राष्ट्रगान की लय से टकराती बिदेसिया की धुन: आलेख (अनीश अंकुर)

विमर्श-और-आलेख विमर्श-और-आलेख

अनीश अंकुर 518 11/17/2018 12:00:00 AM

राजनीतिक सत्ता समाज के हाशिए पर रहने वाले बहिष्कृत तबकों केा भले ही पहचान अब मिली हो लेकिन भिखारी ठाकुर ने हमेशा अपने नाटकों के नायक इन तबकों से आने वाले चरित्रों को ही बनाया। उनके नाटकों के पात्रों केा देखने से ही इसका अंदाजा हो जाता है। बिदेसी, चेथरू, उपद्दर, गलीज, भलेहू, उदवास, चपाटराम ये सभी भिखारी ठाकुर के पात्र थे। समाजिक न्याय के सांस्कृतिक पुरोधा ‘भिखारी ठाकुर‘ की १२८ वीं जयंती पर ‘अनीश अंकुर‘ का विशेष आलेख … | – संपादक

राष्ट्रगान की लय से टकराती बिदेसिया की धुन   Anish Ankur

पिछले कुछ वर्षों से भिखारी ठाकुर की जयंती पर बिहार में कई आयोजन होने लगे हैं। दो-ढ़ाई दशकों के दौरान भिखारी ठाकुर की लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ प्रतीत होता है। जबकि भिखारी ठाकुर की जन्मशतीवर्ष 1987-88 में आयोजनों की शायद ही किसी केा याद है। उनका मशहूर नाटक ‘बिदेसिया’ बिहार मजदूरों के पलायन की परिघटना का जैसे जीवंत प्रतीक बन चुका है। ग्रामीण जीवन का जीवित दस्तावेज मानी जाती हैं उनकी तमाम कृतियां। वैसे तो भिखारी ठाकुर अपने जीवन में ही लीजेंड का दर्जा पा चुका थे। लेकिन पिछले दो-ढ़ाई दशकों के दौरान भिखारी ठाकुर का जैसे पुनः आविष्कार हुआ हो।

विशेषकर बिहार में 90 के दशक में पिछड़े-दलितों के सशक्तीकरण के दौर में भिखारी ठाकुर बिहार के सांस्कृतिक गौरवस्तंभ बन चुके हैं। राजनीतिक सत्ता समाज के हाशिए पर रहने वाले बहिष्कृत तबकों केा भले ही पहचान अब मिली हो लेकिन भिखारी ठाकुर ने हमेशा अपने नाटकों के नायक इन तबकों से आने वाले चरित्रों को ही बनाया। उनके नाटकों के पात्रों केा देखने से ही इसका अंदाजा हो जाता है। बिदेसी, चेथरू, उपद्दर, गलीज, भलेहू, उदवास, चपाटराम ये सभी भिखारी ठाकुर के पात्र थे। इस अर्थ में सियासत से पूर्व संस्कृति की दुनिया निचली जातियों केा अपना नायक भिखारी ठाकुर ने बनाया। प्रेमचंद के इस प्रसिद्ध वक्तव्य कि ‘‘ संस्कृति राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है’’ केा आधार बनाएं तो ये कहा जा सकता है कि बिहार की राजनीति में जो परिघटना 90 के दशक में घटती है भिखारी ठाकुर उसकी पूर्व-पीठिका तैयार करते हैं।
उनकी मूर्तियां स्थापित की गयीं, उनके नाम पर सड़क व पुल का नामकरण किया गया कई किताबें व षोध उन आने लगे हैं। उनके सृजनात्मक योगदान के बारे में नये सिरे से मूल्यांकन किया जा रहा है। ये सब उनकी मृत्यु के लगभग 45 वर्षों पश्चात हो रहा है। खुद भिखारी ठाकुर केा भी अंदाजा रहा हो, अपनी मौत के लगभग दो-तीन वर्ष पूर्व उन्होंने कहा
अबहीं नाम भइल बा थोरा, जब ई छूट जाई तन मोरा
तेकरा बाद पचास बरीसा, तेकरा बाद बीस-दा तीसा
तेकरा बा दनाम हाई जईहन पंडित,कवि, सज्जन यश गईहन

