँ लेकिन वे खुद को जीवित छोड़ गए हैं हमारे बीच, अपनी ख़ास कविताओं के रूप में जो गाई और सुनाई जायेंगीं हर शोषण के खिलाफ ‘विद्रोह, के रूप में …. | उनको याद करते हुए, उनकी कुछ कवितायें……. एवं फेसबुक पर उनके लिए त्वरित लिखी गईं ‘अनवर सुहैल‘ और ‘संध्या नवोदिता‘ द्वारा उनको याद करते हुए लिखी गई अभिव्यक्ति …..

हम न भूलेंगे आपको नीरज: स्मरण शेष (मोहसिन खान)

हम न भूलेंगे आपको नीरज: स्मरण शेष (मोहसिन खान)

डॉ0 मोहसिन खान 'तनहा' 416 11/17/2018 12:00:00 AM

‘नीरज’ का कवि जीवन विधिवत मई, 1942 से प्रारम्भ होता है। जब वह हाई स्कूल में ही पढ़ते थे तो उनका वहाँ पर किसी लड़की से प्रणय सम्बन्ध हो गया। दुर्भाग्यवश अचानक उनका बिछोह हो गया। अपनी प्रेयसी के बिछोह को वह सहन न कर सके और उनके कवि-मानस से यों ही सहसा ये पंक्तियाँ निकल पड़ीं: कितना एकाकी मम जीवन, किसी पेड़ पर यदि कोई पक्षी का जोड़ा बैठा होता, तो न उसे भी आँखें भरकर मैं इस डर से देखा करता, कहीं नज़र लग जाय न इनको। और इस प्रकार वह प्रणयी युवक ‘गोपालदास सक्सेना’ कवि होकर ‘गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ हो गया। पहले-पहल ‘नीरज’ को हिन्दी के प्रख्यात लोकप्रिय कवि श्री हरिवंश राय बच्चन का ‘निशा नियंत्रण’ कहीं से पढ़ने को मिल गया। उससे वह बहुत प्रभावित हुए था। इस सम्बन्ध में ‘नीरज’ ने स्वयं लिखा है – ‘मैंने कविता लिखना किससे सीखा, यह तो मुझे याद नहीं। कब लिखना आरम्भ किया, शायद यह भी नहीं मालूम। हाँ इतना ज़रूर, याद है कि गर्मी के दिन थे, स्कूल की छुटियाँ हो चुकी थीं, शायद मई का या जून का महीना था। मेरे एक मित्र मेरे घर आए। उनके हाथ में ‘निशा निमंत्रण’ पुस्तक की एक प्रति थी। मैंने लेकर उसे खोला। उसके पहले गीत ने ही मुझे प्रभावित किया और पढ़ने के लिए उनसे उसे मांग लिया। मुझे उसके पढ़ने में बहुत आनन्द आया और उस दिन ही मैंने उसे दो-तीन बार पढ़ा। उसे पढ़कर मुझे भी कुछ लिखने की सनक सवार हुई।…..’ ‘गोपालदास नीरज को याद करते हुए डॉक्टर ‘मोहसिन खान’

यादें हैं शेष, इंसान और इंसानियत को ऊँचाई देने वाले कवि की:

यादें हैं शेष, इंसान और इंसानियत को ऊँचाई देने वाले कवि की:

डॉ0 मोहसिन खान 'तनहा' 1706 11/17/2018 12:00:00 AM

कुंवर नारायण (19 सितम्बर, 1927, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश) हिन्दी के सम्मानित कवियों में गिने जाते हैं। कुंवर जी की प्रतिष्ठा और आदर हिन्दी साहित्य की भयानक गुटबाजी के परे सर्वमान्य है। उनकी ख्याति सिर्फ़ एक लेखक की तरह ही नहीं, बल्कि कला की अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले रसिक विचारक के समान भी है। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के माध्यम से वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं है। आपके संक्षिप्त परिचय के साथ आपकी कविताओं पर चर्चा करते हुए कुंवर नारायण को याद कर रहे हैं ‘डॉक्टर मोहसिन खान’

हाल ही में प्रकाशित

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