भिखारी ठाकुर अपनी सभी कृतियां मातृभाषा भोजपुरी में किया करते थे। वे कहते ‘‘ भोजपुरी घर के गुर हे’’। भोजपुरी भाषा की ताकत केा पहचानने के लिए महापंडित राहुल सांस्कृत्यान भिखारी ठाकुर का नाम लेते हैं ‘‘ हमनी के बोली में केतना जोर हवे, केतना तेज बा, इ अपने सब भिखारी ठाकुर के नाटक में देखीले।’’

भिखारी ठाकुर केा ‘अनगढ़ हीरा’, ‘भोजपुरी का शैक्सपीयर’ एवं ‘भरतमुनि का वंशज’ जैसी उपाधियों से विभूषित किया गया। 1954 में मदिनीपुर के कचरापाड़ा चैबीस परगना में इनकी कला केा लेकर बड़े पैमाने पर समीक्षा गोष्ठी होती है। भिखारी ठाकुर सम्मानित किए जाते हैं और उनकी कला को महत्वपूर्ण बताया जाता है।
उनके नाटकों में मनोरंजन के साथ-साथ समाज सुधार का सवाल अनिवार्य प्रश्न था स्त्रियों की दुर्दशा। कहा जाता है कि अपने परंपरागत पेशे ‘हज्जाम’ ने सवर्ण घरों की स्त्रियों की दुर्दशा व दयनीयता से भलीभांति परिचित करा दिय था। बेमेल विवाह पर उनका मशहूर नाटक ‘बेटी-बेचवा’ के संबंध बताते हुए भिखारी ठाकुर पर शोध करने वाले तैय्यब हुसैन ‘पीड़ित’ कहते हैं ‘‘ बेटी-बेचवा नाटक के प्रभाव से कथित बड़े घरों की प्रौढ़ लड़किया और अधिक इंतजार न कर अपने प्रेमियों के साथ भागने लगी थीं। सवर्णों के भिखारी विरोघ में कहीं न कहीं समाज के आम लोगों के हित में बए़ रहे प्रगतिशील कदम भी थे’’ इस नाटक में कमसिन बेटी के वृद्ध व्यक्ति से विवाह कर दिए जाने की तकलीफ केा इस गीत से समझा जा सकता है।
रूपिया गिनाई लिहल, पगहा धराई दिहल
चेरिया के छेरिया बनवल हो बाबूजी
;जिस तरह रूप्ये के बदले मवेशी की रस्सी किसी भी ग्राहकके हाथ में थमा दी जाती है, पिताजी! आपने अपनी बेटी के साथ वैस ही कियाद्ध
इस नाटक का उत्तरार्द्ध ‘विधवा-विलाप’ नाटक केा माना जाता है। जिसमें कम उम्र में विवाह का परिणाम वैधव्य में होता है। विधवा औरत के प्रति उपेक्षा व दुर्दशा केा चित्रित करता ये नाटक ‘बूढ़शाला’ यानी ‘ओल्ड ऐज होम’ की मांग करता है। भिखारी ठाकुर के जमाने में ‘ओल्ड ऐज होम’ की कल्पना वाकई अपने समय से आगे देखने की उनकी दूरदृष्टि का परिचायक है।
स्त्रियों केा केंद्र में रखकर लिए गए नाटकों में उनका प्रौढ़ नाटक ‘गबरघिचोर’ का नाम लिया जाता है। पति की गैरमौजूदगी में किसी परपुरूष से यौन संबंध स्थापित हो जाने के विचलन केा भिखारी ठाकुर स्वाभाविक मानते हैं। साथ ही बच्चे पर माता अधिकार की बात स्त्रियों अधिकार के पक्ष एक बेहद आगे बढ़ा हुआ प्रगतिशील कदम है।
भिखारी ठाकुर का सबसे चर्चित नाटक ‘बिदेसिया’ आज एक रंगशैली बन चुकी है। ‘बिदेसिया’ की परिघटना को समझने की संजीदा केाशिश चंद्रशेखर ; सीवान के रहने वाले जे.एन.यू छात्रसंघ के अध्यक्ष जिनकी 31 मार्च 1997 केा सीवान में हत्या कर दी गयी थी ने ऐतिहासिक संदर्भ में किया है ‘‘ सारण के निम्न वर्गों की भौतिक खुशहाली का आधार प्रवास और दूर देश से आने वाली नियमित आमदनी थी, तो इस प्रवास से पैदा भावानात्मक उथलपुथल ने बिदेसिया नामक नई सांस्कृतिक विधा के लिए माहौल मुहैया कराया’’ चंद्रशेखर के अनुसार प्रवास के परिघटना की जड़ में सारण के किसानों की ‘प्रतिरोध से बचने’ की रणनीति है। चंद्रशेखर र्की अंतदृष्टिसंपन्न टिप्पणी ध्यान देने योग्य है ‘‘ बिदेसिया केवल अनजानी दुनिया में अपनी पहचान उभारने की प्रवासियों के आकांक्षा की ही अभिव्यक्ति नहीं है, यह अपने देस की ‘पुरानी’ व्यवस्था की आलोचना का प्रयास भी है’’

भिखारी ठाकुर ने नाटकों के माध्यम से समाज सुधार की चेतना बंगाल से प्राप्त की। तैय्यब हुसैन ‘पीड़ित’ मानते हैं कि ‘‘ भिखारी ठाकुर पारंपरिक भक्ति नाट्य रामलीला, रासलीला से आगे यात्रा से प्रभावित होने लगे। बंगाल के अकाल के बाद उन्होंने ये देखा कि यात्रा पर भी बदलते देशकाल का प्रभाव पड़ रहा है। बंगाल के अकाल के बाद उसके कथ्य में तेजी से बदलाव आने लगा है। यही समय था जब भारतीय जन नाट्य संघ ‘इप्टा’ प्रकाश में आ चुका था। उसने कला के साथ समसामयिक समस्याएं रखनी शुरू कर दी। भिखारी ठाकुर केा भी लगा कि कला के माध्यम से समाज सुधार का काम किया जा सकता है’’
कई लोग भिखारी ठाकुर पर यह आक्षेप लगाते हैं कि उनके नाटकों में आजादी की लड़ाई की अनुगूंज सुनायी नहीं पड़ती। प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह की ‘भिखारी ठाकुर’ पर लिखी मशहूर कविता की पंक्तियां हैं

‘‘इस तरह एक सांझ से दूसरी भोर तक
कभी किसी बाजार के मोड़ पर
कभी किसी उत्सव के बीच खाली जगह में
अनवरत रहता रहा
वह अजब सा, बेचैन सा
चीख भरा नाच
जिसका आजादी की लड़ाई में केाई जिक्र नहीं
पर मेरा ख्याल है चर्चिल केा सब पता था’’

इस लंबी कविता की अंतिम पंक्तियां हैं

और अब यह बहस तो चलती ही रहेगी
कि नाच का आजादी से रिश्ता क्या है?
और अपने
राष्ट्रगान की लय में ऐसा क्या है
जहाँ रात-बिरात टकराती है बिदेसिया की लय

अनीश अंकुर द्वारा लिखित

अनीश अंकुर बायोग्राफी !

नाम : अनीश अंकुर
निक नाम :
ईमेल आईडी :
फॉलो करे :
ऑथर के बारे में :

लेखक जानेमाने संस्कृतिकर्मी और स्वतन्त्र पत्रकार हैं।

205, घरौंदा अपार्टमेंट ,                                            

 पष्चिम लोहानीपुर

कदमकुऑंपटना-3   

अपनी टिप्पणी पोस्ट करें -

एडमिन द्वारा पुस्टि करने बाद ही कमेंट को पब्लिश किया जायेगा !

पोस्ट की गई टिप्पणी -

हाल ही में प्रकाशित

नोट-

हमरंग पूर्णतः अव्यावसायिक एवं अवैतनिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक साझा प्रयास है | हमरंग पर प्रकाशित किसी भी रचना, लेख-आलेख में प्रयुक्त भाव व् विचार लेखक के खुद के विचार हैं, उन भाव या विचारों से हमरंग या हमरंग टीम का सहमत होना अनिवार्य नहीं है । हमरंग जन-सहयोग से संचालित साझा प्रयास है, अतः आप रचनात्मक सहयोग, और आर्थिक सहयोग कर हमरंग को प्राणवायु दे सकते हैं | आर्थिक सहयोग करें -
Humrang
A/c- 158505000774
IFSC: - ICIC0001585

सम्पर्क सूत्र

हमरंग डॉट कॉम - ISSN-NO. - 2455-2011
संपादक - हनीफ़ मदार । सह-संपादक - अनीता चौधरी
हाइब्रिड पब्लिक स्कूल, तैयबपुर रोड,
निकट - ढहरुआ रेलवे क्रासिंग यमुनापार,
मथुरा, उत्तर प्रदेश , इंडिया 281001
info@humrang.com
07417177177 , 07417661666
http://www.humrang.com/
Follow on
Copyright © 2014 - 2018 All rights reserved.